अष्टाध्यायी

अष्टाध्यायी

अष्टाध्यायी

संदर्भ- हाल ही में एक अनुसंधान कर्ता ऋषि राजपोपत ने पाणिनि के अष्टाध्यायी में प्राप्त व्याकरण संबंधी समस्या को हल कर दिया है इससे पाणिनि के व्याकरण को कम्प्यूटर र पढ़ाने की अनुमति मिल सकती है।

पाणिनि-

  • पाणिनि को संस्कृत भाषा के सबसे बड़े ज्ञाता के रूप में जाना जाता है।
  • पाणिनि को चौथी से छठी सदी के मध्य का माना जाता है, जिसकी पुष्टि नहीं की जा सकी है। 
  • पाणिनि का जन्म गांधार(वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। सम्भवतः इनकी शिक्षा तत्कालीन सबसे विख्यात विश्वविद्यालय तक्षशिला से हुई थी।
  • निरुक्त व संस्कृत व्याकरण के तत्व जो पहले से मौजूद थे उनका अध्ययन किया।
  • पाणिनि के अष्टाध्यायी की रचना तक संस्कृत अपने शास्त्रीय रूप में पहुँच चुकी थी।

अष्टध्यायी

  • अष्टाध्यायी में 4000 से अधिक व्याकरण के नियम सुझाए गए हैं।
  • पहले से उपस्थित 2000 मोनोसैलिक जड़ों को संग्रहित किया गया है।
  • इसमें निर्धारित किया गया है कि भाषा को कैसे बोला जाना चाहिए,कैसे लिखा जाना चाहिए।
  • यह भाषा के ध्वन्यात्मकता, वाक्य विन्यास और व्याकरण की गहरी जड़ों तक जाता है।
  • इस भाषा के किसी शब्द में उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर वाक्य का सटीक अर्थ प्राप्त कर सकते हैं।
  • बाशम के अनुसार य़ह नियम व्यक्तियों, मनोदशा,काल के अनुसार एकल अक्षर व शब्दांश को नियोजित करते हैं। जिसमें भाषाई घटनाएं नियोजित की जाती हैं।
  •  बाद के व्याकरणाचार्यों ने पाणिनि की अष्टाध्यायी पर कई टीकाएं लिखी, जैसे पतंजलि की महाभाष्य, जयादित्य की कासिकावृत्ति आदि। वामन भी एक व्याकरणाचार्य थे।

अष्टाध्यायी की समस्या

4000 नियमों के सेट वाले व्याकरण में दो या दो सेअधिक नियम एक ही साथ प्रयोग हो सकते हैं। और जिससे भ्रम पैदा हो सकता है इस भ्रम को दूर करने के लिए पाणिनि ने एक मेटा रुल दिया था। जिसकी ऐतिहासिक रूप से व्याख्या की गई थी।

‘समान शक्ति के दो नियमों के बीच विरोध की स्थिति में, ‘अष्टाध्यायी’ के क्रम में बाद में आने वाले नियम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।’

 किंतु फिर भी यह कई स्थानों मे अपवाद की स्थिति उत्पन्न होती है। और यही अपवाद ऋषि राजपोपत की थीसिस ‘इन पाणिनि वी ट्रस्ट’ की समस्या थी।

शोध समस्या का समाधान

ऋषि राजपोपत के अनुसार-

पूरे इतिहास में मेटा-नियम की गलत व्याख्या की गई है; वास्तव में पाणिनि का मतलब यह था कि किसी शब्द के बाएँ और दाएँ पक्षों पर लागू होने वाले नियमों के लिए, पाठकों को दाएँ हाथ के नियम का उपयोग करना चाहिए।

शोध के लाभ- 

  •  शोधकर्ता के अनुसार अष्टाध्यायी की भाषा एक ‘मशीनी भाषा’ बन सकती है, जो लगभग हर बार व्याकरणिक रूप से हर बार ध्वनि शब्दों व वाक्यों का निर्माण कर सकती है। मशीनी भाषा आने वाली त्रुटियों को संस्कृत भाषा के द्वारा कम किया जा सकता है। 
  •  पाणिनि के व्याकरण के नियम सटीक व सूत्रबद्ध थे अतः वे संस्कृत भाषा के एल्गोरिद्म के रूप में कार्य कर सकते हैं, जो कम्प्यूटर को सिखाए जा सकते हैं।

मशीनी भाषा

  • यह कम्प्यूटर की आधारभूत भाषा होती है। इसे निम्न स्तर की भाषा भी कहा जा सकता है। 
  • मशीनी भाषा में बाइनरी, हेक्साडेसीमल, ऑक्टल आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • इसे मशीन अथवा कम्प्यूटर द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। इस भाषा को समझने के लिए मशीन को किसी अनुवादक की आवश्यकता नहीं होती।
  • प्रोग्रामर के लिए यह एक कठिन भाषा है, अतः इसका रखरखाव मुश्किल होता है और त्रुटियाँ आने की संभावना बढ़ जाती हैं। लेकिन कम्पाइलर के माध्यम से मनुष्य भी इसे समझ सकता है।
  • मशीनी भाषा की त्रुटियों को संशोधित करना आसान नही होता है।

स्रोत

https://bit.ly/3v59Fdv (इण्डियन एक्सप्रैस)

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