31 Jan आंतरिक महिला प्रवासन की धुंधली तस्वीर और प्रवासी महिला कामगारों की समस्याएं
स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।
सामान्य अध्ययन – सामाजिक न्याय, महिला प्रवासन , लैंगिक – विमर्श, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, महिला श्रम बल भागीदारी दर।
ख़बरों में क्यों ?
- संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत एक प्रकार की नगरीय क्रांति के दौर से गुजर रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2031 तक भारत की शहरी जनसंख्या लगभग 60 करोड़ हो जाएगी। विस्थापन के कारण भारत के तीन बड़े शहर; दिल्ली, कोलकाता और मुंबई, विश्व के सर्वाधिक घनत्व वाले शहरों में गिने जाने लगेंगे। 2011 की जनगणना से यह तथ्य ऊजागर होता है कि 80 प्रतिशत विस्थापन महिलाओं द्वारा या महिलाओं के कारण होता है। इसके दो कारण हैं –
(1) विवाह के बाद महिलाओं का प्रवास
(2) उदारवादी दौर में निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था में महिला श्रमिकों की मांग का बढ़ना।
- हाल के आंकड़ों बताते हैं कि पुरुषों के 48.7 प्रतिशत विस्थापन की तुलना में 101 प्रतिशत महिला कामगारों ने विस्थापन किया है ।
- जनगणना एवं राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय दोनों ही महिलाओं के विस्थापन में काम को कारण के रूप में प्रमुखता न देकर केवल विवाह को ही इसका प्रधान कारण मानते हैं। ऐसी सर्वेक्षण संस्थाएं महिलाओं की आर्थिक भागदारी को गौण समझती रहती हैं।
- जहाँ निर्धन प्रवासियों को पहचान पत्र, आवास एवं अन्य आर्थिक सेवाओं से वंचित होना पड़ता है, वहीं महिला प्रवासियों के साथ तो अनेक तरह का भेदभाव किया जाता है। काम के क्षेत्र में इन्हें मूलभूत सुविधाओं के अलावा मातृत्व – लाभ एवं देखभाल से वंचित होना पड़ता है।
- अधिकतर प्रवासी महिलाएं यौन शोषण का शिकार होती रहती हैं। इन्हें पुरुष एवं स्थानीय महिला कामगारों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है। अपेक्षाकृत कम कौशल वाली महिला प्रवासियों को तो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक कामों में लगा दिया जाता है।
- सिवीडेप के अध्ययन के अनुसार बेंगलुरू के कपड़ा उद्योगों में काम करने वाली 90 प्रतिशत महिलाएं श्वास समस्याओं, तपेदिक, अवसाद तथा कमर दर्द जैसी शारीरिक और मानसिक समस्याओं से जूझती रहती हैं।
- चीन के हुकोऊ तंत्र की तरह भारत के पास प्रवासियों के अलग-अलग वर्ग में पंजीकरण कराने के लिए कोई प्रणाली नहीं है, जिससे वह आसानी से उनका राजनीतिक, प्रशासनिक, श्रम एवं आर्थिक-सामाजिक वर्गों में विभाजन कर सके।
- पीएलएफएस डेटा से पता चलता है कि महिलाओं के बीच प्रवासन का प्रमुख कारण विवाह (81%) है, इसके बाद परिवार के सदस्यों का प्रवासन (10%), रोजगार (2.42%), और शिक्षा के अवसरों के लिए प्रवासन (0.48%) है। जलवायु झटके और खाद्य असुरक्षा जैसे द्वितीयक कारणों/प्रेरणाओं को जानने का कोई प्रावधान नहीं है, जो महिलाओं के लिए प्रवासन का एक महत्वपूर्ण चालक/ वाहक हो सकता है।
भारत प्रवास रिपोर्ट 2020 – 21 :
- जून 2022 में जारी एक अध्ययन में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने प्रवासियों एवं अल्पकालिक पर्यटकों पर डेटा संकलित किया। जुलाई 2020-जून 2021 की अवधि के दौरान देश की 0.7% आबादी को ‘अस्थायी अप्रवासियों के रूप में दर्ज किया गया था। अस्थायी अप्रवासियों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया गया था जो मार्च 2020 के बाद अपने घरों में आए और कम-से-कम लगातार 15 दिनों से अधिक लेकिन छह महीने से कम समय तक वहाँ रहे। महामारी के कारण इन 0.7% अस्थायी अप्रवासियों में से 84% से अधिक पुनः घर चले गए। भारत में केवल 86.8% महिलाएँ शादी के उपरांत पलायन करती हैं, जबकि 49.6% पुरुष रोज़गार की तलाश में पलायन करते हैं। जुलाई 2020 – जून 2021 में अखिल भारतीय स्तर पर पलायन दर 28.9% थी, ग्रामीण क्षेत्रों में 26.5% प्रवासन दर और शहरी क्षेत्रों में 34.9% थी।
महिलाओं ने 47.9%की प्रवासन दर का एक उच्च हिस्सा दर्ज किया, जो ग्रामीण में 48% और शहरी क्षेत्रों में 47.8% है। - पुरुषों की प्रवासन दर 10.7% थी, जो ग्रामीण में 5.9% और शहरी क्षेत्रों में 22.5% है
- पीएलएफएस जैसे राष्ट्रीय सर्वेक्षण महिला प्रवासियों के बारे में जानकारी एकत्र करते हैं लेकिन अक्सर गलत तस्वीर पेश करते हैं। उदाहरण के लिए – सर्वेक्षण उत्तरदाताओं से केवल उनके प्रवासन के प्राथमिक कारण के बारे में पूछते हैं। क्या महिलाएं स्वतंत्र रूप से भी पलायन करती हैं ? क्या प्रवासी महिलाओं के परिवार में उनकी हैसियत में कोई बदलाव आता है? क्या पलायन महिलाओं को एक जगह की पितृसत्ता से निकाल कर दूसरी जगह की पितृसत्ता में धकेल देता है? इन सब सवालों के जवाब पाने के लिए पहले हमें पलायन को लैंगिक दृष्टिकोण से समझना ज़रूरी है।
- दुनियाभर में, पहले से कहीं अधिक लोग पलायन कर रहे हैं। उनमें से कई अपने और अपने परिवार के लिए नए अवसरों और बेहतर जीवन की तलाश में पलायन करते हैं। कई लोगों को आपदा या संघर्ष के कारण विस्थापन होने के लिए मजबूर होना पड़ता है। परंपरागत रूप से, बेहतर जीवन की संभावनाओं की तलाश में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाना एक पुरुषों का काम माना जाता रहा है। हालांकि पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी बड़ी संख्या में पलायन कर रही होती हैं।
माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टिट्यूट के अध्ययन के अनुसार –
- विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, कुल प्रवासी कामगारों की संख्या 164 मिलियन होने का अनुमान है, जो साल 2017 में दुनिया के प्रवासियों का लगभग आधा हिस्सा है। लेकिन फिर भी अंतरराष्ट्रीय प्रवासन के सिद्धांतों में जेंडर को शामिल करने के लिए बहुत कम ठोस प्रयास किए गए हैं। माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टिट्यूट के अध्ययन के अनुसार 1960 और 1970 के दशक की शुरुआत में पलायन को समझने के लिए ‘प्रवासी और उनके परिवार’ जैसे वाक्यांश का प्रयोग होता था जिसका निहित अर्थ है, ‘पुरुष प्रवासियों और उनकी पत्नियां और बच्चे।’
विस्थापन में जेंडर की भूमिका :
- महिला आंदोलनों के जरिए प्रवासियों के रूप में महिलाओं की अदृश्यता, प्रवासन प्रक्रिया में उनकी अनुमानित निष्क्रियता और घर में उनकी जगह पर सवाल उठाया गया । 1970 और 1980 के दशक में हुए शोध में महिलाओं को शामिल करना शुरू किया गया। लेकिन इससे पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था के कारण पितृसत्तात्मक सोच में महिलाओं के प्रति कोई ख़ास बदलाव नहीं आया। यही सवाल अहम था कि क्या प्रवास की वजह से महिलाओं का आधुनिकीकरण होता है? फिर पुश-पुल जनसांख्यिकीय मॉडल में विस्थापन को व्यक्तिगत फैसलों के परिणाम के रूप में देखा गया। यह समझा गया कि पत्नी और माँ के रूप में महिलाओं की ज़िम्मेदारियां और कमानेवाले के रूप में पुरुषों की भूमिका, महिलाओं के फैसलों को प्रभावित करती हैं। इसीलिए प्रवास के फैसलों में और मेजबान देश की श्रम शक्ति में भाग लेने में महिलाओं की संभावना कम होती है।
महिलाओं के प्रवासन में शादी की एक महत्वपूर्ण भूमिका :
- महिलाओं के प्रवासन में शादी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। लेकिन समय के साथ रोज़गार, व्यवसाय और शिक्षा जैसे आर्थिक कारकों को महत्व मिला है। यह महिलाओं के प्रवासन के पीछे एकल कारक के रूप में विवाह पर कम निर्भरता दर्शाता है। 2001 और 2011 के बीच, काम के लिए पलायन करने वाली महिलाओं की संख्या में 101% की वृद्धि हुई है। यह पुरुषों के लिए विकास दर (48.7%) से दोगुनी है। साथ ही, व्यवसाय को प्रवास का कारण बताने वाली महिलाओं की संख्या में 153% की वृद्धि हुई, जो पुरुषों (35%) की दर से चार गुना अधिक है। शिक्षा के लिए भी अधिक महिलाओं ने प्रवास किया है।
महिलाओं के पलायन का पैटर्न :
- साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 31.4 करोड़ आंतरिक प्रवासी हैं जिनमें से 30.96 करोड़ महिलाएं हैं अर्थात करीब 68 प्रतिशत। माइग्रेशन इन इंडिया 2020-21 रिपोर्ट के मुताबिक 71% से अधिक प्रवासियों के प्रवास के पीछे शादी एक बड़ी वजह थी। 86.8% महिलाएं और केवल 6.2% पुरुष शादी के लिए पलायन करते हैं। 9.2% प्रवासियों ने परिवार के कमाने वाले सदस्य के साथ जाने या माता-पिता के प्रवास को कारण बताया जिसमें 17.5% पुरुष और 7.3% महिलाएं थीं।
- कुछ महिलाओं के लिए प्रवासन का मतलब सामाजिक गतिशीलता, आर्थिक स्वतंत्रता और सापेक्ष स्वायत्तता में वृद्धि हो सकता है। कुछ के लिए, श्रमबल की भागीदारी बोझ को बढ़ा सकती है क्योंकि उन्हें तब भी घर के काम और बच्चों की देखभाल करनी होती है।
- अधिकतर लोग अपने राज्य के अंदर ही पलायन करते हैं जिनमें से 92.6% महिलाएं हैं और 65.6% पुरुष। 7.2% महिलाओं और 31.4% पुरुषों ने दूसरे राज्य में पलायन किया। 2.9% पुरुष और 0.2% महिलाएं दूसरे देश में चले गए। 63% से अधिक महिला आंतरिक प्रवासी ग्रामीण इलाकों से दूसरे ग्रामीण इलाकों में गई, और पुरुष केवल 18%। दूसरी ओर, 33.5% पुरुषों और 15.6% महिलाओं ने ग्रामीण से शहरी इलाकों की ओर पलायन किया। यह दिखाता है कि अधिकतर महिलाएं अपने मूल निवास के आस पास ही प्रवास करती हैं और पुरुषों का बहुतायत में ग्रामीण इलाकों से शहरी क्षेत्रों में जाना गाँव-शहर के बीच की आर्थिक असमानता की ओर इशारा करता है।
देश की लगभग 50 फीसदी युवा महिलाएं शिक्षा और रोज़गार से दूर : रिपोर्ट
काम या रोज़गार के लिए पलायन करती महिलाएं :
- एक व्यक्ति की लैंगिक पहचान प्रवास के अनुभव के हर चरण को आकार देती है। कौन प्रवास करता है और कहां जाता है, लोग कैसे प्रवास करते हैं, इससे जुड़े जोख़िम, प्रवासी द्वारा उपयोग किए जाने वाले साधन, गंतव्यों पर उपलब्ध अवसर और संसाधन और मूल स्थान के साथ संबंध- सभी बिंदुओं पर व्यक्ति के लिंग, धर्म, जाति, वर्ग का प्रभाव होता है।
- काम के लिए प्रवास आमतौर पर गरीबी से राहत का परिणाम होता है, भले ही इसका मतलब भारत के महानगरों में एक कठिन जीवन हो। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र से एक प्रवासी, मुंबई जाने के बाद अस्थायी रूप से अपनी आय को तीन गुना कर लेती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संकट, भूमि उपयोग के बदलते पैटर्न, बढ़ते मशीनीकरण, और बदतर होते पर्यावरण जैसे कारकों ने महिलाओं के लिए गरीबी और बेरोजगारी के स्तर में वृद्धि की है, जिससे उन्हें काम के लिए शहरी क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- शहरी क्षेत्रों में, उदारीकरण के बाद जेंडर-पृथक श्रम बाज़ारों के उद्भव की वजह से कई कम कुशल, अशिक्षित महिलाएं अनौपचारिक क्षेत्र में अवसर पा रही हैं। उच्च महिला साक्षरता के साथ-साथ शिक्षा की प्राप्ति भी कई महिलाओं को पलायन के लिए प्रेरित कर रही है। हालाँकि मोटे तौर पर देश की 80% प्रवासी महिलाएं अनौपचारिक क्षेत्र में – कृषि, निर्माण, परिवहन, घरेलू कार्य और खनन जैसी गतिविधियों में अनुबंध के आधार पर काम करती हैं। शहरी क्षेत्रों में महिला कार्यबल के लिए विनिर्माण श्रमिक सबसे बड़ा व्यवसाय है (इस क्षेत्र में 45 लाख महिलाएं हैं), इसके बाद शिक्षण (27.5 लाख) और घरेलू कार्य (20 लाख) हैं।
प्रवासी महिलाओं की समस्याएं :
- प्रवासी महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या है – उनकी अदृश्यता। हम जब ‘प्रवासी’ कहते हैं, हमारे दिमाग में केवल पुरुषों की छवि आती है और आज भी 1950 की तरह हम महिलाओं और बच्चों को पुरुष पर निर्भर होने से आगे नहीं देख पाते। इसके अलावा, प्रवास के बाद उपलब्ध योजनाओं के बारे में जागरूकता की भी भारी कमी है। इस वजह से महिलाएं आंगनवाड़ी सेवाओं और पीडीएस का लाभ नहीं उठा पाती। इसके साथ ही, महिलाएं वित्तीय साक्षरता, फ़ोन व टेक्नोलॉजी के उपयोग से भी बहुत दूर होती हैं। शहरों में उन्हें लगभग काम की जगह अस्थायी आश्रयघरों में बेहद बीमार परिस्थितियों में रहना पड़ता है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट, 2020 – 2021 के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार महिलाएं गैर कृषि अनौपचारिक क्षेत्र के आधे से अधिक (56.7%) का गठन करती हैं। उनमें से ज्यादातर हाशिए पर रहने वाले समुदायों, अत्यंत संसाधन-गरीब पृष्ठभूमि से आती हैं और अपने परिवारों के लिए एकमात्र आय का स्रोत हैं। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम में अनौपचारिक कार्यकर्ता शामिल हैं परन्तु वे अकसर कानून से अनभिज्ञ होती हैं, जिससे उनके लिए उत्पीड़न के खिलाफ बोलना बेहद मुश्किल हो जाता है। उन्हें आजीविका के नुकसान और इस मुद्दे से जुड़े कलंक का भी डर रहता है, जो उन्हें इस तरह की हिंसा की रिपोर्ट करने से रोकता है।
प्रवासन संबंधी चुनौतियाँ :
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू :
- प्रवासियों को प्रवासन किए गए नए क्षेत्र में आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता है और उनको स्थानीय निवासी माना ही नहीं जाता है। इसलिए अक्सर उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में व्यवहार किया जाता है ।
- भाषा और सांस्कृतिक अनुकूलन के तहत किसी नए देश में प्रवास करने वाले किसी भी व्यक्ति को कई चुनौतियों जैसे सांस्कृतिक अनुकूलन और भाषा की बाधाओं से लेकर गृह वियोग और अकेलेपन तक का सामना करना पड़ता है।
वंचित समुदायों या वर्गों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दे :
- जो लोग निर्धन, गरीब या वंचित समुदाय से संबंधित हैं, उन्हें अक्सर प्रवासन किए गए नए जगह पर वहां के स्थानीय लोगों द्वारा भी और प्रवासन किए हुए समूहों द्वारा भी आपस में घुलना-मिलना आसान नहीं होता है।
सामाजिक लाभों और राजनीतिक अधिकारों से हमेशा वंचित रहने को मजबूर :
- प्रवासी श्रमिकों को मतदान के अधिकार जैसे अपने राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करने के कई अवसरों से वंचित रखा जाता है।
- इसके अतिरिक्त उन प्रवासी श्रमिकों को मतदाता पहचान – पत्र, अपने निवास के पते का प्रमाण – पात्र , और आधार कार्ड बनाने तक में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो उनके जीवन के घूमंतू प्रकृति के कारण भी और निवास के अस्थायित्त्व के कारण भी उनके लिए कठिन कार्य है तथा उन्हें कल्याणकारी योजनाओं और नीतियों तक पहुँच से वंचित रहना पड़ता है।
आय में कमी और आजीविका का नुकसान :
- कोरोना महामारी के कारण आर्थिक अनिश्चितता और रिवर्स माइग्रेशन ने उनके दुख को और बढ़ा दिया है। यूएनडीपी द्वारा 12 भारतीय राज्यों की प्रवासी महिला श्रमिकों के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि महामारी के पूर्व के स्तरों की तुलना में महामारी के दौरान उनकी आय आधे से अधिक गिर गई।
- एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि महामारी से न केवल आजीविका का नुकसान हुआ, बल्कि लॉक-डाउन के कुछ महीनों के बाद, पुरुषों की तुलना में बहुत कम महिलाएं काम कर रही थीं। इससे प्रवासी महिलाओं के पोषण और सेहत पर भी गंभीर प्रभाव पड़ा।
- रोज़गार की तलाश में जो पुरुष पलायन करते हैं और महिलाएं पीछे अकेले खेती, घर व बच्चों को संभालने का कार्य करती हैं, वह एक भिन्न समस्या है। ग्रामीण क्षेत्रों में 4.5% से अधिक और शहरी क्षेत्रों में 1.5% से अधिक महिलाओं के पति कहीं और रहते हैं।
वेतन समानता, व्यावसायिक सुरक्षा, किफायती स्वास्थ्य, विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन और सुरक्षित शहर उपलब्ध करवाना :
- सरकार को सबसे पहले सटीक डेटा एकत्र करना ज़रूरी है।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महिला श्रमिकों को गुणवत्तापूर्ण और सस्ती बाल देखभाल, वेतन समानता, व्यावसायिक सुरक्षा, किफायती स्वास्थ्य, विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन और सुरक्षित शहर उपलब्ध करवाए जा सकें।
- प्रवासी महिलाओं को तकनीकी प्रगति के कारण नौकरी के नुकसान के लिए सबसे अधिक असुरक्षित माना जाता है, इसलिए यह आवश्यक है कि उन्हें भविष्य के काम को आकार देने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को ध्यान में रखते हुए कौशल प्रशिक्षण दिया जाए।
महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए सिर्फ़ रोज़गार पर्याप्त उपाय नहीं :
- नीति आयोग द्वारा प्रवासी श्रम नीति के मसौदे में प्रवासी श्रमिकों के लिए उपयुक्त नीति बनाने के लिए प्रस्ताव है लेकिन यह काफी हद तक प्रवासी महिलाओं की विशिष्ट जरूरतों और चिंताओं की अनदेखी करता है।
- वर्तमान समय में जब महिलाओं को दशकों से पुरुषों से पिछड़ने के बाद सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ना चाहिए, ऐसा लगता है कि आगे बढ़ना ही उनके अवसरों के लिए एक बड़ी बाधा है।
- इसका एक प्रमुख कारण एक ओर जहाँ पितृसत्ता और अनदेखी हैं वहीँ दूसरी वजह एक जगह से दूसरी जगह में स्थानांतरण है।
- भारत में महिलाओं के लिए समस्त प्रणाली में सरंचनात्मक परिवर्तन की आवश्यकता है और बेहतर नीति निर्माण की अत्यंत जरूरत है , जो न केवल महिला प्रवासियों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील हो, बल्कि उनके लिए एक एकीकृत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने पर भी ध्यान दे। शायद फिर भारतीय समाज महिलाओं की गतिशीलता को नए सिरे से देख पाए।
- इसके समाधान के लिए कई कदम उठाए जाने चाहिए। राष्ट्रीय सर्वेक्षणों को प्रवास के बाद उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में अधिक जानकारी संकलित करनी चाहिए क्योंकि इसके बारे में बहुत कम जानकारी है। उदाहरण के लिए, पीएलएफएस इंगित करता है कि एक मिनट प्रतिशत (लगभग 7%) के पास सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुंच है, बाकी आबादी के लिए कोई डेटा नहीं है। प्रवासियों के लिए समय-उपयोग डेटा की भी कमी है क्योंकि भारत ने अभी तक इसे मानक नहीं बनाया है। समय-उपयोग डेटा बेरोजगार महिला प्रवासियों के संबंध में ज्ञान को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण रूप से मदद करेगा।
समाधान की राह / निष्कर्ष :
- प्रवासी महिलाओं के डाटा एकत्रण की समुचित व्यवस्था हो।
- महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और राष्ट्र में उनके योगदान को संज्ञान में लिया जाए।
- प्रवासी महिलाओं के आधार-कार्ड प्राथमिकता पर बनाए जाएं। उन्हें सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली जन-धन योजना का लाभ दिया जाए। उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन की सुविधाएं दी जाएं।
- आस्ट्रिया, बेल्जियम, नार्वे, यू.के. आदि देशों की तर्ज पर प्रवासी महिलाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था हो। सहायता सेवाओं तक उनकी पहुंच बनाई जाए।
- वियतनाम की ‘वी द वीमेन’ नामक योजना से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
- केरल राज्य लगभग 3 करोड़ महिला प्रवासी कामगारों को निशुल्क चिकित्सा सुविधाएं एवं बीमा प्रदान करता है। इसका अनुसरण किया जाना चाहिए।
- वियतनाम की ‘वी द वीमेन’ नामक योजना से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
- महिला प्रवासियों के लिए एक पृथक राष्ट्रीय नीति बनाई जा सकती है, जो विशेष तौर पर महिला प्रवासियों की मुश्किलों पर ध्यान दे, और उन्हें हर संभव सहायता पहुंचाने का प्रयास करे। प्रवासियों के राजनैतिक समावेश से नगरीय प्रशासन को अधिक प्रजातांत्रिक और लैंगिक रूप से समान बनाया जा सकेगा।
yojna daily current affairs hindi med 31st January 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1. भारत में महिलाओं के आतंरिक प्रवासन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- पुरुषों के 48.7 प्रतिशत विस्थापन की तुलना में 101 प्रतिशत महिला कामगारों ने विस्थापन किया है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं के बीच प्रवासन का प्रमुख कारण विवाह (81%) है।
- महिलाओं के लिए प्रवासन का मतलब सामाजिक गतिशीलता, आर्थिक स्वतंत्रता और सापेक्ष स्वायत्तता में वृद्धि हो सकता है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट, 2020 – 2021 के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार महिलाओं का गैर कृषि अनौपचारिक क्षेत्र के आधे से अधिक (56.7%) क्षेत्र में उनकी हिस्सेदारी हैं।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
(A). केवल 1 और 4
(B). केवल 2 और 3
(C ) इनमें से कोई नहीं ।
(D). इनमें से सभी ।
उत्तर – (D).
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में महिलाओं के आंतरिक प्रवासन के प्रमुख कारणों को रेखांकित करते हुए प्रवासी महिला कामगारों की प्रमुख समस्याओं और उनके समाधान के लिए विभिन्न सुझावों की चर्चा कीजिए ।
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
No Comments