राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2024 महत्व और चुनौतियाँ

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2024 महत्व और चुनौतियाँ

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था का वृद्धि एवं विकास, समावेशी विकास एवं रोज़गार, हथकरघा क्षेत्र : चुनौतियाँ एवं सुधार ’  खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘  प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, हथकरघा  उद्योग, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस ’  खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस  टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक करेंट,अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2024 महत्व और चुनौतियाँ ’  खंड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • भारत में हाल ही में 7 अगस्त, 2024 को 10वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया गया। 
  • यह दिवस 7 अगस्त, 1905 को स्वदेशी आंदोलन के आरंभ की याद में मनाया जाता है, जो घरेलू हथकरघा उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था।
  • भारत में वर्ष 2015 से 7 अगस्त को हर साल राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

 

भारत में हथकरघा उद्योग की स्थिति :

  • भारत का हथकरघा उद्योग भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एकअभिन्न हिस्सा है और यह देश की पारंपरिक कढ़ाई और बुनाई कला को संरक्षित करता है। यह उद्योग लाखों कारीगरों को रोजगार प्रदान करता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करता है। 
  • अद्वितीय हथकरघा उत्पाद भारत का हथकरघा उद्योग अपनी विविधता और परंपरागत हस्तकला के लिए प्रसिद्ध है।  देश के विभिन्न क्षेत्रों में निर्मित प्रमुख हथकरघा उत्पाद निम्नलिखित हैं – 
  • बनारसी : बनारस की विशेषता वाला रेशमी वस्त्र, जिसमें विस्तृत बुनाई और अमूल्य डिज़ाइन होते हैं।
  • जामदानी : बांग्लादेश और भारतीय बंगाल क्षेत्र का एक अत्यंत प्राचीन और सुशोभित वस्त्र।
  • बालूचरी : मुख्यतः पश्चिम बंगाल का एक परंपरागत रेशमी साड़ी, जिसे विभिन्न डिजाइन और शिल्प के लिए जाना जाता है।
  • मधुबनी पेंटिंग कशीदाकारी कला से संबंधित हथकरघा : मिथिला क्षेत्र की कशीदाकारी कला, जो अपने विशिष्ट चित्रण और कलात्मक डिजाइन के लिए विश्व में प्रसिद्ध है।
  • कोसा : झारखंड और छत्तीसगढ़ का एक प्राकृतिक रेशम, जो अपनी विशिष्ट गुणवत्ता और टिकाऊपन के लिए जाना जाता है।
  • इक्कत : एक विशेष बुनाई तकनीक जिसमें रंगाई और बुनाई का समन्वय होता है, जो मुख्यतः आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पाई जाती है।
  • पटोला : गुजरात का एक अद्वितीय वस्त्र, जो जटिल डिज़ाइन और कढ़ाई के लिए जाना जाता है।
  • टसर सिल्क : एक प्राकृतिक रेशम जिसे विशेषकर झारखंड और बिहार में उत्पादित किया जाता है।
  • माहेश्वरी : मध्य प्रदेश का एक हस्तनिर्मित वस्त्र, जिसे विभिन्न रंगों और डिज़ाइन में उपलब्ध किया जाता है।
  • मोइरंग फी : मणिपुर का एक विशिष्ट वस्त्र, जो उसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है।
  • फुलकारी : पंजाब की कशीदाकारी तकनीक, जो रंगीन और जटिल डिजाइन के लिए प्रसिद्ध है।
  • लहेरिया : राजस्थान का एक विशिष्ट वस्त्र, जिसमें बहु-रंगीन लहरदार डिजाइन होते हैं।
  • खंडुआ : उड़ीसा का एक पारंपरिक वस्त्र, जिसे उसकी विशेष बुनाई तकनीक के लिए जाना जाता है।
  • तंगलिया : गुजरात की एक पारंपरिक वस्त्र कला, जिसमें रंगीन धागों से बुनाई की जाती है।

 

हथकरघा उद्योग से संबंधित सरकार द्वारा उठाए गए कदम और विभिन्न पहल :

 

 

  • राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (NHDP) : यह कार्यक्रम हथकरघा समूहों को वित्तीय सहायता, विपणन सहायता और पुरस्कार प्रदान करता है। इसमें 10,000 करघों के लिए 30 करोड़ रुपए के साथ मेगा क्लस्टरों को वित्तपोषित करने की योजना है।
  • बाज़ार पहुँच पहल (MAI) : यह पहल बाजार अनुसंधान, अंतर्राष्ट्रीय विपणन और छोटे उद्योगों के लिए समर्थन के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा देती है। यह योजना मार्च 2026 तक प्रभावी रहेगी।
  • कच्चा माल आपूर्ति योजना (RMSS) : इस योजना के अंतर्गत सब्सिडीयुक्त धागे की आपूर्ति, रंगाई सुविधाओं में सुधार और हथकरघा बुनकरों को माल ढुलाई प्रतिपूर्ति और मूल्य सब्सिडी प्रदान की जाएगी। यह योजना 2025-26 तक प्रभावी रहेगी।
  • हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद (HPEC) : यह वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत एक गैर-लाभकारी एजेंसी है जिसका उद्देश्य कपड़े, घरेलू सामान और कालीन जैसे हथकरघा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना है।
  • हथकरघा निगमों/सहकारी संस्थाओं के माध्यम से इन्वेंट्री की खरीद : वस्त्र मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देशित किया है कि वे अपने हथकरघा निगमों/सहकारी संस्थाओं/एजेंसियों के माध्यम से हथकरघा बुनकरों और कारीगरों से तैयार इन्वेंट्री की खरीद करें।
  • गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) पोर्टल पर बुनकरों का पंजीकरण : बुनकरों को सरकारी विभागों और संगठनों से सीधे संपर्क स्थापित करने के लिए GeM पोर्टल पर पंजीकृत किया गया है। अब तक लगभग 1.50 लाख बुनकरों को इस पोर्टल से जोड़ा जा चुका है, जिससे वे अपने उत्पादों को सीधे सरकारी खरीददारी के लिए उपलब्ध करा सकते हैं।
  • हथकरघा उत्पादक कंपनियों की स्थापना : उत्पादकता और विपणन क्षमताओं में सुधार और बेहतर आय सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न राज्यों में 128 हथकरघा उत्पादक कंपनियों की स्थापना की गई है।
  • आसान ऋण नीति : बुनकरों को रियायती ऋण, बुनकर मुद्रा योजना के तहत वित्तीय सहायता, ब्याज सबवेंशन, और क्रेडिट गारंटी प्रदान की जाती है, जिससे उनके आर्थिक हालात बेहतर हो सकें।
  • डिज़ाइन संसाधन केंद्र (DRC) स्थापित करना : नई दिल्ली, मुंबई जैसे प्रमुख शहरों में डिज़ाइन संसाधन केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो बुनकरों, निर्यातकों, विनिर्माताओं और डिज़ाइनरों को डिज़ाइन सुधार और विकास के लिए आवश्यक संसाधनों की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद (HEPC) : HEPC द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मेलों का वर्चुअल मोड में आयोजन किया जाता है और 23 ई-कॉमर्स संस्थाओं को हथकरघा उत्पादों के ई-विपणन को बढ़ावा देने के कार्य में लगाया गया है।
  • कच्चे माल की आपूर्ति योजना : हथकरघा बुनकरों को सूत की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक योजना लागू की गई है, जिसमें कच्चे माल के लिए प्रतिपूर्ति और मूल्य सब्सिडी प्रदान की जाती है।
  • बुनकरों को शिक्षित करना : बुनकरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए उन्हें विभिन्न हथकरघा योजनाओं के लाभ के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न राज्यों में चौपालों का आयोजन किया गया है।

 

भारत में वस्त्र उद्योग का महत्त्व :

 

  • भारत का वस्त्र उद्योग भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.3% का योगदान करता है, औद्योगिक उत्पादन में 7% की हिस्सेदारी रखता है, निर्यात आय में 12% का योगदान देता है, और कुल रोजगार में 21% से अधिक का योगदान करता है। अतः भारत में वस्त्र उद्योग की सफलता और विकास के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं – 
  • कपास का प्रमुख उत्पादक : भारत वैश्विक कपास उत्पादन में 25% हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वस्त्र उद्योग के लिए कच्चे माल की प्रचुर आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
  • वस्त्र उत्पादन में वैश्विक स्थान : भारत, चीन के बाद, विश्व का दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादक देश है, जो अंतरराष्ट्रीय वस्त्र बाजार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • मानव निर्मित रेशों का उत्पादन : भारत मानव निर्मित रेशों (जैसे पॉलिएस्टर और विस्कोस) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो उद्योग की विविधता और उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है।
  • विस्तृत घरेलू बाजार : भारत में एक व्यापक और विविध घरेलू बाजार उपलब्ध है, जो वस्त्र उद्योग को घरेलू मांग की मजबूती प्रदान करता है और इसके विकास को प्रोत्साहित करता है। इन तत्वों के माध्यम से, भारत का वस्त्र उद्योग आर्थिक विकास, निर्यात वृद्धि, और रोजगार सृजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

भारतीय वस्त्र उद्योग की चुनौतियाँ : 

 

  • उद्योग का अत्यधिक खंडित स्वरूप : भारतीय वस्त्र उद्योग अत्यधिक खंडित है, जिसमें असंगठित क्षेत्र और छोटे एवं मध्यम उद्योग प्रमुख रूप से शामिल हैं। इस खंडित संरचना के कारण उद्योग के मानकीकरण, प्रतिस्पर्धा और विकास में कई बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • नवीनतम तकनीक तक पहुँच की कमी : इस उद्योग के समक्ष नवीनतम तकनीक तक पहुँच की कमी एक महत्वपूर्ण चुनौती है, विशेष रूप से छोटे और लघु उद्योगों में। पुरानी तकनीक के कारण, उद्योग वैश्विक मानकों को पूरा करने में असफल रहता है और प्रतिस्पर्धी बाजार में पिछड़ जाता है।
  • कर संरचना संबंधी समस्याएँ : वस्त्र उद्योग की कर संरचना, जैसे वस्तु एवं सेवा कर (GST), घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इसके महँगा और अप्रतिस्पर्धी बनने का कारण बनती है। उच्च कर दरें और जटिल कर व्यवस्था लागत को बढ़ाती हैं और उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करती हैं।
  • स्थिर निर्यात : भारतीय वस्त्र उद्योग का निर्यात पिछले छह वर्षों से 40 अरब डॉलर के स्थिर स्तर पर बना हुआ है। इस स्थिरता के कारण उद्योग की वैश्विक बाजार में वृद्धि और विस्तार की संभावनाएँ सीमित हैं।
  • व्यापकता की कमी : भारत में परिधान निर्माण इकाइयों का औसत आकार केवल 100 मशीनों का है, जो बांग्लादेश की तुलना में बहुत कम है, जहाँ प्रति इकाई औसतन 500 मशीनें होती हैं। छोटी इकाइयाँ उत्पादन क्षमता और प्रतिस्पर्धात्मकता में पिछड़ जाती हैं।
  • विदेशी निवेश की कमी : विदेशी निवेशकों की वस्त्र क्षेत्र में निवेश के प्रति रुचि कम है। निवेश की कमी से उद्योग के विकास, तकनीकी उन्नयन और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

 

आगे की राह : 

 

 

  • भारत के वस्त्र उद्योग का संगठित और प्रतिस्पर्धी स्तर पर विकास करना : भारत वस्त्र उद्योग को संगठित करने के लिए मेगा अपैरल पार्क और व्यापक बुनियादी ढांचे की स्थापना कर सकता है। इससे उत्पादन के पैमाने में वृद्धि होगी, और भारतीय निर्माताओं को उच्च दक्षता के साथ तेजी से और कम लागत पर उत्पादन करने में सहायता मिलेगी।
  • उद्योग के आधुनिकीकरण को बढ़ावा देना : भारत के हथकरघा उद्योग की उत्पादकता और निर्यात क्षमता बढ़ाने के लिए अप्रचलित मशीनरी और प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण पर ध्यान देना आवश्यक है। राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (ATUFS) और एकीकृत ऊन विकास कार्यक्रम जैसे योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए।
  • तर्कसंगत श्रम कानूनों की आवश्यकता : वस्त्र उद्योग के विशेषज्ञों का यह सुझाव है कि वर्तमान में भारत में विशेष रूप से हथकरघा उद्योग के आकार की सीमा संबंधी शर्तों को हटाने और ‘हायरिंग एंड फायरिंग’ प्रक्रिया में लचीलेपन की अनुमति देने के संदर्भ में श्रम कानूनों में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। इससे उद्योग को श्रम संबंधी मुद्दों को कुशलता से प्रबंधित करने में मदद मिलेगी।
  • निर्यात के अवसरों का विस्तार करना : भारत को अपने वस्त्र उद्योग से संबंधित निर्यात अवसरों को बढ़ाने के लिए विकसित देशों के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने की जरूरत है। मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) जैसे यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और यूके के साथ हस्ताक्षर करने से भारत को बड़े वस्त्र बाजारों में शुल्क मुक्त पहुँच प्राप्त हो सकती है, जो भारत के वस्त्र निर्यात को प्रोत्साहित करेगी।

 

स्रोत- पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q. 1. निम्नलिखित प्रमुख हथकरघा उत्पादों को उनके संबंधित राज्य या क्षेत्र के साथ सुमेलित कीजिए।

प्रमुख हथकरघा उत्पाद                                             संबंधित राज्य या क्षेत्र 

  1. बालूचरी                                                            (a) पश्चिम बंगाल 
  2. मधुबनी पेंटिंग                                                   (b) मिथिला क्षेत्र की कशीदाकारी कला, विशिष्ट चित्रण शैली 
  3. पटोला                                                              (c) गुजरात 
  4. माहेश्वरी                                                            (d) मध्य प्रदेश 

उपरोक्त में से कितने हथकरघा उत्पाद उनके संबधित क्षेत्र से सही सुमेलित है ? 

A. केवल 1, 2 और 3 

B. केवल 2, 3 और 4 

C. केवल 1 और 4 

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत की अर्थव्यवस्था के विकास और हथकरघा क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के साथ – ही – साथ देश के विशाल कार्यबल समूह को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए ‘ वोकल फॉर लोकल ‘  किस प्रकार महत्वपूर्ण है? टिप्पणी करें( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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