10 Jun भारत में विशेष राज्य की श्रेणी का मान्यता प्रदान करना बनाम आंध्र प्रदेश राज्य का गठन
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था, भारतीय संविधान, संघवाद, केंद्र – राज्य संबंध, विभिन्न भाषाई आयोगों की प्रमुख सिफारिशें और राष्ट्र / देश की एकता तथा अखंडता पर इसका प्रभाव ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ धर आयोग, जे.वी.पी. समिति, फज़ल अली आयोग , राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014, विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS), 14वाँ वित्त आयोग, अनुच्छेद 2, अनुच्छेद 3 ’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारत में विशेष राज्य की श्रेणी का मान्यता प्रदान करना बनाम आंध्र प्रदेश राज्य का गठन ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में भारत में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दो अलग-अलग स्वतंत्र राज्य बनने के उपलक्ष्य में आंध्र प्रदेश ने अपने विभाजन की 10वीं वर्षगाँठ मनाई है ।
- स्वतंत्र भारत में यह ऐतिहासिक और अत्यंत महत्त्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव तेलुगु लोगों के राजनीतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक परिदृश्य पर इसके व्यापक प्रभावों का पता लगाने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
- इसी संदर्भ में, भारत में विशेष राज्य की श्रेणी का मान्यता प्रदान करने का मुद्दा भी चर्चा में है, क्योंकि बिहार और झारखण्ड के विभाजन के बाद बिहार को भी विशेष राज्य का मान्यता प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है और बिहार को विशेष राज्य का मान्यता प्रदान करने के लिए मांग कर रहा है।
- भारत में किसी भी राज्य को विशेष राज्य का मान्यता मिलने से राज्यों को आर्थिक और प्रशासनिक सहायता मिलती है, जो उनके विकास में सहायक होती है।
भारत में किसी राज्य को विशेष श्रेणी के राज्य का मान्यता मिलना (Special Category Status- SCS) क्या होता है ?
- विशेष श्रेणी का राज्य (Special Category Status – SCS) एक ऐसा वर्गीकरण है जो केंद्र सरकार द्वारा कुछ राज्यों को उनकी भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक विषमताओं के आधार पर विकास में सहायता प्रदान करने के लिए दिया जाता है। यह योजना वर्ष 1969 में पाँचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर शुरू की गई थी।
- SCS के तहत राज्यों को वित्तीय सहायता, संसाधनों का आवंटन और अन्य लाभों में प्राथमिकता दी जाती है। इस दर्जे के तहत राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए 90% धनराशि केंद्र द्वारा प्रदान की जाती है।
- इसके अलावा, ये राज्य एक वित्तीय वर्ष से अगले वित्तीय वर्ष तक अप्रयुक्त निधियों को आगे बढ़ा सकते हैं और कर रियायतों का लाभ उठा सकते हैं।
- वर्तमान में भारत में 11 राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य के रूप में मान्यता मिली हुई हैं, जिनमें अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा तथा उत्तराखंड शामिल हैं।
भारत में किसी राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य के रूप में मान्यता प्रदान करने वाले प्रमुख कारक :
भारत में किसी राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य के रूप में मान्यता प्रदान करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –
- पहाड़ी और दुर्गम इलाका।
- कम जनसंख्या घनत्त्व और/या जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा।
- अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के साथ रणनीतिक स्थान ।
- आर्थिक और अवसंरचनात्मक पिछड़ापन।
- राज्य के वित्त की गैर-व्यवहार्य प्रकृति।
14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर भारत के शेष राज्यों के लिए विशेष श्रेणी का दर्ज़ा’ समाप्त कर दिया है।
भारत में नये राज्य के गठन के लिए प्रमुख संवैधानिक प्रावधान :
भारत में नये राज्य के गठन के लिए संवैधानिक प्रावधान निम्नलिखित हैं –
अनुच्छेद 2 : संसद विधि द्वारा ऐसे निबंधनों और शर्तों पर नये राज्यों को संघ में शामिल कर सकेगी या उनकी स्थापना कर सकेगी, जिन्हें वह ठीक समझे।
अनुच्छेद 3 : भारत में अनुच्छेद 3 के तहत नये राज्यों का गठन तथा विद्यमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन करना शामिल है।
- किसी राज्य से क्षेत्र को अलग करके या दो या अधिक राज्यों या राज्यों के भागों को मिलाकर या किसी राज्य के किसी भाग में किसी अन्य राज्य के क्षेत्र को मिलाकर एक नया राज्य बनाना।
- किसी राज्य का क्षेत्रफल बढ़ाना।
- किसी राज्य का क्षेत्रफल कम करना।
- किसी राज्य की सीमाएँ परिवर्तित करना।
- किसी राज्य का नाम बदलना।
भारत में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए विभिन्न आयोग :
भारत की केंद्र सरकार ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के संबंध में जाँच करने और सिफारिशें देने के लिए समय-समय पर कई आयोगों की स्थापना की। भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित कुछ आयोग निम्नलिखित है –
धर आयोग (1948) :
- उद्देश्य : भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की व्यवहार्यता की जाँच करना।
- परिणाम : एस.के.धर की अध्यक्षता वाले धरआयोग ने केवल भाषा के आधार पर पुनर्गठन के विचार का समर्थन नहीं किया। इसने भाषाई एकरूपता की तुलना में प्रशासनिक दक्षता पर अधिक ज़ोर दिया।
जे.वी.पी. समिति (1948-1949) :
- सदस्य : जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैय्या।
- उद्देश्य : धर आयोग की सिफारिशों के बाद भाषाई राज्यों की मांगों का पुनर्मूल्यांकन करना।
- परिणाम : जे.वी.पी. समिति ने राज्यों के पुनर्गठन को पूरी तरह भाषाई आधार पर न करने की सिफारिश की तथा सुझाव दिया कि इस तरह के पुनर्गठन से प्रशासनिक कठिनाइयाँ और राष्ट्रीय विघटन हो सकता है।
फज़ल अली आयोग (राज्य पुनर्गठन आयोग) (1953-1955) :
- सदस्य : फज़ल अली (अध्यक्ष), के.एम. पणिक्कर, और एच.एन. कुंज़रू।
- उद्देश्य : भाषाई एवं अन्य आधारों पर राज्यों के पुनर्गठन के सम्पूर्ण प्रश्न की जाँच करना।
- परिणाम : इसने भाषाई आधार पर राज्यों के निर्माण की सिफारिश की, लेकिन राष्ट्रीय एकीकरण और प्रशासनिक सुविधा सुनिश्चित करने के लिये कुछ आरक्षणों के साथ। इसकी सिफारिशों के कारण भाषाई आधार पर कई राज्यों का गठन हुआ।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम (1956) :
- यह फज़ल अली आयोग की सिफारिशों पर आधारित था।
- इस अधिनियम के कारण भारत भर में राज्य की सीमाओं का पुनर्गठन हुआ, जिससे देश के राजनीतिक मानचित्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया।
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत हैदराबाद राज्य के तेलुगु भाषी क्षेत्रों को आंध्र राज्य में मिलाकर विस्तारित आंध्र प्रदेश का निर्माण किया गया।
भारत में भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन आंदोलनों का ऐतिहासिक सफ़र :
- सन 1920 के दिसंबर महीने में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के नागपुर अधिवेशन में प्रांतीय कॉन्ग्रेस समितियों को भाषाई आधार पर पुनर्गठित करने का निर्णय लिया गया।
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के इस कदम का मुख्य उद्देश्य विभिन्न भाषाई समूहों के हितों को बढ़ावा देना था। इससे भाषाई आधार पर भारत में राज्यों की मांग बढ़ने लगी।
- इस आंदोलन की जड़ें भाषाई पुनर्गठन आंदोलनों के दौरान देखी जा सकती हैं, जिसने भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत में भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन की मांग अत्यंत तीव्र गति से होने लगी ।
- तेलुगु भाषी व्यक्तियों के लिए एक अलग राज्य की मांग उनकी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने तथा उसको बढ़ावा देने की इच्छा से प्रेरित थी।
भारत में भाषाई आधार पर बनने वाले राज्य के लिए आंदोलन :
- भाषाई आधार पर राज्य के पुनर्गठन के लिए चलने वाले प्रमुख आंदोलनों में तेलुगु भाषी लोगों के लिए अलग आंध्र प्रदेश राज्य के निर्माण की मांग करने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक पोट्टी श्रीरामुलु जो एक गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्त्ता थे, ने शुरू किया था।
- उन्होंने तेलुगु भाषी लोगों के लिए अलग आंध्र प्रदेश राज्य के निर्माण की मांग को लेकर 19 अक्तूबर, 1952 को भूख हड़ताल की।
- कुल 56 दिनों के उपवास के बाद उनकी मृत्यु ने इस आंदोलन को और अधिक तीव्र कर दिया और भारत सरकार को भाषाई पुनर्गठन पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया था।
भारत में भाषाई आधार पर बनने वाला पहला राज्य आंध्र प्रदेश राज्य का गठन :
- पोट्टी श्रीरामुलु की मृत्यु के कारण हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए और काफी जन आक्रोश उत्पन्न हुआ। कई समितियों की सिफारिशों के बाद भारत सरकार ने भाषाई आधार पर एक अलग राज्य बनाने का निर्णय लिया गया था।
- भारत का पहला भाषाई राज्य, जिसे आंध्र प्रदेश राज्य के रूप में जाना जाता है, उसका गठन मद्रास राज्य से तेलुगु भाषी क्षेत्रों को अलग करके बनाया गया था।
- अतः भारत में भाषाई आधार पर बनने वाला पहला आंध्र प्रदेश था।
- 2 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के माध्यम से आंध्र प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग को अलग कर 29वें राज्य तेलंगाना का निर्माण किया गया।
- आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS) देने का मुद्दा वर्ष 2014 में राज्य के विभाजन के बाद से एक महत्त्वपूर्ण और विवादास्पद विषय रहा है।
आंध्र प्रदेश राज्य के बारे में विभिन्न परीक्षापयोगी अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण तथ्य :
- राज्य की सीमा : आंध्र प्रदेश राज्य की सीमा उत्तर में छत्तीसगढ़, उत्तर-पूर्व में ओडिशा, पश्चिम में तेलंगाना और कर्नाटक, दक्षिण में तमिलनाडु तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लगती है।
- कला और संस्कृति : आंध्र प्रदेश राज्य में थोलू बोम्मालता (कठपुतली शो), दप्पू (ताल नृत्य), वीरा नाट्यम (बहादुरों का नृत्य), तप्पेटा गुल्लू (वर्षा देवता का नृत्य), कोलट्टम, लंबाडी (खानाबदोशों का नृत्य), कुचिपुड़ी, भामा कलापम, यक्षगान, कलमकारी (वस्त्र कला) इत्यादि प्रमुख कला और संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।
- प्रमुख त्यौहार : यहाँ का प्रमुख त्यौहार उगादि, पेद्दा पंडुगा, पोंगल आदि है।
- प्रमुख जनजातियाँ : आंध्र प्रदेश राज्य में मुख्य रूप से चेंचू, गदाबास, सवारा, कोंध, कोलम, पोरजा आदि जनजातियाँ निवास करती है।
आंध्र प्रदेश राज्य में प्रमुख वन्यजीव और पक्षी अभयारण्य :
- पुलिकट झील पक्षी अभयारण्य।
- नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व ।
- पापिकोंडा वन्यजीव अभयारण्य।
- कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य (मैंग्रोव वन) ।
- कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य।
- अटापका पक्षी अभयारण्य (कोलेरू झील) ।
समस्या का समाधान :
भारत में किसी राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य का दर्जा देने की समस्या का समाधान एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है। भारत में केंद्र – राज्य संबंध के तहत इस समस्या का समाधान निम्नलिखित उपायों से किया जा सकता है –
- स्पष्ट मापदंडों का निर्धारण : विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के लिए स्पष्ट और पारदर्शी मापदंडों का निर्धारण किया जाना चाहिए। इसमें भौगोलिक कठिनाइयाँ, जनसंख्या घनत्व, जनजातीय आबादी, अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से निकटता, और आर्थिक पिछड़ापन शामिल हो सकते हैं।
- संवैधानिक संशोधन : विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के लिए संविधान में आवश्यक संशोधन किए जाने चाहिए ताकि यह दर्जा कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हो और इसके दुरुपयोग की संभावना कम हो।
- राज्यों के बीच संतुलन : विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के लिए राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि किसी एक राज्य को अत्यधिक लाभ न मिले और अन्य राज्यों के साथ असमानता न हो।
- वित्तीय सहायता : विशेष श्रेणी राज्य को वित्तीय सहायता देने के लिए एक स्थायी और पारदर्शी प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि राज्यों को समय पर और पर्याप्त वित्तीय सहायता मिल सके।
- निगरानी और मूल्यांकन के लिए एक स्वतंत्र निकाय का गठन : विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों की निगरानी और मूल्यांकन के लिए एक स्वतंत्र निकाय का गठन किया जाना चाहिए। यह निकाय राज्यों के विकास और प्रगति की नियमित समीक्षा करेगा और आवश्यकतानुसार सुधारात्मक कदम उठाएगा।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति और सहमति आवश्यक होना : विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और सहमति आवश्यक है। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर इस मुद्दे का समाधान निकालना होगा।
इन उपायों के माध्यम से भारत में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने की समस्या का समाधान किया जा सकता है और राज्यों के बीच संतुलित और समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।
स्रोत – द हिंदू एवं पीआईबी।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में भाषाई पहचान और सांस्कृतिक अस्मिता के आधार पर केंद्र और राज्य संबध के तहत राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत में केंद्र – राज्य संबंधों के बीच होने वाले विवादों का निर्णय करने की शक्ति संविधान की मूल अधिकारिता के अंतर्गत आती है।
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 फज़ल अली आयोग की सिफारिशों पर आधारित था।
- एस.के.धर आयोग ने सन 1948 में केवल भाषा के आधार पर राज्य के पुनर्गठन के विचार का समर्थन नहीं किया। इसने भाषाई एकरूपता की तुलना में प्रशासनिक दक्षता पर अधिक ज़ोर दिया था।
- भारत में भाषाई आधार पर बनने वाला पहला राज्य तेलंगाना है।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1, 2 और 3
B. केवल 2, 3 और 4
C. केवल 1, 3 और 4
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – A
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1.“ भारत में सांस्कृतिक अस्मिता, ऐतिहासिक विरासत और भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन और विशेष राज्य की श्रेणी में राज्यों की मांग हमेशा चलती रहती है। ” इस कथन के आलोक में यह चर्चा कीजिए कि भारत में किसी भी राज्य को विशेष राज्य की श्रेणी में मान्यता देने में क्या चुनौतियाँ है एवं उन चुनौतियों से निपटने के लिए समाधानों के उपायों पर भी चर्चा कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक -15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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