गोहत्या पर प्रतिबंध

गोहत्या पर प्रतिबंध

पाठ्यक्रम: जीएस 2 / भारतीय राजव्यवस्था और उससे संबंधित मुद्दे-

संदर्भ-

  • कर्नाटक सरकार द्वारा कर्नाटक पशु संरक्षण और वध रोकथाम अधिनियम 2020, को वापस लेने के लिए एक कदम उठा रही है, जिसे पिछली सरकार द्वारा लागू किया गया था।

प्रमुख बिन्दु-

  • वर्तमान सरकार 2020 के कानून द्वारा वृद्ध मवेशियों के प्रबंधन और मृत पशुओं के निपटान में व्यापार पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण किसानों के सामने आने वाली कठिनाइयों के कारण गोहत्या प्रतिबंध को वापस लेने से मुश्किलों का समाधान करना है।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 48-

  • राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा।

कर्नाटक पशु संरक्षण और वध रोकथाम अधिनियम 2020 क्या है?

  • कर्नाटक पशु संरक्षण और वध रोकथाम अधिनियम, 2020, फरवरी 2021 में कर्नाटक में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने पारित किया था।
  • जिसके तहत बैल, सांड, भैंस और बछड़ों को शामिल करने के लिए गोहत्या पर मौजूदा प्रतिबंध को बढ़ा दिया गया था।
  • कर्नाटक की सरकार द्वारा अधिनियमित कानून, 2021 में लागू हुआ और सभी मवेशियों को खरीदने, बेचने, परिवहन, वध करने, व्यापार करने के लिए अवैध बनाता है।( गाय, बैल, भैंस, बैलों )
  • एकमात्र अपवाद 13 वर्ष से अधिक उम्र के भैंसों के लिए हैं और आमतौर पर बीमार मवेशी हैं, लेकिन केवल एक पशुचिकित्सा से प्रमाणीकरण के बाद।
  • दोषी पाए जाने वालों को 7 साल तक की कैद हो सकती है, और 50,000 और 5 लाख के बीच जुर्माना लगाया जा सकता है।

पिछली सरकार ने इतना कड़ा कानून क्यों बनाया?

  • पशु वध पर प्रतिबंध आरएसएस, विहिप और अन्य जैसे दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी समूहों की एक प्रमुख मांग रही है, जो पिछली भाजपा सरकार का मुख्य समर्थन आधार हैं।
  • साथ ही गाय को हिंदू धर्म में पवित्र पशु माना जाता है।

2020 के कानून के क्या नतीजे रहे हैं?

  • 2020 के कानून का कृषि क्षेत्र पर महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, विशेष रूप से दक्षिणी कर्नाटक में जहां डेयरी फार्मिंग और कृषि काफी हद तक मवेशियों पर निर्भर है।
  • मवेशियों के वध पर को लेकर किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया है, और ऐसी कई शिकायतें हैं कि जब उनके मवेशी बीमार हो जाते हैं या अनुपयोगी हो जाते हैं तो प्रतिबंध के कारण उनके पास कोई विकल्प नहीं रह जाता है।
  • पारंपरिक मवेशी बाजार धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं और मवेशी खरीदने के लिए बहुत कम व्यापारी थे। यदि पशु अनुत्पादक होते तो किसान पहले पशु बेचते थे लेकिन अब ऐसा नहीं किया जा सकता है ऐसा किसानों द्वारा कहा गया।
  • इसके अलावा,ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं, जहां दक्षिणपंथी गौ रक्षकों, जिन्हें नए कानून द्वारा संरक्षित किया गया है- ने वध के लिए केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में मवेशियों की आवाजाही को रोकने के लिए कानून अपने हाथों में लेने की घटनाएं भी हुई हैं।

आगे क्या है-

  • कर्नाटक सरकार 1964 के कानून की ओर लौटने की मांग कर सकती है, जिसने गायों के वध पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन बुढ़ापे, बीमारी और उत्पादकता की कमी की स्थिति में अन्य रूपों के मवेशियों के प्रतिबंधित वध की अनुमति दी थी।
  • उम्मीद की जा रही है कि पार्टी इस कदम को धार्मिक मुद्दे के बजाय किसानों की आजीविका और आर्थिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण होने के रूप में पेश करेगी।

स्रोत इंडियन एक्स्प्रेस

 

 

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