अल नीनो

अल नीनो

अल नीनो

संदर्भ- ग्रीष्म ऋतु अपने साथ नई फसल व फसलों को नष्ट करने वाली सूखे की परिस्थितिय़ाँ भी साथ लेकर आती है। ऐसे में 2023 में अल नीनो होने के कयास लगाए जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो के अनुमान के अनुसार, 50% तक अल नीनो 2023 में विकसित हो सकता है।

अल नीनो –

  • अल नीनो एक ऐसी घटना होती है जिसके कारण प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र के तापमान में अचानक वृद्धि होती है, यह वृद्धि 4- 5 डिग्री सेल्सियस तक हो सकती है। इसके साथ वायुमण्डल में परिवर्तन होने लगते हैं। 
  • अल नीनो अधिकतर दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर इक्वाडोर, चिली व पेरु देशों के तटों पर उत्पन्न होते हैं। यह घटनाक्रम 5-7 वर्ष के अंतराल में हो सकता है। भारत में 2015-16 के बाद से अल नीनो की प्रवृत्ति मध्यम रही है। अर्थात अधिक बारिश हुई है अतः वर्ष 2023 में इसकी तीव्रता अधिक होने की संभावना है। 

ला नीना- ला नीना, अल नीनो से सर्वथा भिन्न है, यह महासागरीय तापमान में कमी के कारण उत्पन्न होता है। जिसके कारण महासागर के वायुमण्डल का दाब बढ़ जाता है और वायुमण्डल में उपस्थित हवाओँ का वेग तीव्र हो जाता है। यह अल नीनो के विपरीत आर्द्र मौसम को जन्म देती है। यह दुनियाभर में भारी बारीश के साथ बाढ़ का खतरा बन जाती है। 

अल नीनो का प्रभाव

मानसून पर प्रभाव- अल नीनो की घटना मध्य व पूर्व प्रशांत महासागर के ऊपरी जल के गर्म होने से प्रारंभ होती है। यदि इसके कारण वायुमण्डल के तापमान में 0.5- 2.5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होती है जिसके कारण समुद्र के ऊपर वायुमण्डलीय दाब कम हो जाता है। दाब कम होने से भूमध्यीय क्षेत्र की हवाओं की गति में कमी आती है। ये हवाएं भारत में वर्षा की कारक मानसूनी हवाएं कहा जाता है। अल नीनो के कारण भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा प्रभावित होती है। 

जलीय जीवों पर प्रभाव- समुद्र के अंदर कई जीव व प्रजातियों के जीवन के लिए ठण्डा जल अनुकूल होता है, जिसकी सतह के समीप कई पोषक तत्व उत्पन्न होते हैं किंतु अल नीनो के प्रभाव से समुद्र के सतही जल का तापमान बढ़ जाता है जिससे कई पोषक तत्व समुद्र के गर्त में चले जाते हैं औरपोषक तत्वों के अभाव में मछलियों के साथ कई जलीय जीव समाप्त हो जाते हैं।

भारत में अल नीनो का प्रभाव

अल नीनो के कारण हवाएं पछुआ हवाओं के कारण पश्चिमी लैटिन अमेरिका, कैरेबियन और यूएस गल्फ कोस्ट के साथ बढ़ी हुई वर्षा पैदा करती है, जबकि दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और भारत को संवहन धाराओं से वंचित करती है। अर्थात भारत में कम वर्षा का कारक बनता है। 

  • सूखे की स्थिति- वर्षा कम होने से भारत के कृषि उत्पादक क्षेत्रों में सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। इसके साथ जल स्रोतों सूख जाते हैं, ये परिस्थितियाँ अकाल को जन्म देता है।
  • खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट- वर्षा कम होने से खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट आती है। अर्थात अल नीनो का खाद्यान्न पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। जैसे- राष्ट्रीय खातों के आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 से 2022-23 के दौरान कृषि क्षेत्र में प्रति वर्ष औसतन 4.3% की वृद्धि हुई है, जबकि 2014-15 से 2018-19 के दौरान यह 3.2% थी। 
  • सूखे व खाद्यान्न उत्पादन में कमी के काऱण देश में भूखमरी, कुपोषण जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। 

अल नीनो से निपटने के लिए चुनौतियाँ

  • अल नीनो एक अचानक होने वाली घटना है जिसका सटीक पूर्वानुमान अब तक संभव नहीं हो पाया है। जो पूर्व में की गई तैयारियों को विफल कर सकती है।
  • सूखे से निपटने के लिए जल प्रबंधन की अपर्याप्त व्यवस्था।
  • भारत की लगभग आधी कृषि, जून- सितंबर माह की वर्षा पर निर्भर करती है। अल नीनो का कृषि पर प्रभाव एक अन्य आर्थिक चुनौती है।

अल नीनो या सूखे से निपटने के उपाय

  • नदियों के अपवाह तंत्र में छोटे बांधों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे जल व्यर्थ न हो।
  • सूखा प्रभावित क्षेत्रों में वनों की कटाई को रोककर वृक्षारोपण किया जा सकता है। अल नीनो या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा से बचा जा सके।
  • वर्षा के जल का संग्रहण भी सूखे के प्रभाव को कम कर सकता है।
  • जल का सर्वाधिक प्रयोग सिंचाई में होता है, जिससे भूमिगत जल भी गर्त में जा सकता है अतः सिंचाई हेतु प्रयोग जल के लिए ऊपरी जल प्रवाह से संग्रहित जल का प्रयोग किया जा सकता है। और भूमिगत जल को मापकर प्रयोग किया जा सकता है।
  • सूखा प्रभावित क्षेत्र समेत, समस्त देश के लिए अमृत सरोवर योजना का शुभारम्भ किया गया है जिसके तहत प्रत्येक जिले में 75 सरोवरों का निर्माण होना था। यह योजना 24 अप्रैल 2022 को प्रारंभ की गई थी।

स्रोत

Indian Express

http://www.bom.gov.au/climate/enso/index.shtml

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