ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर

संदर्भ- हाल ही में 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म दिवस मनाया गया। भारत में 1 करोड़ से अधिक लोगों में ऑटिज्म डिसॉर्डर पाया गया है।

ऑटिज्म स्पेक्ट्म डिसॉर्डर- 

  • ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर एक विकासात्मक विकलांगता  से संबंधित रोग है। जो मस्तिष्क में कुछ अंतर होने के कारण होता है।
  • लगभग 100 में से 1 बच्चे में यह समस्या पाई जाती है।
  • बचपन में ही समस्या का पता चलने के बाद भी इसके निदान में बहुत लम्बा समय लग जाता है।
  • ऑटिस्टिक लोगों की क्षमताएं और जरूरतें अलग-अलग होती हैं और समय के साथ विकसित हो सकती हैं। जबकि ऑटिज्म से पीड़ित कुछ लोग स्वतंत्र रूप से रह सकते हैं, दूसरों में गंभीर विकलांगता होती है और उन्हें जीवन भर देखभाल और सहायता की आवश्यकता होती है।
  • साक्ष्य-आधारित मनोसामाजिक हस्तक्षेप ऑटिस्टिक लोगों और उनकी देखभाल करने वालों दोनों के कल्याण और जीवन की गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव के साथ संचार और सामाजिक कौशल में सुधार कर सकते हैं।
  • ऑटिज्म से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए अधिक पहुँच, समावेशिता के लिए सामाजिक स्तर पर कार्यवाही की आवश्यकता है।
  • ऑटिज्म स्पेक्ट्म डिसॉर्डर के कारण पर्यावरण व आनुवांशिकता को माना जाता है। 

ऑटिज्म स्पेक्ट्म डिसॉर्डर के लक्षण- 

(1) सामाजिक संचार और व्यवहार में समस्या-

  • इसके तहत 9 महीने की उम्रक खुश, उदास या किसी चेहरे के भावों को व्यक्त नहीं करता।
  • 24 महीने की उम्र तक किसी के भी चोट को महसूस नहीं करते और प्रतिक्रिया नहीं देते। 

(2) प्रतिबंधित या दोहराए जाने वाले व्यवहार की समस्या- 

  • वस्तुओं को पंक्तिबद्ध करना, और उस क्रम में परिवर्तन होने पर चिंतित हो जाना।
  • स्वाद, गंध, ध्वनि, देखने या महसूस करने के तरीके पर असामान्य प्रतिक्रिया होती है।
  • बार बार शब्दों या वाक्यांशों को दोहराते हैं। 

(3) अन्य विशेषताएं- उपरोक्त लक्षणों के साथ यह लक्षण भी हो सकते हैं-

  • विलंबित भाषा कौशल
  • विलंबित संज्ञानात्मक कौशल
  • मिर्गी जैसे विकार।
  • खाने व सोने की असामान्य आदतें।
  • असामान्य मनोदशा व असामान्य प्रतिक्रियाएं
  • भय का अभाव या अपेक्षाकृत अधिक भय।

निदान

WHO और Center for disease control and Prevention  के अनुसार इस समस्या के मूल्यांकन, देखभाल व निदान निम्न प्रकार हो सकता है – 

  • ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) का निदान करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि विकार का निदान करने के लिए रक्त परीक्षण जैसे कोई चिकित्सा परीक्षण नहीं है। निदान करने के लिए डॉक्टर बच्चे के विकासात्मक इतिहास और व्यवहार को देखते हैं। 
  • सर्वप्रथम बच्चे के व्यवहार की निगरानी व उसके बाद प्रश्नावली व साक्षात्कार के माध्यम से ऑटिज्म की स्थिति को ज्ञात किया जाता है। इसका उपचार भी इसी कड़ी(मूल्यांकन, हस्तक्षेप व जागरुकता) को बनाकर किया जा सकता है।
  • शुरुआती साक्ष्य-आधारित मनोसामाजिक सहायता तक समय पर पहुंच ऑटिस्टिक बच्चों की प्रभावी ढंग से संवाद करने और सामाजिक रूप से बातचीत करने की क्षमता में सुधार कर सकती है। नियमित मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल के हिस्से के रूप में बाल विकास की निगरानी की सिफारिश की जाती है।
  • ऑटिज़्म और अन्य विकासात्मक अक्षमताओं वाले लोगों के साथ रहने वाले लोगों की भागीदारी आवश्यकता है। अधिक पहुंच, समावेशिता और समर्थन के साथ सामुदायिक और सामाजिक स्तरों पर कार्रवाई के साथ देखभाल की आवश्यकता है।
  • द हिंदू के अनुसार किसी भी अस्पताल के पास इस समस्या से ठीक हुए लोगों का डेटा नहीं है 
  • भारत में वे साधारण स्कूलों में कई समस्याओं के साथ पढ़ रहे हैं, जिनका कोई मूल्यांकन व जांच व निदान नहीं किया जाता।

वैश्विक स्तर पर ऑटिज्म

  • वैश्विक स्तर पर ऑटिज्म की पहचान सर्वाधिक यूनाइटेड स्टेट व यूनाइटेड किंगडम में की गई है।
  • इन देशों में ऑटिज्म य़ुक्त बच्चों में बौद्धिक क्षमता का स्तर औसत या उच्च होता है। जबकि भारत में ऐसे बच्चों की बौद्धिक क्षमता औसत या औसत से बहुत कम पाई गई है।
  •  अमेरिका व यूनाइटेड किंगडम में उपयुक्त नैदानिक ​​​​विशेषज्ञता तक पहुंच, मुख्यधारा के स्कूलों में शामिल करने के प्रावधानों की अनुमति, साथ ही ऑटिज़्म हस्तक्षेपों के लिए चिकित्सा बीमा कवरेज की उपलब्धता है जिससे उनको सामान्य स्थिति में लाना व ऑटिज्म युक्त बच्चे की विशेषज्ञता का क्षेत्र ज्ञात कर उसे उस दिशा में प्रेरित करना।

भारत की ऑटिज्म चुनौतियाँ

मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर-  द हिंदू के अनुसार भारत में 10000 से भई कम मनोचिकित्सक हैं, जिनमें से अधिकांश बड़े शहरों में निवास करते हैं। अतः इन तक पहुंच बढ़ाना अत्यंत कठिन है।

समस्या को अनदेखा करना- भारत में सामाजिक रूप से अक्सर ऐसी समस्याओं को अनदेखा किया जाता है। समय पर समस्या को अनदेखा करने पर निदान व उपचार कठिन हो जाता है। और ऑटिज्म जैसी न्यूरोडेवलपमेंटल स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं। 

आगे की राह

  • ऑटिज्म रोग के प्रति जागरुकता
  • मनोवैज्ञानिकों तक पहुँच प्रदान करना।
  • समय समय पर बच्चों का परीक्षण। 
  •  शोधकर्ताओं, चिकित्सकों, सेवा प्रदाताओं को अंत-उपयोगकर्ताओं के साथ अखिल भारतीय कार्यक्रम की आवश्यकता। ऑटिज़्म और न्यूरोडेवलपमेंटल स्थितियों के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम, एक स्पष्ट समयबद्ध रणनीति द्वारा समर्थित, देश भर में नवीन बहु-विषयक अनुसंधान और सहायता सेवाओं के एकीकृत कार्यक्रम के माध्यम से ऑटिस्टिक लोगों के जीवन में सुधार के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

स्रोत

Yojna IAS daily current affairs hindi med 3rd April 2023

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