जैव अपघटक

जैव अपघटक

जैव अपघटक

संदर्भ- इस वर्ष धान की पराली की समस्या कम करने में डिकम्पोजर मददगार साबित हो सकता है। दरअसल खरीफ फसल की समाप्ति व रबी की फसल के प्रारंभ के समय दिल्ली में 5000 एकड़ जमीन पर धान की पराली जलाने के स्थान पर डिकंपोजर का छिड़काव किया जाएगा।

जैव अपघटन- जैव अपघटक जटिल कार्बनिक तत्वों को अकार्बनिक तत्वों जैसे- कार्बन डाई ऑक्साइड, जल एवं पोषकों में खण्डित करने में सहायता करते हैं। और इस प्रक्रिया को अपघटन कहा जाता है। जटिल कार्बनिक तत्वों में पत्तियां, छाल, फूल व प्रणियों के मृत अवशेष हैं। 

अपघटन की प्रक्रिया अपघटन हेतु विशेष प्रक्रिया का परिचालन होता है। खंडन, निक्षालन, अपचयन, ह्यूमस आदि। गर्म व आर्द्र पर्यावरण में अपघटन की प्रक्रिया तेज होती है। जबकि निम्न ताप में ही अपघटन की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और कार्बनिक पदार्थों का ढेर जमा हो जाता है।

  • खंडन- अपरदाहारी जैसे केंचुआ, अपरद को छोटे छोटे कणों में खण्डित करते हैं। 
  • निक्षालन- जल विलेय अकार्बनिक पोषक भूमि मृदा संस्तर में प्रविष्ट कर जाते हैं।और अनुपलब्ध लवण के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं।
  • अपचयन इस प्रक्रिया में बैक्टीरियल एवं कवक एंजाइम अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्वों में तोड़ देते हैं।
  • ह्यूमस यह प्रक्रिया अपघटन के दौरान मृदा में सम्पन्न होती है। इसमें एक गहरे रंग के क्रिस्टल रहित तत्व का निर्माण होता है। इसे ह्यूमस कहा जाता है। यह मिट्टी का जैव अंश होता है।
  • खनिज ह्यूमस पुनः खनिजीकरण की प्रक्रिया द्वारा विखण्डित होता है जिसमें अकार्बनिक पोषक तत्व उत्पन्न होते हैं।

प्रचलित पराली दहन के स्थान पर जैव अपघटकों का प्रयोग क्यों किया जा रहा है?

  • पराली दहन से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जबकि जैव अपघटक, प्राकृतिक रूप से कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करते हैं। 
  • पराली दहन से मृदा के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
  • पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोतरी।

पराली क्या है?

धान एक खरीफ फसल है जिसका समय उत्तर भारत में जून से अक्टूबर तक होता है। पराली धान की फसल कटने के बाद बचा हिस्सा होता है, किसान फसल का उपरी हिस्सा जिसमें धान की बालिया होती है मशीनों द्वारा काट लेते हैं, शेष भाग कृषि क्षेत्र में ही होता है। फसल कट जाने के बाद रबी की फसल की तैयारी के लिए खेत खाली करना होता है, अधिकांश क्षेत्रों मे पराली का कोई प्रयोग नहीं किया जाता इसलिए उसे जला दिया जाता है। छोटे किसान जो अपनी फसल को हाथ से काटते हैं वे इस पराली को चारे के रूप में प्रयोग करते हैं। 

इसका एक अन्य कारण यह भी है कि खरीब की फसल कम तापमान में तैयार होती है जिस समय प्राकृतिक अपघटन की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। और पराली का जल्द निपटान प्राकृतिक रूप से नहीं हो पाता और किसानों को पराली जलाना पड़ता है।

पराली दहन कम करने के प्रयास-

पिछले कुछ वर्षों से नवम्बर व दिसम्बर माह में दिल्ली के वातावरण में धुंध की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। जिसका एक कारण धान की पराली को भी माना जा रहा है। इसे कम करने के लिए पराली दहन को कम करने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है।

  • 2016 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर हरियाणा राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड गांवों पर नजर रखता था कि कहीं भी पराली न जले। NGT नेर 2 एकड़ भूमि में पराली जलाने पर 2500 रुपये तथा 2-5 एकड़ की भूमि पर पराली जलाने पर 5000 रुपये और 5 एकड़ से ज्यादा भूमि पर पराली जलाने पर 15000 रुपये तक का जुर्माने का प्रवधान रखा था।
  • 2019 में हैप्पी सीडर मशीन को पराली प्रदूषण नियंत्रण का एक यंत्र बताया जा रहा था किंतु इसकी लागत(70000-175000) अधिक होने के कारण यह उपाय जमीनी स्तर पर कारगर सिद्ध न हो सका।
  • पराली को जैव अपघटकों द्वारा नष्ट करने के लिए प्रथम प्रयास 2020 में 300 किसानों की 1949 एकड़ भूमि में इसे छिड़क कर किया गया था। इसके बाद 2021 में भी 844 किसानों के 4200 एकड़ भूमि में छिड़काव किया गया। इस वर्ष दिल्ली की 5000 एकड़ भूमि पर छिड़काव किया जाएगा।

पूसा डिकम्पोजर के छिड़काव का तरीका-

  • 2021 के अपघटक के छिड़काव के अनुसार पानी को गुड़ के साथ उबालकर ठंडा कर लिया जाता है।
  • इसके उपरांत कवक युक्त कैप्सूल को पानी के मिश्रण में मिलाया जाता है। 
  • फिर इस पूरे मिश्रण को मलमल के कपड़े से जीन चार दिन के लिए ढक दिया जाता है ताकि फंगस पनप सके। 
  • तीन चार दिन के बाद फंगस वाले घोल को मिट्टी में मिलाया जाता है। 
  • एक एकड़ भूमि में छिड़काव के लिए 10 लीटर घोल की आवश्यकता होती है।
  • घोल तैयार होने में 10 दिन का समय लगता है। 
  • डिकमपोजर का छिड़काव उस भूमि के लिए प्रभावकारी होता है जहाँ कंबाइन हार्वेस्टर मशीन का प्रयोग फसल काटने के लिए किया गया हो। 

स्रोत-

https://indianexpress.com/article/

Yojna IAS Daily Current Affairs Hindi med 22 September

 

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