आदित्य एल- 1 मिशन

आदित्य एल- 1 मिशन

संदर्भ- इण्डियन इंस्टिूयट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स बैंगलुरु ने गुरुवार को देश के पहले सौर मिशन के लिए भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को प्राथमिक पेलोड(VELC), अन्य पेलोड के साथ एकीकरण के लिए सौंप दिया है। पृथ्वी से 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर एक बिंदु से सूर्य का निरीक्षण करने के लिए मिशन प्रारंभ किया जाएगा।

इसरो ने सौर मिशन आदित्य एल-1 की घोषणा 2019 में की थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसके कार्य़ को आगे बढ़ा दिया गया था।  

आदित्य एल – 1 मिशन

  • आदित्य एल – 1, सूर्य आधारित एक अंतरिक्ष अनुसंधान मिशन है।
  • यह अंतरिक्ष मिशन पूर्ण रूप से भारतीय है अर्थात इसके उपकरण व घटक भारत में ही भारत के वैज्ञानिकों व भारत के इंजीनियर्स द्वारा बनाए जा रहे हैं। इसे भारत के लिए अवसरयुक्त चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
  • इस मिशन में सूर्य के आंतरिक घटकों और गतिविधियों को जानने का प्रयास किया जाएगा।
  • अंतरिक्ष यान को सूर्य पृथ्वी प्रणाली के प्रथम लंग्राजी बिंदु के चारों ओर प्रभामण्डल में स्थापित किया जाएगा।
  • एल-1 बिंदु के चारों ओर उपग्रह से बिना किसी ग्रहण के चारों ओऱ सूर्य को देखा जा सकता है। इसके द्वारा सौर गतिविधियों का बिना किसी बाधा के प्रेक्षण किया जा सकता है।

लैंग्रैजी बिंदु या एल-1 – लैग्रेंज पॉइंट्स अंतरिक्ष में ऐसी स्थितियाँ हैं जहाँ सूर्य और पृथ्वी जैसे दो पिंड प्रणाली के गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण और प्रतिकर्षण के बढ़े हुए क्षेत्र उत्पन्न करते हैं। इनका उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा पार्किंग स्पॉट के रूप में अंतरिक्ष में न्यूनतम ईंधन खपत के साथ एक निश्चित स्थिति में रहने के लिए किया जा सकता है।

गणितीय रूप में एल बिंदु मुख्यतः 5 होते हैं जिनमें L-1, L-2, L-3 दो द्रव्यमानों को स्थिर करते हुए एक सीधी रेखा बनाते हैं, L-4 व L-5 दो समबाहु त्रिभुजों के शीर्ष का निर्माण करते हैं।

लैंग्रैज बिंदु।

पेलोड- आदित्य एल -1 में 7 पेलोड है। इसका प्राथमिक पेलोड, विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ(VELC) है, जिसे इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स द्वारा 15 वर्षों में तैयार किया गया है। सूर्य के प्रकाश के कारण आंतरिक सौर गतिविधियों का पता लगाना मुश्किल होता है। VELC, प्रकाश को अलग कर जाँच करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। 

  • यह सौर कोरोना की त्रिज्या को 1.05 गुना तक कम कर 2.5 आर्क सेकेण्ड प्रति पिक्सल तक की छवियाँ ले सकता है। जिससे सूर्य कोरोना के ताप घनत्व व वेग का पता लगाने, अंतरिक्ष मौसम के अध्ययन में और कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र को मापना में सहायक होगा।
  • इसके साथ ही यह 22 डिग्री सेण्टिग्रेट तक तापमान बनाए रख सकता है।

सूर्य संबंधी अनुसंधान की आवश्यकता

  • सोलर सिस्टम, अपने आंतरिक व बाह्य वातावरण व हलचल से प्रभावित होता है, जिसका सीधा प्रभाव, सौर मण्डल के सभी ग्रहों पर पड़ता है। इन प्रभावों का पता लगाने के लिए सौर मिशन किए जाते हैं।
  •  यदि अंतरिक्ष मौसम का पूर्वानुमान करना संभव हो तो अंतरिक्ष के तापमान के पृथ्वी में होने वाले प्रभावों का पता लगाया जा सकता है।
  • इसके साथ ही अंतरि7 में उपस्थित कृत्रिम उपग्रहों पर भी इसका प्रभाव होता है, और टेलीकम्यूनिकेशन, जीपीएस नेवीगेसन नेटवर्क और इलेक्ट्रिक पावर ग्रिड पर इसका सीधा असर पड़ता है। 

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

https://solarsystem.nasa.gov/faq/88/what-are-lagrange-points/

Yojna IAS Daily Current Affairs Hindi med 28th Jan

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