14 Nov अब ग्लाइफोसेट का होगा सीमित उपयोग
अब ग्लाइफोसेट का होगा सीमित उपयोग
संदर्भ- हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कपास के साथ होने वाले खरपतवार को समाप्त करने वाले शाकनाशक ग्लाइफोसेट के उपयोग को प्रतिबंधित किय़ा जाएगा। यह फैसला ऐसे समय में आया जब सुप्रीम कोर्ट ट्रांसजेनिक हाइब्रिड सरसों व कपास जैसी जड़ी बूटी वाली फसलों पर प्रतिबंध की मांग पर सुनवाई करने वाला है।
सरकार का वर्तमान निर्देश –
- कृषि मंत्रालय के अनुसार इसके उपयोग से मनुष्य व जानवरों को स्वास्थ्य संबंधी खतरा हो सकता है
- अब ग्लाइफोसाइट व उसके डैरिवेटिव के उपयोग की अनुमति केवल कीट नियंत्रक ऑपरेटरों को ही दी जाएगी।
- इसके प्रयोग को नियंत्रित किया गया है, प्रतिबंधित नहीं।
ग्लाइफोसेट–
यह एक शाकनाशी है जिन्हें खरपतवार (अवांछनीय पौंधे जो धूप, जल व पोषक तत्वों के लिए फसलों से प्रतिस्पर्धा करते हैं) को समाप्त करने के लिए किया जाता है। सामान्यतः किसान खरपतवार को हाथ से ही हटा देते हैं या शाकनाशी का छिड़काव करते हैं।
ग्लाइफोसाइट एक ब्रॉड स्पेक्ट्रम शाकनाशी है जो चौड़ी पत्ती वाले या घास वाले खरपतवारों को समाप्त कर सकता है। यह गैर चयनात्मक प्रकृति अर्थात फसल व खरपतवार में अंतर नहीं कर पाता है। जिससे यह अधिकाश पौधों को समाप्त कर देता है।
यह जब उनकी पत्तियों के संपर्क में आता है, तो यह एक प्रोटीन ‘5-एनोलपाइरुविलशिकिमेट-3-फॉस्फेट सिंथेज़ (ईपीएसपीएस)’ के उत्पादन को रोकता है। यह पौधों और सूक्ष्मजीवों द्वारा निर्मित होने वाले सुगंधित अमीनो एसिड एंजाइम को भी संश्लेषित करता है जो उनके विकास के लिए आवश्यक होते हैं और पौंधों का विकास रुक जाता है।
भारत में इसका प्रयोग-
- कीटनाशक अधिनियम 1968 के तहत विभिन्न सांद्रता वाले नौ ग्लाइफोसेट आधारित फॉर्मुलेशन को ही पंजीकृत किया गया है।
- इसके प्रयोग की स्वीकृति बड़े चाय बगान,गैर फसल क्षेत्र जैसे रेलवे ट्रैक, खेल के मैंदानों आदि के लिए ही प्राप्त है।
- किसानों द्वारा ग्लाइफोसेट का प्रयोग सिंचाई चैनलों व मेढ़ों पर करते हैं जिससे पानी के माध्यम से संचरित खरपतवार को समाप्त किया जा सके। इसके साथ ही मेढ़ों पर उगने वाले खरपतवार, कवकों के लिए मेजबान होते हैं। जैसे- चावल में म्यान ब्लाइट रोग आदि को बढ़ावा देते हैं।
- ग्लाइफोसाइट के प्रयोग को इसलिए प्रतिबंधित किया गया है कि यह फसल व खरपतवर के मध्य अंतर नहीं करता और संपर्क में आने वाले पौंधों को समाप्त कर देता है। इसलिए इन्हें फसलों में प्रयोग न कर चाय व रबर के बागानों में प्रयोग किया जाता है।
ग्लाइफोसेट के प्रयोग को नियंत्रित क्यों किया जा रहा है?
स्वास्थ्य संबंधी समस्या – गैर चयनात्मक शाकनाशी होने के कारण यह अन्य फसलों को नुकसान पहुँचा सकता है। किंतु विश्व स्वास्थ्य संगठन की अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने मार्च 2015 में जानवर के कैंसर में किए गए प्रयोग पर यह परिणाम दिए थे। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने माना है कि “ग्लाइफोसेट के वर्तमान उपयोग से मानव स्वास्थ्य के लिए चिंता का कोई जोखिम नहीं है।” अतः मुख्य समस्या हर्बिसाइड टॉलरेंट बीटी कपास के बीजों की अवैध बिक्री को रोकना ही है।
ग्लाइफोसेट के आवेदन में वृद्धि- ट्रांसजेनिक फसलों जैसे बीटी कपास द्वारा ग्लाइफोसेट को सहन करने की क्षमता के कारण किसानों द्वारा बीटी कपास के बीज व ग्लोइफोसेट के आवेदन में लगातार वृद्धि हुई है।
ट्रांसजेनिक तकनीक में कपास, मक्का और सोयाबीन जैसी फसल के पौधों में मिट्टी के जीवाणु एग्रोबैक्टीरियम टूमफेशियन्स से पृथक ‘सीपी4-ईपीएसपीएस’ जीन को शामिल करना शामिल है। यह एलियन जीन एक प्रोटीन के लिए कोडित होता है जो ग्लाइफोसेट को ईपीएसपीएस एंजाइम के साथ बंधने की अनुमति नहीं देता है। इसलिए, उक्त जीएम फसल शाकनाशी के छिड़काव को “सहन” कर सकती है, जो तब केवल खरपतवारों को ही नष्ट करती है।
बीटी कपास की अवैध बिक्री- गैर अनुमोदित होने पर भी बाजार में कंपनियों के नाम का अवैध रूप से प्रयोग कर एचटीबीटी के बीजों को 1100-1350 रुपये प्रति पैकेट तक अवैध रूप से बेचा जा रहा है जबकि बीटी कपास का अधिकतम खुदरा मूल्य 810 रुपये प्रति पैकेट था। ग्लाइफोसेट को निंयत्रित करने का सबसे प्रमुख कारण बीजों की अवैध बिक्री को रोकने के साथ उन सभी छोटी बीज कम्पनियों तथा प्रचलित बीज बाजार को इसके प्रभाव से बचाना है।
बीटी कपास-
- बीटी कपास, भारत की एकमात्र ऐसी फसल है जिसे केंद्र द्वारा व्यावसायिक खेती के लिए केंद्र द्वारा अनुमोदित किया गया है।
- कपास के एक सामान्य कीट का मुकाबला करने के लिए इसे आनुवांशिक रूप से संशोधित किया गया है।
हर्बिसाइड टॉलरेंट बीटी कपास-
- एचटीबीटी कपास बीटी कपास का एक अन्य संशोधित रूप है जो ग्लाइफोसेट के लिए प्रतिरोधी का कार्य करता है जिससे कपास की फसल खरपतवारनाशक के कारण नष्ट नहीं होती।
- एचटीबीटी को अभी तक अनुमोदित नहीं किया गया है।
स्रोत
https://indianexpress.com/article/explained/why-centre-has-restricted-use-of-a-herbicide-in-demand-among-farmers-8257175/
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