कवच प्रणाली

कवच प्रणाली

सिलेबस: जीएस 3 / विज्ञान और प्रौद्योगिकी

संदर्भ-

  • ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे की वजह से 290 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। इस हादसे के बाद से कवच सुर्खियों में आया।

कवच क्या है?

  • कवच सिस्टम में हाई फ्रीक्वेंसी के रेडियो कम्युनिकेशन का इस्तेमाल किया जाता है। कवच प्रणाली तीन स्थितियों में काम करतीहै – हेड ऑन टकराव, रियर एंड टकराव, सिग्नल खतरा।
  • यह भारत की अपनी स्वचालित सुरक्षा प्रणाली है, जो 2012 से ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम (टीसीएएस) के नाम से विकास में है। अब इसका नाम बदलकर “कवच” कर दिया गया है।
  • यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) उपकरणों का एक संग्रह है जो लोकोमोटिव, सिग्नलिंग सिस्टम और पटरियों में स्थापित होते हैं।
  • यह प्रणाली ट्रेन के ब्रेक और ड्राइवरों को नियंत्रित करने के लिए अल्ट्रा-हाई रेडियो फ्रीक्वेंसी के माध्यम से एक दूसरे के साथ संवाद करते हैं। संवाद की प्रक्रिया उनमे प्रोग्राम किए गए लॉजिकल प्रोग्राम पर आधारित होगी।
  • कवच, अपने वर्तमान स्वरूप में, सुरक्षा अखंडता स्तर (एसआईएल) 4 के रूप में ज्ञात उच्चतम स्तर की सुरक्षा और विश्वसनीयता मानक का पालन करता है।
  • एक उच्च एसआईएल स्तर उच्च स्तर की प्रक्रिया के संकट को इंगित करता है।
  • अपने नए रूप में, भारत कवच को एक निर्यात योग्य प्रणाली के रूप में स्थापित करना चाहता है, जो दुनिया भर में लोकप्रिय यूरोपीय प्रणालियों के लिए एक सस्ता विकल्प सिद्ध होगा।

महत्व-

  • कवच प्रणाली से रेल पटरियों पर ट्रेनों की टक्कर जैसी दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिलेगी।
  • एक बार सिस्टम सक्रिय हो जाने के बाद 5 किलोमीटर की सीमा के भीतर सभी ट्रेनें आसन्न पटरियों पर ट्रेनों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये रुकेंगी।
  • आपातकालीन स्थितियों के दौरान यह SoS संदेशों को भी रिले करता है।
  • नेटवर्क मॉनिटर सिस्टम के माध्यम से ट्रेन की आवाजाही की लाइव निगरानीरखी जा सकती है।
  • इसमें सिग्नलिंग इनपुट को इकट्ठा करने के लिये स्थिर उपकरण भी शामिल होंगे और ट्रेन के चालक दल तथा स्टेशनों के साथ निर्बाध संचार को सक्षम करने के लिये उन्हें एक केंद्रीय प्रणाली में रिले किया जाएगा।
  • यह सेफ्टी इंटीग्रिटी लेवल – 4 मानकों की अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है।

यह कैसे काम करता है?

  • इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक,सिंगनल और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है।
  • ये सिस्टम दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्युनिकेट करता है।
  • जैसे ही कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है, तो कवच एक्टिव हो जाता है। इसके बाद सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है।
  • जैसे ही सिस्टम को पता चलता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है, तो वो पहली ट्रेन के मूवमेंट को रोक देता है। सिस्टम लगातार ट्रेन की मूवमेंट को मॉनिटर करता है और इसके सिग्नल भेजता रहता है।

कवच का उपयोग करने के क्या है फायदे?

  1. ट्रेन के टकराने के जोखिम को करता है कम:-अगर कोई ट्रेन रेड सिग्नल या दूसरी ट्रेन के बहुत करीब आ रही है तो कवच स्वचालित रूप से ब्रेक लगा सकता है। यह मानव त्रुटि के कारण होने वाली ट्रेन टक्करों को रोकने में मदद कर सकता है।
  2. ट्रेन परिचालन दक्षता में करता है सुधार:-कवच ट्रेनों को ओवर-स्पीडिंग से रोककर और टक्कर होने के खतरे को कम करके ट्रेन परिचालन दक्षता में सुधार करने में मदद कर सकता है। इससे यात्रा का समय कम हो सकता है और लागत कम हो सकती है।
  3. यात्रियों की सुरक्षा को बढ़ाता है-कवच ट्रेन की टक्कर के खतरे को कम करके यात्रियों की सुरक्षा बढ़ाने में मदद कर सकता है। यह उन यात्रियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो लंबी दूरी की ट्रेनों में यात्रा करते हैं। कवच भारतीय रेलवे के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा सुधार है। इसमें जान बचाने और ट्रेन दुर्घटनाओं की संख्या को कम करने की क्षमता है।

कुछ अन्य सुरक्षा प्रणालियाँ और उपाय-

  • स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली (Automatic Signaling Systems): सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली (TPWS) और ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (TCAS) जैसी स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली को उत्तरोत्तर लागू कर रही है। ये प्रणालियाँ ट्रेन की गतिविधियों की निगरानी और गति प्रतिबंधों को लागू करके टकराव और सिग्नल ओवरशूटिंग को रोकने में मदद करती हैं।
  • टक्कर-रोधी उपकरण (Anti-Collision Devices): ACD लोकोमोटिव पर स्थापित उपकरण हैं जो टकराव को रोकने के लिए GPS और रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीक का उपयोग करते हैं। वे संभावित टक्कर होने के खतरे के समय ट्रेन चालक दल को ऑडियो और विजुअल चेतावनी देते हैं।
  • फायर एंड स्मोक डिटेक्शन सिस्टम (Fire and Smoke Detection Systems): आग या धुएं की घटनाओं के बारे में अधिकारियों को पहचानने और सतर्क करने के लिए ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों में फायर और स्मोक डिटेक्शन सिस्टम स्थापित किए जाते हैं। ये सिस्टम किसी भी संभावित खतरे को रोकने या कम करने के लिए समय पर कार्रवाई शुरू करने में मदद करते हैं।
  • सीसीटीवी निगरानी (CCTV Surveillance): भारतीय रेलवे सुरक्षा बढ़ाने और गतिविधियों की निगरानी के लिए स्टेशनों, ट्रेनों और महत्वपूर्ण स्थानों पर CCTV कैमरों के उपयोग का विस्तार कर रहा है। ये कैमरे यात्रियों की सुरक्षा में सुधार करते हुए प्लेटफार्मों, स्टेशनों और ट्रेनों की निगरानी में मदद करते हैं।
  • रखरखाव और ट्रैक निरीक्षण (Maintenance and Track Inspection): सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पटरियों, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचे के तत्वों का नियमित रखरखाव और निरीक्षण महत्वपूर्ण है। भारतीय रेलवे समय-समय पर निरीक्षण करता है और किसी भी रखरखाव आवश्यकताओं को तुरंत पहचानने और संबोधित करने के लिए अल्ट्रासोनिक परीक्षण, ट्रैक ज्यामिति माप प्रणाली और हवाई सर्वेक्षण जैसी विभिन्न तकनीकों का उपयोग करता है।

प्रगति और स्थिति-

  • जानकारी के मुताबिक रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन ने कवच प्रणाली को मार्च 2023 तक 77 इंजनों और 135 स्टेशनों में दक्षिण मध्य रेलवे पर 1,455 रूट किलोमीटर पर कवच लगा दिया है और बाकी काम चल रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, सिकंदराबाद स्थित भारतीय रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूरसंचार संस्थान (आईआरआईएसईटी) कवच के लिए ‘उत्कृष्टता केंद्र’ की मेजबानी करता है। आईआरआईएसईटी को रेलवे बोर्ड द्वारा कवच पर सेवारत रेलवे कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए अनिवार्य किया गया है।
  • रेल पटरियों पर होने वाले हादसों को रोकने के लिए रेलवे बोर्ड ने 34,000 किलोमीटर रेल मार्ग के साथ कवच तकनीक को मंजूरी दी थी, जिसके तहत लक्ष्य रखा गया था कि मार्च 2024 तक सबसे ज्यादा बिजी रहने वाली ट्रेन लाइनों पर कवच लगा दिया जाएगा।

स्रोत: TH

 

 

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