किंग्सवे से राजपथ और अब राजपथ से कर्तव्य पथ।

किंग्सवे से राजपथ और अब राजपथ से कर्तव्य पथ।

किंग्सवे से राजपथ और अब राजपथ से कर्तव्य पथ।

संदर्भ- सरकार ने प्रतिष्ठित खंड राजपथ व सेट्रल विंस्टा सॉन का नाम बदलने का फैसला किया है और नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) ने 7 सितंबर को एक विशेष बैठक बुलाई है जहां प्रस्ताव को परिषद के समक्ष रखा जाएगा। अपने हालिया स्वतंत्रता दिवस भाषण में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने औपनिवेशिक मानसिकता से संबंधित प्रतीकों के उन्मूलन पर जोर देते हुए कहा था कि “हमें औपनिवेशिक युग की मानसिकता को छोड़ना होगा। इसके बजाय, हमें अपनी क्षमताओं पर भरोसा करना चाहिए। ” 

राजपथ-  दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से इण्डिया गेट के पास स्थापित सुभाष चंद्र बोष जी की मूर्ति के तक लगभग 3.5 किलोमीटर लम्बे मार्ग को राजपथ कहा जाता है। जहाँ वर्तमान में गणतंत्र दिवस के अवसर पर झांकियों का अयोजन किया जाता है।

  • किंग्सवे – ब्रिटिशकाल 1911 में आयोजित दिल्ली दरबार में दिल्ली की राजधानी का स्थानांतरण कलकत्ता से दिल्ली घोषित किया गया। जिसमें किंग जॉर्ज पंचम व क्वीन मैरी ने राजधानी दिल्ली की आधारशिला रखी।
  • राजधानी के स्थापत्य के लिए एडवर्ड लुटियन को नियुक्त किया गया। 
  • लुटियन रायसेन की पहाड़ी पर स्थित वायसराय के निवास से दिल्ली के सभी महत्वपूर्ण स्थलों को एक साथ वायसराय को दिखाना चाहते थे। इस उद्देश्य हेतु किंग्सवे का निर्माण किया गया।
  • दिल्ली समेत किंग्सवे की सड़कों का निर्माण सरदार नारायण सिंह की निगरानी में हुआ। 
  • राजधानी का मुख्य केंद्र राजपथ था, जिसे किंग्सवे के नाम से जाना जाता था। जिसके एक ओर इण्डिया गेट और दूसरी ओर वायसराय का घर था। इसे द रॉयल रोड के नाम से भी जाना जाता था।
  • किंग्सवे नाम सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज के इतिहास के प्रोफ़ेसर पर्सिवल स्पियर ने दिया था। दरअसल, नई दिल्ली की तमाम सड़कों के नाम उन्हीं की सलाह पर अंग्रेज़ों की सरकार ने रखे थे.
  • किंग्सवे का नाम बदलकर राजपथ आजादी के बाद 1961 में कर दिया गया, किंतु यह नाम का अनुवाद मात्र था।

राजपथ स्थापत्यकला –

  • लुटियंस 20वीं सदी के अग्रणी और सबसे प्रतिभाशाली ब्रिटिश वास्तुकारों में से एक थे। अपनी रचनात्मकता के लिए जाने जाने वाले, उन्होंने निर्माण की पारंपरिक और पश्चिमी तकनीकों में खूबसूरती से मिश्रित डिजाइनिंग की विभिन्न शैलियों को अपनाया। यह स्थापत्य शैली राजपथ और आस-पास स्थित संरचनाओं सहित पूरी नई दिल्ली में दिखाई देती है।
  • उस समय के लिहाज से सरदार नारायण सिंह ने नई दिल्ली को बेजोड़ सड़कें दीं। तब सड़कों के नीचे भारी पत्थर डाल दिए जाते थे. फिर रोड़ी और तारकोल से सड़कें बनती थीं. नारायण सिंह के हिसाब से सड़कें गुज़रे बीसेक साल तक बनती रहीं।
  • राजपथ उत्तर और दक्षिण ब्लॉकों से घिरा है, जिन्हें सचिवालय भवन के रूप में भी जाना जाता है। उत्तरी ब्लॉक में गृह और वित्त मंत्रियों के कार्यालय हैं, जबकि रक्षा और विदेश मंत्री दक्षिणी ब्लॉक से काम करते हैं। इस क्षेत्र में प्रधान मंत्री के कई कार्यालय भी हैं। राजपथ राष्ट्रपति भवन में समाप्त होता है, इस एवेन्यू ने विभिन्न भारतीय राजनीतिक नेताओं के अंतिम संस्कार के जुलूस देखे हैं।
  • राजपथ की पूरी गली सोच समझकर बनाई गई है। सुंदर तालाब, हरे-भरे लॉन और दोनों तरफ ऊंचे पेड़ क्षेत्र के सुंदर रूप को पूरा करते हैं। इस गली का सबसे अधिक ध्यान देने योग्य पहलू जामुन के पेड़ और जावा प्लम हैं, जो चिलचिलाती गर्मी के दिनों में गर्मी को कम करने के लिए सड़कों के किनारे स्थापित हैं। यह पेड़ लुटियन के बागवानी मामलों के मुख्य सलाहकार डब्ल्यू आर. मुस्टो द्वारा लगाए गए थे।

नाम परिवर्तन की प्रक्रिया- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 3 के तहत में क्षेत्र विशेष के नाम परिवर्तन के लिए संसद की एक विशिष्ट प्रक्रिया का पालन करना होता है।

प्रक्रिया

  • जिस राज्य का नाम, सीमा, क्षेत्र (names/boundaries/area) बदला जाना है उस राज्य का विधानमंडल इस विषय में एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगा। इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त करना अनिवार्य है. अनुमोदन के उपरान्त केंद्र सरकार उस प्रस्ताव को पुनः सम्बंधित राज्य/राज्यों के विधानमंडल को अपना विचार रखने एवं एक निश्चित समय के अन्दर उसे संसद में प्रस्तुत करने के लिए कहेगी.
  • राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित समय-सीमा को ध्यान में रखते हुए विधान मंडल द्वारा विधेयक को वापस संसद के पास भेजा जाता है. वैसे राष्ट्रपति अगर चाहे तो वह इस समय-सीमा को बढ़ा भी सकता है.
  • यदि विधान मंडल द्वारा निर्धारित समय के भीतर विधेयक संसद के पास नहीं भेजा जाता है तो राष्ट्रपति विधेयक को संसद में प्रस्तुत कर सकता है.
  • वैसे संसद विधान मंडल द्वारा भेजे गए विधेयक को मानने के लिए बाध्य नहीं है। यदि संसद चाहे तो साधारण बहुमत द्वारा राज्य के विधानमंडल की राय के विरुद्ध भी जा सकती है और कोई अन्य नाम का निर्धारण कर सकती है।

संवैधानिक प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद राजपथ का नाम कर्तव्य पथ कर दिया जाएगा।

 

 

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