15 Feb जम्मू कश्मीर परिसीमन
जम्मू कश्मीर परिसीमन
संदर्भ- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के लिए एक परिसीमन आयोग के गठन के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया है और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की कवायद की।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 370 के नियम (1) व (3) में दी गई शक्तियों के प्रयोग मान्य है किंतु इसे कोर्ट की अनुमति के रूप में नहीं माना जाएगा। परिसीमन 2011 की जनगणना के अनुसार नहीं हो सकता किंतु 2001 की जनगणना के अनुसार किया जाना चाहिए।
जम्मू कश्मीर परिसीमन आयोग
जम्मू कश्मीर में अब तक 1963, 1973, 1995 में परिसीमन किया जा चुका है। 1991 में राज्य में कोई जनगणना नहीं हुई और 2001 की जनगणना के बाद राज्य सरकार ने कोई परिसीमन नहीं किया गया। वर्तमान में जम्मू कश्मीर विधानसभा सीट में 87 सीटें हैं जहाँ जम्मू में 37, कश्मीर में 46 और लद्दाख में 4 सीटें हैं। पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र के लिए 24 अन्य सीटें आरक्षित की गई हैं।
जम्मू कश्मीर के परिसीमन की मांग की जा रही है जबकि समस्त देश का परिसीमन 2026 में निर्धारित किया गया है। जिस कारण भी सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाई है।
परिवर्तन-
- विधानसभा- जम्मू में सीटों की संख्या बढ़ाकर 46 कर दी गई है वहीं कश्मीर में एक की बढ़ोतरी करते हुए सीटों की संख्या 47 कर दी गई है।
- लोकसभा- आयोग ने जम्मू और अनंतनाग की सीमाएं फिर से तय की गई हैं। जिसमें जम्मू के पूंछ और राजौरी जिले को कश्मीर के अनंतनाग में जोड़ दिा गया है।
- श्रीनगर के शिया बहुल क्षेत्र को बारामुला में स्थानांतरित कर दिया गया है।
संविधान का अनुच्छेद 4 –
- अनुच्छेद 2 व 3 जो राज्यों की स्थापना व पुनर्गठन से संंबंधित हैं, में पहली व चौथी अनुसूची के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे। जो इस विधि के उपबंध को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक आनुषांगिक व पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे जिन्हें संसद आवश्यक समझे।
- इस प्रकार की कोई भी विधि अनुच्छेद 368 के संशोधन के लिए, इस संविधान का संशोधन समझी जाएगी।
संविधान का अनुच्छेद 3
- अनुच्छेद 3 किसी राज्य के निर्माण, राज्यों के एकीकरण, किन्हीं दो राज्यों के कुछ भागों को मिलाकर नए राज्यों का निर्माण किया जा सकता है।
- किसी राज्यों की सीमा को बढ़ा आ घटा सकती है।
- राज्य के नाम में परिवर्तन किया जा सकेगा।
किंतु राष्ट्रपति के अनुमोदन के बिना या ऐसे किसी राज्य में परिवर्तन विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा दी गई अवधि के अंतर्गत विधानमण्डल में विचार न किया जाए और राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया हो। विधेयक की संसद के किसी सदन में पुनर्स्थापना नहीं की जा सकती है।
परिसीमन आयोग-
- किसी देश या प्रांत विशेष क्षेत्र में विधायी निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया परिसीमन कहलाती है।
- परिसीमन का कार्य एक उच्च निकाय को सौंपा जाता है जिसे परिसीमन आयोग कहा जाता है। भारत में इसके आदेशों को कानून के तहत जारी किया जाता है और इन कानूनों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
- ये आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तारीख से लागू होते हैं। इन आदेशों की प्रतियाँ संबंधित लोकसभा व राज्य विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत की जाती हैं। लेकिन वे इसमें कोई संशोधन नहीं कर सकती है।
- सदस्य- परिसीमन आयोग का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय का वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश हो सकता है। इसके अतिरिक्त सदस्य मुख्य निर्वाचन आयुक्त या उसके द्वारा नामि कोई व्यक्ति और संबंद्ध राज्यों के राज्य निर्वाचन आयुक्त।
परिसीमन आयोग अधिनियम
भारत में परिसीमन आयोग का गठन 4 बार किया जा चुका है-
- परिसीमन आयोग अधिनियम 1952,
- परिसीमन आयोग अधिनियम 1962,
- परिसीमन आयोग अधिनियम 1972,
- परिसीमन आयोग अधिनियम 2002।
आयोग की शक्तियाँ- आयोग को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अंतर्गत सिविल न्यायालय की सभी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। जैसे-
- साक्षियों को समन करने या हाजिर करना। जहाँ आयोग की सीमा राज्य क्षेत्र की सीमा होगी।
- किसी दस्तावेज को अनिवार्य रूप से पेशी का आदेश देना।
- किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख की अध्यपेक्षा करना।
- आयोग किसी व्यक्ति किसी विशेष विषय से संबंधित जो आयोग के लिए महत्वपूर्ण हो की जानकारी ले सकता है।
- आयोग किसी कार्य विशेष के लिए आयोग के सदस्य को आयोग के अधिकार प्रदान करता है, उसके द्वारा अधिकार के प्रयोग के समय इसे आयोग द्वारा कृट माना जाएगा।
- आयोग में मतभेद होने पर बहुमत का प्रयोग किया जाएगा।
- दण्ड प्रकिया संहिता 1973 की धारा 345 व 346 के प्रयोजनों के लिए आयोग को सिविल न्यायालय समझा जाएगा।
अनुच्छेद 170
Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 15th Feb
- अनुच्छेद 170, राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों के पुनः समायोजन से संबंधित है।
- प्रत्येक राज्य की विधानसभा, निर्वाचन क्षेत्रों से चुने हुए सदस्यों से मिलकर बन सकती है। जिनकी संख्या 60 व 500 के मध्य होनी चाहिए।
- प्रत्येक जनगणना के पश्चात प्रत्येक राज्य में विधानसभा क्षेत्रओं की कुल संख्या व प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का संसद विधि द्वारा अवधारित अधिकारी द्वारा पुनः समायोजन किया जाएगा।
स्रोत
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