10 Jun कबीर
- हाल ही में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा ‘स्वदेश दर्शन योजना’ के तहत ‘मगहर’ (उत्तर प्रदेश) में ‘संत कबीर अकादमी और अनुसंधान केंद्र’ का उद्घाटन किया गया।
कबीर के बारे में:
- संत कबीर दास 15वीं शताब्दी के दौरान भारत के एक महान प्रसिद्ध संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ और कविताएँ ‘परमात्मा’ की महानता और एकता का वर्णन करती हैं।
- वे भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख संत कवि थे।
- कबीर किसी भी प्रकार के धार्मिक भेदभाव में विश्वास नहीं करते थे और सभी धर्मों को सहजता से स्वीकार कर लेते थे।
- उन्होंने ‘कबीर पंथ’ नामक एक धार्मिक समुदाय की स्थापना की और उसके अनुयायी ‘कबीर पंथी’ कहलाते हैं।
- स्वामी रामानन्द का प्रभाव वैष्णव संत स्वामी रामानन्द ने कबीर को अपना शिष्य स्वीकार किया। कबीर दास की विचारधारा उनसे काफी प्रभावित थी।
निर्गुण परंपरा:
- ‘निर्गुण परंपरा’ भक्ति आंदोलन के भीतर एक संप्रदाय है और ‘संत कबीर’ इस संप्रदाय के एक प्रमुख सदस्य थे। इस परंपरा में, भगवान को एक सार्वभौमिक और निराकार प्राणी माना जाता है।
प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियाँ:
- बीजक, सखी ग्रंथ, कबीर ग्रंथवाली और अनुराग सागर।
- उनके छंदों को सिख ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में भी शामिल किया गया है।
- उनकी रचनाओं का एक बड़ा हिस्सा सिखों के पांचवें गुरु, गुरु अर्जन देव द्वारा एकत्र किया गया था।
- संत कबीरदास की रचनाओं की पहचान उनके दो पंक्ति के दोहे हैं, जिन्हें ‘कबीर के दोहे’ के नाम से जाना जाता है।
जाति व्यवस्था के खिलाफ:
- कबीर ने ‘जाति व्यवस्था’ का कड़ा विरोध किया और ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले जटिल अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों को दूर करने की मांग की।
- उन्होंने अपने समय के अन्य प्रमुख संतों की तरह, यह तर्क दिया कि केवल भक्ति के माध्यम से, गहन प्रेम या ईश्वर की भक्ति के माध्यम से ही कोई मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
- उन्होंने जातिगत भेदभाव को मिटाने की कोशिश की और एक ‘समतावादी समाज’ बनाने की कोशिश की।
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