डीप सी माइनिंग

डीप सी माइनिंग

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री द्वारा मध्य हिंद महासागर में गहरे समुद्र में खनन प्रणाली का दुनिया का पहला लोकोमोटिव परीक्षण करने वाले भारतीय वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार प्रदान किया है।

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के 16वें स्थापना दिवस पर यह पुरस्कार राज्य मंत्री द्वारा  प्रदान किया गया।
  • इसके अतिरिक्त  भारत के डीप ओशन मिशन के हिस्से के रूप  में हिंद महासागर के लिये अपनी तरह का पहला और पूरी तरह से अत्याधुनिक स्वचालित बोया-आधारित तटीय अवलोकन एवं पानी की गुणवत्ता वाली नाउकास्टिंग प्रणाली का उद्घाटन किया, जिसे इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (INCOIS) द्वारा विकसित किया गया था।

नाउकास्टिंग प्रणाली (Nowcasting System) क्या है?:

  • नाउकास्टिंग प्रणाली तटीय निवासियों, मछुआरों, समुद्री उद्योग, शोधकर्त्ताओं , प्रदूषण, पर्यटन, मत्स्य पालन और तटीय पर्यावरण से निपटने वाली एजेंसियों सहित विभिन्न हितधारकों को लाभ पहुँचाने के लिये है। इस पद्धति में स्थानीय वायुमंडलीय स्थितियों के रडार और उपग्रह अवलोकनों को संसाधित किया जाता है तथा कंप्यूटर द्वारा कई घंटे पहले मौसम को प्रोजेक्ट करने के लिये तेज़ी से प्रदर्शित किया जाता है।

डीप सी माइनिंग:

  • गहरे समुद्र क्षेत्र से खनिज निकालने की प्रक्रिया को डीप सी माइनिंग के रूप में जाना जाता है। 200 मीटर से अधिक की गहराई पर स्थित समुद्री भाग को गहरे समुद्र के रूप में पारिभाषित किया जाता है।
  • गहरे समुद्र में खनिज संसाधनों से संबंधित सभी गतिविधियों की निगरानी के लिये  अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण द्वारा, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के तहत एक एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल, वह क्षेत्र जो राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमा से परे है और दुनिया के महासागरों के कुल क्षेत्रफल का लगभग 50% का प्रतिनिधित्व करता है।

विभिन्न  क्षेत्रों में खनिजों की खोज

डीप सी माइनिंग के तहत चुनौतियाँ:

  • डीप सी माइनिंग के कारण समुद्री जैव विविधता और पारिस्थितकी तंत्र को भारी नुकसान पहुँचता है, 
  • खनन के लिए प्मरयोग की जाने वाली मशीनों द्वारा समुद्र तल की खुदाई और मापन गहरे समुद्र में स्थित विभिन्न जीवों के प्राकृतिक आवासों को बदल या नष्ट कर सकता है।
  • इस कारण से उन विशेष स्थानों पर रहने वाली विभिन्न प्रजातियाँ जो विशेष तौर कुछ विशेष स्थानों पर पाई जाती है, उनको प्रवास सम्बन्धी नुकसान होता है, और पारिस्थितिकी तंत्र संरचना एवं कार्य का विखंडन या नुकसान होता है।
  • खनन के कारण समुद्र तल पर महीन तलछट जो खनन के कारण उत्पन्न होंगे उन निलंबित कणों का ढेर लग जायेगा।
  • खनन जहाजों द्वारा समुद्र की सतह पर अपशिष्ट जन का निर्वहन बढ़ा दिया जायेगा।
  • खनन उपकरण और सतह पर चलने वाले जहाज़ों के कारण होने वाले शोर, कंपन तथा प्रकाश प्रदूषण के साथ-साथ ईंधन एवं ज़हरीले उत्पादों के संभावित रिसाव और फैलाव से व्हेल, टूना और शार्क जैसी प्रजातियाँ प्रभावित हो सकती हैं।

 डीप ओशन मिशन और भारत :

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार भारत जल्द ही एक महत्वाकांक्षी ‘डीप ओशन मिशन’ की शुरुआत करने वाला है, जो सागरों, महासागरों के जल के नीचे की दुनिया के खनिज, ऊर्जा और समुद्री विविधता की खोज करेगा या जानकारी प्राप्त करेगा, जिसका एक बड़ा भाग अभी भी अस्पष्टीकृत है और इसके बारे में व्यापक शोध और अध्ययन किया जाना अभी बाकी है.

  • इस मिशन की लागत, 4,000 करोड़ से अधिक है. यह मिशन भारत के विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) और महाद्वीपीय शेल्फ (Continental Shelf) का पता लगाने के प्रयासों को बढ़ावा देगा.
  • इस मिशन के प्रमुख घटक अंडरवाटर रोबोटिक्स (Underwater robotics) और ‘मानवयुक्त’ सबमर्सिबलस’ (manned submersibles) हैं. ये विभिन्न संसाधनों जैसे जल, खनिज और ऊर्जा का सीबेड और गहरे पानी से दोहन में भारत की मदद करेंगे.
  • गहरे समुद्र से खनिजों को निकालने के लिए  महतवपूर्ण और आवश्यक तकनीकों का विकास करना परमावश्यक है, तभी डीप मिशन की खोज करना संभव हो सकता है।  
  • समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ तीन लोगों को ले जाने के लिए मानवयुक्त पनडुब्बी का विकास करना होगा।
  • गहरे समुद्र से खनिज अयस्कों को निकालने के लिये एकीकृत खनन प्रणाली को विकसित किया जायेगा ।
  • यह गहरे समुद्र में जैवविविधता की खोज और संरक्षण के लिये “गहरे समुद्र के वनस्पतियों और जीवों के जैव-पूर्वेक्षण एवं गहरे समुद्र में जैव-संसाधनों के सतत् उपयोग पर अध्ययन” के माध्यम से तकनीकी नवाचारों को आगे बढ़ाएगा।
  • मिशन “अपतटीय महासागर थर्मल ऊर्जा रूपांतरण (OTEC) संचालित विलवणीकरण संयंत्रों के लिये अध्ययन और विस्तृत इंजीनियरिंग डिज़ाइन के माध्यम से समुद्र से ऊर्जा व मीठे जल प्राप्त करने की संभावनाओं का पता लगाने की कोशिश करेगा।
    • भारत के विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र और महाद्वीपीय शेल्फ का पता लगाने के प्रयासों को बढ़ावा देगा।
    • मानव सबमर्सिबल (Human Submersibles) के डिजाइन, विकास और प्रदर्शन को बढ़ावा मिलेगा।
    • गहरे समुद्र में खनन और आवश्यक प्रौद्योगिकियों के विकास की संभावना का पता लगाने में मदद करेगा।
    • हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति बढ़ाएगा।
  • यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीन, कोरिया और जर्मनी जैसे अन्य देश भी इस गतिविधि में हिंद महासागर क्षेत्र में सक्रिय हैं. पिछले हफ्ते, चीन ने मारियाना ट्रेंच के तल पर खड़ी अपनी नई मानव-निर्मित सबमर्सिबल की फुटेज को लाइव-स्ट्रीम किया था. यह ग्रह पर सबसे गहरी पानी के नीचे घाटी में इस मिशन का हिस्सा था।

खनन का पर्यावरणीय प्रभाव :-

  • प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) के अनुसार, ये गहरे दूरस्थ स्थान कई विशेष समुद्री प्रजातियों के घर भी हो सकते हैं.  इन प्रजातियों ने स्वयं को कम ऑक्सीजन, कम प्रकाश, उच्च दबाव और बेहद कम तापमान जैसी स्थितियों के लिये अनुकूलित किया है. इसलिए हो सकता है कि इस प्रकार के खनन कार्यों से उनकी प्रजाति और उनके निवास स्थान पर खतरा उत्पन्न हो. साथ ही ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस प्रकार  के खनन अभियान उनकी खोज के पहले ही उन्हें विलुप्त कर सकते हैं.
  • अभी तक गहरे समुद्र की जैव-विविधता और पारिस्थितिकी की काफी कम समझ है, इसलिये इनके पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना और पर्याप्त दिशा-निर्देशों को तैयार करना भी कठिन हो जाता है.

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