04 May भारतीय पोल्ट्री उद्योग की प्रमुख समस्या एवं उसका समाधान
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था और सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप ’ और सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 के ‘ पशुपालन का अर्थशास्त्र ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘H5N1, पशुधन क्षेत्र, एवियन इन्फ्लुएंज़ा (बर्ड फ्लू), पर्यावरण प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन , 20वीं पशुधन जनगणना, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारतीय पोल्ट्री उद्योग की समस्या एवं समाधान ’ से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में H5N1 वायरस के हालिया प्रकोप ने भारतीय पोल्ट्री उद्योग के क्षेत्र की गंभीर कमियों को उजागर किया है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है।
- H5N1 वायरस के हालिया प्रकोप ने भारत में पर्यावरणीय और कानूनी ढांचे के भीतर पशु कल्याण से संबंधित मुद्दों के व्यापक पुनर्मूल्यांकन की भी मांग करता है।
- भारत में H5N1 वायरस के प्रकोप ने वन हेल्थ के सिद्धांत को भी मजबूती प्रदान की है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और जैव विविधता के संरक्षण को एक साथ जोड़ता है।
भारतीय पोल्ट्री उद्योग के समक्ष समस्याएँ :
भारतीय पोल्ट्री उद्योग के समक्ष निम्नलिखित समस्याएँ हैं –
रोग का प्रकोप और जैव सुरक्षा :
- एवियन इन्फ्लुएंज़ा (बर्ड फ्लू) : इस रोग के प्रकोप से उत्पादन में बाधा, पक्षियों की मृत्यु, और बाज़ार में खाद्य संबंधी भय उत्पन्न होता है, जिससे खपत प्रभावित होती है।
- न्यूकैसल रोग (ND) : यह वायरल रोग अत्यधिक संक्रामक होता है जो भारत में पोल्ट्री उद्योग से जुड़े स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित करता है।
- जैव सुरक्षा संबंधी चिंताएँ : भारत के पोल्ट्री फॉर्मों और पक्षी बाज़ारों में अपर्याप्त जैव सुरक्षा उपायों से इस प्रकार के रोगों का प्रसार बढ़ता है।
- उच्च घनत्व वाले पोल्ट्री फॉर्मों : भारत में मुर्गियों को पालने के लिए अक्सर ‘बैटरी पिंजरों’ में रखा जाता है, जिससे इस उद्योग में अतिसघनता और दबाव दोनों ही उत्पन्न होता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव : भारतीय पोल्ट्री उद्योग और उससे जुड़े रोगों से वायु की गुणवत्ता खराब होती है, अपशिष्ट जमा होता है, और ग्रीनहाउस गैस का भी अत्यधिक उत्सर्जन होता है।
बाज़ार में उतार-चढ़ाव और मूल्य अस्थिरता :
- फीड मूल्य में उतार-चढ़ाव : मक्का और सोयाबीन जैसे पोल्ट्री फीड सामग्री की कीमतों में अस्थिरता से उत्पादन लागत और आयात निर्भरता प्रभावित होती है।
- उपभोक्ता मांग में उतार-चढ़ाव : इस रोग के प्रकोप के बारे में विभिन्न भ्रांतियाँ और गलत सूचनाओं के प्रसार से भारत में इसकी खपत में कमी आ सकती है।
बुनियादी ढाँचा और आपूर्ति शृंखला की चुनौतियाँ :
- सीमित कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर : इससे उत्पादन में खराबी और बर्बादी होती है।
- अव्यवस्थित आपूर्ति शृंखला : इससे लेन – देन की लागत बढ़ती है और किसानों का मुनाफा कम होता है।
नीति एवं नियामक मुद्दे :
- असंगठित नियामक ढाँचा: अतिव्यापी नियमों से भ्रम और अनुपालन चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- ऋण तक सीमित पहुँच: छोटे और मध्यम स्तर के किसानों को औपचारिक ऋण तक पहुँचने में कठिनाई होती है।
श्रम चुनौतियाँ :
- भारत में पोल्ट्री फार्मों के लिए कुशल श्रमिकों की कमी से इसकी परिचालन दक्षता प्रभावित होती है।
- पर्यावरणीय चिंताएँ : अपशिष्ट प्रबंधन की कमी से जल और वायु प्रदूषण हो सकता है।
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध : भारत में प्रोटीन की मांग बढ़ने से एंटीबायोटिक का अधिक उपयोग हो रहा है।
- पशु कल्याण संबंधी चिंताएँ : भारत में उचित पशु कल्याण मानकों को सुनिश्चित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
- मुश्किल निकास : भारत में पोल्ट्री उद्योग से संबंधित अनुबंध खेती और विशेष कौशल के कारण किसानों को उद्योग से बाहर निकलने में कठिनाई होती है।
H5N1 एवियन इंफ्लुएंज़ा का मुद्दा :
- H5N1 एवियन इंफ्लुएंज़ा के प्रकोप ने वास्तव में पशु कल्याण और मानव स्वास्थ्य के प्रति हमारी समझ का विस्तार किया है और मानव स्वास्थ्य के प्रति हमें गंभीर और संवेदनशील बनाया है।
- वर्ष 1997 में हॉन्गकॉन्ग में मनुष्यों में H5N1 के संक्रमण की पहली घटना ने इस वायरस के मानव संक्रमण की संभावना को उजागर किया था।
- भारत में वर्ष 2006 में महाराष्ट्र में पहले H5N1 रोगी की सूचना के बाद, 2020 और 2021 में इसके प्रकोप ने भारत के 15 राज्यों में फैलकर लोगों को प्रभावित किया था।
- वैश्विक स्तर पर, H5N1 ने आर्कटिक और अंटार्कटिका में वन्यजीवों पर भी अपना प्रभाव दिखाया है, जिससे इसकी प्रजातियों की बाधाओं को पार करने की क्षमता स्पष्ट होती है।
- WHO के अनुसार, 2003 से दर्ज मामलों के आधार पर H5N1 की मृत्यु दर लगभग 52% है, जो इसके गंभीर जोखिम को दर्शाता है।
- इस रोग के प्रसार की स्थिति को देखते हुए भारत में पशु कल्याण और मानव स्वास्थ्य के लिए उचित निगरानी और निवारक उपायों की आवश्यकता पर जोर दिया जा सकता है।
भारतीय पोल्ट्री उद्योग से संबंधित विभिन्न प्रावधान :
भारतीय पोल्ट्री उद्योग से संबंधित विभिन्न प्रावधान इस प्रकार हैं-
पोल्ट्री पक्षियों की स्थिति :
- 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, भारत में 851.8 मिलियन पोल्ट्री पक्षी हैं।
- लगभग 30% ‘बैकयार्ड पोल्ट्री’ या छोटे और सीमांत किसान हैं।
- पोल्ट्री फार्मों में मुर्गियाँ, टर्की, बत्तख, हंस आदि को मांस और अंडे के लिए पाला जाता है।
भारतीय पोल्ट्री उद्योग इकाइयों की कानूनी स्थिति :
- पोल्ट्री किसानों के लिए दिशा-निर्देश, 2021:
- छोटे किसान: 5,000-25,000 पक्षी
- मध्यम किसान: 25,000 से अधिक और 1,00,000 से कम पक्षी
- बड़े किसान: 1,00,000 से अधिक पक्षी
- मध्यम आकार के पोल्ट्री फार्म की स्थापना और संचालन के लिए जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के तहत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या समिति से सहमति का प्रमाण पत्र आवश्यक है।
भारतीय पोल्ट्री उद्योग से जुड़े अन्य कानूनी प्रावधान :
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) 5,000 से अधिक पक्षियों वाली पोल्ट्री इकाइयों को प्रदूषणकारी उद्योगों के रूप में वर्गीकृत करता है।
- पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960, पशु कल्याण के महत्त्व को पहचानते हुए, मुर्गियों सहित जानवरों को कैद करने पर रोक लगाता है।
भारतीय पोल्ट्री उद्योग से जुड़े कुछ पहल :
- पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF): पशुपालन और डेयरी विभाग इसे राष्ट्रीय पशुधन मिशन के “उद्यमिता विकास और रोज़गार सृजन” (EDEG) के तहत कार्यान्वित कर रहा है।
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM): NLM के तहत विभिन्न कार्यक्रम जिसमें रूरल बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट (RBPD) और इनोवेटिव पोल्ट्री प्रोडक्टिविटी प्रोजेक्ट (IPPP) को लागू करने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- पशु रोग नियंत्रण के लिए राज्यों को सहायता (ASCAD) योजना: ASCAD योजना ‘पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण’ (LHDC) के तहत आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पोल्ट्री रोगों जैसे; रानीखेत रोग, संक्रामक बर्सल रोग, फाउल पॉक्स आदि के टीकाकरण को कवर करती है।
भारतीय पोल्ट्री उद्योग की समस्या का समाधान :
भारतीय पोल्ट्री उद्योग की समस्या का समाधान करने के लिए निम्नलिखित उपाय को अपनाना अत्यंत आवश्यक हैं –
जैव सुरक्षा को वैश्विक प्राथमिकता के रूप में अपनाना :
- पृथक्करण : विभिन्न आयु और स्वास्थ्य स्थिति वाले पोल्ट्री फ्लॉक्स को अलग करने से रोग संचरण का जोखिम कम होता है। इसे भारत में विभागीकरण पोल्ट्री क्षेत्रों की स्थापना और जैव-सुरक्षित सुविधाओं में मल्टी ऐज रिअरिंग को प्रोत्साहित करके लागू किया जा सकता है।
- टीकाकरण कार्यक्रम : एवियन इन्फ्लुएंजा और न्यूकैसल रोग जैसी बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण प्रोटोकॉल विश्व स्तर पर मानक हैं। भारत अपने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रमों को मजबूत कर सकता है और छोटे पैमाने के किसानों तक इसकी पहुंच बढ़ा सकता है।
प्रौद्योगिकी के माध्यम से इसकी दक्षता को बढ़ाना :
- सटीक फीडिंग : उन्नत फीडिंग प्रणालियां, जो व्यक्तिगत पक्षी की जरूरतों के अनुसार फीड उपयोग को अनुकूलित करती हैं, को अपनाने से भारतीय पोल्ट्री फार्मों में फीड रूपांतरण दक्षता में सुधार हो सकता है।
- पर्यावरण निगरानी प्रणाली : तापमान, आर्द्रता, और अमोनिया के स्तर की वास्तविक समय में निगरानी से पोल्ट्री घरों में इष्टतम पक्षी स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है। कम लागत वाले सेंसरों का उपयोग करके भारतीय खेतों में इसे लागू किया जा सकता है।
एक सतत् आपूर्ति शृंखला का निर्माण करना :
- अनुबंध खेती : उत्पादकों और प्रसंस्करणकर्ताओं के बीच अनुबंध खेती से किसानों को बाजार पहुंच और उचित मूल्य सकता है।
- कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर : मजबूत कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश से परिवहन और भंडारण के दौरान नुकसान कम होता है। भारत दूरदराज के उत्पादन क्षेत्रों को प्रमुख उपभोग केंद्रों से जोड़कर कुशल कोल्ड चेन नेटवर्क विकसित कर सकता है।
- सरकारी सहायता, उद्योग समन्वय और किसानों की जागरूकता के माध्यम से, भारतीय पोल्ट्री उद्योग अंतर्राष्ट्रीय स्तर की उत्कृष्ट प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक अपना सकता है।
- इस तरीके से न केवल सतत विकास और उच्चतर जैव सुरक्षा को बल मिलेगा, बल्कि भारतीय पोल्ट्री क्षेत्र की दक्षता में वृद्धि और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनने की क्षमता भी बढ़ेगी।
- भारतीय पोल्ट्री क्षेत्र की समस्याका समाधान होने के परिणामस्वरूप, भारत की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि में भी सुधार होगा।
स्रोत – ‘ द हिंदू एवं इंडियन एक्सप्रेस ‘
Download yojna daily current affairs hindi med 4th May 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत के समाचार पत्रों में H1N1 विषाणु के नाम का अक्सर उल्लेख किया जाता है। यह विषाणु निम्नलिखित में से किस एक बीमारी का प्रमुख कारक है ? ( UPSC – 2015 )
A. एड्स (AIDS)
B. स्वाइन फ्लू
C. डेंगू
D. बर्ड फ्लू
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारतीय पोल्ट्री उद्योग की प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि भारतीय पोल्ट्री उद्योग किस प्रकार भारत में खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास में अपना योगदान को सुनिश्चित कर सकता हैं? तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए। ( UPSC CSE- 2021 शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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