23 Mar जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की सिंथेसिस रिपोर्ट (IPCC Synthesis Report)
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की सिंथेसिस रिपोर्ट (IPCC Synthesis Report)
संदर्भ- हाल ही में IPCC ने स्विट्जरलैंड में अपनी छठी सिंथेसिस रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट में सरकारी नीति निर्माताओं से जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से बचने के लिए तत्काल कार्यवाही करने का आग्रह किया गया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेस के अनुसार आईपीसीसी रिपोर्ट, टाइम बम डिफ्यूस करने की एक मार्गदर्शिका है।
सिंथेसिस रिपोर्ट तीन कार्यकारी समूहों के परिणामों के आधार पर आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की है-
- WG I ने जलवायु परिवर्तन के भौतिकी अध्ययन के आधार का मूल्यांकन किया है।
- WG II ने प्रभावों, अनुकूलन व भेद्यता का मूल्यांकन किया।
- WG III ने शमन का मूल्यांकन किया।
IPCC रिपोर्ट
रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर सकता है। 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के अंतर्गत ही इसका प्रभाव पड़ना प्रारंभ हो गया है। वर्तमान परिस्थितियाँ वैश्विक तापमान की 1.1% बढोतरी को दर्शाती है। जिसके निम्नलिखित दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं-
स्वास्थ्य-
- गर्मी की लहरों, बाढ़ और सूखे से रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि।
- कुपोषण, दस्त, कार्डियो-श्वसन और संक्रामक रोगों में वृद्धि।
- कुछ रोग वैक्टरों का वितरण परिवर्तित हो रहा है।
- स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी बोझ आ गया है।
जल
- नम उष्णकटिबंधीय और उच्च अक्षांशों में पानी की उपलब्धता में वृद्धि।
- मध्य अक्षांशों और अर्द्ध शुष्क निम्न अक्षांशों में घटती जल उपलब्धता और बढ़ता हुआ सूखा
- करोड़ों लोग बढ़ते जल संकट के संपर्क में हैं।
भोजन
- सूक्ष्म स्तर के किसानों और मछुआरों पर जटिल, स्थानीयकृत नकारात्मक प्रभाव।
- निम्न अक्षांशों में कृषि उत्पादकता में कमी।
पारिस्थितिकी तंत्र
- भूमि व समुद्र में पाए जाने वाले विभिन्न प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।
- प्रजातियों के 30 % तक विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
- इससे लगभग 40% पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
तटीय क्षेत्र
- चक्रवातों के कारण होने वाले नुकसान बढ़ रहे हैं।
- वैश्विक तटीय आर्द्रभूमि का लगभग 30% नष्ट हो गया।
- हर साल तटीय बाढ़ के कारण लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।
अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों की स्थिति भयावह- सबसे गरीब और सबसे कमजोर आबादी को प्रभावित करेगा, विशेष रूप से अफ्रीका और कम-विकसित देशों में, और अधिक गरीबी पैदा करेगा।
वैश्विक तापमान के 1.5 डिग्री सेण्टिग्रेट को पार करने के संभावित परिणाम
- अप्रत्याशित जल चक्र
- सूखा एवं आग
- विनाशकारी बाढ़
- तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात व समुद्री आपदा
IPCC के सुझाव
- वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के भीतर रखने के लिए, उत्सर्जन को 2019 के स्तर की तुलना में 2030 तक कम से कम 43% और 2035 तक कम से कम 60% कम करने की आवश्यकता है। ऐसा करने के लिए यह निर्णायक दशक है।
- इक्विटी, सामाजिक न्याय, समावेशन और न्यायसंगत परिवर्तन प्रक्रियाओं को प्राथमिकता देने से महत्वाकांक्षी जलवायु शमन क्रियाएं और जलवायु-लचीले विकास को सक्षम किया जा सकेगा।
- ऊर्जा प्रणालियों को सुनिश्चित करने के लिए अन्य उपायों में शुद्ध-शून्य CO2 उत्सर्जकों को शामिल किया जाना चाहिए।
- समग्र जीवाश्म ईंधन के उपयोग में पर्याप्त कमी, असंतुलित जीवाश्म ईंधन का न्यूनतम उपयोग, और शेष जीवाश्म ईंधन प्रणालियों में कार्बन कैप्चर और भंडारण के उपयोग के लिए ऊर्जा संरक्षण और भंडारण की आवश्यकता है।
IPCC रिपोर्ट में भारत
- भारत का ग्लोबल वार्मिंग में अत्यंत कम योगदान होने के बाद भी भारत में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव दिखाई देने लगे हैं।
- एक बड़ी कमजोर आबादी के साथ, भारत को अनुदान और नीतियों को प्राथमिकता देने की जरूरत है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- भारत को जीवन, आजीविका और जैव विविधता में हो रहे नुकसान और क्षति को कम करने और समान कार्यवाई शमन और अनुकूलन को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- रिपोर्ट की लेखक व एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की जॉयश्री रॉय के अनुसार एक विकासशील देश के रूप में, भारत लगभग हर क्षेत्र में पहले से ही लागू की जा रही ऊर्जा दक्षता नीतियों के माध्यम से अपने प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को कम कर सकता है और साथ ही यह सौर और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे स्वच्छ विकल्पों का उपयोग करके ऊर्जा क्षेत्र को डीकार्बोनाइज भी कर सकता है।
जलवायु परिवर्तन में सुधार हेतु भारत के प्रयास
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना- जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं के प्रति विभिन्न सरकारी एजेंसियों, वैज्ञानिकों और उद्योंगों के समुदायों को जागरुक करने के लिए 2008 में किया गया था। इसके अंतर्गत विभिन्न योजनाओं को प्रारंभ किया गया था-
- राष्ट्रीय सौर मिशन
- विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन
- राष्ट्रीय जल मिशन
- हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
- सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
- हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
- सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
- जलवायु परिवर्तन के लिए रणनीतिक ज्ञान हेतु राष्ट्रीय मिशन आदि।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन- यह सौर ऊर्जा के सहयोग पर आधारित देशों का एक संगठन है, जिसका शुभारंभ भारत व फ्रांस द्वारा 30 नवंबर 2015 को पेरिस में किया गया था। इनका उद्देश्य 1000 गीगा वाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करना।
COP 26 में भारत की पंचामृत योजना- भारत ने ग्लासगो सम्मेलन में पंचामृत योजना के निम्नलिखित लक्ष्य रखे।
- भारत अपनी गैर जीवाश्म ऊर्जा को 2030 तक 500 गीगावाट कर देगा।
- 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकता के 50 % को भारत अक्षय ऊर्जा से पूरा कर देगा।
- 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1 अरब टन तक की कमी करेगा।
- कार्बन तीव्रता की दर को 45% तक कम करेगा।
- और 2070 तक भारत शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल कर लेगा।
LiFE कार्ययोजना- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 जून 2022 यानि विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पर्यावरण के लिए जीवनशैली LiFE का उद्घाटन किया। यह योजना एक वैश्विक नैटवर्क (प्रो प्लैनेट पिपुल्स) बनाकर एक स्वस्थ व टिकाऊ जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगी। इस आंदोलन के जरिए वर्तमान में प्रचलित उपयोग व निपटान की गैर जिम्मेदार अर्थव्यवस्था को परिपत्र अर्थव्यवस्था में बदलने की कोशिश की जाएगी।
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