अखिल भारतीय न्यायिक सेवा : वर्तमान प्रासंगिकता और चुनौतियाँ

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा : वर्तमान प्रासंगिकता और चुनौतियाँ

(यह लेख ‘ इंडियन एक्सप्रेस ’, ‘ द हिन्दू’ , ‘ जनसत्ता ’ , ‘ संसद टीवी के कार्यक्रम सरोकार ’ मासिक पत्रिका ‘वर्ल्ड फोकस’ और ‘पीआईबी के सम्मिलित संपादकीय के संक्षिप्त सारांश से संबंधित है। इसमें योजना IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विशेषकर ‘ भारतीय राजव्यवस्था और शासन ’ खंड से संबंधित है। यह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ अखिल भारतीय न्यायिक सेवा : वर्तमान प्रासंगिकता और चुनौतियाँ से संबंधित है।)

सामान्य अध्ययन – भारतीय राजव्यवस्था और शासन।

चर्चा में क्यों?

भारत की प्रथम नागरिक और देश की 15वीं राष्ट्रपति श्रीमति द्रौपदी मुर्मू ने 26 नवंबर 2023 की संविधान दिवस के अवसर पर न्यायपालिका में भारत की विविधता का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service- AIJS) की स्थापना की वकालत की, साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि न्याय का उद्देश्य सभी के लिए सुलभ और न्यायसंगत बनाना है, जो अभी भी भारत में होना बाकी है। 

राष्ट्रपति ने कहा कि –  “ संवैधानिक बेंच और बार कौंसिलों में भारत की अनूठी विविधता का अधिक विविध प्रतिनिधित्व निश्चित रूप से न्याय के उद्देश्य को बेहतर ढंग से पूरा करने में मदद करता है। इस विविधीकरण प्रक्रिया को तेज़ करने का एक तरीका एक ऐसी प्रणाली का निर्माण हो सकता है जिसमें योग्यता-आधारित, प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न पृष्ठभूमि से न्यायाधीशों की भर्ती की जा सके।” ऐसी स्थिति में संभवतः एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा हो सकती है, जो प्रतिभा का एक बड़ा पुल बनाने के लिए “देश भर से प्रतिभाशाली युवाओं का चयन करने और निचले स्तर से उच्च स्तर तक उनकी प्रतिभा का पोषण और प्रचार करने” में सक्षम होगी। उन्होंने कहा, “ऐसी प्रणाली कम प्रतिनिधित्व वाले सामाजिक समूहों को भी अवसर प्रदान कर सकती है।

भारत सरकार ने हाल ही में एक प्रवेश परीक्षा के माध्यम से अधीनस्थ न्यायालयों हेतु अधिकारियों की भर्ती के लिये अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) स्थापित करने हेतु एक विधेयक पारित करने का प्रस्ताव दिया है।

स्वतंत्रता के तुरंत बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा की तर्ज पर एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) का प्रावधान किया गया था, किन्तु कुछ कतिपय कारणों से अभी तक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा  का सृजन नहीं हो सका है। 

वर्तमान में AIJS का विचार न्यायिक सुधारों की पृष्ठभूमि में प्रस्तावित किया जा रहा है, जो कि विशेष रूप से न्यायपालिका में रिक्त पदों और लंबित मामलों की जाँच से संबंधित है। AIJS की स्थापना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसे कई संवैधानिक और कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) क्या है?

परिचय:

  • यह सभी राज्यों में अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीशों एवं ज़िला न्यायाधीशों के स्तर पर न्यायाधीशों के लिये एक प्रस्तावित केंद्रीकृत भर्ती प्रणाली है।
  • इसका लक्ष्य संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) मॉडल के समान न्यायाधीशों की भर्ती को केंद्रीकृत करना तथा सफल उम्मीदवारों को राज्यों का कार्यभार सौंपना है।
  • वर्ष 1958 और 1978 की विधि आयोग की रिपोर्टों की सिफारिशों के अनुसार, AIJS का उद्देश्य अलग-अलग वेतन, रिक्तियों पर भर्ती और मानकीकृत राष्ट्रव्यापी प्रशिक्षण जैसे संरचनात्मक मुद्दों का समाधान करना है।
  • संसदीय स्थायी समिति ने वर्ष 2006 में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के समर्थन पर पुनर्विचार किया।

संवैधानिक आधार:

  • संविधान का अनुच्छेद 312 केंद्रीय सिविल सेवाओं के समान ही राज्यसभा के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव पर AIJS की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • हालाँकि अनुच्छेद 312 (2) में कहा गया है कि AIJS में ज़िला न्यायाधीश (अनुच्छेद 236 में परिभाषित) से नीचे स्तर के किसी भी पद को शामिल नहीं किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 236 के अनुसार, एक ज़िला न्यायाधीश के अंतर्गत नगर सिविल न्यायालय का न्यायाधीश, अपर ज़िला न्यायाधीश, संयुक्त ज़िला न्यायाधीश, सहायक ज़िला न्यायाधीश, लघुवाद न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट, अपर मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायाधीश, अपर सेशन न्यायाधीश और सहायक सेशन न्यायाधीश हैं।

आवश्यकता:

  • AIJS न्यायाधीशों के चयन और प्रशिक्षण का एक समान और उच्च मानक सुनिश्चित करेगा, जिससे न्यायपालिका की गुणवत्ता एवं दक्षता में वृद्धि होगी।
  • AIJS निचली अदालतों में न्यायाधीशों की रिक्तियों को भरेगा, वर्तमान में देश भर में निचली न्यायपालिका में लगभग 5,400 पद रिक्त हैं और मुख्य रूप से राज्यों द्वारा नियमित परीक्षा आयोजित करने में अत्यधिक देरी के कारण निचली न्यायपालिका में 2.78 करोड़ मामले लंबित हैं।
  • AIJS देश की सामाजिक संरचना को दर्शाते हुए विभिन्न क्षेत्रों, लिंग, जातियों और समुदायों के न्यायाधीशों के प्रतिनिधित्व एवं विविधता को बढ़ाएगा।
  • AIJS न्यायपालिका संबंधी नियुक्तियों में न्यायिक या कार्यकारी हस्तक्षेप की गुंज़ाइश को कम करेगा, जिससे न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
  • AIJS प्रतिभाशाली और अनुभवी न्यायाधीशों का एक समूह तैयार करेगा जिन्हें उच्च न्यायपालिका में नियुक्त किया जा सकता है, जिससे न्यायाधीशों की भविष्य की संभावनाओं और उनकी गतिशीलता में सुधार होगा।

वर्तमान स्थिति:

  • भारत में इससे जुड़े सभी प्रमुख हितधारकों का इस संबंध में अलग-अलग राय होने के कारण वर्ष 2023 तक AIJS पर कोई आम सहमति नहीं बन सका है।
  • यह AIJS की स्थापना के प्रस्ताव पर आम सहमति प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों को उज़ागर करता है।

वर्तमान में ज़िला न्यायाधीशों की भर्ती कैसे की जाती है?

  • वर्तमान प्रणाली में अनुच्छेद 233 और 234 शामिल हैं जो राज्यों को ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार देते हैं, जिसका प्रबंधन राज्य लोक सेवा आयोगों और उच्च न्यायालयों के माध्यम से किया जाता है, क्योंकि उच्च न्यायालय राज्य में अधीनस्थ न्यायपालिका पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का पैनल परीक्षा के बाद उम्मीदवारों का साक्षात्कार लेता है और नियुक्ति के लिये उनका चयन करता है।
  • निचली न्यायपालिका के ज़िला न्यायाधीश स्तर तक के सभी न्यायाधीशों का चयन प्रांतीय सिविल सेवा (न्यायिक) परीक्षा के माध्यम से किया जाता है। PCS (J) को आमतौर पर न्यायिक सेवा परीक्षा के रूप में जाना जाता है।
  • अनुच्छेद 233 ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। किसी भी राज्य में ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पोस्टिंग और पदोन्नति राज्य के राज्यपाल द्वारा ऐसे राज्य पर अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने वाले उच्च न्यायालय के परामर्श से की जाएगी।
  • अनुच्छेद 234 न्यायिक सेवा में ज़िला न्यायाधीशों के अलावा अन्य व्यक्तियों की भर्ती से संबंधित है।

AIJS के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • यह संघीय ढाँचे और राज्यों व उच्च न्यायालयों की स्वायत्तता का उल्लंघन होगा, जिनके पास अधीनस्थ न्यायपालिका को प्रशासित करने का संवैधानिक अधिकार एवं दायित्व है।
  • इससे हितों का टकराव और न्यायाधीशों पर दोहरे नियंत्रण की स्थिति उत्पन्न होगी, जो केंद्र तथा राज्य सरकार दोनों के प्रति जवाबदेह होंगे।
  • यह विभिन्न राज्यों की स्थानीय विधियों, भाषाओं और रीति-रिवाज़ों की अवहेलना करेगा, जो न्यायपालिका के प्रभावी कामकाज के लिये आवश्यक हैं।
  • इसका असर मौजूदा न्यायिक अधिकारियों के मनोबल और प्रेरणा पर पड़ेगा, जो अपने कॅरियर में उन्नति के अवसरों तथा प्रोत्साहन से वंचित रह जाएंगे।

समस्या के समाधान की दिशा में बढ़ने के लिए आगे की राह:

  • चिंताओं को दूर करने और AIJS के लिए समर्थन जुटाने हेतु राज्यों, उच्च न्यायालयों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ संवाद एवं परामर्श की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
  • इसके प्रभाव का आकलन करने और धीरे-धीरे चिंताओं को दूर करने के लिये चुनिंदा राज्यों में पायलट आधार पर AIJS को लागू करने पर विचार करना चाहिए।
  • AIJS को लचीले तंत्र के साथ डिज़ाइन करना जो स्थानीय विधियों, भाषाओं तथा रीति-रिवाज़ों के अनुकूलन की अनुमति देता हो, क्षेत्रीय बारीकियों की उपेक्षा किये बिना प्रभावी कार्य पद्धति को भी सुनिश्चित करना चाहिए।
  • एक पूर्णतः स्पष्ट परिभाषित संक्रमण अवधि का प्रस्ताव करना जिसके दौरान मौजूदा न्यायिक अधिकारी व्यवधानों को कम करते हुए नई प्रणाली को सहजता से अपना सकें।
  • संघीय ढाँचे, स्वायत्तता तथा न्यायपालिका की प्रभावी कार्यप्रणाली पर AIJS के प्रभाव का आकलन करने तथा आवश्यकतानुसार आवश्यक समायोजन के लिए एक आवधिक समीक्षा तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • AIJS के अंतर्गत एक प्रोत्साहन संरचना विकसित करना जो कैरियर में उन्नति से संबंधित चिंताओं का समाधान करते हुए मौजूदा न्यायिक अधिकारियों के योगदान को प्रेरित करे और मान्यता दे।

AIJS के लिये संवैधानिक परिप्रेक्ष्य: 

  • AIJS को पहली बार वर्ष 1958 में विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
  • वर्ष 1976 में 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा अनुच्छेद 312 (1) में संशोधन करके संसद को एक या एक से अधिक अखिल भारतीय सेवाओं के निर्माण के लिये कानून बनाने का अधिकार दिया, जिसमें AIJS भी शामिल है, जो संघ और राज्यों दोनों के लिये समान है।
  • अनुच्छेद 312 के तहत, राज्यसभा को अपने उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव पारित करना आवश्यक है। इसके बाद संसद को AIJS बनाने के लिये एक कानून बनाना होगा।
  • इसका अर्थ है कि AIJS की स्थापना के लिये किसी संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी ‘अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ’ मामले (1993) में इसका समर्थन करते हुए कहा कि AIJS की स्थापना की जानी चाहिये।

AIJS के लाभ:

  • जनसंख्या अनुपात के अनुसार न्यायाधीशों की संख्या: एक विधि आयोग की रिपोर्ट (वर्ष 1987) में सिफारिश की गई थी कि भारत में प्रति मिलियन जनसंख्या पर 10.50 न्यायाधीशों (तत्कालीन) की तुलना में 50 न्यायाधीश होने चाहिये।
  • वर्तमान स्वीकृत शक्ति के मामले में यह आँकड़ा 20 न्यायाधीशों को पार कर गया है, लेकिन यह अमेरिका या यूके की तुलना में (क्रमशः 107 और 51 न्यायाधीश प्रति मिलियन लोग) बहुत कम है।
  • इस प्रकार AIJS न्यायिक क्षेत्र में अंतर्निहित अंतर को पाटने की परिकल्पना करता है।
  • समाज के सीमांत वर्गों का उच्च प्रतिनिधित्व: सरकार के अनुसार AIJS समाज के हाशिए पर स्थित और वंचित वर्गों के समान प्रतिनिधित्व के लिये एक आदर्श समाधान है।
  • प्रतिभा को आकर्षित करना: सरकार का मानना ​​है कि अगर इस तरह की सेवा सामने आती है, तो इससे प्रतिभाशाली लोगों का एक पूल बनाने में मदद मिलेगी जो बाद में उच्च न्यायपालिका का हिस्सा बन सकते हैं।
  • ‘बॉटम-अप’ दृष्टिकोण: भर्ती में ‘बॉटम-अप’ दृष्टिकोण निचली न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद जैसे मुद्दों से भी निपटने में सहायक होगा। यह समाज के निचले स्तरों में न्याय व्यवस्था की गुणवत्ता में सुधार करेगा।

संबंधित चुनौतियाँ:

  • अनुच्छेद 233 और 312 के बीच द्विभाज: अनुच्छेद 233 के अनुसार अधीनस्थ न्यायपालिका में भर्ती राज्य का विशेषाधिकार है।
  • इसके कारण कई राज्यों और उच्च न्यायालयों ने इस विचार का विरोध किया है कि यह संघवाद के खिलाफ है।
  • यदि इस तरह के नियम बनाने और ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करने की राज्यों की मौलिक शक्ति छीन ली जाती है, तो यह संघवाद के सिद्धांत और बुनियादी संरचना सिद्धांत के खिलाफ हो सकता है।

नोट:

  • संविधान के अनुच्छेद 233 (1) में कहा गया है कि “किसी राज्य में ज़िला न्यायाधीश नियुक्त होने वाले व्यक्तियों की नियुक्ति तथा ज़िला न्यायाधीश की पदस्थापना और प्रोन्नति उस राज्य का राज्यपाल ऐसे राज्य के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामर्श करके करेगा।”
  • भाषायी बाधा: चूंकि निचली अदालतों में मामलों की बहस स्थानीय भाषाओं में होती है, इसलिये इस बात की आशंका है कि उत्तर भारत का कोई व्यक्ति दक्षिणी राज्य में सुनवाई कैसे कर सकता है।  इस प्रकार AIJS के संबंध में एक और मूलभूत चिंता भाषा की बाधा है।
  • संवैधानिक सीमा: अनुच्छेद 312 का खंड 3 एक प्रतिबंध लगाता है कि AIJS में ज़िला न्यायाधीश के पद से कम पद शामिल नहीं होगा। इस प्रकार AIJS के माध्यम से अधीनस्थ न्यायपालिका की नियुक्ति को संवैधानिक बाधा का सामना करना पड़ सकता है।
  • उच्च न्यायालय के प्रशासनिक नियंत्रण को कमज़ोर करना: AIJS के निर्माण से अधीनस्थ न्यायपालिका पर उच्च न्यायालयों के नियंत्रण का क्षरण होगा, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष:

भारतीय जेलों में ‘अंडरट्राइल’ के नाम पर जेल में बंद करोड़ों कैदियों के लंबित केसों के मामलों और कैदियों की करोड़ों संख्या, निश्चित रूप से एक स्वच्छ , पारदर्शी , प्रतिस्पर्धी और योग्यता आधारित भर्ती प्रणाली की स्थापना की मांग करती है जो मामलों के त्वरित निपटान के लिए बड़ी संख्या में कुशल और योग्य न्यायाधीशों की भर्ती करे। हालाँकि AIJS के विधायी ढाँचे में आने से पहले सर्वसम्मति बनाने और AIJS की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है साथ – ही – साथ सरकारों को भी राज्यसभा और लोकसभा के बीच आपसी समन्वय बनाने की जरुरत है ताकि भविष्य में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा पद सृजन की दिशा में कोलोजियम द्वारा नियुक्त न्यायधीशों और सरकार के बीच के आपसी गतिरोध को समाप्त किया जाए और अखिल भारतीय न्यायिक सेवा जैसे पदों के सृजन की दिशा में सकारात्मक पहल का मार्ग प्रशस्त हो सके।

Download yojna daily current affairs hindi med 22th DEC 2023

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: 

Q.1. भारत में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए

  1.  भारत में ज़िला न्यायाधीशों एवं अधीनस्थ न्यायालयों की नियुक्ति का अधिकार और प्रबंधन, राज्य लोक सेवा आयोगों और संबंधित राज्यों के उच्च न्यायालयों के माध्यम से किया जाता है।
  2. अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का लक्ष्य संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) मॉडल के समान न्यायाधीशों की भर्ती को केंद्रीकृत करना तथा सफल उम्मीदवारों को राज्यों का कार्यभार सौंपना है।
  3. संविधान का अनुच्छेद 312 केंद्रीय सिविल सेवाओं के समान ही राज्यसभा के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव पर AIJS की स्थापना का प्रावधान करता है।
  4. AIJS को पहली बार वर्ष 1958 में विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित किया गया था।

उपरोक्त कथन / कथनों में कौन सा कथन सही है ? 

(a) केवल 1 , 2 और 3 

(b) केवल 1, 3 और 4

(c) इनमें से कोई नहीं

(d) इनमें से सभी। 

उत्तर – (d)

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: 

Q.1. भारत में त्वरित एवं सुलभ न्याय व्यवस्था हेतु योग्यता-आधारित, प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न पृष्ठभूमि से न्यायाधीशों की भर्ती के संदर्भ में यह चर्च कीजिए कि भारत में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की स्थापना किस प्रकार नयायपालिका के क्षेत्र में एक सकारात्मक कदम है?  इसके सृजन में होने वाली संवैधानिक और कानूनी बाधाओं की चर्चा करते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता का वर्णन कीजिए। 

No Comments

Post A Comment