अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण की 30वीं वर्षगाँठ

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण की 30वीं वर्षगाँठ

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ शासन एवं राजव्यवस्था , अंतर्राष्ट्रीय संबंध , महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान एवं संगठन ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) , अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण ( ISA ) , समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान , समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय ’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक कर्रेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण की 30वीं वर्षगाँठ ’ से संबंधित है।)

 

समाचारों में क्यों ?

 

  • हाल ही में संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के अंतर्गत काम करने वाली एजेंसी अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (International Seabed Authority- ISA) ने अपनी 30वीं वर्षगाँठ मनाई। 
  • इस एजेंसी की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय जल में निर्जीव समुद्री संसाधनों के अन्वेषण और उपयोग की देखरेख के लिए की गई थी।

 

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) : 

 

 

  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) एक स्वायत्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका गठन 1982 में संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) और UNCLOS के भाग XI के कार्यान्वयन से संबंधित 1994 के समझौते के तहत किया गया था। 
  • इसका मुख्यालय किंग्स्टन, जमैका में स्थित है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) में भारत सहित कुल 168 सदस्य राज्य और यूरोपीय संघ शामिल हैं। 
  • इसके अधिकार क्षेत्र में विश्व के महासागरों के कुल क्षेत्रफल का लगभग 54% हिस्सा आता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) जो समुद्र के तल पर खनिज संसाधनों से संबंधित सभी गतिविधियों का आयोजन, नियंत्रण और विनियमन करता है। 
  • यह क्षेत्र राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमाओं से परे होता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) के प्रमुख उद्देश्यों में गहरे समुद्र में होने वाली गतिविधियों के हानिकारक प्रभावों से समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा और विनियमित करना शामिल है। 

 

इसके तहत यह निम्नलिखित कार्यों को करता है:

 

  1. सभी अन्वेषण गतिविधियों और गहरे समुद्र में खनिजों के दोहन के संचालन को विनियमित करना।
  2. गहरे समुद्र तल से संबंधित गतिविधियों के हानिकारक प्रभावों से समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  3. समुद्र से संबंधित समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।
  4. यह संगठन गहरे समुद्र में खनिजों के दोहन, जैव विविधता की रक्षा, और समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  5. इसके निर्णयों का जैसे कि ईंधन के सल्फर सामग्री की सीमा को कम करने के नियमों के माध्यम से अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

 

भारत और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (International Seabed Authority – ISA) के बीच संबंध: 

 

 

  • भारत और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (International Seabed Authority – ISA) के बीच सहयोग के तहत, 18 जनवरी 2024 को भारत ने हिंद महासागर के अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में अन्वेषण के लिए दो आवेदन प्रस्तुत किया था। जो निम्नलिखित है –  

 

भारत की भूमि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में अन्वेषण :

 

  1. हिंद महासागर कटक (कार्ल्सबर्ग रिज) : यहां पॉलीमेटेलिक सल्फाइड के अन्वेषण के लिए भारत ने आवेदन प्रस्तुत किया है।
  2. मध्य हिंद महासागर (अफानसी-निकितिन सीमाउंट) : यहां कोबाल्ट-समृद्ध फेरोमैंगनीज परतें के अन्वेषण के लिए भारत ने आवेदन किया है।

वर्तमान में, भारत के पास हिंद महासागर में अन्वेषण के लिए दो अनुबंध हैं:

  1. मध्य हिंद महासागर बेसिन और रिज में पॉलीमेटेलिक नोड्यूल।
  2. पॉलीमेटेलिक सल्फाइड।

यह अन्वेषण खनिज संसाधनों के विकास में महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें इसे पर्यावरणीय प्रभाव और उससे संबंधित लाभ के साथ भी देखना चाहिए। 

 

समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) : 

 

 

  • ‘समुद्री कानून संधि’, जिसे औपचारिक रूप से समुद्री कानूनों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) के रूप में जाना जाता है, को वर्ष 1982 में महासागरीय क्षेत्रों पर अधिकार क्षेत्र की सीमाएँ स्थापित करने के लिए अपनाया गया था।
  • इस अभिसमय में आधार रेखा से 12 समुद्री मील की दूरी को प्रादेशिक समुद्री सीमा और 200 समुद्री मील की दूरी को अनन्य आर्थिक क्षेत्र सीमा के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • ‘समुद्री कानून संधि’ के तहत विकसित देशों से अविकसित देशों को प्रौद्योगिकी और धन हस्तांतरण का प्रावधान है।
  • साथ ही समुद्री प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नियमों और कानूनों को लागू करने की अपेक्षा भी की गई है। 
  • भारत ने वर्ष 1982 में समुद्री कानूनों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) पर हस्ताक्षर किया है।
  • समुद्री कानूनों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) के तहत तीन नए संस्थान स्थापित किए गए हैं। जो निम्नलिखित है – 
  1. समुद्री कानून पर अंतर्राष्ट्रीय अधिकरण : यह एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय है जिसकी स्थापना UNCLOS के संदर्भ में उत्पन्न होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए की गई है।
  2. अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण : यह महासागरों के निर्जीव संसाधनों की खोज और दोहन को विनियमित करने के लिए स्थापित एक संयुक्त राष्ट्र निकाय है।
  3. महाद्वीपीय शेल्फ की सीमाओं से संबंधित आयोग : यह 200 समुद्री मील से परे महाद्वीपीय शेल्फ की बाहरी सीमाओं की स्थापना के संबंध में समुद्री कानून (अभिसमय) पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के कार्यान्वयन से संबंधित है।

 

स्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।

 

Download yojna daily current affairs hindi med 2nd July 2024

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। ( UPSC – 2018 ) 

  1. यह गहरे समुद्र में खनिजों के दोहन, जैव विविधता की रक्षा और समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा करता है।
  2. इसका मुख्यालय किंग्स्टन, जमैका में स्थित है।
  3. समुद्री कानून संधि को वर्ष 1982 में महासागरीय क्षेत्रों की सीमाएँ स्थापित करने के लिए अपनाया गया था।
  4. भारत ने वर्ष 1982 में समुद्री कानूनों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) पर हस्ताक्षर किया है।

उपरोक्त कथन / कथनों में कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1, 2 और 3 

B. केवल 2, 3 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं।

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – D

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन के प्रमुख प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए यह चर्चा कीजिए कि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण किस प्रकार समुद्र में खनिजों के दोहन, जैव विविधता की रक्षा और समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा के मामले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है? ( UPSC CSE – 2019 शब्द सीमा – 250 अंक – 15

No Comments

Post A Comment