क्या आपराधिक मामलों में सांसदों का विशेषाधिकार लागू नहीं होता?

क्या आपराधिक मामलों में सांसदों का विशेषाधिकार लागू नहीं होता?

संदर्भ क्या है ?

  • पिछले कुछ दिनों से सांसदों में अपने विशेषाधिकारों को लेकर भ्रम की स्थिति थी और यह भ्रांति थी कि जांच एजेंसी संसद सत्र के दौरान सांसदों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती है।
  • राज्यसभा के तत्कालीन सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि आपराधिक मामलों में सांसदों को विशेषाधिकार नहीं होते हैं। संसद सत्र के दौरान ऐसे मामलों में सदस्यों को गिरफ्तारी से छूट नहीं है, इसलिए वे जांच एजेंसियों द्वारा जारी किए गए सम्मन से बच नहीं सकते हैं।  विशेषाधिकार आपराधिक मामलों में किसी सांसद को संरक्षण नहीं देते हैं  इसलिए आपराधिक मामलों की कार्रवाई में सांसद भी सामान्य नागरिक की तरह होते हैं और उन्हें संसद सत्र या समिति की बैठक के दौरान गिरफ्तार करने पर कोई रोक नहीं  है।
  • कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा ‘सत्र के दौरान प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उन्हें तलब करने’ के संबंध में सदन में मुद्दा उठाए जाने के बाद सभापति ने यह टिप्पणी की।

संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं ?

  • संसदीय विशेषाधिकार मूल रूप से ऐसे विशेषाधिकार हैं जो संसद के प्रत्येक सदन को सामूहिक रूप से और साथ ही सांसदों  को व्यक्तिगत रूप से उपलब्ध होते हैं। इनका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 194 में किया गया है। अनुच्छेद 105 संसदीय विशेषाधिकारों की बात करता है, जबकि अनुच्छेद 194 राज्य विधायिका से जुड़े विशेषाधिकारों से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 105(1) में कहा गया है कि ‘संविधान के प्रावधानों, प्रक्रिया के नियमों और संसद के स्थायी आदेशों के अधीन, संसद में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।’ आगे इसी अनुच्छेद के खंड (2) में, ‘संसद या संसदीय समिति में संसद सदस्य द्वारा कहे गए किसी भी मत या राय के संबंध में उसके खिलाफ न्यायालय में कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
  • सामूहिक विशेषाधिकार के तहत सदन की रिपोर्ट के प्रकाशन, वाद-विवाद की कार्यवाही आदि के प्रकाशन पर सीमाएं हैं । इसके अलावा, सदन की अवमानना ​​पर दंडित करने की शक्ति, बाहरी लोगों सहित सदस्यों को कार्यवाही से निष्कासित करना, विशेष मामलों पर गुप्त  बैठकें रखना, न्यायालयों को संसद की कार्यवाही की जाँच करने पर प्रतिबन्ध आदि ।
  • व्यक्तिगत विशेषाधिकारों  में से एक यह है कि संसद सत्र या समिति की बैठक शुरू होने के 40 दिन पहले और उसके 40 दिनों बाद तक  संसद सदस्य को किसी भी ‘सिविल केस’ में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। यह विशेषाधिकार पहले से ही ‘सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908’ की धारा 135ए में शामिल है।

महत्वपूर्ण निर्णय :

  • 1966 में, डॉ. जाकिर हुसैन ने कहा कि “संसद के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं ताकि वे अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें”।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने के आनंदन नांबियार और अन्य’ मामले में माना कि वास्तविक संवैधानिक स्थिति यह है कि जहां तक ​​’हिरासत’ या ‘निरोध’ के वैध आदेश का संबंध है, एक संसद सदस्य किसी विशेष दर्जे का दावा नहीं कर सकता । एक सामान्य नागरिक की तुलना में, और इस प्रकार वह एक आम नागरिक की तरह सत्र के दौरान गिरफ्तार, हिरासत में या पूछताछ के लिए उत्तरदायी है।
  •  सुप्रीम कोर्ट ने ‘केरल राज्य बनाम के. अजित और अन्य मामले में कहा कि “विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां देश के सामान्य कानून से छूट का दावा करने के लिए प्रवेश द्वार नहीं हैं, विशेष रूप से आपराधिक कानून, जो प्रत्येक नागरिक द्वारा किए गए कार्यों को नियंत्रित करता है।” 

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