अरितापट्टी गांव : एक जैव विविधता स्थल

अरितापट्टी गांव : एक जैव विविधता स्थल

अरितापट्टी गांव : एक जैव विविधता स्थल

संदर्भ- तमिलनाडु सरकार द्वारा अरितापट्टी गांव को जैव विविधता अधिनियम 2002 के तहत जैव विविधता विरासत स्थल के रूप में अधिसूचित किया गया है।

अरितापट्टी गांव- तमिलनाडु राज्य में मदुरै जिले के मेलूर के समीप स्थित है। यह गांव भौगोलिक, ऐतिहासिक व जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

भारतीय पैंगोलिन

भौगोलिक महत्व-

  • यह 7 बंजर ग्रेनाइट पहाड़ियों के बीच घिरा हुआ क्षेत्र है।
  • जहां 72 झीलें, 200 प्राकृतिक झरने, तीन चेक बांध स्थित हैं। 16वीं शताब्दी में पांड्यों के शासन काल में बनी अनाइकोंडन झील उनमें से एक है।

ऐतिहासिक महत्व- यहां से ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

  • मेगालिथिक संरचनाएं
  • तमिल ब्राह्मी शिलालेख
  • जैन शयनकक्ष
  • 2200 वर्ष पुराने रॉक कट मंदिर।

अरितापट्टी गांव में जैव विविधता – 

 जैव विविधता जीवों के बीच पायी जाने वाली विभिन्नता है, यह आनुवांशिक, प्रजातीय व पारितंत्र की विविधता को समाहित करती है। अरितापट्टी गांव जैव विविधता युक्त गांव है जिसे संरक्षण की आवश्यकता है। ये विविधताएं हैं-

 रैप्टर प्रजातियाँ-

  •  ये शिकार करने वाले पक्षी की प्रजातियाँ होती हैं, 
  • ये मांसाहारी होते हैं जो स्तनधारी, उभयचर व कीटों को अपना भोजन बनाते हैं। 
  • अरितापट्टी गांव में तीन रैप्टर प्रजातियाँ हैं। लैगर  फाल्गन, शाहीन फाल्गन व बोनेली का ईगल।

भारतीय पैंगोलिन-

  • एक ऐसा दुर्लभ स्तनधारी जो अन्य स्तनधारियों से बिल्कुल अलग है,यह छोटा डायनोसोर जैसा प्रतीत होता है।  
  • इसके शरीर का पृष्ठ भाग कैरोटीन से बने कठोर व मजबूत शल्कों से ढका रहता है। जिसके कारण इसका एक नाम वज्रशल्क भी है। 
  • इसका वैज्ञानिक नाम मैनिस क्रेसिकाउडाटा है।
  •  यह दीमक व चींटियों को अपना भोजन बनाता है, जो पारिस्थितिकीय तंत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, वर्तमान में इनकी विलुप्त होती स्थिति के कारण इन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।

पायथन-

  • यह भारतीय उपमहाद्वीप की उष्णकटिबंधीय व उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पायी जाने वाले अजगर की प्रजाति है।
  •  इसका वैज्ञानिक नाम पायथन मोलुरस है। 
  • यह धब्बेदार पैटर्न के साथ हल्के भूरे रंग का होता है।
  •  यह मांसाहारी होता है इसके आहार में पक्षी, उभयचर, सरीसृप, कई प्रकार के कशेरुकी जीवों को खाता है। यह अपने शिकार की आबादी को सीमित करने में महत्वपूर्ण हो सकता है।

स्लेंडर लोरिस-

  • यह निशाचर स्तनधारी हैं, जो आमतौर पर पेड़ों पर रहते हैं। 
  • ये अधिकतर पेड़ों पर ही रहते हैं, भोजन करने के लिए ये झाड़ियों में उतरते हैं। 
  • यह कीटभक्षी है, जो पारिस्थितिकीय तंत्र में महत्वपूर्ण है। इनका वैज्ञानिक नाम लोरिस एसपीपी है।

इनके साथ ही 250 अन्य पक्षियों की प्रजातियाँ गांव में पायी जाती हैं।

इनके संरक्षण हेतु प्रयास- 

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस- 

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1993 में इसकी शुरुआत की गई इसका उद्देश्य जैव विविधता से संबंधित जागरुकता लाना था। 
  • जैव विविधता के संरक्षण के लिए 2011-2020 को जैव विविधता दशक के रूप में मनाया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र ने 2021-2030 को सतत विकास हेतु महासागर विज्ञान दशक घोषित किया है।

जैव विविधता अधिनियम 2002

  • इस अधिनियम को जैव विविधता के संरक्षण के लिए लाया गया था।
  • यह राज्यों को उनके जैविक संसाधनों का प्रयोग करने के लिए तथा सम्प्रभु अधिकारों को मान्यता देता है।
  • जैव विविधता अधिनियम 2002 की धारा 37 के तहत स्थानीय निकायों के परामर्श से राज्य सरकारें वन्य प्रजातियों, घरेलू प्रजातियाँ और अन्य विशिष्ट प्रजाति युक्त जैव विविधता स्थलों को जैव विविधता विरासत स्थल के रूप में अधिसूचित कर सकती हैं। 
  • इसके संरक्षण के लिए केंद्र सरकार जैव विविधता की विभिन्न श्रेणिओं के लिए कोष निर्मित करेगी।

स्रोत

https://indianexpress.com/article/cities/chennai/arittapatti-village-madurai-first-biodiversity-heritage-site-tamil-nadu-8283625/

https://hindi.indiawaterportal.org/content/saanadaara-vanayajaiva-bhaarataiya-paaingaolaina-vailaupata-haonae-kae-kagaara-para-sanrakasana/content-type-page/1319333670

Yojna IAS  Daily current affairs Hindi med 23rd November

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