भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C की वर्त्तमान प्रासंगिकता

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C की वर्त्तमान प्रासंगिकता

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2भारतीय संविधान, संवैधानिक संशोधन, मौलिक अधिकार, राज्य नीति के नीति – निर्देशक सिद्धांत, न्यायिक समीक्षा अनुच्छेद 31C, अनुच्छेद 31C से संबंधित कानूनी और संवैधानिक चुनौतियाँ ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ अनुच्छेद 31C, सर्वोच्च न्यायालय, केशवानंद भारती मामला (1973), मौलिक अधिकार खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C की वर्त्तमान प्रासंगिकता ’  से संबंधित है।)

 

खबरों  में क्यों ? 

 

  • हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की 9 न्यायाधीशों की पीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C के अस्तित्व और उसकी वर्तमान प्रासंगिकता से संबंधित प्रश्न का निराकरण करने का फैसला किया है। 
  • न्यायाधीशों की इस पीठ का इस संबंध में दिए जाने वाले फैसले का मुख्य उद्देश्य यह तय करना है कि क्या सरकार के पास भारत के नागरिकों के निजी संपत्ति का अधिग्रहण और पुनर्वितरण करने का अधिकार है अथवा नहीं है ? 

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C का परिचय और मुख्य उद्देश्य :

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C का परिचय और मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है – 

  • परिचय : अनुच्छेद 31C भारतीय संविधान में एक ऐसा प्रावधान है जो सामाजिक लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए कानूनों की रक्षा करता है। यह अनुच्छेद अनुच्छेद 39B और 39C के अनुसार बनाए गए कानूनों को संरक्षण प्रदान करता है, जिसमें समुदाय के भौतिक संसाधनों को सभी के लाभ के लिए आवंटित करना और धन और उत्पादन के साधनों को सामान्य हानि के लिए केंद्रित नहीं करना शामिल है।
  • उद्देश्य : भारत में संविधान के अनुच्छेद 31C का मुख्य उद्देश्य राज्य के निदेशक तत्त्वों को समता के अधिकार (अनुच्छेद 14) और अनुच्छेद 19 के तहत अधिकारों (जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक आंदोलन करने का अधिकार, आदि) द्वारा चुनौती दिए जाने पर संरक्षण प्रदान करना है।
  • इस प्रावधान को 1971 में 25वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में जोड़ा गया था, किन्तु इसके बाद भी भारत् में इसे कई महत्वपूर्ण न्यायिक मामलों में चुनौती दी गई और इसके प्रावधानों और शक्तियों की सीमा के संबंध में फिर से विचार किया गया। 
  • वर्तमान में, यह अनुच्छेद फिर से भारत में चर्चा में इसलिए है क्योंकि इसकी व्याख्या और वैधता को लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अभी भी विचार-विमर्श जारी है।

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C के संबंध में कानूनी और संवैधानिक चुनौतियाँ :

 

 

भारत में अनुच्छेद 31C के संबंध में कानूनी और संवैधानिक चुनौतियाँ निम्नलिखित है – 

  • केशवानंद भारती मामला (1973) : केशवानंद भारती मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने “संविधान के मूल ढाँचा सिद्धांत” की स्थापना की, जिसके अनुसार संविधान के कुछ मौलिक तत्त्व संविधान संशोधन से प्रतिरक्षित हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 31C के एक भाग को यह कहते हुए अमान्य कर दिया कि किसी विशिष्ट सरकारी नीति पर आधारित होने का दावा करने वाले कानूनों को उस नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहने के लिए न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। इससे भारत के उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 39(b) और 39 (C ) के तहत पारित कानूनों की समीक्षा करने की अनुमति मिली।
  • भारतीय संविधान का 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, (CAA) 1976 और मिनर्वा मिल्स केस (1980) : भारतीय संविधान का 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, (CAA), 1976 ने अनुच्छेद 31C के सुरक्षात्मक दायरे को बढ़ा दिया, लेकिन मिनर्वा मिल्स केस में सर्वोच्च न्यायालय ने CAA, 1976 के खंड 4 और 5 को रद्द कर दिया, जिससे संविधान में संशोधन करने के संसद के अधिकार की सीमाओं को रेखांकित किया गया था।
  • इसके अलावा, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अनुच्छेद 31C के अस्तित्व पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है। इससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C की वैधता और उसकी प्रयोज्यता पर एक बार फिर से कई नए प्रश्न उठे हैं।
  • अनुच्छेद 31C के अस्तित्व और इसके अनुसार सरकार के अधिकारों की समीक्षा करने का निर्णय भारतीय लोकतंत्र और संविधान की अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है। यह निर्णय न केवल संपत्ति के अधिकारों के संरक्षण को प्रभावित करेगा, बल्कि यह भी निर्धारित करेगा कि कैसे संविधान के मूल ढाँचे को संशोधनों के माध्यम से संरक्षित किया जा सकता है।

 

अनुच्छेद 31C के संबंध में दिए जाने वाला विभिन्न तर्क : 

  • स्वचालित पुनरुद्धार के विरुद्ध तर्क : मूल अनुच्छेद 31C को 42वें संशोधन द्वारा एक विस्तारित संस्करण से प्रतिस्थापित किया गया था। जब मिनर्वा मिल्स मामले में इस विस्तारित संस्करण को रद्द किया गया, तो मूल संस्करण स्वचालित रूप से पुनर्जीवित नहीं हुआ क्योंकि एक बार प्रतिस्थापित होने के बाद, मूल प्रावधान को स्पष्ट रूप से बहाल किया जाना आवश्यक होता है।
  • पुनरुद्धार के सिद्धांत के पक्ष में दिए जाने वाला तर्क : पुनरुद्धार के सिद्धांत के अनुसार,भारतीय संविधान के मूल अनुच्छेद 31C को स्वचालित रूप से पुनर्जीवित होना चाहिए। इस दृष्टिकोण को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के निर्णय से समर्थन मिलता है, जहाँ रद्द किए गए संशोधनों के कारण पिछले प्रावधानों को पुनर्जीवित किया गया था।
  • मौलिक अधिकारों और DPSP के बीच संघर्ष : चंपकम दोराइराजन बनाम मद्रास राज्य (1951) में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि मौलिक अधिकारों की स्थिति नीति निदेशक सिद्धांतों के बीच किसी भी टकराव में प्रबल होगी। गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) में, निर्णय दिया गया कि संसद निदेशक सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिए मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती। 
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) में, सर्वोच्च न्यायालय ने ‘ संविधान के बुनियादी संरचना’ के सिद्धांत को स्थापित किया और कहा कि भारत की संसद भारतीय संविधान की बुनियादी संरचना में किसी भी प्रकार से परिवर्तित नहीं कर सकती है। 
  • मिनर्वा मिल्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1980) मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि संसद राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों को लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है, जब तक कि यह संविधान की मूल संरचना को हानि नहीं पहुँचाता हो।

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31, 31A, 31B, और 31C का परिचय : 

  • भारतीय संविधान के भाग III में मौलिक अधिकारों के तहत संपत्ति का अधिकार शामिल था। 
  • भारत में नागरिकों को दिया जाने वाला यह मौलिक अधिकार काफी विवादास्पद रहा है, और 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा इसे मौलिक अधिकारों से हटा दिया गया था। 
  • भारत में इसके बाद, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार को संविधान के भाग XII में एक संवैधानिक अधिकार के रूप में जोड़ा गया है। 
  • अनुच्छेद 31A : भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद राज्य द्वारा निजी संपत्ति के अधिग्रहण और उसके प्रबंधन, निगमों के विलय, और खनन पट्टों के पुनर्निर्धारण या समाप्ति से संबंधित कानूनों को अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती देने से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 31B : भारतीय संविधान का अनुच्छेद 31B नौवीं अनुसूची में शामिल किसी भी कानून को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती देने से सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि, आई. आर. कोएल्हो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि नौवीं अनुसूची में शामिल कानून न्यायिक समीक्षा से मुक्त नहीं हो सकता है ।
  • अनुच्छेद 31C : भारत में अनुच्छेद 31C उन कानूनों को सुरक्षा प्रदान करता है जो राज्य के निर्देशक सिद्धांतों के कुछ विशेष लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बनाए गए हैं, जिससे उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती देने से बचाया जा सकता है।
  • केशवानंद भारती मामले (1973) में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के मौलिक ढांचे के सिद्धांत को प्रतिपादित किया। जिसके अनुसार भारतीय संविधान के मौलिक ढांचे को बदला नहीं जा सकता।
  • इन अनुच्छेदों के तहत विभिन्न संशोधनों और निर्णयों के माध्यम से संपत्ति के अधिकार और राज्य की शक्तियों के बीच संतुलन स्थापित किया गया है। इसमें केशवानंद भारती मामला भी शामिल है, जिसमें संविधान के मूल ढांचे की रक्षा और संविधान संशोधन की सीमाओं को परिभाषित किया गया था।

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C की वर्तमान प्रासंगिकता : 

 

 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C का वर्तमान महत्व इसके द्वारा दिए गए कानूनी संरक्षण में ही निहित है, जो राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों को तब तक सुरक्षित रखता है जब तक वे कानून समुदाय के सामग्री संसाधनों को सामान्य हित में वितरित करने (अनुच्छेद 39(b)) और धन तथा उत्पादन के साधनों को सामान्य हानि के लिए “केंद्रित” नहीं करने (अनुच्छेद 39 C) के उद्देश्य से बनाए गए हों। 
  • इस अनुच्छेद के तहत, ऐसे कानूनों को अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) या अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण रूप से एकत्रित होने का अधिकार, आदि) का हवाला देकर चुनौती नहीं दी जा सकती है ।
  • वर्तमान में, भारत का उच्चतम न्यायालय महाराष्ट्र हाउसिंग और एरिया डेवलपमेंट अधिनियम, 1976 (MHADA) के अध्याय VIII-A की वैधता पर विचार कर रहा है, जिसमें अनुच्छेद 31C का उपयोग करके सार्वजनिक कल्याण के लिए  विशेषकर मुंबई की सेस्ड प्रॉपर्टीज में संपत्ति अधिग्रहण को औचित्य सिद्ध किया गया है। 
  • इस मामले का निर्णय भविष्य में सामाजिक-आर्थिक विधान और संविधान के ढांचे के भीतर व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा की व्याख्या को आकार देगा।

स्रोत : द हिन्दू, भारत का संविधान एवं पीआईबी। 

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक सांविधानिक स्थिति क्या थी? ( UPSC – 2021)

A. लोकतंत्रात्मक गणराज्य।

B. संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य।

C. संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य।

D. संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य।

उत्तर – C

Q.2. भारतीय न्यायपालिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। ( UPSC – 2021)

  1. भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि भारत सर्वोच्च न्यायालय के पास है।
  2. भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से कभी भी बुलाया जा सकता है।

उपर्युक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है/हैं?

A. केवल 2

B. केवल 1

C. न तो 1 और न ही 2

D. 1 और 2 दोनों

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31C से जुडी प्रमुख कानूनी और संवैधानिक चुनौतियों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि इसकी वर्तमान प्रासंगिकता क्या हो सकती है अथवा उसका क्या समाधान हो सकता है ? तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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