ओजोन परत संरक्षण

ओजोन परत संरक्षण

  • वर्तमान में हुए एक अध्ययन के अनुसार उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांश  से 30 डिग्री उत्तरी  अक्षांश पर एक नए ओज़ोन छिद्र का पता चला है।
  • अंटार्कटिक से लगभग सात गुना बड़ा उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र है। यह छिद्र सभी मौसमों में दिखाई देता है, जबकि अंटार्कटिक पर बना ओज़ोन छिद्र केवल वसंत ऋतु में ही दिखाई देता है।
  • यह उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र वैश्विक चिंता का कारण बना हुआ है क्योंकि यह पृथ्वी की सतह का 50% हिस्से का निर्माण करता है।
  • इस ओजोन छिद्र के कारण बहुत से नकारात्मक प्रभाव पड़ने के साथ ही त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
    • ओज़ोन परत का रासायनिक सूत्र O3 है जबकि हम लोग जो O2 ग्रहण करते हैं । ओज़ोन पृथ्वी के समताप मंडल में 10 से 40 किमी. के बीच में उच्च स्तर पर पाई जाने वाली समग्र ओज़ोन का लगभग 90% हिस्सा यहाँ पाया जाता है।
    • सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाने के लिए ह एक सुरक्षात्मक परत बनाती है।
    • मानव निर्मित रसायनों जैसे कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC), हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म के कारण ओज़ोन धीरे-धीरे नष्ट हो रही है।
    • सतही स्तर का ओज़ोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है, जो पृथ्वी के निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल) में ओजोन का निर्माण कारों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियों, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषक सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रासायनिक रूप से प्रतिक्रिया द्वारा होता है।
    • शीतलक, फोमिंग एजेंट, अग्निशामक, सॉल्वैंट्स, कीटनाशकों एवं एरोसोल प्रणोदक के उपयोग से ओजोन क्षरण होता है ।
      • ओज़ोन-क्षयकारी पधार्थों  को एक बार हवा में छोड़े जाने के बाद इनका बहुत धीरे-धीरे क्षय होता है।
      • यह लगतार क्षोभमंडल से गुज़रते हुए वर्षों तक बरकरार रह सकते हैं जब तक ये समताप मंडल तक नहीं पहुँच जाते ।
      • सूर्य की UV-किरणों की तीव्रता से टूटती है  और क्लोरीन एवं ब्रोमीन अणु छोड़ते हुए, समताप मंडल में ओज़ोन को नष्ट कर देते हैं।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:

    • ओजोन में छिद्र होने के कारण यह UV किरण की मात्रा को बढ़ाता है जो पृथ्वी की सतह तक पहुँचती है।
      • घातक मेलेनोमा विकास में प्रमुख भूमिका निभाता है और  UV गैर-मेलेनोमा त्वचा कैंसर का कारण बनता है।
      • आँखों के लेंस को धुँधला करके मोतियाबिंद का कारण बनता है।
  • पौधों पर प्रभाव:

    • UV विकिरण से पौधों की वृद्धि सीधे प्रभावित हो सकती है। पौधों की भौतिक और विकासात्मक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है।
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
    • फाइटोप्लांकटन जलीय खाद्य जाल शृंखला का निर्माण करते हैं।
      • फाइटोप्लांकटन में अभिविन्यास और गतिशीलता दोनों  सौर UV विकिरण के संपर्क में आने से प्रभावित होते हैं, इसी वजह से इन जीवों के जीवित रहने की दर कम हो गई है।
  • जैव रासायनिक चक्र पर प्रभाव:

    • स्थलीय और जलीय जैव-भू-रासायनिक चक्रों में वृद्धि को UV विकिरण  प्रभावित कर सकती है, साथ ही साथ ग्रीनहाउस तथा रासायनिक रूप से महत्त्वपूर्ण ट्रेस गैसों (जैसे,  कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, ओज़ोन, कार्बोनिल सल्फाइड,  और संभवतः अन्य गैसों) में परिवर्तन कर सकती है।
  • पदार्थों पर प्रभाव :

    • UV विकिरण प्रतिकूल रूप सिंथेटिक पॉलिमर, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले बायोपॉलिमर, साथ ही व्यावसायिक हित की कुछ अन्य पदार्थ  को प्रभावित कर सकती है।
      • UV स्तरों में वृद्धि उनके टूटने में तेज़ी लाएगी, जिससे उनकी समय अवधि सीमित हो जाएगी जिसके लिये वे उपयोगी हैं।

ओजोन परत संरक्षण 

  • वियना कन्वेंशन:
    • संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने समताप मंडल की ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण को रोकने के लिये वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता जिसके तहत ओजोन संरक्षण को मौलिक महत्त्व की मान्यता दी थी।
    • ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये भारत 18 मार्च, 1991 को वियना कन्वेंशन का एक पक्षकार बना।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:

    • वर्ष 1987 में आयोजित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों पर तथा इसके सफल संशोधनों को बाद में मानवजनित (ODS) और कुछ हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) की खपत एवं उत्पादन को नियंत्रित करने के लिये की गई थी।
    • ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों पर भारत 19 जून, 1992 को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का पक्षकार बना।
  • किगाली संशोधन:

    • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन, 2016 को अपनाने से कुछ HFCs के उत्पादन और खपत में कमी आएगी तथा अनुमानित वैश्विक वृद्धि एवं संबंधित जलवायु परिवर्तन से बचा जा सकेगा।
  • यूरोपीय संघ विनियमन:

    • ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों पर यूरोपीय संघ का कानून विश्व में सबसे सख्त और सबसे उन्नत कानूनों में से एक है।  यूरोपीय संघ ने न केवल मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लागू किया है, बल्कि नियमों की एक शृंखला के माध्यम से आवश्यकता से अधिक खतरनाक पदार्थों को तेज़ी से नष्ट कर दिया है।
    • ओज़ोन- अवक्षय पदार्थों के सभी निर्यात और आयात हेतु लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को निर्धारित करने हेतु यूरोपीय संघ ओज़ोन विनियमन किया गया है इस विनियम में न केवल मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (90 से अधिक रसायनों) द्वारा कवर किये गए पदार्थों बल्कि कुछ ऐसे पदार्थ जो कवर नहीं किये गए हैं (पाँच अतिरिक्त रसायन जिन्हें ‘नए पदार्थ’ कहा जाता है), को भी नियंत्रित व मॉनिटर करता है।
  •  हाइड्रोकार्बन गैर-ओडीएस विकल्पों के रूप में सुरक्षित उपयोग हेतु भारत के नियम:

    • आइसोब्यूटेन और साइक्लोपेंटेन सहित हाइड्रोकार्बन एरोसोल, फोम-ब्लोइंग तथा प्रशीतन (Refrigeration) क्षेत्रों में उपयोग के लिये गैर-ओडीएस विकल्पों के रूप में उपलब्ध हैं।
    • हाइड्रोकार्बन का सुरक्षित उपयोग भारत में पेट्रोलियम कानूनों द्वारा विनियमित किया जाता है।
      • पेट्रोलियम अधिनियम, 1934 और पेट्रोलियम नियम, 1976 विभिन्न प्रकार के पेट्रोलियम उत्पादों के संचालन से संबंधित हैं।
      • यह हाइड्रोकार्बन के प्रबंधन हेतु लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को भी निर्दिष्ट करता है।
      • सिलेंडर भरने, रखने, आयात और परिवहन करने से सम्बंधित गैस सिलेंडर नियम, 1981, को संबोधित किया गया है।

Yojna_daily_current_affairs 18_July

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