अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

संदर्भ- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सामने आया है जिसमें कोर्ट ने मंत्रियों के बयानों/टिप्पणियों के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं माना है। भले ही बयान राज्यों से संबंधित ही क्यों न हो। निर्णय के अनुसार अनुच्छेद 19(1) में आधारित किसी भी अभिव्यक्ति या भाषण के अधिकार को अनुच्छेद 19(2) में निर्धारित आधारों के अतिरिक्त किसी भी आधार पर रोका नहीं जा सकता। लेकिन यदि सरकार के विचार भी शामिल हों तो देनदारी संभव है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा बिना किसी दण्ड या भय के किसी मत को प्रकट कर पाने की स्थिति होती है। 

अनुच्छेद 19(1) ए- भारत के संविधान में भारत के नागरिकों को अनुच्छेद 19(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंंत्रता दी गई है जिसके तहत किसी भी भारतीय नागरिक को अपने विचारों को बोलकर लिखकर, चित्रांकन, छपाई या फिर फिल्म द्वारा अभिव्यक्त करने का अधिकार है।

अनुच्छेद 19(2) – देश में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के निम्नलिखित बिंदुओं को प्रभावित करने वाले भाषणों में प्रतिबंध लगाया गया है। जैसे- 

  • राज्यों की सुरक्षा
  • विदेशी राज्यों के साथ कुछ मैत्रीपूर्ण संबंध
  • नैतिकता व शालीनता
  • सार्वजनिक व्यवस्था
  • न्यायालय की अवमानना
  • मानहानि
  •  किसी अपराध के लिए उकसाना
  • भारत की संप्रभुता व अखण्डता

फ्री स्पीच केस जो मंत्रियों, सांसदों या विधायकों के अभिव्यक्ति की आजादी से संबंधित है। संविधान के निम्न प्रावधान मंत्रियों की अभिव्यक्ति या भाषण के अधिकार से संबंधित है।

अनुच्छेद 105- संसद में या उसकी किसी समिति में संसद सदस्य द्वारा दिए गए किसी मत या विचार पर न्यायालय कोई कार्यवाही नहीं कर सकती है। इसके साथ ही किसी व्यक्ति पर संसद के प्राधिकार द्वारा उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, मतपत्र या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।

अनुच्छेद 194-  राज्य के विधान-मंडल में या उसकी किसी समिति में विधान-मंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुंद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।

सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत- मंत्रीपरिषद सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत पर कार्य करती है। इसके अनुसार सभी मंत्री सरकार के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होते हैं।  यदि लोकप्रिय सदन किसी मंत्री पर अविश्वास करे तो मंत्री को सदन से त्यागपत्र देना पड़ता है यदि मंत्री त्यागपत्र न दे तो सम्पूर्ण मंत्रीपरिषद को सामूहिक उत्तरदायित्व के रूप में पद से त्यागपत्र देना पड़ता है। केस में यदि सदस्य, सरकार के प्रतिनिधि के रूप में बयान देता है तो सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत लागू किया जा सकता है।

मुक्त भाषण, घृणास्पद भाषण व धार्मिक-भावना को ठेस पहुँचाने वाला भाषण

  • मुक्त भाषण की रक्षा का अर्थ है एक स्वतंत्र प्रेस, लोकतांत्रिक प्रक्रिया, विचारों की विविधता, और बहुत कुछ की रक्षा करना। ACLU ने 1920 से यह सुनिश्चित करने के लिए काम किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी के लिए सुरक्षित रहे। और इसका दुरुपयोग न हो।
  • घृणास्पद भाषण – अभद्र भाषा किसी व्यक्ति या समूह के वास्तविक या कथित “पहचान कारकों” को संबोधित करती है, जिसमें शामिल हैं: धर्म, जातीयता, राष्ट्रीयता, जाति, रंग, वंश, लिंग”, लेकिन भाषा, आर्थिक या सामाजिक मूल, अक्षमता, स्वास्थ्य की स्थिति, या यौन अभिविन्यास, कई अन्य के कारण घृणा उत्पन्न करती है। संयुक्त राष्ट्र ने घृणात्मक भाषण को रोकने के लिए विभिन्न देशों के साथ मिलकर कार्ययोजना तैयार की है। इसके तहत सकारात्मक भाषण को बढावा दिया जाएगा।
  • धार्मिक-भावना को ठेस पहुँचाने वाला भाषण- जानबूझकर हिंसा बढ़ाने के लिए किया गया कृत्य जो किसी विशिष्ट मसुदाय को भड़काने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।भारतीय दण्ड संहिता के 295(ए) के तहत किसी समुदाय की अभद्र भाषा समेत धार्मिक भावना ठेस पहुँचाने के लिए किया गया कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है। 

आगे की राह-

  • सामाजिक रूप से घृणास्पद व नफरत फैलाने वाले भाषणों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  • अशोभनीय भाषणों को समाज में सहज स्थान नहीं मिलना चाहिए।

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

Un.org

hindi.lawrato.com

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 5th Jan

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