जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण बनाम भारत में कृत्रिम आर्द्रभूमि

जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण बनाम भारत में कृत्रिम आर्द्रभूमि

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र –  2 के भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप और भारत के सतत् विकास के लिए कृत्रिम आर्द्रभूमियों का उपयोग ’ और सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 के ‘ जैव विविधता और पर्यावरण, पर्यावरण प्रदूषण, सार्वजनिक-निजी भागीदारी ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ कृत्रिम आर्द्रभूमियों के लाभ, कृत्रिम आर्द्रभूमियों के प्रकार, आर्द्रभूमियाँ, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’  के अंतर्गत जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण बनाम भारत में कृत्रिम आर्द्रभूमि ’  से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

  • भारत में हाल के दिनों में कृत्रिम आर्द्रभूमि समाचारों में इसलिए चर्चा में हैं क्योंकि ये औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार के लिए एक प्राकृतिक, सस्ता और सर्वव्यापी दृष्टिकोण पर आधारित विकल्प प्रस्तुत करती हैं। 
  • जलीय पारिस्थितिक तंत्र में यह तकनीक पारंपरिक जल उपचार प्रणालियों की तुलना में विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों को अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में अधिक प्रभावी सक्षम और स्थायी प्रकार की प्रणाली होता है।
  • इस तकनीक का उपयोग मुख्य रूप से औद्योगिक अपशिष्ट जल को साफ करने में किया जाता है, क्योंकि कृत्रिम आर्द्रभूमि पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ – साथ जैव विविधता को भी बढ़ावा देती हैं जिससे जैव विविधता का संरक्षण होता है। 

 

कृत्रिम आर्द्रभूमि क्या होता हैं ?

  • कृत्रिम आर्द्रभूमि जलीय पारिस्थितिक से जुड़ी एक ऐसी इंजीनियरी प्रणालियाँ हैं जो प्राकृतिक आर्द्रभूमि की प्रक्रियाओं का अनुकरण करती हैं ताकि अपशिष्ट जल को साफ किया जा सके। 
  • ये प्रणालियाँ जल, मिट्टी, और चयनित पौधों का उपयोग करती हैं और इनमें विकसित होने वाले सूक्ष्मजीव प्रदूषकों को तोड़ते हैं, जिससे जल की गुणवत्ता में सुधार होता है।

 

कृत्रिम आर्द्रभूमि के प्रकार :

  • उपसतह प्रवाह (SSF) : इस प्रकार की आर्द्रभूमि में, अपशिष्ट जल को छिद्रयुक्त माध्यम से गुजारा जाता है, जहाँ सूक्ष्मजीव कार्बनिक पदार्थों को विखंडित करते हैं।
  • सतह प्रवाह (SF) : इस प्रकार की आर्द्रभूमि में, जल सतह के ऊपर से प्रवाहित होता है और यह विविध वनस्पतियों के साथ एक सुंदर परिदृश्य बनाता है।

 

कृत्रिम आर्द्रभूमियों के लाभ :

  • कृत्रिम आर्द्रभूमियों की आवश्यकता : कृत्रिम आर्द्रभूमियां जलीय पारिस्थितिक तंत्र से संबंधित जटिल प्रदूषकों को संभालने में जलीय पारिस्थितिक तंत्र के पारंपरिक उपचार तकनीकों से अधिक कारगर और उन्नत उपाय हैं।
  • जैव – विविधता को बढ़ावा और पर्यावरणीय लाभ : ये जैव – विविधता को बढ़ावा देते हैं और विभिन्न प्रजातियों के लिए आवास की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • सबसे सस्ता और कम खर्चीला लागत-प्रभावी होना : इनका निर्माण और रखरखाव पारंपरिक उपचार संयंत्रों की तुलना में कम खर्चीला होता है। अतः इनसे जुडी प्रणालियों का लागत सबसे कम और सस्ता होता है।
  • पोषक तत्वों का निवारण : ये नाइट्रोजन, फास्फोरस और कार्बनिक पदार्थों को नियंत्रित करने में सक्षम हैं। अतः यह पोषक तत्वों के निवारण में भी सहायक होता है। 
  • भूमि पुनर्ग्रहण में सहायक : ये प्रणालियाँ खनन से प्रभावित भूमि को पुनर्स्थापित करने में सहायक होती हैं। जिससे यह भूमि पुनर्ग्रहण में भी सहायक होता है। 

भारत में हाल ही में पांच नए वेटलैंड्स को रामसर साइट की सूची में शामिल किया गया है, जिससे इनकी संख्या बढ़कर 80 हो गई है, जो इनके संरक्षण और महत्व को और भी बढ़ाता है।

 

वर्तमान में कृत्रिम आर्द्रभूमियों का उपयोग : 

कृत्रिम आर्द्रभूमियों का उपयोग विभिन्न प्रकार के जल उपचार में किया जा सकता है। जो निम्नलिखित है – 

  • नगरीय अपशिष्ट जल उपचार : कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ नगरीय अपशिष्ट जल के लिए एक प्रभावी द्वितीयक या तृतीयक उपचार प्रणाली के रूप में कार्य कर सकती हैं, जिससे जल की गुणवत्ता में सुधार होता है और इसे पुन: उपयोग के लिए सुरक्षित बनाया जा सकता है।
  • चक्रवाती जल प्रबंधन : ये प्रणालियाँ चक्रवाती जल को साफ करने में सहायक होती हैं, जिससे यह प्राकृतिक जलमार्गों में प्रवेश करने से पहले प्रदूषकों और अवसादों से मुक्त हो जाता है।
  • औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार के लिए अनुकूलित होना : कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ विशेष रूप से औद्योगिक अपशिष्ट जल में मौजूद विशिष्ट प्रदूषकों के उपचार के लिए अनुकूलित की जा सकती हैं।
  • कृषि क्षेत्र में उपयोगी होना : कृत्रिम आर्द्रभूमियों का उपयोग कृषि अपवाह के उपचार, प्रदूषण को कम करने, और सिंचाई के लिए जल की गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जा सकता है।

 

भारत में कृत्रिम आर्द्रभूमियों के उदाहरण :

  • दिल्ली में असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य : दिल्ली के असोला बहती नमक जगह पर स्थित इस कृत्रिम आर्द्रभूमि का उपयोग आस – पास की बस्तियों से आने वाले सीवेज को शुद्ध करने के साथ-साथ वनस्पतियों और जीवों के लिए एक अभयारण्य के रूप में संरक्षण प्रदान करने के लिए किया जाता है।
  • पश्चिम बंगाल का कोलकाता ईस्ट वेटलैंड्स : भारत के पश्चिम बंगाल के कोलकाता ईस्ट वेटलैंड्स क्षेत्र स्थानीय मछली पकड़ने वालों और कृषि सिंचाई के लिए सहायता प्रदान करते हुए कोलकाता के अपशिष्ट जल का उपचार करता है।
  • राजस्थान में सरिस्का टाइगर रिज़र्व : राजस्थान में सरिस्का टाइगर रिज़र्व में आसपास के गाँवों के अपशिष्ट जल के उपचार के लिए कृत्रिम आर्द्रभूमि का उपयोग करते हुए एक अभिनव पहल की गई है।

अतः भारत में स्थित ये कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ न केवल पर्यावरणीय संरक्षण में योगदान देती हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए भी लाभकारी होती हैं।

 

आर्द्रभूमि और कृत्रिम आर्द्रभूमि के बीच मुख्य अंतर : 

 

 

 

आर्द्रभूमि और कृत्रिम आर्द्रभूमि के बीच मुख्य अंतर इस प्रकार हैं – 

विशेषता : 

  • आर्द्रभूमि : यह प्राकृतिक रूप से घटित होने वाला पारिस्थितिक तंत्र होता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि : यह मानव – निर्मित पारिस्थितिक तंत्र होता है ।

 

उत्पत्ति : 

  • आर्द्रभूमि : यह भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं, बाढ़ या जल प्रवाह में परिवर्तन के माध्यम से समय के साथ विकसित होता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि : इसको मानवों द्वारा जानबूझकर एक विशिष्ट स्थान पर निर्माण किया जाता है।

 

जल स्रोत : 

  • आर्द्रभूमि : विविध- वर्षा, भूजल, सतही जल अपवाह।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि : नियंत्रित स्रोत- अपशिष्ट जल, चक्रवाती जल अपवाह, या विशिष्ट जल निकाय।

 

उद्देश्य : 

  • आर्द्रभूमि: बाढ़ नियंत्रण, जल शुद्धिकरण, विविध प्रजातियों के लिये आवास जैसे विभिन्न पारिस्थितिक कार्य।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि: मुख्य रूप से जल उपचार (अपशिष्ट जल, चक्रवाती जल) या जीव आवास जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिये बनाया गया है।

 

जैव – विविधता : 

  • आर्द्रभूमि: विशिष्ट आर्द्रभूमि प्रकार के लिये अनुकूलित पौधों, जीवों और सूक्ष्म जीवों के स्थापित।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि: चुने हुए पौधों की प्रजातियों का विकास, जबकि सूक्ष्मजीव समुदाय समय के साथ विकसित होते हैं।

 

भू – क्षेत्र : 

  • आर्द्रभूमि: इनका आकर छोटे तालाबों से लेकर विशाल दलदलों तक हो सकता है, जो सामान्यतः बड़े क्षेत्रों को समाहित करता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि: इसे जल उपचार आवश्यकताओं के उद्देश्य से बनाया गया है, यह प्राकृतिक आर्द्रभूमि से छोटा हो सकता है।

 

विनियमन : 

  • आर्द्रभूमि: अक्सर इन्हें पारिस्थितिक महत्त्व के कारण पर्यावरणीय नियमों के तहत संरक्षित किया जाता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि: स्थानीय नियमों के आधार पर निर्माण एवं संचालन के लिये अनुमति की आवश्यकता हो सकती है।

 

रखरखाव : 

  • आर्द्रभूमि: स्थापना पश्चात न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि: उचित कार्यप्रणाली (जल प्रवाह, पौधों का स्वास्थ्य, तलछट हटाना) सुनिश्चित करने के लिये नियमित रखरखाव की आवश्यकता है।

 

कृत्रिम आर्द्रभूमियों से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ : 

कृत्रिम आर्द्रभूमियों से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित है  – 

  • पौधों का चयन : कृत्रिम आर्द्रभूमियों में प्रभावी पौधों का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। पौधे जैसे कैटेल, बुलरश, और सेज, नाइट्रोजन और फास्फोरस को अवशोषित करने में कुशल होते हैं, जबकि अन्य पौधे प्रदूषकों को नष्ट करने में सहायक होते हैं।
  • भूमि की आवश्यकता : कृत्रिम आर्द्रभूमियों के निर्माण हेतु बड़ी मात्रा में भूमि की जरूरत होती है, जो शहरी क्षेत्रों में एक सीमा और समस्या दोनों ही बन सकती है।
  • उपचार दक्षता : यद्यपि कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ प्रभावी होती हैं, लेकिन वे भारी प्रदूषित जल के लिए पारंपरिक उपचार संयंत्रों के समान शुद्धिकरण स्तर प्राप्त नहीं कर सकती हैं।
  • रखरखाव की आवश्यकताएँ : कृत्रिम आर्द्रभूमियों के लिए नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है ताकि उचित कामकाज सुनिश्चित हो सके और मच्छरों के प्रजनन जैसी समस्याओं से बचा जा सके।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमियों से जुड़ी अन्य चुनौतियाँ : कृत्रिम आर्द्रभूमियों को अपनाने के लिए स्थानीय लोगों में जागरूकता बढ़ाने, हितधारकों की तकनीकी विशेषज्ञता में सुधार करने, और उनके प्रदर्शन को अनुकूलित करने के लिए निरंतर निगरानी और अनुसंधान की जरूरत होती है।

 

कृत्रिम आर्द्रभूमियों से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ का समाधान / आगे की राह : 

 

 

 

भारत में कृत्रिम आर्द्रभूमियों की चुनौतियों के समाधान और उनके सफल कार्यान्वयन के लिए आगे की राह निम्नलिखित हो सकती है – 

 सर्वोत्तम वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना :

  • डिज़ाइन अनुकूलन : भारत को जर्मनी और नीदरलैंड जैसे देशों के उन्नत आर्द्रभूमि डिज़ाइन से सीखना चाहिए, जो मुक्त जल सतहों और उपसतह प्रवाह के संयोजन से बहु-चरणीय उपचार प्रणालियों का सफलतापूर्वक उपयोग करते हैं।
  • प्रदर्शन निगरानी : भारत को कृत्रिम आर्द्रभूमियों की चुनौतियों के समाधान के रूप में अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (US Environmental Protection Agency- US EPA) की तरह स्पष्ट प्रदर्शन निगरानी प्रोटोकॉल की स्थापना करनी चाहिए, जिससे उपचार दक्षता को बढ़ाया जा सके और संभावित मुद्दों की पहचान की जा सके।

 

भारत में निर्मित आर्द्रभूमियों का कार्यान्वयन :

  • नीति और विनियमन का पालन करना : भारत को कृत्रिम आर्द्रभूमियों के संबंध में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा निर्धारित नीतियों और विनियमनों का पालन करना चाहिए, जिससे इसके डिज़ाइन, संचालन, और रखरखाव के लिए स्पष्ट दिशा – निर्देश प्राप्त हो सकें।
  • वित्तीय साधन का प्रबंधन करना : भारत को आर्द्रभूमियों के लिए वित्तीय साधन के रूप में इस्मने होने वाले खर्चों के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी ( Public-Private Partnerships- PPPs ) जैसे वित्तीय तंत्रों का उपयोग करके निर्माण और रखरखाव के लिए आवश्यक धनराशि को जुटाना चाहिए। जिससे ये प्रणालियाँ आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों के लिए भी सुलभ हो सकें।
  • प्रदर्शन परियोजनाएँ स्थापित करना : जलीय पारिस्थितिक तंत्र से संबंधित कृत्रिम आर्द्रभूमियों के संबंध में भारत के विविध भौगोलिक और जलवायु क्षेत्रों में सफल प्रदर्शन परियोजनाओं को स्थापित करना चाहिए, जिससे वैश्विक स्तर पर इनकी प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया जा सके।
  • सामुदायिक सहभागिता को सक्रिय रूप से शामिल करना : भारत में सरकार को स्थानीय समुदायों को आर्द्रभूमि परियोजनाओं में सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए, जिससे उन्हें आर्द्रभूमि परियोजनाओं  से जुड़े इन प्रणालियों के लाभों की जानकारी हो और वे स्थानीय समुदाय इनके संरक्षण में अपना योगदान दे सकें। जिससे उन स्थानीय समुदायों को भी उनमें स्वामित्व की भावना और दीर्घकालिक सफलता को सुनिश्चित किया जा सके।

भारत सरकार द्वारा इन सुधारात्मककदमों को उठाकर, कृत्रिम आर्द्रभूमियों की चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है और उनके सफल कार्यान्वयन की दिशा में अग्रसर हुआ जा सकता है।

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी ।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q. 1. एक आर्द्रभूमि में ‘मोंट्रेक्स रिकॉर्ड’ का क्या अर्थ होता है ? ( UPSC- 2018)

A. इसे ‘विश्व विरासत स्थल’ का दर्ज़ा दिया गया है।

B. जिस देश में आर्द्रभूमि स्थित है, उस आर्द्रभूमि के किनारे से पाँच किलोमीटर के भीतर किसी भी मानवीय गतिविधि को प्रतिबंधित करने के लिए एक कानून बनाना चाहिए।

C. आर्द्रभूमि का अस्तित्व इसके आसपास रहने वाले कुछ समुदायों की सांस्कृतिक प्रथाओं एवं परंपराओं पर निर्भर करता है और इसलिए वहाँ की सांस्कृतिक विविधता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।

D. मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक स्वरूप में परिवर्तन हुआ है, या हो रहा है या होने की संभावना है।

उपर्युक्त में से कौन सा कथन सही है ? 

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. आर्द्रभूमि से आप क्या समझते हैं ? आर्द्रभूमि और कृत्रिम आर्द्रभूमि में मुख्य अंतर को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि भारत में औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार के लिए एक स्थायी समाधान के रूप में कृत्रिम आर्द्रभूमियों से जुड़ी चुनौतियाँ क्या है और उसका समाधान क्या हो सकता है ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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