अपशिष्ट प्रबंधन

अपशिष्ट प्रबंधन

अपशिष्ट प्रबंधन

संदर्भ- हाल ही में केरल के ब्रह्मपुर वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट में आग लग गई। 110 एकड़ के खुले डम्पिंग यार्ड में आग से सम्पूर्ण शहर में बदबूदार धुंआ फैल गया। 

  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की प्रधान पीठ ने  केरल राज्य के अधिकारियों को कचरा डंपिंग यार्ड के उचित प्रबंधन न करने के कारण फटकार लगाई। 
  • एनजीटी ने कोच्चि नगर निगम पर कर्तव्यों की उपेक्षा करने के दण्डस्वरूप 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। जिसका प्रयोग आपदा से हुई स्वास्थ्य हानि के उपचार के लिए किया जाएगा।
  • इसके साथ ही राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नगर निगम पर 1.8 करोड़ का जुर्माना लगाया है। 

अपशिष्ट प्रबंधन प्लांट- अपशिष्ट प्रबंधन, ठोस अपशिष्ट के उपचार की ऐसी पद्धति है जो परिवहन, अपशिष्ट उपचार या पुनर्चक्रण पर आधारित है। अपशिष्ट का निर्माण मानव गतिविधियों के कारण होता है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की आवश्यकता पर्यावरण में इसके दुष्प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। ठोस, तरल, गैस व रेडियोधर्मी पदार्थों के लिए अलग अलग विधियों का प्रयोग किया जाता है। सुनियोजित अपशिष्ट प्रबंधन के स्थान को अपशिष्ट प्रबंधन प्लांट कहा जाता है।

अपशिष्ट प्रबंधन

समस्त भारत में अपशिष्ट प्रबंधन एक समस्या है जो अत्यधिक संसाधनों के निर्माण व कम उपयोग के कारण अपशिष्ट एक खतरा बनता जा रहा है, अपशिष्ट दो प्रकार का हो सकता है बायोडिग्रेबल व नॉन बायोडिग्रेेबल।

जैव निम्नीकरण अपशिष्ट- जिन अपशिष्टों को खाद में परिवर्तित किया जा सकता है उन्हें बायो डिग्रेबल या जैव अपशिष्ट कहा जाता है। यदि इन्हें अजैव अपशिष्ट से अलग रखा जाए तो यह पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं होते। जैसे कृषि अपशिष्ट, घरेलू अपशिष्ट आदि। 

अजैव निम्नीकरण अपशिष्ट-  जिन अपशिष्टों को खाद में परिवर्तित न किया जा सकता है उन्हें नॉन बायो डिग्रेबल या जैव निम्नीकरण अपशिष्ट कहा जाता है। यह पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं, जैसे प्लास्टिक, कांच आदि। इनके प्रबंधन या अपघटन के लिए निम्न विधियों का प्रयोग किया जाता है-

  •  गड्ढों का भराव (Landfill)कचरे के निपटान के लिए एक स्थान है जिसे टिप्स डंप, कूड़ा डंप साइट के रूप में भई जाना जाता है। इसमें कचरे को लैंडफिल में रखा जाता है, अतिरिक्त और सघन कचरे के साथ, लैंडफिल बायोरिएक्टर स्तर की O2 सामग्री धीरे-धीरे कम हो जाती है।
  • भष्मीकरण(Incineration)- कचरे के निपटान के लिए कचरे को उच्च ताप पर जलाया जाता है। भष्मीकरण की क्रिया कचरे के अजैविक पदार्थों को गैस व ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। यह अपशिष्ट की मात्रा को 20-30% तक कम कर देती हैं। यह विधि पर्यावरण के हानिकारक सिद्ध होती है। 
  • यरोलिसिस इस प्रक्रिया में अपशिष्ट को रसायनों के प्रयोग द्वारा अपघटित किया जाता है। 
  • पुनर्चक्रण- इस प्रक्रिया द्वारा अपशिष्ट को नष्ट न कर, नए उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है।

अनियोजित अपशिष्ट के प्रभाव – 

  • यदि उपरोक्त प्रक्रियाओं द्वारा अपशिष्ट का प्रबंधन न हो सके तो अपशिष्ट के ढेर एकत्रित हो जाते हैं जो भारत में प्रत्येक शहर की समस्या है। अपशिष्ट के ढेर का निर्माण अपशिष्ट के कुप्रबंधन का एक कारण होता है जिसमें जैव निम्नीकरण और अजैव निम्नीकरण दोनों प्रकार के अपशिष्ट को एक साथ एकत्रित कर अपघटित करने का प्रयास किया जाता है जबकि प्रत्येक को अपघटित करने की प्रक्रिया भिन्न होती है। 
  • मिश्रित अपशिष्ट के ढेर के अपघटन की दर धीमी हो जाती है। जिससे अपशिष्ट ढेर बढ़ता जाता है। जो मृदा प्रदूषण का कारण बनता है।
  • अनियोजित अपशिष्ट को जलाने से जहरीली गैस उत्सर्जित होती है, जो वायुप्रदूषण व जलवायु परिवर्तन में योगदान देते हैं। जिसे श्वसन संबंधी समस्य़ाएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं।
  • जल स्रोतो के पास स्थित कचरे के ढेर के कारण जल प्रदूषण के साथ, वह जल अनेक प्राणियों में अज्ञात रोगों का कारक बनता है।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन हेतु विधान

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन अधिनियम 2016 के तहत –

  • अपशिष्ट को तीन भागों में विभाजित किया जाता है- गीला कचरा, सूखा कचरा व ठोस खतरनाक अपशिष्ट।
  • अपशिष्ट उत्पादकों को अपशिष्ट के उत्पादन के लिए भुगतान करना होगा। इसके साथ ही कचरा संग्रहणकर्ताओं व नॉन सेग्रीगेशन अपशिष्ट पर भी स्पॉट फाइन का प्रावधान रखा गया है।
  • बायोडिग्रेबल अपशिष्ट को बायो मीथेनेशन के माध्यम से संसाधित या उपचारित किया जाता है। 

कंस्ट्रक्शन व डिमोलिशन अधिनियम

  • यह निर्माण व विनिर्माण से निर्मित कचरे से संबंधित है।
  • इसके अंतर्गत निर्माणकर्ता यदि 20 टन प्रतिदिन या 300 टन प्रति महीना अपशिष्ट का निर्माण करता है तो उसे उसके लिए स्थानीय निकाय से निर्माण व विध्वंश की अनुमति प्राप्त करनी होगी।

ई कचरा प्रबंधन अधिनियम

  • यह नियम निर्माणकर्ता, उपयोगकर्ता, अपशिष्ट संग्रहकर्ता और उपचारकर्ता के लिए आवश्यक है।
  • इसके तहत श्रमिकों को ई कचरे के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।

आगे की राह-

  • बायोडिग्रेबल कचरे का घर पर ही प्रबंधन करने की आदत क प्रोत्साहित करना।
  • लैंडफिल साइट में अग्निशमन यंत्र की व्यवस्था करना, जिससे अनियंत्रित आग व उससे गैसों के उत्सर्जन को रोका जा सके।
  • कचरे के पुनर्चक्रण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • वस्तुओं के अधिक इस्तेमाल पर जोर दिया जाना चाहिए, जिससे कचरे की बढ़ती मात्रा को कम किया जा सके।
  • एकल इस्तेमाल(disposal) वाली अजैव निम्नीकरण वस्तुओं के निर्माण पर रोक लगानी चाहिए।

स्रोत

द हिंदू

Yojna IAS Daily current affairs hindi med 20th March 2023

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