12 Jan भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का बढ़ता उपयोग
स्त्रोत्र – द हिन्दू एवं पीआईबी।
सामान्य अध्ययन : एक व्यापक स्वास्थ्य दृष्टिकोण, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC),भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)।
ख़बरों में क्यों ?
- राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (National Centre for Disease Control- NCDC) ने हाल ही में भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच,अपने एक सर्वेक्षण में भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के संबंध में कई प्रमुख निष्कर्षों को प्रकाशित किया है। भारत विश्व में एंटीबायोटिक्स का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत में एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग से बैक्टीरिया के भीतर पहले कभी नहीं देखा गया शक्तिशाली उत्परिवर्तन हो रहा है।
इस सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष :
भारत में एंटीबायोटिक्स का रोग – निवारक के रूप में उपयोग :
- इस सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में रोग – संक्रमण के इलाज के लिए आधे से अधिक रोगियों (55%) को चिकित्सीय उद्देश्यों (45%) के बजाय रोगनिरोधी संकेतों हेतु एंटीबायोटिक्स का उपयोग करने की सलाह दी गई, जिसका मुख्य उद्देश्य संक्रमण को रोकना था।
भारत में एंटीबायोटिक प्रिस्क्रिप्शन प्रारूप :
- भारत में केवल कुछ ही रोगियों (6%) को उनकी बीमारी की चिकित्सा के लिए कुछ विशिष्ट बैक्टीरिया के निदान के लिए एंटीबायोटिक्स दिए गए थे, जबकि अधिकांश मामलों में (94%) बीमारी के संभावित कारण में डॉक्टर के नैदानिक मूल्यांकन के आधार पर अनुभवजन्य चिकित्सा पर थे।
भारत में विशिष्ट नैदानिक चिकित्सा प्रणाली का अभाव :
- इस सर्वेक्षण में पाया गया कि संक्रमण के कारण के सटीक ज्ञान के बिना एंटीबायोटिक दवाओं के प्रचलित उपयोग 94% रोगियों को निश्चित चिकित्सा निदान की पुष्टि होने से पहले एंटीबायोटिक्स दी गई जो भारत में विशिष्ट नैदानिक चिकित्सा प्रणाली का अभाव को दर्शाता है।
अस्पतालों में भिन्नता :
- अस्पतालों में एंटीबायोटिक प्रिस्क्रिप्शन दरों में व्यापक भिन्नताएँ पाई गई थीं, 37% से लेकर 100% रोगियों को एंटीबायोटिक्स निर्धारित किये गए थे।
- निर्धारित एंटीबायोटिक दवाओं का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात (86.5%) पैरेंट्रल मार्ग (मौखिक रूप से नहीं) के माध्यम से दिया गया था।
AMR के चालक :
- अपने सर्वेक्षण में NCDC द्वारा कहा गया है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध के विकास के लिए मुख्य कारकों में से एक एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक और अनुचित उपयोग है।
एंटीबायोटिक्स और औषधि प्रतिरोध : एक परिचय –
- एंटीबायोटिक बैक्टीरिया (जीवाणु) को मार कर उसके विकास को रोक देता है। यह बीमारी को फ़ैलने से रोकने वाले यौगिकों का एक व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग सामान्य सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने कवक और प्रोटोजोवा सहित बैक्टीरिया, फ़फूंदी तथा अन्य परजीवीयों के कारण हुए संक्रमण को रोकने के लिए होता है।
- एंटीबायोटिक्स ऐसी उल्लेखनीय दवाएं हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना किसी के शरीर में जैविक जीवों को मारने में सक्षम हैं।
- इनका उपयोग सर्जरी के दौरान संक्रमण को रोकने से लेकर कीमोथेरेपी से गुजर रहे कैंसर रोगियों की सुरक्षा तक हर चीज के लिए किया जाता है।
एंटीबायोटिक्स को उसके कार्य या प्रभाव के कारण दो समूहों में बाँटा जाता है –
जीवाणुनाशक एजेंट।
बैक्टीरियोस्टेटिक एजेंट।
- जो जीवाणुओं को मारते हैं, उन्हें ‘जीवाणुनाशक एजेंट’ कहा जाता है। और
- जो जीवाणु के विकास को दुर्बल करते हैं, उन्हें ‘बैक्टीरियोस्टेटिक एजेंट’ कहा जाता है।
- पेनिसिलिन जीवाणुनाशक एंटीबायोटिक है। यह जीवाणु के कोशिका – दीवार पर या कोशिका झिल्ली पर वार करता है। एंटीबायोटिक्स को एंटीबैक्टीरियल के नाम से भी जाना जाता है।
- मनुष्य के शरीर के रोग-प्रतिरोधक तंत्र में बैक्टीरिया के कारण हुए संक्रमण को दूर करने के गुण पाए जाते हैं, किन्तु बैक्टीरिया का आक्रमण कभी-कभी इतना अधिक हो जाता है कि संक्रमण को दूर करना मनुष्य के शरीर के रोग-प्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) की क्षमता के बाहर हो जाता है। ऐसे संक्रमण से बचने के लिए मनुष्य को बाहर से दवा के रूप में एंटीबायोटिक लेना पड़ता है।
- संपूर्ण विश्व में भारत जेनेरिक दवाओं (generic drugs) की वैश्विक मांग के लगभग 20% की पूर्ति करता है। अतः भारत फार्मास्युटिकल उत्पादों का सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है। भारत विश्व में जैव प्रौद्योगिकी (biotechnology) के लिए शीर्ष 12 प्रमुख संस्थानों / स्थानों में से एक है। भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के मामले में तीसरा सबसे बड़ा स्थान है।
- विश्व के विकासशील देशों में लाखों लोगों के लिए स्वास्थ्य परिणामों में सुधार और सस्ती दवाओं तक पहुँच में भारत के फार्मा उद्योग ने दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कभी – कभी भारत के फार्मा उद्योग को गुणवत्ताहीन, दूषित या हानिकारक दवाओं के उत्पादन के विभिन्न आरोपों और घटनाओं का भी सामना करना पड़ा है, जिसके कारण श्रीलंका, गाम्बिया, उज़्बेकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि कई देशों के रोगियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और बहुत रोगियों कि मौतें भी हुईं है।
- भारतीय फार्मा उत्पादों की गुणवत्ता एवं सुरक्षा/ अहानिकारकता (Quality and Safety) जैसे मानकों एवं मानदंडों (Standards and Norms) के अनुपालन को सुनिश्चित करने में भारतीय दवा नियामक की भूमिका एवं प्रभावशीलता के संदर्भ में इन घटनाओं ने गंभीर चिंताओं को जन्म दिया है।
दवा प्रतिरोधक क्षमता :
- दवा प्रतिरोध तब होता है जब कोई मनुष्यों, जानवरों के साथ-साथ पौधों के इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग किया जाता है ।
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध जीवन के किसी भी चरण में लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। जब कोई व्यक्ति एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया से संक्रमित होता है, तो न केवल उस रोगी का इलाज मुश्किल हो जाता है, बल्कि एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया अन्य लोगों में भी फैल सकता है।
- जब एंटीबायोटिक्स काम नहीं करते हैं, तो ऐसी परिस्थिति में रोगी की स्थिति और अधिक जटिल बीमारियों, मजबूत और महंगी दवाओं के उपयोग और धीरे-धीरे जीवाणु संक्रमण के कारण अधिक मौतों का कारण बन सकती है।
- दुनिया भर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध का प्रसार जीवाणु संक्रमण से लड़ने में दशकों की प्रगति को कमजोर कर रहा है।
निष्कर्ष के परिणाम :
- एंटीबायोटिक सहायक गैर – एंटीबायोटिक यौगिक हैं जो प्रतिरोध को अवरुद्ध करके या संक्रमण के प्रति मेजबान प्रतिक्रिया को बढ़ाकर एंटीबायोटिक गतिविधि को बढ़ाते हैं।
- वैज्ञानिकों ने ट्रायमीन / ट्राईमाइन, एक यौगिक समूह होता है और जिसमें तीन अमीनो समूह शामिल होते हैं को ट्राईमाइन युक्त यौगिक में चक्रीय हाइड्रोफोबिक मोएटीज़ ( एक अणु का भाग) को शामिल किया, इस प्रकार विकसित सहायक बैक्टीरिया की झिल्ली को कमजोर रूप से परेशान करते हैं।
- एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोध विभिन्न प्रकार के आणविक तंत्रों के माध्यम से होता है, जिसमें दवा की पारगम्यता में कमी, सक्रिय प्रवाह, दवा लक्ष्य में परिवर्तन या बाईपास, एंटीबायोटिक-संशोधित एंजाइमों का उत्पादन, और बायोफिल्म जैसी शारीरिक स्थितियां शामिल हैं जो एंटीबायोटिक गतिविधि के प्रति कम संवेदनशील होती हैं।
- इफ्लक्स पंप इंट्रासेल्युलर एंटीबायोटिक सांद्रता को कम करते हैं, जिससे बैक्टीरिया उच्च एंटीबायोटिक सांद्रता में जीवित रह पाते हैं।
- जब इन सहायकों का उपयोग उन एंटीबायोटिक दवाओं के साथ संयोजन में किया जाता है जो ऐसे झिल्ली-संबंधित प्रतिरोध तत्वों के कारण अप्रभावी हो गए थे, तो एंटीबायोटिक्स शक्तिशाली हो जाते हैं, और संयोजन बैक्टीरिया को मारने में प्रभावी होता है।
वैज्ञानिक अध्ययन का महत्व :
- इस अध्ययन में पाया गया कि यह एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया के सबसे महत्वपूर्ण समूह का मुकाबला कर सकती है जिससे मौजूदा एंटीबायोटिक के जटिल संक्रमणों के लिए फिर से उपयोग करने में सक्षम बनाया जा सकता है। यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) के बढ़ते खतरे का मुकाबला करने में मदद कर सकता है।
- यह अप्रचलित एंटीबायोटिक दवाओं की गतिविधि को मजबूत करने और जटिल संक्रमणों के इलाज के लिए उन्हें वापस उपयोग में लाने में मदद कर सकता है।
भारत द्वारा औषधि प्रतिरोध से संबंधित महत्वपूर्ण पहल :
- एएमआर रोकथाम पर राष्ट्रीय कार्यक्रम : वर्ष 2012 में शुरू किए गए इस कार्यक्रम के तहत, राज्य मेडिकल कॉलेज में प्रयोगशालाएं स्थापित करके एएमआर निगरानी नेटवर्क को मजबूत किया गया है।
- एएमआर पर राष्ट्रीय कार्य योजना : वर्ष अप्रैल 2017 में लॉन्च किए गए यह एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर केंद्रित है और विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- एएमआर निगरानी और अनुसंधान नेटवर्क (एएमआरएसएन) : इसे देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के साक्ष्य उत्पन्न करने और रुझानों और पैटर्न को पकड़ने के लिए 2013 में लॉन्च किया गया था।
- एएमआर अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एएमआर में चिकित्सा अनुसंधान को मजबूत करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से नई दवाएं/दवाएं विकसित करने की पहल की है।
- एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम : आईसीएमआर ने अस्पताल के वार्डों और आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग और अत्यधिक उपयोग को नियंत्रित करने के लिए पूरे भारत में एक पायलट प्रोजेक्ट पर एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम (एएमएसपी) शुरू किया है।
वैश्विक स्तर औषधि प्रतिरोध से संबंधित महत्वपूर्ण पहल :
- विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह (WAAW) : वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला WAAW एक वैश्विक अभियान है जिसका उद्देश्य दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के विकास और प्रसार को धीमा करने के लिए आम जनता, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और नीति निर्माताओं के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रोत्साहित करना है।
- वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध और उपयोग निगरानी प्रणाली (Global Antimicrobial Resistance and Use Surveillance System – GLASS) : WHO ने ज्ञान की कमी को पूरा करने और सभी स्तरों पर रणनीतियों को सूचित करने के लिए 2015 में ग्लास लॉन्च किया। ग्लास की कल्पना मनुष्यों में एएमआर की निगरानी, रोगाणुरोधी दवाओं के उपयोग की निगरानी, खाद्य श्रृंखला और पर्यावरण में एएमआर से डेटा को क्रमिक रूप से शामिल करने के लिए की गई है।
निष्कर्ष / समाधान :
- एंटीबायोटिक प्राणी जगत के लिए लिए एक वरदान है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार कई जीवनरक्षक दवाएँ तो ऐसी हैं कि जिन्हें बिना एंटीबायोटिक के दिया ही नहीं जा सकता। यदि एंटीबायोटिक का प्रयोग ऐसे ही धड़ल्ले से होता रहा तो और भी नए-नए सुपरबग देखने को मिलेंगे और धीरे-धीरे हमें पूरी तरह से एंटीबायोटिक का प्रयोग बंद करना होगा। इस संबंध में वैश्विक प्रयास भी अपेक्षित है, यदि ऐसा नहीं हुआ तो अलेक्जेंडर फ्लेमिंग के जिस अविष्कार के दम पर चिकित्सा विज्ञान आज इतना फला-फुला है वह वर्तमान समय की वैश्विक स्वास्थ्य जरूरतों से बहुत पीछे चला जाएगा।
- वर्ष 2012 में ‘चेन्नई डिक्लेरेशन’ में सुपरबग के बढ़ते खतरे से निपटने के लिये व्यापक योजना बनाई गई जिसे 12वीं पंचवर्षीय योजना में भी शामिल किया गया। 12वीं पंचवर्षीय योजना में आरम्भ की गई योजना में 30 ऐसी प्रयोगशालाओं की स्थापना की बात की गई थी जो एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न समस्याओं के समाधान की दिशा में काम करेंगे, लेकिन अभी तक केवल ऐसे 10 प्रयोगशालाओं का ही निर्माण हो पाया है। सरकार को सुपरबग से बचाव के उपाय खोजना होगा और इसके लिये अनुसन्धान को प्रोत्साहन देना होगा।
- वर्तमान संमय में विश्वभर की कोई भी फार्मा कंपनी अगले 20 साल तक कोई भी नई एंटीबायोटिक दवा तैयार नहीं करने वाली है। एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल को रोकने के लिए यह अभियान शुरू किया गया है। एंटीबायोटिक के अधिक प्रयोग को रोकने के लिये सरकार ने बिक्री योग्य दवाओं की नई सूची जारी कर उसके आधार पर ही दवा विक्रेताओं को दवा बेचने का निर्देश दिया है, लेकिन कहीं भी आसानी से एंटीबायोटिक का मिल जाना चिंताजनक है, अतः सरकार को अपने निगरानी तंत्र को और चौकस बनाना होगा, ताकि मनुष्य अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत और रोगमुक्त रह सकें।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1. भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- भारत विश्व में एंटीबायोटिक्स का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- एंटीबायोटिक्स ऐसी उल्लेखनीय दवाएं हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना किसी के शरीर में जैविक जीवों को मारने में असक्षम हैं।
- अपने सर्वेक्षण में NCDC द्वारा कहा गया है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध के विकास के लिए मुख्य कारकों में से एक एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक और अनुचित उपयोग है।
- भारत जेनेरिक दवाओं (generic drugs) की वैश्विक मांग के लगभग 80% की पूर्ति करता है।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
(A) केवल 1 , 2 और 3
(B) केवल 2 और 4
(C) केवल 1 और 3
(D) इनमें से सभी।
उत्तर – (C)
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
- 1 . चर्चा कीजिए कि भारत में डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग और मुफ्त उपलब्धता, भारत में दवा प्रतिरोधी बीमारियों के उद्भव में क्या योगदान दे सकती है ? एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग और मुफ्त उपलब्धता में शामिल विभिन्न मुद्दों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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