कश्मीर और मार्तंड मंदिर का प्रारंभिक इतिहास

कश्मीर और मार्तंड मंदिर का प्रारंभिक इतिहास

कश्मीर और मार्तंड मंदिर का प्रारंभिक इतिहास

संदर्भ- हाल ही में कुछ तीर्थयात्रियों ने भारतीय सर्वेक्षण संस्थान मार्तण्ड मंदिर में पूजा अर्चना की। इसके तुरंत बाद जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल ने नवग्रह पूजा में भाग लिया।

कश्मीर का इतिहास-

  • कश्मीर के इतिहास के लिए कल्हण की राजतरंगिणी को ही एकमात्र प्रमाणिक व प्रथम स्रोत माना जाता है।
  • दुर्लभ वर्धन को कश्मीर के कारकोट राजवंश का संस्थापक माना जाता है। चीनी तीर्थयात्री, हुआनत्सांग ने कश्मीर का दौरा किया और 631 ईस्वी से 633 ईस्वी तक तीन साल बिताए। उन्होंने कश्मीर और उसके लोगों, बौद्ध मठों, बुद्ध के अवशेषों वाले अशोक के स्तूपों का एक विस्तृत विवरण दिया है। चीनी इतिहास के अनुसार, उनके क्षेत्र कश्मीर से आगे बढ़े और सिक्के जारी करने वाले कश्मीर के पहले राजा थे।
  • ललितादित्य मुक्तापीड़ – कार्कोट राजवेश के सबसे प्रतिष्ठित शासक ललितादित्य मुक्तापीड़ थे।
  • ललितादित्य ने परिहासपुरा में अपनी राजधानी स्थापित की थी। 
  • ललितादित्य ने कम्बोज, तुर्क, खस, दरद,तिब्बतियो को पराजित कर एकछत्र शासन किया। इनके काल में कश्मीर का शासनकाल बंगाल व मध्य एशिया तक पहुँच गया था।
  • साम्राज्य विस्तार के साथ ललितादित्य ने कला को विशेष संरक्षण प्रदान किया।
  • धार्मिक दृष्टि से उदार होने के कारण उसने हिंदू व बौद्ध मंदिर बनवाए। इसमें कश्मीर का मार्तण्ड मंदिर सुप्रसिद्ध है।

मार्तण्ड मंदिर का इतिहास- 

  • मार्तण्ड मंदिर कश्मीर के दक्षिणी भाग में अनंतनाग से पहलगाम मार्ग पर स्थित है।
  • मार्तण्ड मंदिर का निर्माण कश्मीर के कार्कोट राजवंश के ललितादित्य ने अपने शासनकाल (725-753ई.) में करवाया था।
  • मार्तण्ड मंदिर सूर्य को समर्पित मंदिर है। मार्तण्ड का संस्कृत पर्याय सूर्य भी होता है।
  • कुछ विद्वानों के अनुसार यह मंदिर प्राचीनकाल से मौजूद था और ललितादित्य ने इसे भव्य रूप दिया। 

मंदिर का विनाश-

  • 15वी शताब्दी की शुरुआत में सिकंदर बुतशिकन के शासन के दौरान हिंदुओं को जबरन इस्लाम ग्रहण करने के लिए मजबूर किया गया और कहा जाता है कि मार्तण्ड मंदिर समेत सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था।
  • भूकंप, चिनाई में दोष और मौसम की अधिकता भी मंदिर के विनाश के कारण माने जाते हैं।

मार्तण्ड मंदिर की स्थापत्यकला

  • मंदिर कश्मीरी शैली पर निर्मित है। जिसमें ग्रीक रोमन, बौद्ध गांधार,उत्तर भारतीय शैली का कुछ प्रभाव है।
  • एक चतुष्कोणीय प्रांगण के केंद्र में स्थित मंदिर, उत्तर और दक्षिण की ओर दो संरचनाओं से मिलकर बनी है।
  • मंदिर के स्थापत्य को तीन भागों में बांटा जा सकता है- मंडप, गर्भगृह और अंतराल।
  • मंदिर 63 फीट की ऊँचाई के कारण भव्य था।
  • मंदिर में उत्कृष्ट नक्काशी युक्त पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
  • मंदिर से प्राप्त मूर्तियों की शैली गुप्तकाल की मूर्तिकला से मिलती जुलती है।
  • मंदिर की दीवारों में चूने के मोर्टार का प्रयोग कर ग्रे चूना पत्थर के विशाल ब्लॉक का प्रयोग किया गया है।

स्रोत-

https://indianexpress.com/article/upsc-current-affairs/

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 21th September

 

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