कोयला खनिक दिवस(Coal Miners Day)

कोयला खनिक दिवस(Coal Miners Day)

कोयला खनिक दिवस(Coal Miners Day)

संदर्भ- आज 4 मई को  समस्त विश्व में कोयला खनिक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है, यह दिवस कोयला खनिकों की कठिन मेंहनत व समाज में उनके योगदान को याद करने के लिए मनाया जाता है। कोयला खनिज उद्योग वर्षों से समस्त विश्व में ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों में से एक है।

कोयला खनन 

  • कोयला खनन, खदानों से कोयला निकालने की प्रक्रिया है। कोयला खनन, सबसे खतरनाक और कठिन व्यवसायों में से एक है। जहां श्रमिक अपना पूरा समय सुरंग खोदने ऐर खदानों से कोयला निकालने में लगा देते हैं। 
  • कोयले की खान को गड्ढा अथवा पिट और इसकी ऊपर की जमीन को पिट हैड भी कहा जाता है। 
  • प्रारंभ में कोयला खनिक स्वयं खदानों के अंदर हाथों से दोनों प्रकारों ओपन पिट माइनिंग व लांग वाल माइनिंग किया करते थे। जिसका श्रमिकों के स्वास्थ्य पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता था।

खनन की पद्धतियां मुख्यतः तीन प्रकार की हो सकती हैं-

  1. तलीय खनन- इस प्रकार के खनन में सतह के ऊपर के पहाड़ों को तोड़कर खनिज प्राप्त किए जाते हैं। इसके द्वारा चूना पत्थर, बालू पत्थर, ग्रेनाइट व लौह अयस्क आदि प्राप्त किए जा सकते हैं। यदि कोयले के स्तर, अधिक गहरे न हों तो इस प्रणाली का प्रयोग किया जा सकता है। 
  2. जलोढ़ खनन – कुछ नदियों के अवसाद में बहुमूल्य धातुएं पाई जाती हैं, इस प्रकार के खनन में पानी की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। भारत में इस प्रकार के कनन का उपयोग बहुत कम किया जाता है।
  3. भूमिगत खनन- इस प्रकार का खनन उन निक्षेपों को प्राप्त करने के लिए किया जातात है जिनकी प्राप्ति सामान्य तलीय खनिज से नहीं हो पाती जैसे कोयला।

कोयला खनन अथवा भूमिगत खनन- 

  • खनन से पूर्व, खान का अध्ययन किया जाता है तथा खनन की योजना बनाई जाती है। 
  • योजना का सर्वप्रथम कदम कूपों का निर्माण होता है, यह कूप 10-12 फुट तक हो सकते हैं। जिनके माध्यम से खान में मार्गों का निर्माण किया जाता है जिससे खनिकों व खनिजों, जल आदि को खान से बाहर निकाला जा सकता है। 
  • खनिजों व अयस्कों को तोड़ने के लिए फावड़ा, कुदाल, विस्फोटक पदार्थ आदि का प्रयोग किया जाता है। 
  • खनिजों की खुदायी से खानों की दीवारें कमजोर हो सकती हैं इसलिए खनन किए गए स्थान को किसी अन्य पदार्थ जैसे बालू आदि से भर दिया जाता है।  
  • खनन के सभी कार्य खनिकों व खनन इंजीनियरों के निर्देशन में होते है।  

कोयला खनन का प्रारंभ

  • कोयला खनन का अधिक उपयोग, 19 वी – 20 वी शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के साथ हुआ। 
  • कोयला, ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है जिसका उपयोग प्रारंभिक उद्योगों में प्रारंभिक ऊर्जा के रूप में किया गया। 
  • उद्योगों में कोयले से प्राप्त ऊर्जा को मिश्र धातु का निर्माण, परिवहन, विद्युत उत्पादन आदि में किया गया। 
  • 20 वी सदी तक खोयला खनन उद्योग ने वैश्विक रूप से एक बड़े उद्योग का रूप धारण कर लिया। उद्योग बढ़ने के साथ व्यापारी संघों व खनिक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली हो गए। 

भारत में कोयला उत्पादन

  • भारत में वाणिज्यिक रूप से कोयला खनन की शुरुआत 1774 में दामोदर नदी तट पर रानीगंज नामक स्थान से हुई। 
  • 1874 के बाद भाप से चलने वाले इंजन के चलन के कारण परिवहन क्षेत्र में कोयले की मांग बढ़ी और भारत में कोयला खनन में तेजी आई।
  • प्रथम विश्व युद्ध के समय कोयले के मांग में अत्यधिक तेजी आई। 
  • भारत में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण 1973 में किया गया था। 
  • विश्व में प्रमुख कोयला उत्पादक देशों में भारत पाँचवे स्थान पर है। भारत में वार्षिक कोयला उत्पादन 700-800 मिलियन टन है जबकि देश में लगभग 200 मिलियन टन कोयला आयात किया जाता है। 
  • कोयला देश में ऊर्जा आवश्यकता में 55% का योगदान देता है।
  • भारत में वर्तमान प्रति व्यक्ति व्यावसायिक प्राथमिक ऊर्जा खपत लगभग 350 किग्रा/वर्ष है 
  • भारत में कोयला खनिकों के कठिन कार्य देखते हुए नई तकनीकों को कोयला खनन में शामिल किया गया।

कोयला खनन में प्रौद्योगिकी

मैन राइडिंग योजनाएं- भूमिगत खनन के लिए खनिकों को खान के भीतर लंबी यात्रा करनी पड़ती है जो जोखिम भरी होती है, इसे आसान बनाने के लिए मैन राइडिंग योजना की शुरुआत की गई है जिसमें स्टीयरिंग मुक्त वाहन प्रयुक्त किए जाते हैं। 

माइन प्लानिंग सॉफ्टवेयर- खनन से संबंधित पूर्व निर्धारित योजना के लिए सॉफ्टवेयर, जियोविया माइनेक्स, डेटा माइन, वल्कन, कार्लसन सॉफ्टवेयर का निर्माण किया गया है। इसके द्वारा पिट डिज़ाइन, पिट ऑप्टिमाइजेशन, संसाधनों और डंपों के शेड्यूलिंग आदि के माध्यम से सर्वोत्तम संसाधन का उपयोग तथा कोयले की चोरी और उठाईगीरी रोकने के लिए कोयला परिवहन वाहनों में जीपीएस/जीपीआरएस आधारित वाहन ट्रैकिंग सिस्टम प्रारंभ किया गया।

वेंटसिम सॉफ्टवेयर- खदानों में वेंटिलेशन की समस्या रहती है, जिसे खत्म करने के लिए वेंटसिम सॉफ्टवेयर की शुरुआत की गई है।

धूल नियंत्रण प्रौद्योगिकी- खनन क्षेत्रों में उड़ने वाली धूल खनिकों को अत्यधिक प्रभावित करती है इसके साथ ही वह क्षेत्र की वायु पर अत्यधिक असर डालती है इसके प्रभाव को कम करने के लिए धूल नियंत्रण प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जा रहा है जिसे दिसंबर 2022 में पेटेंट मिला है। धूल के उत्पादन व फैलाव को कम करने के लिए विंडब्रेक (डब्‍ल्‍यूबी) और वर्टिकल ग्रीनरी सिस्टम (वीजीएस) के सिंक्रोनाइज्ड एप्लिकेशन का प्रयोग इस प्रौद्योगिकी में किया जाएगा। 

खनिकों के जीवन संकट की परिस्थितियां

प्रौद्योगिकी के अत्यंत विकसित होने के बाद भी भारत में अब तक कोयला खनिकों के लिए ऐसी तकनीकि का उद्गम नहीं हुआ है जो इनके संकट को कम कर सके, कोयला खदानों में कार्य करने वाले खनिकों के जीवन में निम्न जोखिम होते है-

  • खदानों में आग लगने की संभावना हमेशा बनी रहती है कोयला खदानों की आग को बुझाना बहुत मुश्किल होता है। जिससे खनिकों का जीवन हमेशा संकट में रहता है। 
  • खदानों में जलभराव कभी भी हो सकता है और अनियंत्रित जल को एक साथ कूपों के द्वारा बाहर फेंकना संभव नहीं हो पाता।
  • खदानों में प्रकाश की कमी भी खदानों में दुर्घटना का कारण बनती हैं। 
  • खदानों में विस्फोटकों का प्रयोग किया जाता है जो खनिकों के लिए संकटमय है।
  • वायु प्रदूषण के कारण कोयला खनिकों व उसके आसपास के क्षेत्रों के लोगों में श्वसन समस्या रहती है। वायु प्रदूषण के साथ ही कोयला माइनिंग क्षेत्र में जल व भूमि प्रदूषण की समस्या भी रहती है। 

खनिकों की अन्य समस्याएं-

  • भारत में अधिकतर कोयला खदानें जंगल में ही पाई गई हैं, यह आदिवासियों के जनजीवन को भी प्रभावित करती है। 
  • जंगल में होने के कारण कोयला खनन से जंगल में पाए जाने वाले अनेक संसाधन समाप्त हो जाते हैं जैसे- पेड़, पौंधे, जड़ी बूटियां आदि।
  • विस्थापन की समस्य़ा- स्थानीय लोगों के संसाधन नष्ट होने से स्थानीय निवासी विस्थापन का मार्ग चुनते हैं। जो एक बड़ी सामाजिक समस्या का कारक हो सकता है।

कोयला, ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत अवश्य है किंतु इसके कारण भारत समेत विश्व के अन्य संसाधन जैसे मानव, पर्यावरण, पारिस्थितिकी नष्ट हो रहे हैं, अतः संसाधनों से प्राप्त लाभ व हानि की माप करते हुए संसाधनों का उपयोग किया जाना चाहिए। सरकार ने अब तक पर्यावरण व मानव को बचाने के लिए प्रयास अवश्य किए हैं किंतु सभी प्रयासों में कोयला खनन और खनिकों के जीवन जोखिम को कम करने के प्रयास नगण्य हैं। 

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