गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए)

गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए)

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन – भारतीय राजनीति एवं शासन व्यवस्था , गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक 2019, गृह मंत्रालय , आतंकवादी कृत्य , एनआईए, मानवाधिकार , मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध।

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में 5 मार्च 2024 को बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को कथित माओवादी संगठन से संबंध रखने के मामले में बरी कर दिया है और उन पर लगाए गए आजीवन कारावास की सजा को भी रद्द कर दिया है। 
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने इस मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया है।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने यह कहते हुए कहा कि – “ वह उन सभी आरोपियों को बरी कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ उचित संदेह के आधार पर मामला साबित करने में विफल रहा है।” 
  • इस खंडपीठ ने कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत आरोपियों पर आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्राप्त मंजूरी को भी “अमान्य और शून्य” माना।
  • अभियोजन पक्ष ने बॉम्बे उच्च न्यायालय से अपने आदेश पर रोक लगाने की मांग नहीं की, लेकिन उसने कहा कि वह तुरंत सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सकता है।
  • 14 अक्टूबर, 2022 को, बॉम्बे उच्च न्यायालय  की एक अन्य पीठ ने साईबाबा को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि –  “ यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में मुकदमे की कार्यवाही शून्य थी।” 
  • महाराष्ट्र सरकार ने उसी दिन बॉम्बे उच्च न्यायालय के इस फैसले को चुनौती देते हुए भारत के उच्चतम न्यायालय  में अपील दायर किया था।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय ने शुरू में आदेश पर ही रोक लगा दिया था किन्तु अप्रैल 2023 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और प्रोफेसर साईबाबा द्वारा दायर अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया था ।
  • प्रोफेसर साईबाबा को 2014 में गिरफ्तार किया गया था। निचली अदालत ने प्रोफेसर साईबाबा सहित अन्य पांच लोगों सहित छहों को दोषी ठहराया था और उनमें से पांच को उम्रकैद और एक को 10 साल की सजा सुनायी थी।
  • प्रोफेसर साईबाबा जो अपनी शारीरिक विकलांगता के कारण व्हीलचेयर पर रह रहे थे, उनको  वर्ष 2014 से ही इस  में मामले में गिरफ्तारी के बाद से ही नागपुर सेंट्रल जेल में बंद रखा गया है।
  • महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने वर्ष 2017 में, कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में  प्रोफेसर साईबाबा, एक पत्रकार और अन्य लोगों को दोषी भी ठहराया था। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें यूएपीए कानून और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था।

गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 का परिचय एवं उद्देश्य : 

 

गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 का मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों और संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम और आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए और उससे जुड़े मामलों के लिए अधिनियमित किया गया था। 

यह अधिनियम व्यक्ति/ व्यक्तियों या संगठनों द्वारा की गई निम्नलिखित कार्रवाई को गैर-कानूनी गतिविधि के रूप में परिभाषित करता है  –

  • किसी भी व्यक्ति या संगठन द्वारा किया जाने वाला ऐसी कोई भी कार्रवाई, जो भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग पर अधिकार या नियंत्रण स्थापित करती हो।  
  • किसी भी व्यक्ति या संगठन द्वारा किया जाने वाला ऐसी कोई भी कार्रवाई, जो भारत की संप्रभुता को खंडित या भारत की अखंडता और एकता  के लिए खतरा पैदा करती हो। 
  • इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार किसी भी दोषी संगठन को आतंकवादी संगठन के रूप में घोषित कर सकती है
  • इस अधिनियम में DSP या ACP या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा जांच की जा सकती है।
  • गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम, 2019 के तहत परमाणु आतंकवाद से संबंधित कृत्यों के दमन हेतु अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (2005) को सूची में जोड़ा गया है।

गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम 1967 से संबंधित मुद्दे : 

  • इसके अंतर्गत गिरफ़्तारी की अवधि बढ़ा दी जाती है, जो आगे भी बढ़ती जाती है। इसके पहले सामान्य ज़मानत नहीं दी जा सकती है। साथ ही, नियमित ज़मानत भी न्यायाधीश की संतुष्टि के अधीन ही होती है।  
  • ज़मानत के अतिरिक्त यह प्रक्रिया पूर्व-परीक्षण, जघन्य आतंक अपराधों के दोषी माने जाने वाले अभियुक्तों के लिये लंबी अवधि की सुनवाई तथा कैद की लंबी अवधि को भी सुनिश्चित करती है।

भारत में गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत  व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंध : 

 

  • भारत के संविधान में  (16वां संशोधन) संशोधन के तहत, 1963, में  भारत की संप्रभुता और अखंडता की सुरक्षा के लिए भारतीय संसद ने को गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाने की शक्ति प्रदान किया है।.व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाने के संबंध में निम्नलिखित प्रतिबंध लगाया जा सकता है – 
  1. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
  2. शांतिपूर्वक और हथियारों के बिना एकत्र होने का अधिकार।
  3. संघ या संगठन बनाने का अधिकार।

गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत अभी तक की गई गिरफ्तारियां : 

  1. बिनायक सेन, एक डॉक्टर और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, उन्हें 2007 में कथित रूप से अवैध नक्सलियों का समर्थन करने के लिए गिरफ्तार किया  गया था।
  2. सुधीर धवाले, दलित अधिकार कार्यकर्ता, 2018 में गिरफ्तार।
  3. महेश राउत, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता 2018 में गिरफ्तार । 
  4. वरवारा राव, कवि, 2018 में गिरफ्तार।
  5. सुरेंद्र गडलिंग, दलित और आदिवासी अधिकार वकील, 2018 में गिरफ्तार।
  6. शोमा सेन, प्रोफेसर, 2018 में गिरफ्तार।
  7. सुधा भारद्वाज, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता, 2018 में गिरफ्तार। 
  8. रोना विल्सन, अनुसंधान विद्वान, 2018 में गिरफ्तार।
  9. गौतम नवलखा, पत्रकार और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (PUDR) के सदस्य, 2018 में गिरफ्तार। 

 

गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में संशोधन : 

  • भारत में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने न केवल एनआईए अधिनियम 2008 में संशोधन किया है, बल्कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में भी संशोधन किया है।.लोकसभा ने एनआईए संशोधन अधिनियम, 2019 को 15 जुलाई, 2019 को पारित किया और राज्यसभा ने इसे 17 जुलाई 2019 को पारित किया था। 
  • गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम की अनुसूची 4 में संशोधन कर एनआईए को अब यह अधिकार दिया गया है कि वह एक व्यक्ति को केवल आतंकी या आतंकियों से संबंध रखने की आशंका में गिरफ्तार कर सकता है।
  • वर्तमान में केवल संगठनों को ‘आतंकवादी संगठन’ के रूप में नामित किया गया है, लेकिन UAPA, 1967 में हुए संशोधन के तहत अब  एक ‘ व्यक्ति’ को संदिग्ध आतंकवादी ‘ भी कहा जा सकता है।

 

गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019

  • संबंधित मंत्रालय: – भारत का गृह मंत्रालय।
  • लोकसभा में 08 जुलाई, 2019 को यह विधेयक पेश किया गया और लोकसभा में यह 24 जुलाई, 2019 को पारित या पास हो गया।
    राज्य सभा में यह विधेयक 02 अगस्त 2019 को पारित या पास हो गया।
  • गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 गृह मंत्री श्री अमित शाह द्वारा 8 जुलाई, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया था। यह विधेयक गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में आतंकवादी गतिविधियों से निपटने की प्रक्रियाओं के संबंध में निम्नलिखित संशोधन करता है। इस एक्ट के अंतर्गत केंद्र सरकार किसी संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित कर सकती है। अगर वह   
  1. कोई व्यक्ति यदि आतंकवाद को बढ़ावा देता है।
  2. अन्यथा वह आतंकवादी गतिविधि में शामिल है।
  3. वह आतंकवादी घटना को अंजाम देने की तैयारी करता है।
  4. वह व्यक्ति आतंकवादी कार्रवाई करता है या उसमें भाग लेता है
  • यह विधेयक, सरकार को यह अधिकार देता है कि वह समान आधार पर किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित कर सकती है।
  • यह अधिनियम, भारतीय क्षेत्र के एक हिस्से के कब्जे या संघ से भारत के क्षेत्र के एक हिस्से के अलगाव को भी प्रतिबंधित करता है. अर्थात यदि कोई व्यक्ति या संगठन या व्यक्तियों का  समूह, भारत के किसी हिस्से पर कब्ज़ा करने की कोशिश करता है या उसको भारत से अलग करने की कोशिश करता है तो उसके विरुद्ध भी कानूनी कार्रवाही इसी एक्ट के प्रावधान के तहत की जाएगी। जैसे – सिखों द्वारा ‘खालिस्तान’ की मांग और मुसलमानों द्वारा ‘सिमी’ नामक संगठन का गठन।

 

  • एनआईए द्वारा संपत्ति जब्त करने की मंजूरी :  इस अधिनियम के तहत, एक जांच अधिकारी को आतंकवाद से जुड़ी संपत्तियों को जब्त करने के लिए पुलिस महानिदेशक की पूर्व मंजूरी प्राप्त करना आवश्यक है। विधेयक में कहा गया है कि यदि जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के किसी अधिकारी द्वारा की जाती है, तो ऐसी संपत्ति को जब्त करने के लिए एनआईए के महानिदेशक की मंजूरी की आवश्यकता होगी। 
  • एनआईए द्वारा जांच : इस अधिनियम के द्वारा उक्त मामलों की जांच उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त या उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों द्वारा की जा सकती है। विधेयक अतिरिक्त रूप से एनआईए के इंस्पेक्टर या उससे ऊपर रैंक के अधिकारियों को मामलों की जांच करने का अधिकार देता है। 
  • संधियों की अनुसूची में सम्मिलन : यह अधिनियम आतंकवादी कृत्यों को परिभाषित करता है ताकि अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध किसी भी संधि के दायरे में किए गए कृत्यों को शामिल किया जा सके। अनुसूची में नौ संधियों को सूचीबद्ध किया गया है। जिनमें आतंकवादी बम विस्फोटों के दमन के लिए कन्वेंशन (1997), और बंधकों को लेने के खिलाफ कन्वेंशन (1979) शामिल हैं। विधेयक सूची में एक और संधि जोड़ता है। यह परमाणु आतंकवाद के कृत्यों के दमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (2005) है।    
  • गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) संशोधन बिल, 2019 व्यक्तियों और संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों और आतंकवादी गतिविधियों और अन्य संबंधित मामलों से निपटने के लिए इस कानून को और अधिक प्रभावी और सक्षम बनाता है। 

भारत में गैरकानूनी गतिविधि की परिभाषा : 

 

  • गैरकानूनी गतिविधि में “व्यक्ति या संघ द्वारा किये गए निम्न कार्यों/गतिविधियों को शामिल किया गया है।  जैसे – शब्दों के द्वारा, लिखित, कार्यों के द्वारा, संकेतों द्वारा, भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को बाधित करने या तोड़ने का कोई भी प्रयास.किया जाना ।
  • गैरकानूनी गतिविधि” का तात्पर्य व्यक्ति या संघ द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई से है । चाहे कोई कार्य करके या शब्दों के द्वारा, बोले गए या लिखित रूप से, या संकेतों के माध्यम से सवाल करना, खंडन करना, बाधित करना या भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को बाधित करने का इरादा हो।

 

गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 का विस्तार और अनुप्रयोग : 

  1. यह कानून पूरे देश में लागू है।
  2. UAPA  के तहत आरोपित कोई भी भारतीय या विदेशी नागरिक इस अधिनियम के तहत सजा के लिए उत्तरदायी है, भले ही अपराध किसी भी जगह पर किया गया हो.।
  3. इस अधिनियम के प्रावधान भारतीय और विदेशी नागरिकों पर भी लागू होते हैं।
  4. यदि कोई पानी का जहाज और एयरक्राफ्ट भारत में पंजीकृत है, तो उस पर सवार व्यक्ति किसी भी देश में हो, उन पर यह कानून लागू होता है।

निष्कर्ष / समाधान की राह : 

 

  1. इस अधिनियम के लिखित उपर्युक्त प्रावधानों से यह पता चलता है कि गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 पहले से ही एक बहुत ही सख्त/ कठोर  कानून था लेकिन गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 द्वारा हाल ही में हुए बदलावों ने इस कानून को और भी सख्त/ कठोर  बना दिया है।
  2. इन हालिया बदलावों के आधार पर विपक्षी दलों के नेता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सरकार इस कानून का अपने हितों की पूर्ति के लिए और विपक्षी राजनीतिक दलों को डराने के लिए इसका दुरुपयोग भी कर सकती है जैसा कि हमने आतंकवाद निरोधक अधिनियम (POTA) के मामले में देखा था।
  3. इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सरकार इस कानून का प्रयोग अपने विरोधी लोगों और संस्थाओं की आवाज को दबाने के लिए कर सकती है. चूंकि इसमें संसद को मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगाने की शक्ति प्रदान की गयी है इसलिए यह मामला बहुत संजीदा हो जाता है। 
  4. अतः सरकार को इस मसले पर सूझबूझ से काम लेना होगा ताकि देश की एकता और अखंडता को बनाये रखते हुए व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा भी की जा सके।
  5. बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा और पांच अन्य को माओवादियों के साथ संबंध रखने के आरोप से मुक्त किया जाना, किसी व्यक्ति के अतिवादी समूहों के साथ सिर्फ संभावित जुड़ाव या हमदर्दी के आधार पर गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम,जैसे कड़े कानून थोप देने के प्रचलन को भी दिखाता है। अतः इस अधिनियम का उपयोग बड़े ही सूझबूझ और निष्पक्षता से करना होगा , ताकि किसी भी व्यक्ति को केवल शक के आधार पर गिरफ्तार कर लेने से उस व्यक्ति को भारत के संविधान द्वारा प्रदत मौलिक अधिकार का हनन और अतिक्रमण न हो। 
  6. भारत में केंद्र सरकार द्वारा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम होगा।
  7. गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 द्वारा इस तथ्य को भी सुनिश्चित किया जाए कि इसका उपयोग केंद्र सरकार द्वारा अपने विपक्षी राजनीतिक दलों के लिए या विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को डराने या गलत तरीके से फंसाने के लिए इसका दुरूपयोग नहीं किया जाए । तभी इस गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 में निहित उद्देश्यों को सुनिश्चित किया जा सकता है और इस संशोधन विधेयक की वर्तमान प्रासंगिकता भी बनी रह सकती है।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019  के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. यह कानून केन्द्रशासित राज्यों / प्रदेशों में ही लागू होता है।
  2. इस अधिनियम के प्रावधान भारतीय और विदेशी नागरिकों दोनों  पर लागू होते हैं।
  3. यह विधेयक, सरकार को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित कर सकती है।
  4. इस अधिनियम के तहत, एक जांच अधिकारी को आतंकवाद से जुड़ी संपत्तियों को जब्त करने के लिए पुलिस महानिदेशक की पूर्व मंजूरी प्राप्त करना आवश्यक है। 

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?

(A) केवल 1 और 3 

(B) केवल 2 और 4 

(C) केवल 1, 2 और 3 

(D) केवल 2, 3 और 4 

 

उत्तर – (D) 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के प्रमुख प्रावधानों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक 2019 का दुरूपयोग किस प्रकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन या अतिक्रमण करता है ? तर्कसंगत व्याख्या प्रस्तुत कीजिए।

 

 

 

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