भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास 

भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास 

भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास 

संदर्भ- हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बयान में कहा कि यदि वे भ्रष्टाचार करते हुए पाए गए तो उन्हें फांसी पर लटका दिया जाए। 

भ्रष्टाचार, आचार से संबंधित एक अपराध है, जो किसी व्यक्ति या समूह द्वारा किया जा सकता है। आज भारत समेत समस्त विश्व में भ्रष्टाचार की समस्या बनी हुई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा करप्शन परसेप्शन इंडैक्स 2021 जारी किया गया था। इस रिपोर्ट के लिए 180 देशों ने भाग लिया, जिसमें भारत 85 वे स्थान पर था जो चिंतनीय है। भ्रष्टाचार, एक विचारधारा के समान होता है जिसका प्रभाव किसी अवधि में कम और किसी अवधि में अत्यधिक हो सकता है। 

भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास

भ्रष्टाचार की अवधारणा सामान्यतः व्यक्तिगत धन संग्रह से प्रेरित होती है। भारत में धन संग्रह की लालसा से संबंधित विचारधारा का उत्कर्ष सर्वप्रथम मौर्य काल में चंद्रगुप्त मौर्य के समय आय़ा। मौर्ययुग में अत्यधिक साम्राज्य विस्तार के साथ राज्य का आर्थिक विकास हो रहा था, आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनने के लिए धन संग्रह की भावना को बल मिला जिसे समाप्त करने के लिए कौटिल्य के सानिध्य में मौर्य शासकों ने अनेकों प्रयास किए। जैसे पण्यध्यक्ष, पौतवाध्यक्ष, शुल्काध्यक्ष, चुंगी अध्यक्ष जैसे पदों की नियुक्ति कर राज्य में भ्रष्टाचार को रोकने के प्रयास किए गए। 

भारत में बौद्ध धर्म जिसका सिद्धांत ही अत्यधिक धन संग्रह से बचने पर निर्भर है, भी भ्रष्टाचार के प्रभाव से बच न सका, जिसके कारण ही भारत में बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हुआ। 

मध्यकाल जिसे भारत में लगभग 700-1600 ई. का काल माना जाता है, में भ्रष्टाचार का बहुत अधिक विस्तार हुआ। मध्यकाल में भूमि (इक्ता) से संबंधित भ्रष्टाचार काफी बढ़ गया था। इस समय भ्रष्टाचार को समर्थन व निरस्त करने संबंधी कुछ तथ्य निम्नलिखित हैं-

  • बलबन ने इक्तादारों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए 1279 में ख्वाजा नामक पदाधिकारियों की नियुक्ति की थी। जो इक्तादारों को नियंत्रित कर सकता था। 
  • अलाउद्दीन खिलजी ने भी भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए दाग व चेहरा प्रथा को लागू किया था। इसके तहत घुड़सवारों के चेहरे का लेखा जोखा लिया जाता था और घोड़ो की पहचान के लिए उन्हें दागा जाता था। जिससे किसी भी सैनिक द्वारा सेना में गलत विवरण न दिया जा सके। 
  • तुगलक शासक फिरोजशाह तुगलक को भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देने के लिए जाना जाता है। उसने अपने शासन में घूसखोरी को प्रोत्साहन दिया था। जबकि मुहम्मद बिन तुगलक को साम्राज्य के विकास के लिए किए गए विभिन्न प्रयासों के लिए जाना जाता है और इन प्रयासों की विफलता का एक कारण भ्रष्टाचार भी था। 
  • लोदी वंश, सल्तनत काल का सबसे अंतिम राजवंश था, लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी को प्रशासन में सुधार करने के लिए जाना जाता है। उसने भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कड़े कानून बनाए।
  • इन सभी सुल्तानों के बाद मुगल वंश का उत्कर्ष अकबर के साथ हुआ जिसमें अकबर के बाद मुगल काल में भी भ्रष्टाचार का बोलबाल बढ़ गया। जहांगीर व शाहजहां के समय मुगल अधिकारियों ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। 
  • शिवाजी महाराज ने भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए कई कार्य किए थे जैसे जागीर देने की प्रथा की समाप्ति और सैनिकों को नियमित वेतन दिया गया। मराठा साम्राज्य में देशमुख व देशपाण्डे नामक पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई जो भ्रष्टाचार को नियंत्रित कर सकें।

आधुनिक काल में ब्रिटिश अधिकारियों ने भारत मे भ्रष्टाचार का अत्यधिक प्रसार किया। लॉर्ड क्लाइव व वारेन हेस्टिंग भ्रष्टाचारी अधिकारियों में प्रारंभिक थे। इन अधिकारियों ने भारत से अत्यधिक धन लूटा, उन्होंने भारत में इसका प्रसार करने के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी को भी कर्जे में डूबो दिया। जिसका परिणामस्वरूप भारत में ब्रिटिश शासन का अधिकार कंपनी से ब्रिटिश सरकार के पास चला गया। किंतु कुछ अधिकारी जैसे लॉर्ड कार्नवालिस ने भ्रष्टाचार व घूसखोरी पर कड़ा प्रतिबंध लगाया। 

सभी प्रतिबंधों के बाद भी भ्रष्टाचार समाप्त न हुआ लेखकों ने भी भ्रष्टाचार के कारण देश की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है जैसे प्रेमचंद ने सेवासदन नामक ग्रंथ में भारत में फैल रहे नैतिक भ्रष्टाचार का वर्णन किया है। स्वतंत्रता से पूर्व तक भ्रष्टाचार केवल राज्स्व अधिकारियों क्लर्कों आदि तक सीमित थी किंतु स्वतंत्रता के बाद इसकी यह विचारधारा का तेजी से उत्कर्ष हुआ। स्वतंत्रता के बाद भ्रष्टाचार निम्न अधिकारी से लेकर उच्च अधिकारियों व राजनेताओं में तक देखा जा रहा है। 

आगे की राह

भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए उन सभी केंद्रों की पहचान की जा सकती है जो इस प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देती है। 

भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून होने के बावजूद इसका डर समाप्त होना इस बात का प्रमाण हे कि लोगों को या तो इसकी जानकारी नहीं है या फिर इन कानूनों का कड़ाई से पालन नहीं किया जाता अतः भ्रष्टाचार से संबंधित दण्ड व कानून को अत्यधिक प्रसारित किया जा सकता है।

 इसके साथ ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाया जा सकता है, तथा दण्ड प्रक्रिया को कड़ाई से लागू किया जा सकता है।

भ्रष्ट आचरण से होने वाले व्यक्तिगत व सामाजिक नुकसान के बारे में बच्चों को अवगत कराया जा सकता है। इसके लिए विद्यालयों व परिवार को अपना योगदान देने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

स्रोत

The Hindu

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