06 Oct सुप्रीम कोर्ट में नए जजों की नियुक्ति को लेकर, कॉलेजियम के दो जजों ने विरोध।
सुप्रीम कोर्ट में नए जजों की नियुक्ति को लेकर, कॉलेजियम के दो जजों ने विरोध।
संदर्भ- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जज हेतु नामित 3 उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक सर्वोच्च न्यायालय के वकील की नियुक्ति में कॉलेजियम प्रणाली का प्रयोग किया जाना था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों की सहमति आवश्यक थी। किंतु कॉलेजियम के दो न्यायाधीशों द्वारा सहमति बैठक की पारंपरिक प्रथा पर आपत्ति जताई जा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश-
- भारत में गणतंत्र स्थापना के समय सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 8 थी, आवश्यकता के अनुसार कई बार जजों की संख्या में बदलाव किए गए। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या मुख्य न्याायाधीश समेत 34 है।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। इसके अनुसार भारत के राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों या उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों जिनसे भी वो चर्चा करना उचित समझे परामर्श करने के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा।
- मुख्य न्यायाधीश के पद हेतु अलग से कोई प्रावधान नहीं है किंतु मुख्य न्यायाधीश के चयन हेतु वरिष्ठता को प्राथमिकता देने की परंपरा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के वरिष्ठता कैसे तय होती है?
- न्यायाधीश की वरिष्ठता न्यायालय में उनके अनुभव द्वारा किया जाता है। इस अनुभव का आंकलन सर्वोच्च न्यायालय में उनकी नियुक्ति के आधार पर की जाती है।
- नियुक्ति की तिथि समान होने पर शपथ ग्रहण की तिथि के आधार पर वरिष्ठता तय की जाती है।
- सीजेआई की नियुक्ति के लिए वर्तमान सीजेआई की सिफारिश, अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ परामर्श कर एक महीने पहले केंद्रीय कानून मंत्री को भेजता है।
- वरिष्ठता के इस उपक्रम का अपवाद तीन जजों के केस रहैं हैं जो पहला जज केस 1981,दूसरा जज केस 1993 और तीसरा जज केस 1998 के नाम से जाने जाते हैं। जिनसे कॉलेजियम प्रणाली प्रभाव में आई।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति की अनुशंसा कॉलेजियम द्वारा राष्ट्रपति को भेजी जाती है।
- राष्ट्रपति को अनुशंसा को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार होता है।अस्वीकार करने पर यदि दोबारा कॉलेजियम अपनी अनुशंसा राष्ट्रपति को भेजता है तो राष्ट्रपति को उसको स्वीकार करना पड़ता है।
तीन जज केस-
- प्रथम जज केस 1981 के अनुसार राष्ट्रपति ठोस कारणों के आधार पर मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश को अस्वीकार कर सकता है। इसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कार्यपालिका को बल मिला।
- द्वितीय जज केस 1993 में 9 जजों की पीठ ने यह तय किया कि मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेने का तात्पर्य उनकी स्वीकृति लेना है। तथा इसके साथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम से ये नियुक्तियाँ दी जाएंगी।
- तृतीय जज केस 1998 में उच्चतम न्यायालय में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम में बदलाव किया गया और मुख्य न्यायाधीश के साथ चार वरिष्ठतम जजों को कॉलिजियम में शामिल किया गया।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति की अनुशंसा कॉलेजियम द्वारा राष्ट्रपति को भेजी जाती है।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग 2014-
- 2014 में केंद्र सरकार ने न्यायाधीशों की प्रचलित प्रणाली में परिवर्तन लाने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग 2014 अधिसूचित किया गया था।
- इस आयोग की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को करनी थी, इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और दो जानी मानी हस्तियाँ इसकी सदस्य थी।
- आयोग के अनुसार सभी सदस्यों में से दो सदस्य यदि नियुक्ति के प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं देते तो प्रस्ताव निरस्त कर दिया जाएगा।
- 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस आयोग को रद्द कर दिया गया। और साफ कर दिया था कि न्यायालयों में जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम द्वारा ही होगी।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम 2014 और कॉलेजियम सिस्टम की तुलना
- NJAC सरकार द्वारा पारित एक संवैधानिक प्रावधान है जबकि कॉलेजियम सिस्टम 28 अक्टूबर 1998 से प्रचलित एक पारंपरिक विधान है।
- NJAC में 6 सदस्यों में दो जानी मानी दस्तियों को शामिल किया जाना था, जिनका चुनाव प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस व विपक्ष का नेता करता था। इसका सुप्रीम कोर्ट ने विरोध किया था कि न्यायाधीश का चुनाव करने वाला आयोग असंवैधानिक है। वहीं केंद्र ने 20 वर्ष पुराने कॉलेजियम सिस्टम की प्राचीनता पर सवाल उठाए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पात्रता हेतु मानदण्ड-
- वह भारत का नागरिक हो,
- कम से कम 5 साल तक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो,
- कम से कम दस साल तक उच्च न्यायालय में वकालत कर चुका हो,
- राष्ट्रपति के संज्ञान में एक प्रतिष्ठित न्यायविद हो।
- न्यायाधीश के पद की सुरक्षा के लिए न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया को काफी कठिन बनाया गया है ताकि वह निर्भय होकर कार्य कर सके। केवल कदाचार या अयोग्य साबित होने पर ही न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है।
स्रोत-
https://indianexpress.com/article
https://ncert.nic.in/textbook/pdf/khps206.pdf
No Comments