22 Mar भूजल में कमी
भूजल में कमी
संदर्भ- भूजल में आ रही कमी के कारण एक संसदीय रिपोर्ट में कहा गया है कि सिंचाई में बिजली के पंपों के द्वारा भू जल के उपयोग को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट के अनुसार बिजली के सीमित उपयोग को बनाए रखने के लिए प्रीपेड कार्ड की आवश्कता है।
समिति ने सिफारिश की है कि जल शक्ति मंत्रालय के तहत जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग को पहल करनी चाहिए और राज्य सरकारों के साथ-साथ बिजली मंत्रालय और कृषि और किसान कल्याण विभाग दोनों को सुझावों के अनुसार उपाय करने का आग्रह करना चाहिए।
भूजल-
धरती की सतह के नीचे चट्टानों के बीच अंतराकाश में उपस्थित जल को भू जल या भूगर्भिक जल कहा जाता है। जिन चट्टानों में जल का जमाव होता है उन्हें जलभृत कहा जाता है। सामान्यथः जलभृत रेत, बजरी, बलुआ पत्थर आदि से बने होते हैं। जलभृतों में जिस स्थान पर पानी मिलता है उन्हें संतृप्त जोन कहते हैं। वर्षा के समय यह जलस्रोत बढ़ जाते हैं और इनके अत्यधिक दोहन से इनका स्तर कम हो जाता है।
भूजल में कमी के कारण
विशेषज्ञों के अनुसार भारत भूजल दोहन के संकट की ओर बढ़ रहा है। यह इस आधार पर कहा जाता है जब जलभृतों में जल उपभोग, जल जमाव की अपेक्षा अधिक तेजी से होने लगे। भारत में सतही जल की मात्रा भूजल से अधिक होने के बाद भी भूजल का अत्यधिक उपयोग होता है, क्योंकि भूजल प्राप्त करने की तकनीक आसान होती है।
भारत में भूजल का अत्यधिक उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। इसके बाद घरेलू उपयोगों व उद्योंगों में इसका प्रयोग किया जाता है। भारत में सिंचाई के लिए भारत में सिंचाई के उपयोग के लिए नहरें, टैंक, कुंए व ट्यूब वैल तकनीक का प्रयोग होता है। सिंचाई के लिए प्रयुक्त होने वाली सभी तकनीकों में सर्वाधिक ट्यूब वैल का प्रयोग किया जाता है। इसके माध्यम से कुल सिंचाई में प्रयुक्त जल का 61.1% उपभोग किया जाता है।
ट्यूब वैल/नलकूप सिंचाई –
- भारत में पहला नलकूप या ट्यूबवैल का प्रयोग 1930 में उत्तर प्रदेश में किया गया था।
- हरित क्रांति के समय सिंचाई उपकरणों से संबंधित प्रयोगों के लिए सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं के कारण सिंचाई का उपयोग बढ़ा है।
- भारत में सिंचाई के लिए धान व गेहूँ की फसल में सर्वाधिक जल का प्रयोग किया जाता है।वर्तमान भारत में भी सर्वाधिक नलकूप सिंचाई वाला क्षेत्र उत्तर प्रदेश में है।
- नलकूप पद्धति में विद्युत का उपयोग किया जाता है। भारत में बिजली की दरों में कमी के कारण जल की निकासी के लिए ट्यूबवैल का अंधाधुंध प्रयोग हुआ है। जिसके काऱण भूजल स्तर में कमी का एक महत्वपूर्ण कारक है।
चार्टिंग अवर वाटर फ्यूचर रिपोर्ट
पानी की कमी, लागत, पैमाना व व्यापार में प्रयोग को अधिक स्पष्टता प्रदान करने के लिए, भूजल के भविष्य की चार्टिंग रिपोर्ट तैयार की गई। यह अध्ययन, जल चुनौती के “अपस्ट्रीम” के निम्न तत्वों पर केंद्रित है,:
- भूजल को निकालना- बांधों और जलाशयों या भूजल पम्पिंग के माध्यम से
- पानी को उसके मांग केंद्र तक पहुंचाना- कृषि नहरों के माध्यम से
- बिजली उत्पादन, कृषि, और नगरपालिका उपयोग जैसे क्षेत्रों में पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार करके जल संसाधन उपलब्धता में वृद्धि करना। उदाहरण के लिए बिजली संयंत्रों में शुष्क शीतलन के माध्यम से, या कृषि में ड्रिप सिंचाई के माध्यम से, जिसके परिणामस्वरूप शुद्ध निकासी में कमी आ सकती है।
अध्ययन के अनुसार 2030 तक, भारत में भूजल की मांग लगभग 1.5 ट्रिलियन वर्ग मीटर तक बढ़ जाएगी, जो कि बढ़ती आबादी के लिए चावल, गेहूं और चीनी की घरेलू मांग से प्रेरित है, जिसका एक बड़ा हिस्सा मध्यवर्गीय मांग में बढ़त के कारण बढ़ रहा है। भारत की वर्तमान जलापूर्ति लगभग 740 बिलियन घन मीटर है। परिणामस्वरूप, भारत के अधिकांश नदी घाटियों को 2030 तक गंभीर भूजल में कमी का सामना करना पड़ सकता है। जब तक कि ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है।
राष्ट्रीय जल नीति 2002
- जल संसाधनों के नियोजन, विकास और प्रबंधन करने के लिए राष्ट्रीय जल नीति लाई जाती है।
- जल संसाधनों की क्षमता बढ़ाने और अंतर बेसिन पुनर्भरण, वर्षा जल संचयन व समुद्र के खारे पानी को मीछे पानी में परिवर्तत कर उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर देता है।
- भूजल के अत्यधिक दोहन को कम किया जाना चाहिए।
- सतही व भूजल की गुणवत्ता की निरंतर निगरानी की जानी चाहिए।
- जल नीति के लागू करने के लिए केंद्र सरकार राज्यों को सहयता प्रदान करेगी।
भारत के गतिशील भूजल संसाधनों पर राष्ट्रीय संकलन, 2022 रिपोर्ट
- 2022 तक पूरे देश के लिए कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण की तुलना में 1.29 बीसीएम की वृद्धि हुई है।
- कुल उपभोग योग्य भूजल संसाधनों में भी 0.56 bcm की वृद्धि हुई है।
- सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए वार्षिक भूजल निकासी में भी 5.76 बीसीएम की कमी आई है।
आगे की राह
- भूजल के उपयोग में कमी करने के लिए ट्यूब वैल के उपयोग को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
- अनियंत्रित घरेलू उपयोग को भी नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है। जिसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
- सतही जल के संरक्षण व उपयोग के लिए उचित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
- वर्षा के जल को संरक्षित करने की तकनीक पर कार्य करने की आवश्यकता है जैसे किसी भी निर्माणकार्य में वर्षा के जल को सिंचित करने के प्रबंध भी आवश्यकीय रूप से उसी प्रकार शामिल किए जा सकते हैं जैसे रसोईघर और शौचालय का निर्माण।
स्रोत
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