एफसीआऱए लाइसेंस 

एफसीआऱए लाइसेंस 

एफसीआऱए लाइसेंस 

संदर्भ- हाल ही में सरकार नें एक प्रमुख थिंक टैंक सीपीआर का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया है। 

सितंबर 2022 में सीपीआर व ऑक्सफेम पर आयकर सर्वेक्षण के बाद सीपीआर का लाइसेंस जाँच के दायरे में था। सीपीआर ने यह दावा किया है कि उसने एसोसिएशन तथा कानून के दायरे के बाहर कोई कार्य नहीं किया है। 

सीपीआर 

  • सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) 1973 से भारत के अग्रणी सार्वजनिक नीति थिंक टैंकों में से एक रहा है।
  • CPR एक गैर-लाभकारी, गैर-पक्षपातपूर्ण, स्वतंत्र संस्थान है जो अनुसंधान करने के लिए समर्पित है।
  • उच्च गुणवत्ता वाली छात्रवृत्ति, बेहतर नीतियों और एक में योगदान देता है।
  • सीपीआर भारत के सर्वश्रेष्ठ विचारकों और नीति चिकित्सकों को एक साथ लाता है जो विभिन्न विषयों और पेशेवर पृष्ठभूमि से आकर्षित होकर नीतिगत क्षेत्र में अनुसंधान और जुड़ाव दोनों में सबसे आगे हैं। 
  • संस्था विद्वानों की उत्कृष्टता का पोषण और समर्थन करती है। हालाँकि, संस्था मुद्दों पर सामूहिक स्थिति नहीं लेती है। सीपीआर के विद्वानों को अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने की पूरी स्वायत्तता है।

सीपीआर की भूमिका

  • सीपीआर भारत के सर्वश्रेष्ठ विचारकों और नीति व्यवसायियों को मजबूत अनुसंधान करने के लिए एक साथ लाता है जो नए विचारों को उत्पन्न करता है, विचारों और नीति डिजाइन के बीच की खाई को पाटता है, और मजबूत, समावेशी और संपूर्ण नीति के कार्यान्वयन की ओर ले जाता है। 
  • सीपीआर में संकाय की बहु-अनुशासनात्मक अनुसंधान विशेषज्ञता, नीति निर्माण प्रक्रियाओं के साथ सीधे जुड़ाव में संस्थान के प्रयासों के साथ मिलकर, उन पहलों का परिणाम है जो महत्वपूर्ण विधानों के प्रारूपण के लिए प्रेरित हुए हैं, सुधारों को सक्षम करना, और राष्ट्रीय और अच्छी तरह से उप-राष्ट्रीय सरकारों को महत्वपूर्ण इनपुट प्रदान करना।
  • सीपीआर विश्वविद्यालयों और गैर सरकारी संगठनों से लेकर जमीनी स्तर के संगठनों और सरकारी निकायों तक – कई स्तरों पर नीतिगत हितधारकों के साथ मिलकर काम करता है। सीपीआर के फैकल्टी, सरकारी समितियों और टास्क फोर्स में नियमित भागीदार हैं, जो प्रत्यक्ष इनपुट और सलाहकार सहायता प्रदान करते हैं।
  • सीपीआर विद्वतापूर्ण और रणनीतिक जुड़ाव का एक गतिशील केंद्र बनाता है और अनुसंधान और शिक्षा क्षेत्र में कुछ सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को सलाह देने की पोषित संस्कृति का निर्माण करता है। 

एफसीआरए

  • 1969 में भारत ने यह महसूस किया कि स्वतंत्र विदेशी संस्थाएं भारत में निवेश करके भारत के मामलों में हस्तक्षेप कर रही थी, इन चिंताओं के मद्देनजर FCRA के गठन की आवश्यकता महसूस हुई। और 1976 में FCRA को अधिनियमित किया गया।
  • इस कानून में संघों से विदेशी दान को विनियमित करने की मांग की गई है ताकि वे “एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के मूल्यों के अनुरूप” कार्य कर सकें।
  • 2010 में यूपीए सरकार के तहत एक संशोधित एफसीआरए अधिनियमित किया गया था ताकि विदेशी धन के उपयोग पर “कानून को मजबूत” किया जा सके और राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक किसी भी गतिविधि के लिए उनके उपयोग को “प्रतिबंधित” किया जा सके।
  • और पुनः 2020 में वर्तमान सरकार द्वारा कानून में फिर से संशोधन किया गया, जिसमें सरकार को एनजीओ द्वारा विदेशी धन की प्राप्ति और उपयोग पर सख्त नियंत्रण व जाँच करनी थी।

किसी एनजीओ द्वारा विदेशी आर्थिक दान की प्राप्ति के लिए अधिनियम के तहत निम्न प्रावधान होते हैंः

  • एनजीओ को अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत होना होगा।
  • विदेशी धन प्राप्त करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक के दिल्ली केंद्र में खाता होना आवश्य़क है।
  • विदेशी निधियों का प्रयोग, उसी उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए जिसके लिए उन्हें प्राप्त किया गया है या जो अधिनियम में निर्धारित किए गए हैं।

एफसीआरए के तहत निम्नलिखित द्वारा चुनाव प्रचार के लिए विदेशी धन प्राप्त करने पर रोक लगाई गई है-

  • उम्मीदवारों
  • पत्रकारों या मीडिया प्रसारण कंपनियों
  • न्यायाधीशों व सरकारी कर्मचारियों
  • विधायिका व राजनीतिक दल के सदस्यों और अधिकारियों
  • राजनीतिक प्रकृति के संगठनो पर रोक लगायी जा सकती है।

किसी भी संस्था एफसीआरए प्रमाणपत्र पर रोक लगाने से पूर्व उसे इस व्यक्ति या संस्था को सुनवायी का उचित अवसर दिया जाता है, एक बार किसी व्यक्ति का पंजीकरण रद्द हो जाने के बाद उसे तीन वर्ष तक पंजीकरण के लिए आवेदन करने का अधिकार नहीं होता है। केंद्रीय मंत्रालय 180 दिन तक एफसीआरए प्रमाणपत्र निलंबित करने के साथ संस्था के फंड को भी फ्रीज करने की शक्ति रखता है।

एफसीआरए निरस्त करने की परिस्थितियाँ

  • अधिनियम के तहत जांच में गलत विवरण पाया गया तो एफसीआरए निरस्त किया जा सकता है।
  • एनजीओं को प्रमाण पत्रों के नवीनीकरणया किसी अन्य नियम का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है।
  • सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता पड़ने पर एफसीआरए को निरस्त किया जा सकता है।
  • जांच या ऑडिट के दौरान एनजीओं के धन के प्रयोग में अनियमितता(दुरुपयोग) प्राप्त हो।

भारत में विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप को रोकने, देश में विदेशी धन के दुरुपयोग, गैर सरकारी संगठनों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एफसीआरए का कार्यान्वयन इसी प्रकार बने रहना आवश्यक है।

स्रोत

Yojna IAS Daily current affairs hindi med 3rd March 2023

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