पटना जाति सर्वेक्षण पर रोक

पटना जाति सर्वेक्षण पर रोक

पटना जाति सर्वेक्षण पर रोक

संदर्भहाल ही में बिहार सरकार द्वारा बिहार में जातिगत जनगणना कराई जा रही थी, किंतु बिहार उच्च नायालय ने  इस जनगणना पर तत्काल रोक लगा दी है। न्यायालय के अनुसार राज्य सरकार के पास बिहार में इस प्रकार की जनगणना कराने की कोई शक्ति नहीं है। 

संविधान में जनगणना का प्रावधान

सातवी अनुसूची

  • भारतीय संविधान में जनगणना का विषय संविधान की सातवी अनुसूची के पहले खण्ड यानि केंद्र सूची के अनुच्छेद 246 में निर्देशित किया गया है। अतः जनगणना का विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। 
  • जनगणना अधिनियम 1948 के अनुसार जातिगत जनगणना का भारतीय संविधान में कोई प्रावधान नहीं दिया गया है। 
  • अतः जनगणना केवल केंद्र द्वारा कराई जा सकती है और राज्य द्वारा जातिगत जनगणना का भारतीय संविधान में कोई प्रावधान न होने जैसे कारणों से पटना जातिगत जनगणना को तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है। 

भारतीय जनगणना में जातियाँ

प्राचीन काल 

  • प्राचीन मौर्य राजवंश के समय के ग्रंथ अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने नियमित जनगणना का उल्लेख है जहां व्यवसाय के आधार पर विभिन्न वर्गों जैसे व्यवसायी, कृषक, बढ़ई आदि की जनगणना के लिए ग्रामिक व नागरिक नामक अधिकारी जिम्मेदार होते थे। 
  • प्राचीन काल में किसी जाति विशेष के आधार पर जनगणना नहीं कराई जाती थी, वरन कार्य के आधार पर किया जाता है।
  • मध्यकाल में जनगणना के कोई आंकड़े प्राप्त नहीं होते हैं। मुगल बादशाह अकबर के समय आइने अकबरी में ही जनसंख्या, उद्योग, धन आदि के आंकड़े प्राप्त होते हैं। 

आधुनिक काल

आधुनिक भारत में जनगणना की शुरुआत ब्रिटिश शासन के समय हुई। भारत में प्रथम जनगणना 1872 का श्रेय लॉर्ड मेयो को दिया जाता है।

  • भारत की पहली सम्पूर्ण जनगणना 1881 में कराई गई थी। इसके बाद प्रत्येक 10 वर्ष में जनगणना कराई जाती है। 
  • ब्रिटिश शासन के समय हुई जनगणना में जातिगत आंकड़ों को भी संलग्न किया जाता था। 
  • स्वतंत्र भारत में विभिन्न जातिगत आंकड़ों को हिंदू समुदाय के अंतर्गत शामिल किया गया। जनगणना में केवल उन जातियों को प्रमुखता दी गई जो विशिष्ट जाति का होने के कारण बुनियादी आवश्यकताओं से वंचिथ थे।
  • स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना 1951 में कराई गई, इसके आंकड़ों में केवल अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को ही संलग्न किया गया। 

 जातिगत जनगणना की आवश्यकता

भारत में मण्डल कमीशन की स्थापना अन्य पिछड़ा वर्ग की पहचान करने के लिए की गई थी। मंडल कमीशन ने विभिन्न धर्मों के व भिन्न जातियों को सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ा घोषित कर आरक्षण की मांग की थी। किंतु देश के अन्य समुदाय ने इस आरक्षण का विरोध किया था, उनके अनुसार केवल जन्म के आधार पर आरक्षण देना, समानता के अधिकार की अवहेलना है। 

विरोधी पक्ष ने इस तथ्य को उजागर किया कि वंचित वर्ग को वंचित ही रखा जाता है जबकि आरक्षण का अधिकतर लाभ एक विशेष वर्ग ही उठाता है। जिसे अब इस आरक्षण की आवश्कता नहीं है। क्रीमी लेयर और इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के निर्णय में इस वंचित वर्ग व क्रीमी लेयर की पहचान करने के निर्देश दिए गए थे। 

जातिगत जनगणना-2011

  • आरक्षण में किसी विशेष वर्ग की पहचान करने के लिए जातिगत जनगणना की मांग लगातार राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही थी। 2011 में बड़ी संख्या में सांसदों के दबाव के कारण तत्कालीन सरकार ने सामाजिक व आर्थिक जनगणना कराई। किंतु इस जनगणना के आंकडे़ सार्वजनिक नहीं किए गए। 
  • 2011 की जनगणना के जातिगत आंकड़े पुराने आंकड़ों से मेल न खाने के कारण त्रुटिपूर्ण माने जाते हैं। जैसे 2031 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जातियां 4147 थी किंतु 2011 के आंकड़ों में भारत की जातियाँ 46 लाख से भी अधिक हैं।  
  • 2015 में राज्य स्तर पर भी इस प्रकार की जातिगत जनगणना कर्नाटक में भी कराई गई थी और इसके आंकड़े भी सार्वजनिक नहीं किए गए।

जातिगत जनगणना के संभावित प्रभाव-

  • वास्तविक वंचित वर्गों की पहचान की जा सकेगी, जो आर्थिक व सामाजिक ररूप से आज भी पिछड़े हैं। 
  • कमजोर वर्ग को आरक्षण देकर उन्हें मुख्य धारा में लाना मुमकिन हो सकेगा। 
  • कल्याणकारी योजनाएं केवल कमजोर वर्ग पर ही आधारित हो इसके प्रयास किए जा सकेंगे। 

जातिगत जनगणना के फायदे के साथ समाज में जातिगत एकजुटता आ सकती है जो समाज को जाति के आधार पर बांटने का कार्य कर सकती है। 

आगे की राह  

  • इस प्रकार की जनगणना का उद्देश्य वंचित व्यक्तियों की पहचान करना होना चाहिए, न कि जाति की पहचान।
  • आर्थिक व शैक्षिक दशा को आधार बनाकर की गई जनगणना समाज के विकास में सहायक होगी। 

स्रोत

Yojna daily current affairs hindi med 6 May 2023

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