ई़डब्ल्यूएस आरक्षण 

ई़डब्ल्यूएस आरक्षण 

ई़डब्ल्यूएस आरक्षण 

संदर्भ- हाल ही में संविधान ने 2019 के ईडब्ल्यूएस आरक्षण अधिनियम को बरकरार रखा है जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की गई थी। संविधान की 5 न्यायाधीशों की पीठ ने इस अधिनियम को न सिर्फ सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए बल्कि किसी भी वंचित वर्ग के लिए आरक्षण को एक साधन के रूप में माना है।

जस्टिस यूयू ललित व जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने इस बिल पर असहमति जताई थी, उनके अनुसार यह बिल समान अवसरों के लिए विरोधाभासी है।

विरोधाभास के तर्क

  • अनुच्छेद 16 प्रतिनिधित्व के माध्यम से समुदाय के सशक्तिकरण पर आधारित है। और इस अधिनियम में समुदाय का सशक्तिकरण आर्थिक रूप से करने की बात कही गई है।
  • समान नागरिक संहिता के अनुसार समुदायों के बीच कानूनों की एकरूपता हो ताकि पुरुषों व महिलाओं के बीच सामाजिक एकरुपता हो। इसके अनुसार भेदभाव व रियायती मुद्दों पर राजनीतिकरण बंद हो जाएगा।
  • इस संशोधन ने सरकार को विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है।
  • समानता संविधान की मूल संरचना का एक अंग है।
  • संयुक्त राष्ट्र समिति के अनुसार भेदभाव गरीबी का कारण बन सकती है जैसे गरीबी भेदभाव का कारण बन सकती है।
  • जाति के आधार पर आरक्षण समाजिक रूप से समानता लाने के लिए लागू किया गया था। इस प्रकार के कानून अलगाव की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 8 लाख रुपये की वार्षिक आय के दायरे में लगभग पूरा सामान्य वर्ग जाता है।

संवैधानिक संशोधन-

  • भारतीय संविधान में 103 वे संशोधन के द्वारा 15(6) व 16(6) शामिल किया गया। जो कमजोर वर्ग से आने वाले लोगों को शिक्षण संस्थानों व सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 15 के तहत धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। 
  • अनुच्छेद 16 में रोजगार के मामले में समान अवसर की गारंटी दी गई है।
  • यह संविधान संशोधन अन्य पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, जिन्हें पहले से ही उच्च शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण हासिल है, को छोड़कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करता है।

संशोधन के लाभ-

  • सामान्य वर्ग के गरीब तबके को अपनी अनिश्चित स्थिति को सुधारने के लिए एक साधन की तरह कार्य करेगा। इससे आय की समानता व आजीविका के साधनों से उन्हें वंचित नहीं रहना पड़ेगा।
  • वे गरीब तबका जो अपनी स्थिति को बदलने के लिए अनुसूचित जाति व जनजाति की फर्जी प्रमाणपत्र बन रहे थे। ऐसे फर्जी दस्तावेज बनाने की गतिविधि में कमी आ सकेगी।
  • गरीबी के आंकड़े जैसे जैसे कम होंगे भारत सरकार पर रियायतों का बोझ कम होगा, जो वर्तमान में काफी बढ़ गया है।

संशोधन की कमियाँ

  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आय के मानदण्ड 8 लाख रुपये से कम किसी स्पष्ट रूप से परिभाषित आंकड़े के अनुसार तय होनी चाहिए। लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के क्रीमी लेयर के समान नहीं होनी चाहिए।जाति के बंधन से परे समाज के सभी वर्गों को इस योजना का लाभ मिलना चाहिए।
  • मंडल आयोग के 50% से अधिक आरक्षण देने की स्थिति संविधान की मूल संरचना का विरोध करता है।

आगे की राह-

  • पिछड़े वर्ग का वह तबका जो शिक्षा व रोजगार के मानकों को प्राप्त कर चुका है, उन्हें पिछली श्रणियां से हटा देना चाहिए। इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर से अतिरिक्त बोझ कम होगा।
  • पिछड़े वर्ग के लिए उस समय बनाए गए कानूनों की आज के परिवेश में उपयोगिता पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • इस संशोधन में मध्यम वर्ग व अति निम्न वर्ग दोनों आ जाते हैं, यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग के अधिकारों का प्रयोग कर निम्न वर्ग को अधिकारों से वंचित न करे।

स्रोत

https://indianexpress.com/article/opinion/columns/ews-reservation-caste-privilege-equality-8291747/

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