इंटरनेट शटडाउन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

इंटरनेट शटडाउन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

स्त्रोत्र – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन – भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था, इंटरनेट शटडाउन , सोशल मीडिया, मौलिक अधिकार कर्नाटक उच्च न्यायालय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,  ट्विटर/एक्स,  एक्सेस नाउ समूह ।  

खबरों में क्यों ? 

 

  • वर्ष 2020-21 में भारत में किसान आंदोलन के विरोध प्रदर्शन के पहले दौर के दौरान इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी किए गए कई व्यापक अवरोधन आदेशों को चुनौती देने के लिए ट्विटर/एक्स ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। कर्नाटक उच्च न्यायालय के एकल पीठ के न्यायाधीश ने पहले तो एक्स की इस याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन बाद में ट्विटर/एक्स फर्म की अपील को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने  स्वीकार कर लिया और सुनवाई चल रही है।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय के मौजूदा फैसले ने इस विचार को बल दिया है कि सरकारी अधिकारियों को सामग्री के प्रवर्तकों को नोटिस देने या यहां तक कि हिसाब मांगने की आवश्यकता के बिना वैध तर्क के आधार पर किसी भी सामग्री को अवरुद्ध या किसी भी स्तर अवरोधन के आधार पर आदेश जारी करने में व्यापक अधिकार प्राप्त है।
  • हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में सोशल मीडिया ट्विटर/एक्स की अपील निश्चित रूप से भारत में सोशल मीडिया कंपनियों के अपने प्लेटफार्मों पर किसी सामग्री पर दिखाने या प्रसारित करने के सोशल मीडिया कंपनियों के अधिकारों और उनके दायित्वों को स्पष्ट करेगी।
  • जहां तक सरकार की बात है, उसे इस बात की बिल्कुल भी चिंता नहीं है कि इस तरह की कार्रवाइयों का एक स्वतंत्र, खुले और लोकतांत्रिक समाज के रूप में भारत की प्रतिष्ठा पर क्या असर पड़ता है, जो सोशल मीडिया कंपनियों के देश में सिर्फ एक की उपस्थिति से परे बड़ा उपभोक्ता आधार काम करने का एक प्रमुख कारण है।
  • हाल ही में भारत के विभिन्न राज्यों में सरकारों द्वारा इंटरनेट शटडाउन और सोशल मीडिया पर मनमाने प्रतिबंधों का मुद्दा एक बड़े विवाद का कारण बन गया है, जिससे भारत में राजनीतिक और सामाजिक विरोध को लेकर अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के प्रश्नों उत्पन्न हो रहे हैं। 
  • हरियाणा और राजस्थान की राज्य सरकारें और केंद्र सरकार को किसान आंदोलन के समय इस विवाद में शामिल होते हुए देखा गया है। राज्य सरकारों ने इस मुद्दे में बिना किसी पूर्व सूचना के और बिना किसी ठोस एवं सही रणनीतिक कारणों के बावजूद उठाया है, जिससे जनसमर्थन में  तो कमी आ ही रही है और भारत के संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को प्रदत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार  पर भी बहस शुरू हो गई है। 
  • भारत में केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को नोटिस जारी करने के लिए अपने उपकरणों का उपयोग करके खातों को ब्लॉक करने का निर्णय लिया है, जो उन्हें नकारात्मक प्रतिरोध करने वालों के साथ जुड़ा है।
  • भारत में यह एक सत्ताधारी सरकारों के लिए उपचारात्मक उपाय हो सकता है, लेकिन इसमें सावधानी बरतना महत्वपूर्ण है कि सरकारों का यह व्यव्हार व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं करे।
  • इसके बावजूद भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स ने अपनी पारदर्शिता रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है, जिससे उपयोगकर्ताओं को एक्स को स्वतंत्रता के मुद्दे में उनके स्वयं के निर्णयों का सामर्थ्य बनाए रखने के लिए चुनौती देने वाले न्यायिक याचिका में विफलता का प्रमुख कारण बन गया है।
  • सामाजिक मीडिया प्लेटफॉर्म्स और सरकारों के बीच यह विवाद सत्ता के प्रयोग में सावधानी और न्याय की आवश्यकता को दिखा रहा है।
  • भारत में सरकारों और नागरिकों दोनों के द्वारा ही यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि समाज में स्वतंत्रता और विभिन्न धाराओं के विचार का और बहुलतावादी समाज का समर्थन किया जाए, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए ताकि इससे भारत की समृद्धि और देश एकता और अखंडता में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं हो और न देश की एकता और अखंडता पर कोई आंच ही आये।

इंटरनेट शटडाउन से संबंधित प्रावधान :

भारतीय तार अधिनियम 1885 की धारा 5(2) के अनुसार, दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन से संबंधित नियमों में निम्नलिखित  प्रावधान शामिल है – 

भारतीय तार अधिनियम 1885, धारा 5(2) : 

  • इस धारा के तहत, दूरसंचार सेवाओं को अस्थायी रूप से निलंबित करने की अनुमति है। सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में, संघ या राज्य के गृह सचिव को टेलीग्राफ या तार सेवा (इंटरनेट सहित) को निलंबित करने का आदेश देने का अधिकार है। इसके लिए एक समिति द्वारा पाँच दिनों के भीतर समीक्षा करना आवश्यक है, और यह एक बार में 15 दिनों से अधिक अवधि तक जारी नहीं किया जा सकता। किसी विशेष परिस्थिति में अत्यंत आवश्यकता होने के मामले में, संघ या राज्य के गृह सचिव या अधिकृत संयुक्त सचिव स्तर या उससे ऊपर का अधिकारी आदेश जारी कर सकता है।

समीक्षा समिति की आवश्यकता:

  • इसके अनुसार, जब भी ऐसा आदेश जारी किया जाता है, उसे पाँच दिनों के भीतर समीक्षा समिति द्वारा समीक्षित किया जाना चाहिए।

दूरसंचार सेवाओं को अस्थायी रूप से निलंबित करने की आदेश की अवधि:

  • एक बार में जारी किए जाने वाले ऐसे आदेश की अवधि 15 दिनों से अधिक नहीं हो सकती है।

अत्यावश्यक स्थिति में अधिकृत आदेश:

  • अगर कोई अत्यावश्यक स्थिति हो, तो संघ या राज्य के गृह सचिव द्वारा अधिकृत संयुक्त सचिव स्तर या उससे ऊपर का अधिकारी भी आदेश जारी कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 : 

  • इस धारा के तहत, जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट को विशेष रूप से राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक शांति में उपद्रव या व्यवधान को निषिद्ध करने या रोकने के लिए आदेश जारी करने का अधिकार है। इसके तहत आदेश में इंटरनेट सेवाओं का निलंबन: ऐसे आदेश में, विशेष क्षेत्र में एक निर्दिष्ट अवधि के लिए इंटरनेट सेवाओं का निलंबन को भी शामिल किया जा सकता है।
  • इस प्रकार, ये प्रावधान इंटरनेट शटडाउन से संबंधित नियमों को स्पष्टता से स्थापित करते हैं और सार्वजनिक सुरक्षा या आपातकाल की स्थितियों में सरकार को आवश्यकता के अनुसार कदम उठाने का अधिकार प्रदान करते हैं।

इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव :

  • इंटरनेट शटडाउन अनुच्छेद 19(1) (a) और अनुच्छेद 19(1) (g) के तहत प्रदत्त मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020) मामले में माना कि इंटरनेट के माध्यम से वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी भी वृत्ति का अभ्यास करने की स्वतंत्रता को अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। 
  • इंटरनेट शटडाउन सूचना के अधिकार (Right to Information) का भी उल्लंघन करता है जिसे राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1975) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 19 के अंतर्गत एक मूल अधिकार घोषित किया है।
  • यह इंटरनेट के अधिकार (Right to Internet) का भी उल्लंघन करता है जिसे फाहीमा शीरीं बनाम केरल राज्य मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत एक मूल अधिकार घोषित किया गया था। 

आर्थिक परिणाम : 

  • इंटरनेट शटडाउन के गंभीर आर्थिक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। ऐसे व्यवसाय वित्तीय हानि के शिकार हो सकते हैं जो संचालन, बिक्री और संचार के लिये इंटरनेट पर निर्भर होते हैं। इससे स्टार्टअप और छोटे व्यवसाय विशेष रूप से प्रभावित हो सकते हैं। 
  • ‘Top 10 VPN’ के अनुसार भारत में इंटरनेट शटडाउन के कारण वर्ष 2023 की पहली छमाही में 2,091 करोड़ रुपए (255.2 मिलियन डॉलर) की हानि हुई थी। 

 

शिक्षा  के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले रूकावट और व्यवधान :

  • भारत में कई शैक्षणिक संस्थान शिक्षण और अधिगम (लर्निंग) के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करते हैं। इंटरनेट शटडाउन की स्थिति में छात्र – छात्राओं  को उन  शैक्षिक संसाधनों तक पहुँच को बाधित करते हैं, जिससे छात्र – छात्राओं  के लिए अध्ययन जारी रखना कठिन कार्य हो जाता है। जिससे उनके शिक्षण में रूकावट और व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं। 

सेंसरशिप और भरोसा संबंधी चिंताएँ : 

  • इंटरनेट शटडाउन से सरकार और प्राधिकारों के प्रति भरोसे की कमी की स्थिति बन सकती है। वे सेंसरशिप और पारदर्शिता की कमी के बारे में भी चिंताएँ उत्पन्न कर सकते हैं। 

आपदा की स्थिति में  या प्रतिक्रिया में बाधा उत्पन्न होना : 

  • इंटरनेट शटडाउन से लोगों के संचार और समन्वय को, विशेष रूप से किसी भी प्रकार की आपात की स्थिति में और किसी भी संकट के दौरान, प्रभावित कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र (UN) समर्थित एक रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इंटरनेट शटडाउन से लोगों की सुरक्षा और भलाई प्रभावित होती है, सूचना प्रवाह और मानवीय सहायता में बाधा उत्पन्न होती है। 

स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में बाधा उत्पन्न होना : 

  • इंटरनेट शटडाउन  के कारण उत्पन्न के कारणों पर हुए विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि इंटरनेट शटडाउन का प्रभाव तत्काल चिकित्सा देखभाल प्रदान करने, आवश्यक दवाओं की आपूर्ति एवं उपकरणों के रखरखाव में बाधा, चिकित्साकर्मियों के बीच स्वास्थ्य सूचनाओं के आदान-प्रदान को सीमित करने और आवश्यक मानसिक स्वास्थ्य सहायता को बाधित करने के रूप में स्वास्थ्य प्रणालियों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है।  

अंतर्राष्ट्रीय परिणाम : 

  • इंटरनेट शटडाउन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित कर सकता है और इसकी निंदा की जा सकती है। इससे किसी देश की प्रतिष्ठा और अन्य देशों के साथ उसके संबंधों को नुकसान पहुँच सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत विश्व में इंटरनेट शटडाउन के मामले में तीसरे स्थान वाला देश है। इंटरनेट शटडाउन के मामले में वर्ष 2023 की पहली छमाही में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर रहा। अमेरिका के डिजिटल अधिकार पक्ष समर्थक समूह ‘एक्सेस नाउ’ (Access Now) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सभी दर्ज शटडाउन में से केवल भारत में ही 58%  मामले घटित हुए। 

पत्रकारिता और रिपोर्टिंग पर प्रभाव : 

  • पत्रकार घटनाओं की रिपोर्टिंग करने और आम लोगों के साथ समाचार साझा करने के लिए  इंटरनेट पर निर्भर होते हैं। इंटरनेट शटडाउन सूचना संग्रहण और प्रसारण की उनकी क्षमता में बाधा डाल सकता है, जिससे आम लोगों के सूचना का अधिकार ( Right to know ) को धक्का पहुँच सकता है। 
  • इंडियन एक्सप्रेस बनाम भारत संघ (1986) और बेनेट कोलमैन बनाम भारत संघ (1972) मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार को मूल अधिकार घोषित किया गया था।

इंटरनेट शटडाउन के संदर्भ में  पक्ष में दिया जाने वाला तर्क : 

हेट स्पीच और फेक न्यूज को रोकना : 

  • इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में दिए जाने वाले एक तर्क के अनुसार भारत में इंटरनेट शटडाउन करके, भारत में हेट स्पीच और फेक न्यूज़ जैसी अवास्तविक सूचनाओं का प्रसार रोका जा सकता है, जिससे हिंसा और सांप्रदायिक या जातीय आधार पर होने वाले दंगों को रोका जा सकता है । 
  • उदाहरण के लिए – भारत सरकार ने किसानों के आंदोलन और प्रदर्शन के समय इंटरनेट शटडाउन करने का ऐलान किया, जिससे किसानों के आंदोलन और प्रदर्शन के दौरान फ़ैलाने वाले अफवाहों और भ्रांतियों को रोकने का प्रयास किया गया था।

लोक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने और शांति एवं सुरक्षा को बनाए रखने के लिए : 

  • इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में दिए जाने वाले एक अन्य तर्क के अनुसार भारत में इंटरनेट शटडाउन से विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित कर सरकार लोक व्यवस्था और लोगों की सुरक्षा और समाज में शांति को बरक़रार बनाए रख सकती है, जिससे विशेषज्ञों और सुरक्षा बलों को किसी भी अप्रिय घटना के संबंध में उसके घटने से पूर्व ही संकेत मिल जाता  है। उदाहरण के लिए – भारत में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद, कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन करके सुरक्षा प्राधिकृत्य को बनाए रखने का प्रयास किया गया।

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए : 

  • इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में दिए जाने वाले एक अन्य तर्क के अनुसार भारत में इंटरनेट शटडाउन से राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सजग रहकर सरकार साइबर हमलों से निपट सकती है और बाह्य खतरों से सुरक्षित रख सकती है। उदाहरण के लिए – चीन के साथ गतिरोध के दौरान, सीमावर्ती क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करके राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा की गई।

आपत्तिजनक सामग्री के प्रसार और प्रचार पर  नियंत्रण : 

  • इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में दिए जाने वाले एक अन्य तर्क के अनुसार भारत में इंटरनेट शटडाउन से ऐसी सामग्री का वितरण और उपभोग को नियंत्रित किया जा सकता है या उसके प्रसार और प्रचार को भी नियंत्रित किया जा सकता है जो हानिकारक या आपत्तिजनक हो सकती है। उदाहरण के लिए –  कुछ क्षेत्रों में सरकार ने आपत्तिजनक छवियों या वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए इंटरनेट का उपयोग अवरुद्ध किया है।

इंटरनेट शटडाउन के संदर्भ में विपक्ष में दिया जाने वाला तर्क : 

  • इंटरनेट शटडाउन का विरोध करने वाले कई विचारकों ने यह तर्क दिया है कि इस प्रकार के कठिन प्रतिबंधन से लोकतंत्र और जवाबदेही को कमजोर करने का खतरा हो सकता है। उनका कहना है कि इंटरनेट नागरिकों को सूचनाओं तक पहुंचाने, विचार व्यक्त करने, सार्वजनिक विमर्श में भाग लेने और अधिकारियों के कार्यों की जिम्मेदारी लेने का माध्यम प्रदान करता है। इससे यह प्राप्त हो सकता है कि इंटरनेट शटडाउन से यह सभी गुण समाप्त हो जाएंगे और सरकारें अपने अनुयायियों को उनके अधिकारों के प्रति सजग रहने में असमर्थ हो सकती हैं।
  • इसके अलावा, इंटरनेट शटडाउन से सत्तावादी सरकारें आलोचकों को चुप कराने और विकृत सूचना प्रतिध्वनि कक्ष (distorted information echo chambers) बनाने में सक्षम हो सकती हैं। यह एक तरह से सत्तावाद की समर्थन कर सकता है और आपत्तिजनक विचारों का प्रसार करने का माध्यम बना सकता है, जिससे सामाजिक विघटन बढ़ सकता है।
  • कुछ विचारक इस पर जोर देते हैं कि इंटरनेट शटडाउन एक अप्रभावी और प्रतिकूल उपाय है, क्योंकि इससे वह समस्याओं के मूल कारणों का समाधान नहीं करता है जिनके समाधान की इससे अपेक्षा की जाती है। उदाहरण के लिए, इससे हिंसा और आतंकवाद को रोकने में सफलता नहीं मिलती, बल्कि यह प्रभावित आबादी में आक्रोश और असंतोष बढ़ा सकता है।
  • इसके साथ ही, इंटरनेट शटडाउन फेक न्यूज़ और हेट स्पीच के प्रसार पर रोक नहीं लगा सकता है, बल्कि यह सूचना शून्यता की स्थिति पैदा कर सकता है जिससे अभिकर्ता लाभ उठा  सकते हैं। इससे विभिन्न समृद्धि में विघटन बढ़ सकता है और सामाजिक समरसता को कमजोर कर सकता है।
  • कुछ विचारकों का यह भी मानना है कि, इंटरनेट शटडाउन को मनमाना उपाय माना जा सकता है और इसका दुरुपयोग हो सकता है, क्योंकि इसे अक्सर उचित प्रक्रिया, पारदर्शिता या न्यायिक निरीक्षण के बिना लागू किया जाता है। इससे स्थानीय अधिकारियों को अधिक शक्ति देने का खतरा हो सकता है, जिससे वे इसे अपने राजनीतिक हस्तक्षेप का सहारा लेने के लिए उपयोग कर सकते हैं। इससे यह साबित होता है कि इंटरनेट शटडाउन का मनमाना उपाय होने के कारण सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह विशेष परिस्थितियों में ही लागू किया जाए, और यह न्यायिक प्रक्रिया और गुणवत्ता के मानकों के सभी स्तरों को पूर्ण करता हो।

इंटरनेट शटडाउन से निपटने के उपाय : 

इंटरनेट शटडाउन से निपटने के लिए उपयुक्त कदमों के संदर्भ में निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं – 

कानूनी और नियामक ढाँचे को सुदृढ़ करना : 

  • भारत में केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें यह सुनिश्चित करें कि इंटरनेट शटडाउन को नियंत्रित करने वाले कानूनी एवं नियामक ढाँचे सुदृढ़ हैं और वे अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का पूरा पालन करते हैं।
  • सरकार को तार अधिनियम और उसके नियमों में संशोधन करना चाहिए ताकि वे संवैधानिक और मानवाधिकार मानकों का पूरा पालन करें।

अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करना : 

  • भारत में केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों के प्राधिकृत अधिकारियों द्वारा  इंटरनेट शटडाउन का आदेश देने और लागू करने वाले अधिकारियों की पारदर्शिता बढ़ाएं और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करें।
  • इंटरनेट शटडाउन से  प्रभावित होने वाले लोगों / नागरिकों के लिए प्रभावी उपचार प्रदान करें और उनकी सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करें।

वैकल्पिक विकल्पों की तलाश करना : 

  • भारत में सरकार को इंटरनेट शटडाउन  करने के बजाय किसी अन्य कम हस्तक्षेपकारी उपायों पर विचार करना चाहिए, जैसे कि विधि-व्यवस्था की गड़बड़ी का सुधार, सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद से निपटना, विशिष्ट वेबसाइटों या कंटेंट को अवरुद्ध करना, चेतावनी जारी करना, नागरिक समाज और मीडिया को संलग्न करना, अधिक सुरक्षा बलों की तैनाती करना इसमें शामिल हो सकते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के दिशा – निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना : 

  • भारत में सरकारों को चाहिए कि वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय  द्वारा दिए गए इंटरनेट शटडाउन  करने के दिशा – निर्देशों का पूरा पालन करें, जिनमें इंटरनेट निलंबन का उपयोग केवल अस्थायी अवधि के लिए सीमित होने का आदान-प्रदान है। इंटरनेट शटडाउन  करने के निलंबन नियमों के तहत जारी किए गए आदेशों का आनुपातिकता के सिद्धांत का पूरा पालन करें और सरकार उनकी अवधि को बढ़ाने से बचें।

 

  • भारत में सरकारें यदि इन सुझावों को अपनाकर सरकार सही दिशा में कदम उठाती है, तो इंटरनेट शटडाउन के संबंध में सामाजिक और आर्थिक प्रभाव को कम किया जा सकता है और भारत में मानवाधिकारों का पूरा पालन हो सकता है।

 

निष्कर्ष / समाधान की राह : 

  • भारत में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय या अन्य न्यायालयों को सोशल मीडिया की सामग्री पर रोक लगाने के आदेश जारी करने वाली सरकारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
  • इंटरनेट शटडाउन और सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मनमाने ढंग से प्रतिबंध का उपयोग सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सवालों को उठाने का एक सामंजस्यपूर्ण तरीका हो सकता है, लेकिन इसका प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकता है।
  • इंटरनेट शटडाउन का उपयोग सुरक्षा और आत्मरक्षा के उद्देश्य से किया जा सकता है। किसी भी असुरक्षित स्थिति या आपत्ति के समय, सरकारें इंटरनेट सेवाओं को बंद करके लोगों की सुरक्षा करने का प्रयास कर सकती हैं। यह एक असुविधाजनक प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यह जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक हो सकता है।
  • सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना समाज में आपसी विरोध को बढ़ा सकता है। इससे स्वतंत्र और विचारशील विचारों को दबाया जा सकता है, जिससे लोग खुदरा बन सकते हैं। सोशल मीडिया को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने वाले व्यक्तियों के बीच विचार-विरोध की अवस्था बन सकती है, जो समाज में गहरे द्वंद्वों का कारण बन सकती है।
  • सरकारों द्वारा ऐसे प्रतिबंध का उपयोग सत्ताधारी संरचनाओं द्वारा विरोधी आलोचना को दबा सकता है और लोगों की आवाज को अदृश्य या गूंगा बना सकता है। सोशल मीडिया एक जनसमृद्धि का साधन हो सकता है जो लोगों को एक साथ ला सकता है और उन्हें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर जागरूक कर सकता है। 
  • इंटरनेट शटडाउन या सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, सकारात्मक और सजीव संवाद को बढ़ावा देना चाहिए ताकि लोग स्वतंत्र रूप से और खुले मन से अपने विचारों को एक -दूसरे के साथ साझा कर सकें।
  • इंटरनेट शटडाउन और सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध का उपयोग आवश्यक स्थितियों में हो सकता है, लेकिन इसे सावधानीपूर्वक और सामंजस्यपूर्ण रूप से किया जाना चाहिए। समृद्धि, न्याय, और समाज में सामंजस्य बनाए रखने के लिए सरकारों को उचित दिशा में कदम उठाना चाहिए, ताकि लोगों का अधिक से अधिक सहभागिता हो सके और वे स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त कर सकें।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भारत में इंटरनेट शटडाउन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को नोटिस जारी कर सोशल मीडिया  खातों को ब्लॉक करने का निर्णय लिया है, जो उन्हें नकारात्मक प्रतिरोध का उदहारण है।
  2. भारत में  इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी किए गए कई व्यापक अवरोधन आदेशों को चुनौती देने के लिए ट्विटर/एक्स ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपील दायर किया था।
  3. भारत में सरकारों द्वारा इंटरनेट शटडाउन करके, हेट स्पीच और फेक न्यूज़ जैसी अवास्तविक सूचनाओं का प्रसार को नहीं रोका जा सकता है।
  4. इंटरनेट शटडाउन एक अप्रभावी और प्रतिकूल उपाय है, क्योंकि इससे वह समस्याओं के मूल कारणों का समाधान नहीं करता है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A) केवल 1, और 3 

(B) केवल 2, 3 और 4 

(C) केवल 1 और 4

(D) केवल 1, 2 और 4 

उत्तर – (D)  

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. इंटरनेट शटडाउन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं ? चर्चा कीजिए कि भारत में इंटरनेट शटडाउन नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन कैसे करता है ? तर्कसंगत व्याख्या कीजिए। 

 

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