04 Jan जल्लीकट्टू
जल्लीकट्टू
संदर्भ- जल्लीकट्टु को प्रारंभ में तमिलनाडु में वैधता प्रदान की गई थी। 2014 में, एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया बनाम ए. नागराजा में, सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अनुभव किया कि इसमे पशुओं के साथ क्रुरता की जाती है जिससे पशुओं को अनन्य पीड़ा का सामना करना पड़ता है। और जल्लीकट्टू को तमिलनाडु समेत पूरे देश में प्रतिबंधित कर दिया। तब से तमिलनाडु खेल को वैध घोषित करने का प्रयास कर रहा है।
जल्लीकट्टू-
- तमिलनाडु में मनायी जाने वाली प्रथा है, जिसे चार दिन तक चलने वाले पोंगल त्योहार के तीसरे दिन आयोजित किया जाता है।
- पोंगल तमिल हिंदुओं का एक त्योहार है, जो प्रति वर्ष 14-15 जनवरी से प्रारंभ होता है, इसके पहला दिन इंद्र, दूसरा दिन सूर्य और तीसरा दिन मट्टू(भगवान शंकर का बैल) की पूजाकी जाती है। और चौथा दिन कानुम पोंगल के दिन घरों को सजाकर उत्सव मनाते हैं।
- इसमें इंसानों द्वारा बैल को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
- इसमें एक बैल को भीड़ में छोड़ दिया जाता है और इंसानों की भीड़ से प्रतिभागी बैल के कूबड़ को पकड़ने का प्रयास करते हैं। कूबड़ को पकड़कर बैल को रोकने का प्रयास किया जाता है।
- विवाद से पूर्व बैलों को नशीला पदार्थ खिलाकर व कोड़े से मारकर जल्लीकट्टु के लिए लाया जा रहा था। इसमें इंसान व जानवर दोनों के घायल होने की संभावना रहती है।
ऐतिहासिक साक्ष्य-
- जल्लीकट्टू एक प्राचीन प्रथा है जिसका उल्लेख संगम साहित्य के तमिल ग्रंथ शिलप्पादिकारम, मालिपादुकारम में इसका उल्लेख मिलता है।
- तमिलनाडु के शिलालेख इरु थजुवुथल में भी इसका चित्रण मिलता है।
- इसके साथ ही सिंधु घाटी की सभ्यता की एक मुद्रा में भी जल्लीकट्टु खेल का अंकन मिलता है।
पशु अधिकार व सुरक्षा-
पशु क्रुरता निवारण अधिनियम 1960-
- पशुओं को अनावश्यक पीड़ा व यातना पहुँचाने के निवारण के लिए अधिनियम पारित किया गया।
- यह चिकित्सीय उपचारों के लिए जानवरों पर किए गए प्रयोगों के अतिरिक्त सभी प्रकार की यातनाओं को प्रतिबंधित करता है।
- इसके साथ ही यह अधिनियम धर्म द्वारा किसी रीति रिवाज के चलते पशु वध को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है। इन अपवादों के कारण पशुओं के प्रति क्रूरता को बढ़ावा मिला।
- सुप्रीम कोर्ट ए नागराजा केस के अनुसार जल्लीकट्टु प्रथा पीसीए अधिनियम में निषिद्ध कार्यों में से एक है।
पशु क्रुरता अधिनियम 2017(संशोधन)- पशु क्रुरता अधिनियम से जल्लिकट्टु प्रथा को अलग कर दिया अर्थात जल्लिकट्टु प्रथा वैध घोषित कर दी गई।इसके लिए निम्न तर्क दिए गए-
- समवर्ती सूची – समवर्ती सूची में वे विषय रखे जाते हैं जिन पर संघ व राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। समवर्ती सूची की 17 वी प्रविष्टि में पशु क्रुरता के निवारण संबंधित है, जिस पर केंद्र व राज्य कानून बना सकते हैं।
न्यायालय के अनुसार समवर्ती सूची में पशु क्रुरता के निवारण के लिए कानून की बात कही गई है जबकि प्रतिक्रिया में पशु क्रुरता को माफ किया गया है। और मौलिक कर्तव्य भी पशु क्रुरता के पक्ष में नहीं हैं।
- अनुच्छेद 51ए(जी)- वनों झीलों व वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण को महत्व देना, उसकी रक्षा करना उसका संवर्धन करना, प्राणीमात्र के प्रति दया भाव रखना।
- अनुच्छेद 21- कानून द्वारा किसी प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति को जीवन या उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से मुक्त नहीं किया जाएगा। यहां जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्ति को दिया गया है।
(केस में जीवन की व्याख्या प्रकृति से संबंधित जीवन के अधिकार से की जा रही है। अतः पशुओं को भी जीवन का अधिकार है। लेकिन जीवन की यह व्याख्या विवादित है।)
स्रोत
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