मकबरे व इस्लाम 

मकबरे व इस्लाम 

मकबरे व इस्लाम 

संदर्भ- द हिंदू के अनुसार तुर्की, ईरानी व भारतीय मकबरे की विविधता के आधार पर इस्लामी दुनियाँ सजातीय नहीं थी। मकबरों की शैली मुगलकालीन व अन्य शासकों की धार्मिक अभिरुचि और मूल इस्लाम में आए परिवर्तन को निर्देशित करती है।

मकबरा- किसी व्यक्ति को दफनाने के बाद उस स्थल के ऊपर इमारत बनाई जाती है, यह परंपरा इस्लाम व ईसाई सम्प्रदाय में अपनाई जाती है। इस्लाम में इस इमारत को मकबरा कहा जाता है।

बारुद के आविष्कार ने तुर्की में ओटोमन, ईरान में सफाविद और भारत में मुगलों का साम्राज्य स्थापित करने में मदद की। जिसका प्रयोग बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य स्थापित करने में मदद की और मुगल साम्राज्य के पतन का कारण भी चीनी आविष्कार प्रिंटिंग प्रेस को जाता है जिसने नवयुग की स्थापना की। तुर्की, ईरान व भारत तीनों क्षेत्रों में इस्लाम की स्थापना होने के बाद भी इसकी स्थाप्त्य कला में भेद दिखाई देता है, यह भेद, इस्लामी संस्कृति की विविधता पर आधारित है।

इस्लाम की स्वर्ग शैली- 

  • भारत में शासकों के मकबरों को इस्लाम में वर्णित इस्लाम के बगीचों, जिन्हें चारबाग कहा जाता है, के मध्य में बनाया गया है। चारबाग पद्धति में उद्यान को पथों या जलमार्गों द्वारा चार भागों में बांटा जाता है जिसके मध्य में मकबरे या मुख्य इमारतों को बनाया जाता था। बाबर द्वारा बनवाया गया रामबाग, मुगल शैली का सबसे प्राचीन चारबाग उद्यान है।
  • हुमायूँ, अकबर, शाहजहाँ व जहाँगीर के मकबरे भव्य शैली में बनाए गए हैं, जिसे मुगल शैली का कहा जाता है। किंतु औऱंगजेब के मकबरे को औरंगाबाद में साधारण बनाया गया है। यह इस्लाम के मूल रूप की सादगी को निर्देशित करता है।
  • इन मकबरों को तत्कालीन पीरों की मजार के साथ बनाया गया था। मान्यता था कि पीर स्थल पवित्र होते हैं। इसका एक कारण और भी था कि उस समय पीरों के मकबरे लोकप्रिय तीर्थ स्थल थे।
  • पीर, पैगंबर अर्थात अल्लाह से बात कराने का साधन नहीं थे किंतु उन्हें तत्कालीन समाज द्वारा अल्लाह तक पहुँचने का माध्यम माना जा रहा था जिसका शुद्धतावादी इस्लामियों ने विरोध किया।
  • भारत में सबसे प्रसिद्ध मकबरा ताजमहल है। ताजमहल का निर्माण 17वी शताब्दी में शाहजहाँ ने अपनी प्रिय रानी मुमताज महल के लिए करवाया था

ईश्वर की सर्वोच्चता शैली

  • समाज पर सूफियों के करीश्मों के अत्यधिक प्रभाव हो चुका था। शासक बनने के लिए किसी भी व्यक्ति को खलीफा या इमाम के साथ सूफी संतों के समर्थन की भी आवश्यकता थी। खलीफा का अर्थ  है- उत्तराधिकारी, जबकि खलीफा का पद का गठन पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद लोगों की आम सहमति से इस्लामिक समुदाय की व्यवस्था के लिए किया गया था। 
  • ईश्वर की सर्वोच्चता को स्वीकार करने वालों को सुन्नी व इस्लाम के रहस्यवाद सोच को शिया का समर्थन प्राप्त हुआ। ओटोमन्स ने सुन्नी मार्ग व सफाविदों ने शिया सोच को महत्व दिया।
  • तुर्की साम्राज्य के विस्तार के बाद तुर्की शासकों ने स्वयं को खलीफा कहा और अब उन्हें अपने साम्राज्य की स्थापना के लिए किसी सूफी के समर्थन की आवश्यकता नहीं रह गई थी। अतः मकबरों को अब भव्यता देना भी जरुरी नहीं समझा गया। अतः ईश्वर को उसके साधारण रूप में मान्यता दी गई।
  • इसका उदाहरण मदीना में पैगम्बर मुहम्मद साहब का साधारण मकबरा है। भारत में इसका अनुकरण करने का प्रयास औरंगजेब के मकबरे में मिलता है। किंतु औरंगजेब नक्सबंदी सिलसिले का अनुयायी था। यह सिलसिला शरीयत अर्थात इस्लामी कानून को महत्व देते थे।

नव इस्लाम 

  • ईश्वर की सर्वोच्चता के साथ सूफीवाद की धारा इस्लाम का एक मुख्य पहलू है जिसे शिया भी कहा जाता है। सूफी परंपरा को सफाविदों ने अपनाया। ईरान के शासकों ने स्वयं को पवित्र नूर की संज्ञा दी थी। 
  • सफाविद सम्राट, सूफी दरगाहों से घनिष्ठ रूप से जुड़े थे। शाही परिवारों को सूफी संप्रदाय के सदस्यों के साथ दफनाया जाता था। ईरान की सूफी परंपरा के साथ सम्राट की सर्वोच्चता के नए सिद्धांत के संयोजन से अकबर के काल में हुमायूंं के मकबरे का निर्माण किया गया जो निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर केंद्रित है और यहां 150 से अधिक मुगलों को दफनाया गया है। 
  • अकबर, आध्यात्मिक व राजनैतिक नेता, दोनों बनना चाहता था। इसके लिए अकबर ने दीन ए इलाही नामक धर्म की स्थापना की जहाँ सभी धर्मों के विचारों के समन्वय का प्रयास किया गया जिसमें हिंदू व इस्लाम प्रमुख थे। यह विचार धर्म के रूप में विकसित न हो सका किंतु यह विचार हिंदू मुस्लिम संस्कृति के रूप में भारत में विकसित हुआ।
  • अकबर की सर्वोच्च सम्राट की नीति शाहजहां और औरंगजेब के समय कुछ कम हुई क्योंकि इन सम्राटों को प्रतिद्वंदियों से सामना करने के लिए उलमा के समर्थन की आवश्यकता होने लगी। ऐतिहासिक रूप से उलमा एक शक्तिशाली वर्ग था। इस्लाम में किसी पुरोहित की प्रकृति का वर्णन तो नहीं है किंतु उलमा ने इस्लाम समाज में धार्मिक व न्यायिक रूप से सम्राटों के निर्णयों पर प्रभाव डाला है। 

स्रोत

The Hindu

Yojna Daily current affairs Hindi med 1st March 2023

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