असम के मोयदाम

असम के मोयदाम

संदर्भ- हाल ही में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने घोषणा की कि असम के महत्वपूर्ण मोयदाम को विश्व विरासत स्थल के रूप में नामित करने के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा। यदि यह विश्व विरासत स्थल के रूप में नामित हो जाता है तो उत्तर पूर्वी भारत और 90 शाही दफन स्थल वाली पहली विरासत होगी।

मोयदाम– 

  • चराइदेव मोइदम्स एक दफन स्थल है जहाँ अहोम शाही परिवार के सदस्यों को दफनाया गया है।
  • यहाँ चराइदेव तीन ताई अहोम शब्दों से लिया गया है- चे का अर्थ है शहर या कस्बा, राय का अर्थ है चमकना और दोाई का अर्थ है पहाड़ी। अतः चराईदोई का अर्थ है पहाड़ी की चोटी पर एक चमकता हुआ शहर।
  • चराइदेव को पहली बार 1253 ई. में राजधानी के रूप में राजा सुकफा द्वारा स्थापित किया गया था।
  • दफन स्थल के ऊपर एक पिरामिड आकृति होती है इसलिए इसे असम के पिरामिड भी कहते हैं।
  • 1828 ई. से 1826 ई. तक के यहाँ कुल 386 मोयदाम में से 90 शाही सदस्य दफनाए गए हैं।
  • जोरहाट व डिब्रूगढ़ शहरों के मध्य अभिजात वर्ग के व असम के पूर्वी इलाकों में अन्य वर्ग के मोयदाम देखे जा सकते हैं।

मोयदाम की संरचना- 

  • मोयदाम चैंबर में धनुषाकार प्रवेश द्वार से प्रवेश किया जाता है।
  • ईंट और मिट्टी से गोलार्द्धीय टीले की परतें बिछाई जाती हैं, जहाँ टीले के आधार में बहुभुज दीवार (अधिकतर अष्टभुज) और पश्चिम में एक धनुषाकार प्रवेश द्वार द्वारा प्रबलित होता है।
  • टीले की ऊपरी परत जो मिट्टी की बनी होती है को वनस्पति से ढक दिया जाता है।
  • टीले के ऊपर एक मण्डप बनाया जाता है, जिसे चौ आली के नाम से जाना जाता है।
  • प्रत्येक कक्ष या चैंबर में एक उठा हुआ मंच होता है जहाँ मृतक शरीर रखा होता है।
  • मृतक के साथ उसके द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं जैसे शाही प्रतीक चिन्ह, लकड़ी या हाथी दांत या लोहे से बनी वस्तुएँ, सोने के पेंडेंट, चीनी मिट्टी के बर्तन, हथियार को भी उसके साथ दफनाया जाता था।

मोयदाम के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री- 

  • सामग्री में विविधता- 13वी से 17वी सदी तक प्रयोग किए जाने वाली प्राथमिक सामग्री के रूप में लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। जबकि 18 वी सदी के मोयदाम में पत्थर, पकी ईंटों का प्रयोग किया गया है। 
  • चांगरुंग फुकन में उल्लेखित सामग्री- चांगरुंक फुकन अहोमों का एक लिखित पाठ है जिसमें यह काली दाल, गुड़, बत्तख के अंडे, बराली मछली, चूने (चूना पत्थर और घोंघे के खोल से) के मिश्रण से पुख्ता ईंटों और पत्थरों का उपयोग का उल्लेख है।
  • अधिरचना के लिए विभिन्न आकारों के बोल्डर, टूटी हुई ईंट का प्रयोग और उप आधार के लिए बड़े पत्थरों के स्लैब का प्रयोग किया जाता था।

अहोम

  • अहोम, भारत के दीर्घ शासन करने वाले राजवंशों में अग्रणी हैं।
  • भारत में अहोम साम्राज्य के संस्थापक चाओलुंग सुकफा थे जिन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में चराइदेव में अपनी छोटी सी रियासत की स्थापना की।
  • उनके राज्य का विस्तार आधुनिक बांग्लादेश से बर्मा तक था।
  • अहोमों ने ही पुरानी राजनीतिक व्यवस्था भुइयाँ (जमींदारी ) को समाप्त किया।
  • अहोम एकता पर विश्वास करते थे, जिसका परिचय उन्होंने मुगलों के साथ हुए युद्ध में दिया था। अहोमों का नेतृत्व लाचित बोरफुकन ने किया था।
  • अहोम मूल रूप से अपने धार्मिक व सांस्कृतिक स्थिति में भिन्न थे किंतु उन्होंने अपनी संस्कृति के साथ हिंदू धर्म व भाषा के लिए स्थानीय भाषा असमिया को स्वीकार किया जिसकी झलक उनके अंत्येष्टि संस्कारों में दिखती है।

अंन्त्येष्टि संस्कार

अहोम प्रारंभ में मोयदाम कक्ष में मृतक के शरीर को दफनाते थे जो हिंदू धर्म के जलाने की पद्धति से बिल्कुल अलग प्रतीत होता है किंतु खुदायी में मृतक के साथ प्राप्त वस्तुएं उनके हिंदू धर्म के प्रभाव को दर्शाती हैं। 18वी सदी के बाद, हिंदू पद्धति से अंत्येष्टि के बाद बची राख को मोयदाम में दफनाया जाता है। जो एक विशिष्ट संस्कृति को दर्शाती है।

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

https://whc.unesco.org/en/tentativelists/5915/

द हिंदू

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