कार्बन मूल्य निर्धारण

कार्बन मूल्य निर्धारण

कार्बन मूल्य निर्धारण

संदर्भ- हाल के कुछ वर्षों से देश के विकास के लिए पर्यावरण को मूल्य चुकाना पड़ा है जिसका परिणाम निर्बाध कार्बन उत्सर्जन के रूप में हुआ है। कुछ वर्षों से कार्बन उत्सर्जन में कमी को लेकर देश आगे आ रहे हैं। जी 20 सम्मेलन में भारत(अध्यक्ष) से अपेक्षा की जा रही है कि इसका हल कार्बन मूल्य निर्धारण के रूप में किया जाएगा।

कार्बन मूल्य निर्धारण- 

  • कार्बन मूल्य निर्धारण किसी उद्योग या देश के कुल कार्बन उत्सर्जन से पर्यावरण में हुए नुकसान की भरपाई के लिए निर्धारित बाह्य लागत है। बाह्य लागत वह लागत है जिसे जनता अन्य तरीकों से भुगतान करती है।
  • कार्बन की कीमत नुकसान के बोझ को उन लोगों या देशों पर वापस लाने में मदद करती है जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, और जो इसे कम कर सकते हैं।
  • यदि कम्पनियाँ सीमित मात्रा से अधिक कार्बन का उत्सर्जन करती है, तो उन्हें या तो आधिकारिक नीलामी के माध्यम से या कम उत्सर्जन करने वाली कम्पनियों से अतिरिक्त परमिट खरीदना पड़ता है। यह कैप एंड ट्रेड में व्यापार बनाता है।
  • 2015 के पेरिस समझौते के बाद विकासशील देशों ने उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य निर्धारित किया।
  • अब तक कार्बन उत्सर्जन मूल्य निर्धारण के तीन तरीके हैं – 
  1. कोरिया और सिंगापुर की तरह घरेलू स्तर पर कार्बन टैक्स की स्थापना।
  2. यूरोपीय युनियन व चीन की तरह उत्सर्जन व्यापार प्रणाली का प्रयोग 
  3. और यूरोपीय युनियन द्वारा प्रस्तावित कार्बन सामग्री पर आयात शुल्क लगाना।

वैश्विक प्रयास

  • विश्व के 46 देश कार्बन उत्सर्जन के लिए मुआवजा देते हैं, जबकि यह देश कुल कार्बन उत्सर्जन में केवल 30% का योगदान दे रहे हैं।
  •  अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और भारत के लिए क्रमशः $75, $50, और $25 प्रति टन कार्बन की न्यूनतम कीमत प्रस्तावित की है। इसका मानना ​​है कि इससे 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 23% की कमी लाने में मदद मिल सकती है।
  • कार्बन मूल्य निर्धारण अप्रत्यक्ष रूप से नवीकरणीय संसाधनों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा पर अधिक ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करता है। इन संसाधनो के लिए भारत अत्यधिक अनुकूल प्रतीत होता है।

भारत में कार्बन मूल्य निर्धारण

  • मूल्य निर्धारण के तीन तरीकों में से, भारत को कार्बन टैक्स आकर्षक लग सकता है क्योंकि यह जीवाश्म ईंधन को सीधे तौर पर हतोत्साहित कर स्वच्छ ऊर्जा युक्त संसाधनों को प्रोत्साहित कर सकता है। क्योंकि भारत में सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा में निवेश कर उचित राजस्व अर्जित किया जा सकता है।(Cop 26 के दौरान भारत ने 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
  • भारत में स्वच्छ ऊर्जा के प्रयोग से पेट्रोलियम करों की अधिक अक्षम योजना को प्रतिस्थापित किया जा सकता है जो सीधे उत्सर्जन के उद्देश्य से नहीं हैं।
  • गैसोलीन यानि पैट्रोलियम की कीमतों (करों और सब्सिडी सहित) के आधार पर सऊदी अरब और रूस निचले सिरे पर हैं, मध्य श्रेणी में चीन और भारत, और उच्च श्रेणी में जर्मनी और फ्रांस हैं। 
  • भारत सहित अधिकांश देशों की राजकोषीय नीति ने कार्बन टैक्स को लागू करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को निर्धारित किया है। उदाहरण के लिए, उन्हें सड़क-ईंधन करों के रूप में वसूल किया जा सकता है, जो अधिकांश स्थानों पर स्थापित हैं, और उद्योग और कृषि तक विस्तारित हैं। नीति निर्माताओं को कर की दर चुननी होती है, जो जापान के $2 से व्यापक रूप से भिन्न होती है।
  • भारत में कार्बन बाजार स्थापित करने और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना को निर्दिष्ट करने के लिए सरकार ने ऊर्जा संरक्षण बिल 2001 मं संशोधन किया है।

आगे की राह-

अकेले चीन, अमेरिका, भारत, रूस और जापान में पर्याप्त उच्च कार्बन टैक्स, पूरक कार्यों के साथ, वैश्विक प्रदूषण और वार्मिंग पर एक उल्लेखनीय प्रभाव डाल सकता है। यह डीकार्बोनाइजेशन को एक विजयी विकास सूत्र के रूप में देखने का मार्ग भी प्रशस्त कर सकता है। 

कार्बन उत्सर्जक देशों को पर्यावरण को प्राथमिकता देते हुए नीतियाँ बनानी होंगी जिससे पर्यावरण का कम से कम नुकसान हो।

स्रोत

द हिंदू

Yojna IAS daily current affairs hindi med 4th April 2023

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