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वार्षिक मृत्युदण्ड रिपोर्ट 2022

वार्षिक मृत्युदण्ड रिपोर्ट 2022

संदर्भ – वार्षिक मृत्युदण्ड रिपोर्ट 2022 के अनुसार ट्रायल कोर्ट ने 2022 में 165 दोषियों को मृत्युदण्ड की सजा सुनाई। यह आंकड़ा दो दशकों में अधिकतम है। उच्चतम न्यायालय ने मृत्युदण्ड के आंकड़ों में सुधार के लिए कहा है।

यह रिपोर्ट प्रोजैक्ट 39 द्वारा जारी की गई है।

प्रोजैक्ट 39 (अ)

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली में एक आपराधिक सुधार वकालत समूह है। जो मौत की सजा मानसिक स्वास्थ्य, आपराधिक न्याय, यातना, फोरेंसिक कानूनी सहायता, और सजा पर शोध करता है। यह अपने निष्पक्ष कार्यक्रम के तहत पूरे देश में मौत की सजा पाने वाले कैदियों और पुणे व नागपुर के विचाराधीन कैदियों को निस्वार्थ कानूनी सहायता प्रदान करता है। इसकी स्थापना 2014 में हुई थी।

अनुच्छेद 39(अ) 

राज्य यह सुनिश्चित करता है कि समान अवसर पर समान न्याय उपलब्ध हो सके। आर्थिक या किसी अन्य कारण से कोई भी नागरिक न्याय से वंचित न हो। 

वार्षिक मृत्युदण्ड रिपोर्ट 2022

  • वर्ष 2022 में 165 अपराधियों को मौत की सजा मिली। यह आंकड़ा सन 2000 के बाद से सबसे बड़ा आंकड़ा है। एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2000 में भी 165 लोगों को मौत की सजा मिली थी।
  • अहमदाबाद में एक बम विस्फोट मामले में 38 लोगों को एक साथ सजा सुनाई गई। यह आंकड़ा एक मामले में अधिक अपराधियों को सजा देने के परिणामस्वरूप बड़ा है।
  • 2021 में 146, 2020 में 78, 2019 में 104, 2018 में 163, और 2017 में 110 मृत्युदण्ड दिया गया था।

 मृत्युदण्ड

किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए गंभीर अपराध के लिए न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। न्यायिक प्रक्रिया में उसके द्वारा किए गए अपराध की गंभीरता की पुष्टि कर उसे प्राणांत दण्ड दिया जाता है, यही मृत्युदण्ड है। एमनेस्टी इम्टरनेशनल के अनुसार वर्तमान में विश्व के 58 देशों में मृत्युदण्ड, फांसी के रूप में दिया जाता है। 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 59 देशों के साथ मृत्युदण्ड को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया था जिसमें भारत भी शामिल है।

भारत में मृत्युदण्ड हेतु प्रावधान

  • भारतीय दण्ड संहिता 1860के अनुसार 4 दण्ड जा सकते हैं- मृत्यु, आजीवन कारावास, सम्पत्ति का समहरण व जुर्माना आदि। अतः भारत में कानूनी प्रक्रिया के तहत मृत्यु दण्ड 1860 से ही प्रारंभ हो गया था।
  • जगमोहन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि कानूनी प्रक्रिया के बाद यह दण्ड दिया जा रहा है तो अनुच्छेद 21 के अनुसार मृत्यु दण्ड वैध है।
  • अनुच्छेद 72 के तहत देश के राष्ट्रपति दोषी को दिए गए दण्ड का लघुकरण, माफी, प्राणदण्ड का स्थगन राहत व राहत दे सकता है। यदि यह दण्ड- सेना न्यायालय द्वारा, कार्यपालिका विषयों में विधि के विरुद्ध अपराध की स्थिति में और मृत्युदण्ड पाए गए व्यक्ति के मामले में दिया गया हो।
  • अनुच्छेद 161 के तहत राज्य का राज्यपाल कुछ मामलों में राष्ट्रपति की तरह ही मृत्युदण्ड पर रोक लगा सकता है।
  • मनोज और अन्य बनाम एमपी राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आपराधिक परिस्थिति, अपराध की क्रूरता, अपराधी की उम्र, अपराधी का आचरण, अपराधी के सुधरने के आसार आदि को देखते हुए न्यायिक विवेक से निर्णय लिया जा सकता है। बचन सिंह केस के निर्णय के अनुसार निर्णय लेना चाहिए।
  • बचन सिंह केस 1980 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों क अतिरिक्त भारत में मृत्युदण्ड नहीं दिया जा सकता है।

आगे की राह

  • सामाजिक सुधार- दण्ड की कठोरता को बढ़ा देने से आपराध समाप्त होना संभव नहीं किंतु सामाजिक सुधार कार्यों से समाज में परिवर्तन लाकर आपराधिक गतिविधियों को कम किया जा सकता है। 
  • केस की जाँच परख प्रक्रिया में तेजी व तकनीकि का प्रयोग। 
  • संविधान के चौथे स्तंभ मीडिया का आपराधिक गतिविधियों को रोकने संबंधी रिपोर्टिंग।

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

https://legislative.gov.in/sites/default/files/H186045.pdf

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 31st Jan

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