राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

संदर्भ- हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने 12 दिसंबर को अपना स्थापना दिवस मनाया, बाल अधिकारों की रक्षा से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए आयोग का गठन कियाजाता है।

इसके साथ ही, हाल ही में नाबालिग अपराधियों से संबंधित मामला, जिसमें नाबालिगों पर वयस्कों के रूप में मुकदमा चलाया जा सकता है या नहीं, एनसीपीआर मसौदा दिशानिर्देश इस पर ही आधारित हैं।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग बाल अधिकारों की सार्वभौमिकता व अनुल्लंघनीयता के सिद्धांत पर कार्य करता है।
  • इसमें 0-18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों की सुरक्षा समान रूप से महत्वपूर्ण है।
  • इसका गठन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है इसमें एक अध्यक्ष( बाल अधिकार संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया हो) ,तथा निम्नलिखित क्षेत्रों से 6 सदस्यों को नियुक्त किया जाएगा।
  1. शिक्षा;
  2. बाल स्वास्थ्य देखभाल, कल्याण और बाल विकास;
  3. किशोर न्याय या उपेक्षित या वंचित बच्चों की देखभाल या निःशक्त बच्चे;
  4. बालश्रम या बच्चों में तनाव का उन्मूलन,
  5. बाल मनोविज्ञान या सामाजिक विज्ञान, और
  6. बच्चों से संबंधित कानून।

राष्ट्रीय बालअधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 के कार्य-

  • बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए उस समय लागू किए गए किसी भी कानून द्वारा या उसके द्वारा प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों की जाँच व समीक्षा करना।
  • बाल अधिकारों के उल्लंघन की जांच करना व ऐसे किसी मामले में कार्यवादी की सिफारिश करना।
  • आतंकवाद, साम्प्रदायिक हिंसा, दंगे, प्राकृतिक आपदा, घरेलू हिंसा, एचआईवी / एड्स, तस्करी, दुर्व्यवहार, अत्याचार और शोषण, अश्लील साहित्य और वेश्यावृत्ति से प्रभावित बच्चों के अधिकारों को बाधित करने वाले सभी कारकों की जांच करना और उचित उपचारात्मक उपायों की सिफारिश करना;
  • आयोग किसी ऐसे मामले की जांच नहीं करेगा जो किसी राज्य आयोग या किसी कानून के तहत विधिवत गठित किसी अन्य आयोग के समक्ष लंबित हो।

नाबालिग दोषी

जे जे अधिनियम के अनुसार- 

  • पहले 18 वर्ष से कम उम्र के नागरिक को नाबालिग माना जाता था, तथा मुकदमा नहीं चलाया जाता था। जे जे अधिनियम 2015 के अनुसार जघन्य अपराध के मामलों में 16-18 वर्ष की उम्र में भी मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • अधिनियम के अनुसार बच्चे की शारीरिक क्षमता, अपराध करने की क्षमता व अभिवृत्ति पर विचार करेगा।
  • अधिनियम की धारा 15(1) के अनुसार किशोर न्याय बोर्ड निर्धारित करेगा कि किशोर पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए या नहीं।
  • अधिनियम के अनुसार इस प्रक्रिया के लिए उचित दिशानिर्देश की आवश्यकता होती है,
  • प्रक्रिया को संचालित करने के लिए अनुभवी समाजविद, मनोवैज्ञानिक कार्यकर्ताओं के साथ अन्य विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। 

मसौदे के दिशानिर्देशों में नाबालिग के अपराध करने योग्य की निम्नलिखित क्षमताओं को समझना होगा- 

  • शारीरिक क्षमता
  • मानसिक क्षमता
  • अपराध की परिस्थितियाँ
  • कथित अपराध के परिणामों को समढने की क्षमता

गम्भीर अपराध की स्थिति में सजा-

  • नाबालिग के रूप में अपराध की अवस्था में नाबालिग को 3 साल के लिए विशेष गृह में भेजा जा सकता है। 
  • वयस्क के रूप अपराध की अवस्था में फांसी, आजीवन कारावास आदि वयस्क से संबंधित सजाएं सुनाई जाती हैं।

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1890874

https://ncpcr.gov.in/about-commission

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