असोला भाटी अभ्यारण्य

असोला भाटी अभ्यारण्य

असोला भाटी अभ्यारण्य

संदर्भ- हाल ही में असोला भाटी अभ्यारण्य में पौंधों की एक बीज बैंक का निर्माण किया जा रहा है। वन विभाग और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) द्वारा संयुक्त रूप से बीज परियोजना कार्यान्वित की जा रही है, जिसका उद्देश्य शहर में अनुप्लब्ध प्रजातियों को वापस लाना है, जैसे – कीकर।

बीज बैंक – 

भारत में छोटे व सीमान्त किसानों के लिए सीमांत बीज बैंक, टिकाउ खेती के कई उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। ये बीज बैंक, किसान समुदाय की सहायता से खेतों पर स्थानीय व आनुवांशिक विविधता को बनाए रखने में मुख्य केंद्र के तौर पर कार्य करते हैं। ये सामुदायिक बीज बैंक प्राचीन काल से ही बिना लागत के या बहुत कम लागत में गांवों में प्रचलित एक अनौपचारिक बीज वितरण प्रणाली के गठन द्वारा एक स्थानीय किसानों की सेवा करते रहै हैं। यह परियोजना, वन विभाग और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) द्वारा स्थानीय प्रजातियों के बीजों के संरक्षण के लिए एक प्रयास है। बीज और पौधे दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों से लिए गए हैं। 

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस)

  • बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस), एक अखिल भारतीय वन्यजीव अनुसंधान संगठन है।
  • इसका गठन 8 प्रकृति प्रेमियों के द्वारा किया गया। इसके गठनकर्ताओं में दो भारतीय भी शामिल थे। जो हैं-  डॉ. डी. मैकडोनल्ड, ई. एच. एटकेन, कर्नल सी स्विन्हो, जे. सी. एण्डरसन, जे. जॉनसन, आत्माराम पाण्डुरंग, जी. ए. मैकोनोची और सखाराम अर्जुन
  • यह संगठन 1883 से प्रकृति संरक्षण के कारण को बढ़ावा दे रहा है।
  • बीएनएचएस मिशन: अनुसंधान, शिक्षा और जन जागरूकता के आधार पर कार्रवाई के माध्यम से प्रकृति का संरक्षण करना।
  • मुख्य रूप से जैविक विविधता बीएनएचएस विजन: एक व्यापक आधार वाले निर्वाचन क्षेत्र के साथ प्रमुख स्वतंत्र वैज्ञानिक संगठन बनाना और संकटग्रस्त प्रजातियों और आवासों के संरक्षण हेतु प्रयास करना। 
  • जैव विविधता के संरक्षण हेतु कुडनकुलम के विशेष समुद्र तटों पर मैंग्रोव वनों की स्थापना हेतु बीएनएचएस ने 2017-18 में एक परियोजना की शुरुआत की थी। 

असोला भाटी अभ्यारण्य- 

  • असोला भाटी अभ्यारण्य अरावली की पहाड़ियों में स्थित है, जो क्वार्टजाइट और रेत से बनी है। 
  •  क्वार्टजाइट और रेत के खनन ने इस क्षेत्र को खराब स्थिति में छोड़ दिया है। 1991 में इस क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • 1989 और 1991 में सहरपुर गाँव, मैदानगढ़ी, असोला और भट्टी गाँव की ग्राम सभा भूमि को असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था।
  • असोला भाटी वन्य जीव अभ्यारण्य दिल्ली हरियाणा सीमा पर अरावली पहाड़ी श्रृंखला को कवर करता है। अरावली पहाड़ी श्रृंखला, वर्षों से दुनियां के सबसे विशिष्ट प्रजातियों की शऱणस्थली बना हुआ है। 
  • इस अभ्यारण्य में वन्य व जीव दोनों प्रकार की प्रजातियों की विविधता पाई जाती है।
  • यहां पक्षियों की लगभग 250 प्रजातियाँ व 2 उपप्रजातियां पाई गई हैं। और पौंधों की लगभग 100 प्रजातियां उपलब्ध हैं। 
  • यह अभ्यारण्य दिल्ली, फरीदाबाद व गुरुग्राम के लिए जल पुनर्भरण क्षेत्र की तरह कार्य करता है।
  • अभ्यारण्य में अग्रणी व आक्रामक दोनों प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। 

आक्रामक प्रजातियाँ- आक्रामक प्रजातियाँ, अन्य प्रजातियों पर आक्रमण कर उनके आवास को हानि पहुँचा सकती है। यह स्थानीय प्रजातियों को कम करने तथा पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन करने में सक्षम होती हैं।जैसे- सलाई(बोसवेलिया सराटा) और फालसा(ग्रेविया एशियाटिक)। ब्रिटिश काल में दिल्ली की बंजर भूमि को आबाद करने के लिए कीकर जैसी आक्रामक प्रजातियों को स्थापित किया गया था। आक्रामक प्रजातियों के कारण स्थानीय प्रजातियों से संबंधित उद्योग नष्ट हो सकते हैं। आक्रामक प्रजातियों का प्रबंधन निम्न प्रकार किया जा सकता है-

  • रोकथाम – आक्रामक प्रजातियों के प्रवेश की प्रक्रिया को समझना। और उसकी रोकथाम करना।
  • निगरानी – प्रजातियों की आक्रमण प्रक्रिया का पता लगाकर आक्रमण होने से पूर्व आक्रमण प्रक्रिया में तेजी से कार्य किया जाए। इस प्रक्रिया के लिए संसाधन, योजना व समन्वय की आवश्यकता होती है। 
  • नियंत्रण – रोकथाम व निगरानी करने के बाद आक्रामक प्रजातियों पर नियंत्रण पाना आसान हो जाता है। इससे स्थानीय प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति आसान हो जाती है।
  • बहाली – यदि किसी आक्रामक प्रजाति द्वारा आक्रामक स्थितियों को रोकना संभव नहीं है तो उसके लिए पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना आवश्यक हो जाता है।  

अरावली पर्वतमाला- असोला भाटी परियोजना, अरावली की पहाड़ियों के लिए प्रारंभ की गई है। 

  • अरावली पर्वतमाला, विश्व की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है। इसकी आयु 570 मिलियन वर्ष मानी जाती है।
  • राजस्थान के पूर्वोत्तर से प्रारंभ होकर दिल्ली के दक्षिणी हिस्से तक 560 किमी की पर्वतमाला बनाती है। 
  • अरावली का सर्वोच्च पर्वत शिखर, गुरुशिखर(1722 मीटर) राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है। 
  • यह पर्वत श्रेणी क्वार्ट्ज चट्टानों से निर्मित है। दक्षिणी क्षेत्रों में यह सघन वनों से मिलकर बना है। 
  • इनमें तांबा, सीसा व जस्ता आदि खनिज पाए जाते हैं। 
  • इन पहाड़ियों पर 186 से अधिक वृक्षों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इन वृक्षों के कारण अरावली पर्वतमाला सुरक्षित है। 

बीज बैंक के लाभ-

  • अरावली पर्वतमाला विभिन्न प्रकार की पेड़, पौंधों व झाड़ियों की प्रजाति के लिए प्रसिद्ध है इसलिए इन प्रजातियों को बचाने के लिए इन बीजों को एकत्रित किया जा रहा है। 
  • बीजों बैंक की स्थापना से प्रजातियों का संरक्षण व संवर्धन किया जा सकता है। तथा इनसे जुड़ी पारिस्थितिकी को बचाया जा सकता है।
  • वृक्षारोपण के माध्यम से पर्यावरण में भागीदारी के लिए नर्सरी तैयार की जाएगी। जिससे विभिन्न प्रकार के पौंधों की प्रजातियों का अन्य स्थानों पर प्रसार संभव हो सकेगा। 

स्रोत

Yojna IAS daily current affairs hindi med 4th April 2023

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