18 Jul लैंगिक समानता में भारत की स्थिति
संदर्भ क्या है ?
- हाल ही में विश्व आर्थिक मंच द्वारा लैंगिक समानता पर रिपोर्ट जारी की गई है। इसके अनुसार, भारत ने पिछले वर्ष की तुलना में पुरुषों और महिलाओं के लिए समानता प्राप्त करने में कुछ प्रगति की है। वैश्विक रैंकिंग में देश को पांच स्थान का लाभ हुआ है। इसके बावजूद भारत इस सूची में 135वें स्थान पर है। दुनिया के 146 देशों की सूची में भारत को 135वें स्थान पर रखा गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और नए अवसरों को प्रोत्साहित किया गया है, जो लैंगिक समानता के दो संकेतक हैं।
- इसके साथ ही विश्व आर्थिक मंच ने चेतावनी दी है कि आजीविका के संकट से महिलाओं के सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है। श्रम बल में लैंगिक अंतर को पाटने में 132 साल और लगेंगे। पहले इसे 136 साल लगने का अनुमान लगाया गया था।
- रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि COVID-19 ने लैंगिक समानता को एक पीढ़ी पीछे धकेल दिया है। कमजोर रिकवरी रेट वैश्विक स्तर पर इसे और प्रभावित कर रहा है।
लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, 2022
- लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (जेंडर गैप रिपोर्ट) 2022 के अनुसार, लैंगिक समानता में आइसलैंड अब भी सबसे ऊपर है। इसके बाद फिनलैंड, नॉर्वे, न्यूजीलैंड और स्वीडन का स्थान है।
- भारत की रैंकिंग सुधरने के बावजूद लैंगिक समानता के मुद्दे में सिर्फ 11 देश ही उससे नीचे हैं, अर्थात भारत की 135वीं रैंकिंग 146 देशों की तुलना में है।
- भारत से निचली रैंकिंग में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कॉन्गो, ईरान और चाड जैसे देश हैं। यह सभी देश रैंकिंग में सबसे नीचे के पांच पायदान पर हैं।
रिपोर्ट में भारत की स्थिति
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत लैंगिक अंतर का स्कोर पिछले 16 वर्षों में सातवें सर्वोच्च स्तर पर दर्ज किया गया है, लेकिन यह विभिन्न मानदंडों पर सर्वाधिक खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल है।
- पिछले वर्ष से भारत ने आर्थिक साझेदारी और अवसर पर अपने प्रदर्शन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक बदलाव दर्ज किया, लेकिन श्रम बल भागीदारी 2021 से पुरूषों और महिलाओं, दोनों की कम हो गई है।
- महिला सांसदों/विधायकों, वरिष्ठ अधिकारियों और प्रबंधकों की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत से बढ़ कर 17.6 प्रतिशत हो गई है। वहीं, पेशेवर और तकनीकी श्रमिकों के रूप में महिलाओं की हिस्सेदारी 29.2 प्रतिशत से बढ़ कर 32.9 फीसदी हो गई।
स्वास्थ्य-जीवन प्रत्याशा में भारत की स्थिति
- स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा सूचकांक में भारत की रैंकिंग सबसे खराब है और यह 146वीं रैंक पर है। इस मानक में भारत यह उन पांच देशों में शामिल है, जहां का लैंगिक अंतर पांच प्रतिशत से ज्यादा है।
- अन्य चार देश-कतर, पाकिस्तान, अजरबैजान और चीन हैं। हालांकि, प्राथमिक शिक्षा में दाखिले से लैंगिक समानता में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है।
- महामारी के दौरान श्रम बाजार को नुकसान पहुंचने के बाद जीवनयापन की लागत पर आये संकट ने महिलाओं को काफी प्रभावित किया है।’’
लैंगिक समानता का सामान्य परिदृश्य
- लैंगिक समानता के लिए समान वेतन, अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है। महिलाओं के जीवन में वास्तविक सकारात्मक बदलाव तभी आ सकता है जब उनके रोजगार की उचित व्यवस्था की जाए।
- समान वेतन, अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण छोटे रोजगार के लिए ग्राम स्तर पर ही आवश्यक है। महिलाएं भी राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर अपने अनुकूल अधिकार की अपेक्षा करती हैं, क्योंकि उनमें निर्णय लेने और पुरुषों की तरह बेहतर परिणाम देने की क्षमता भी होती है।
- भारतीय महिलाएं अब अपने भविष्य को लेकर पहले से कहीं ज्यादा चिंतित हैं। रूढ़िवादिता, कदाचार की सीमाएं समाप्त हो रही हैं। 21वीं सदी में बड़ी संख्या में महिलाएं शिक्षक, इंजीनियर, प्रशासक, डॉक्टर, वैज्ञानिक बनकर उच्च पदों पर पहुंची हैं।
महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए सुझाव
- महिलाओं ने रोजगार के कई क्षेत्रों में अपनी भागीदारी बढ़ाकर अपनी पहचान बनाई है। महिलाएं नौकरी के साथ-साथ घर, बच्चों की देखभाल भी कर रही हैं। स्वाभिमान के साथ स्वावलंबन की ओर बढ़ रहे हैं। इसे देखते हुए महिलाओं को उद्यमिता के लिए किफायती ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जाए। उन्हें रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए। पिछले दो-तीन दशकों में महिलाओं की सोच में बदलाव आया है। वे आर्थिक रूप से मजबूत हो गए हैं। ऐसे में महिलाओं को राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर प्राथमिकता देने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।
- इसके अलावा निजी क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की सेवा शर्तें भी सरकार तय करे।
- गर्भावस्था और मां बनने के बाद महिलाओं को निजी कंपनियों में जरूरी छुट्टी नहीं मिलती है। कई निजी कंपनियां गर्भधारण के बाद उन्हें नौकरी से निकाल देती हैं। इस पर नियंत्रण होना चाहिए।
कुल मिलाकर देश की प्रगति के लिए हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी जरूरी है। जब तक राजनीति, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ेगी, उन्हें समानता का अधिकार नहीं मिल सकता है।
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