08 Sep इण्डिया गेट के चंदवा में सुभाष चंद्र बोष की मूर्ति का अनावरण।
इण्डिया गेट के चंदवा में सुभाष चंद्र बोष की मूर्ति का अनावरण।
संदर्भ – नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार (8 सितंबर) शाम इंडिया गेट पर करेंगे। जेट ब्लैक ग्रेनाइट की प्रतिमा को ग्रैंड कैनोपी के नीचे इंडिया गेट के पूर्व में, पूर्व-पश्चिम अक्ष पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के आधे रास्ते में रखा जाएगा।
प्रतिमा की संरचना–
- यह 28 फीट लंबा है, यानी दो मंजिला इमारत से थोड़ा ऊंचा है। भारत में अन्य स्मारकीय मूर्तियों के मानकों के अनुसार, यह काफी छोटा है क्योंकि इसका आकार ग्रैंड कैनोपी की ऊंचाई तक सीमित है जिसके नीचे यह खड़ा है।
- प्रतिमा को 280 टन वजन वाले ग्रेनाइट से बनाया गया है।मूर्ति का वजन 65 टन या 65,000 किलोग्राम है, और यह 26,000घंटों तक मानव के गहन कलात्मक श्रम का उत्पाद है।
- तेलंगाना के खम्मम में ग्रेनाइट मोनोलिथ की खुदाई की गई थी। 140 पहियों वाला एक 100 फुट लंबा विशाल ट्रक तेलंगाना से विशेष रूप से ग्रेनाइट मोनोलिथ को 1,665 किमी दूर दिल्ली तक लाने के लिए ही डिजाइन किया गया था।
- मूर्तिकारों की टीम का नेतृत्व मैसूर निवासी मूर्तिकार अरुण योगीराज ने किया था, जिन्होंने पहले आदि शंकराचार्य की 12 फुट की मूर्ति बनाई थी।
इण्डिया गेट में स्थित चंदवा(छतरी) –
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- इंडिया गेट के पूर्व में लगभग 150 मीटर, सी-षट्भुज के केंद्र में, 73 फुट की छतरी है, जो छठी शताब्दी के महाबलीपुरम के मंडप से प्रेरित है। यह छतरियाँ भारतीय वास्तुकला का अभिन्न अंग है।
- एडविन लुटियंस द्वारा डिजाइन किया गया चंदवा, भारत के तत्कालीन दिवंगत सम्राट किंग जॉर्ज पंचम को श्रद्धांजलि के रूप में 1936 में इंडिया गेट परिसर में बनवाया गया था, और उनकी 50 फुट की संगमरमर की मूर्ति रखी गई थी।
- जॉर्ज पंचम को उनके राज्याभिषेक वस्त्र और शाही राज्य के मुकुट में दर्शाने वाली प्रतिमा, युद्ध स्मारक के रूप में बनाई गई थी।
- स्वतंत्रता के बाद इस प्रतिमा का व्यापक रूप से विरोध हुआ। और अंत में इसे 1968 में कोरोनेशन पार्क में विस्थापित कर दिया गया।
- कोरोनेशन पार्क- दिल्ली में निरंकारी सरोवर के पास स्थित बुराड़ी रोड पर स्थित है। यह 1877 के दिल्ली दरबार से 1911 के दरबार तक के भव्य आयोजनों की स्थली रहा है।
- स्वतंत्रता के बाद कई महान नेताओं जैसे गांधीजी, नेहरुजी से लेकर इंदिराजी तक की मूर्ति कैनोपी पर स्थापित करने का सुझाव रखा गया किंतु दशकों तक कैनोपी खाली रही।
सुभाष चन्द्र बोष-
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- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे।
- स्वराज पार्टी के संस्थापक चितरंजन दास के साथ स्वराज पार्टी से विधानसभा का चुनाव जीता, दास बाबू ने बोष को कोलकाता महापालिका का कार्यकारी बनाया, कोलकाता के सभी मार्गों का नाम बदलकर भारतीय नाम दिए।
- भारतीय स्वतंत्रता लीग(Indian Independence League)– जवाहर लाल नेहरु के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की। जो भारत से बाहर रहने वालों को स्वतंत्रता संग्राम में प्रतिभाग करने के लिए प्रेरित करती थी।
- पूर्ण स्वराज की मांग- 1928 में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में नेहरु व बोष ने पूर्ण स्वराज की मांग की। पर उसे स्वीकार नहीं किया गया।
- कांग्रेस का हरिपुरा अधिवेशन–इस अधिवेशन में सुभाष ने अध्यक्षीय भाषण दिया। किसी भी भारतीय राजनीतिक व्यक्ति ने शायद ही इतना प्रभावी भाषण कभी दिया हो। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सुभाष ने योजना आयोग की स्थापना की। जवाहरलाल नेहरू इसके पहले अध्यक्ष बनाये गये। सुभाष ने बंगलौर में मशहूर वैज्ञानिक विश्वरय्या की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद की स्थापना भी की।
- फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना- 3 मई 1939 को सुभाष चन्द्र बोष द्वारा इसकी स्थापना की गई।
- आजाद हिंद फौज – इसकी प्रथम डिवीजन का गठन 1942 ई. को मोहन सिंह के अधीन हुआ। कालान्तर में जापान ने 60,000 युद्ध बंदियों को आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल होने के लिए छोड़ दिया।
- आज़ाद हिन्द फ़ौज का दूसरा चरण तब प्रारम्भ हुआ, जब सुभाषचन्द्र बोस सिंगापुर गये। सुभाषचन्द्र बोस ने 1941 ई. में बर्लिन में ‘इंडियन लीग’ की स्थापना की, किन्तु जब जर्मनी ने उन्हें रूस के विरुद्ध प्रयुक्त करने का प्रयास किया, तब कठिनाई उत्पन्न हो गई और बोस ने दक्षिण पूर्व एशिया जाने का निश्चय किया।
- सुभाषचन्द्र बोस का नेतृत्व 1943 ई. में सुभाषचन्द्र बोस पनडुब्बी द्वारा जर्मनी से जापानी नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुँचे। वहाँ उन्होंने दिल्ली चलो का प्रसिद्ध नारा दिया। 4 जुलाई, 1943 ई. को सुभाषचन्द्र बोस ने ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ एवं ‘इंडियन लीग‘ की कमान को संभाला। आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाही सुभाषचन्द्र बोस को नेताजी कहते थे। बोस ने अपने अनुयायियों को ‘जय हिन्द’ का नारा दिया।
- उन्होंने 1943 ई. को सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की। सुभाषचन्द्र बोस इस सरकार के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तथा सेनाध्यक्ष तीनों थे।
- 1944 ई. के मध्य आज़ाद हिन्द फ़ौज की तीन ब्रिगेडों ने जापानियों के साथ मिलकर देश की पूर्वी सीमा एवं बर्मा से युद्ध लड़ा, परन्तु दुर्भाग्यवश दूसरे विश्व युद्ध में जापान की सेनाओं के मात खाने के साथ ही आज़ाद हिन्द फ़ौज को भी पराजय का सामना करना पड़ा।
- आज़ाद हिन्द फ़ौज के सैनिक एवं अधिकारियों को अंग्रेज़ों ने 1945 ई. में गिरफ़्तार कर लिया। साथ ही एक हवाई दुर्घटना में सुभाषचन्द्र बोस की भी 18 अगस्त, 1945 ई. को मृत्यु हो गई।
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