असम के 8 आदिवासी समुदाय का केंद्र के साथ समझौता 

असम के 8 आदिवासी समुदाय का केंद्र के साथ समझौता 

असम के 8 आदिवासी समुदाय का केंद्र के साथ समझौता 

भारत में लगभग 700 अनुसूचित आदिवासी समुदाय है, जो इतिहास में जल, जंगल जमीन के लिए संघर्ष करते दिखाए गए हैं। जैसे – असम के बिरसा मुण्डा। असम में एसे ही कई आदिवासी समुदाय हैं जो वर्षों से सरकार के साथ संघर्षरत हैं। संघर्षों व विवाद के कारण वे विकास की मुख्य धारा में नहीं आ पा रहे हैं। 

असम के आदिवासी समुदाय-

असम की आबादी मंगोलियाई, इंडो बर्मी, इंडो ईरानी और आर्य मूल का एक व्यापक अंतर मिश्रण है। असम की प्रमुख जनजातियाँ बोडो, कार्बी, मिशिंग, सोनोवाल, कचारी, देवरी, राभास, दिमासा, तिवारी, ताई फेक, समंगपो, कुकी, खेलमा, चाय जनजाति हैं। 

वर्षों से असम में आदिवासी समुदाय अपने समुदाय व संस्कृति को बचाने के लिए हिंसात्मक गतिविधि में लिप्त रहे हैं जिससे उन्हें विकास की मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किया जा रहा है।

आदिवासी समुदायों का भारत सरकार के समक्ष समर्पण

  • गुवाहाटी में विभिन्न संगठनों ने 23 जनवरी 2021 को आत्मसमर्पण किया।तथा 177 हथियार, 52 ग्रेनेड, 71 बंम, 3 रॉकेट लांचर, 306 डेटॉनेटर, 1.93 किग्रा विस्फोटक व 1686 किग्रा विस्फोटक जमा करवाए गए।
  1. रावा नेशनल लिबरेशन फ्रंट
  2. कम्यूनिस्ट पारटी ऑफ इंडिया
  3. राष्ट्रीय संथाल लिबरेशन आर्मी
  4. आदिवासी ड्रैगन फआइटर
  5. नेशनल लिबरेसन फ्रंट ऑफ इंडिया
  • इसी प्रकार कार्बी समूह के 1040 कैडर्स ने फरवरी 2021 में आत्मसमर्पण कर दिया।
  • 27 जनवरी 2022 को 708 भूमिगत कैडर ने आत्मसमर्पण कर दिया। जो निम्न संगठन से संबंधित थे- 
  1. यूनाइटेड गोरखा पिपल्स ऑर्गेनाइजेशन 
  2. तिवा लिबरेसन आर्मी
  3. राभा नेशनल लिबरेशन फ्रंट
  4. आदिवासी ड्रैगन फ्रंट 
  5. नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ बंगाली
  6. नेशनल संथाल लिबरेशन आर्मी

संदर्भ- हाल ही में केंद्र सरकार ने स्थायी शांति स्थापना के लक्ष्य के साथ असम के 8 आदिवासी समुदायों के साथ त्रिपक्षी समझौता किया जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार और आदिवासी समुदाय शामिल थे। 

  • ऑल आदिवासी नेशनल लिबरेशन आर्मी  का गठन 2006 में हुआ था। 
  • इनके पूर्वजों को ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा उत्तर भारत से लाया गया था।
  •  यह चाय बागान श्रमिक जनजाति के लिए लड़ने का दावा करते हैं।
  •  संगठन आदिवासी समुदाय के लिए अदिवासी जनजाति का दर्जा और संस्थान आदिवासी विस्थापित सदस्यों के लिए पुनर्वास की मांग करता है। 
  • कार्बी आंगलोंग व गोलाघाट संगठन का कार्यक्षेत्र  है।

आदिवासी कोबरा मिलिटेण्ट ऑफ असम, भारत के नीचले असम में एक उग्रवादी समूह था। 

  • जिसका उद्देश्य सशस्त्र युद्ध के माध्यम से समुदाय की रक्षा करना है।
  • संथालों ने अपने हितों की रक्षा के लिए नागा जातियों के साथ 7 जुलाई 1996 को संगठन स्थापित किया।
  • यह समूह कोकराझार और बोंगाईगांव क्षेत्र से संचालित होता था।

बिरसा कमांडो फोर्स का गठन 1997 में हुआ था।

  • इसका उद्देश्य एक अलग आदिवासी भूमि और एक अलग आदिवासी जनजाति का दर्जा हासिल करना था।
  • इसके साथ ही समुदाय के लिए सुरक्षा की मांग करना।
  • 2004 से संघर्ष विराम की स्थिति में था।

संथाल टाइगर फोर्स और आदिवासी पिपुल्स आर्मी- एक दशक पहले बोडो आदिवासियों ने झारखण्ड से असम आने वाले संथाल आदिवासियों को मारना शुरु कर दिया ऐसी परिस्थिति में असम के संथाल आदिवासियों ने संथालियों की रक्षा के लिए संगठन बनाना शुरु किया। 

आदिवासी समुदायों के साथ समझौतों का प्रावधान-

  • समुदायों के सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय पहचान की रक्षा करना।
  • गाँवों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 5 साल में 1000 करोड़ क विशेष पैकेज।
  • राजनीतिक, आर्थिक व शैक्षिक आकांक्षाओं को पूरा करना।
  • आदिवासी गांवों के चाय बागानों का त्वरित विकास करना.
  • आदिवासी विकास व कल्याण परिषद की स्थापना करना।
  • केंद्र व असम सरकार द्वारा सशस्त्र समूहों के कैडरों के पुनर्वास और चाय बागान श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रयास करना।

स्रोत-

 

https://www.livehindustan.com/ncr/new-delhi/story-bureau-center-assam-government-39-s-agreement-with-eight-tribal-groups-7086544.amp.html

https://www.mha.gov.in/sites/default/files/NE_Major_Achievements_14032022H.PDF

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 16th September

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