चुनावी बॉण्ड:अवसर या खतरा

चुनावी बॉण्ड:अवसर या खतरा

संदर्भ क्या है?

  • भारतीय स्‍टेट बैंक की शाखाओं में चुनावी बॉण्ड (Electoral Bond) एक जुलाई, 2022 से 10 जुलाई, 2022 तक खरीदने के लिए जारी किये गए।
  • हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक  ने एक रिपोर्ट में बताया कि कि चुनावी बॉण्ड  के माध्यम से राजनीतिक दलों को दान की गई राशि 10,000 करोड़ रुपए का आँकड़ा पार कर चुकी है।
  •  राजनैतिक दलों द्वारा एकत्र की गई कुल राशि वर्ष 2018 में चुनावी बॉण्ड योजना शुरू होने के बाद से 10,246 करोड़ रुपए हो गई है।
  • जुलाई 2022 में आयोजित चुनावी बॉण्ड की 21वीं बिक्री में राजनैतिक दलों को चुनावी बॉण्ड खरीद से 5 करोड़ रुपए मिले।

चुनावी बॉण्ड क्या हैं ?

  • राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में इलेक्‍टोरल बॉण्ड की व्यवस्था की गयी है।
  • केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 केबजट में इलेक्‍टोरल बॉण्ड शुरू करने का ऐलान किया था।
  • इलेक्‍टोरल बॉण्ड से आशय एक ऐसे बॉण्ड से होता है जिसके ऊपर एक करेंसी नोट की तरह उसकी वैल्यू या मूल्य लिखा होता है।
  • वर्ष में चार महीनों में 1 से 10 तारीख के बीच इलेक्टोरल बॉण्ड की बिक्री होती है। ये महीने हैं-जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर।
  • भारतीय स्‍टेट बैंक की केवल 29 शाखाओं में ही इलेक्‍टोरल बॉण्ड मिलते हैं।
  • 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपेय और 1 करोड़ रुपये मूल्‍य के बॉण्ड कोई भी भारतीय व्‍यक्ति खरीद सकता है। इसका अर्थ है कि एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक बॉण्ड के जरिए किसी राजनीतिक दल को दे सकते हैं।

आयकर छूट
• आयकर विभाग की धारा 80GGC/80GGB के तहत इनकम टैक्स (Income Tax) में छूट भी मिलती है।
• इसके अलावा, राजनीतिक दलों को Income Tax Act के Section 13A के तहत बॉण्ड के तौर पर मिले चंदे में छूट मिलेगी।

चुनावी बॉण्ड खरीदने की योग्यता
• भारत का कोई भी नागरिक, संस्था या कंपनी चुनावी चंदे के लिए इलेक्टोपरल बॉण्ड खरीद सकते हैं।
• बॉण्ड के लिए बॉण्ड खरीदने वाले को अपनी सारी जानकारी (केवाईसी) बैंक को देनी होगी।
• चुनावी बॉण्ड खरीदने वालों के नाम गोपनीय रखे जाते हैं और इन बॉण्ड पर बैंक द्वारा कोई ब्याज नहीं दिया जाता है।
• बॉण्ड खरीदने वाले को उसका उल्लेख अपनी बैलेंस शीट में भी करना होगा।
• यह बॉण्ड खरीदे जाने के 15 दिन तक मान्य होते हैं।
चुनावी बॉण्ड खरीदने की शर्तें
इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए डोनेशन हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों के लिए दो शर्तें हैं।
• पहली, राजनीतिक दल सेक्शन 29A के रिप्रजेंटेजेंशन ऑफ द पीपल एक्ट, 1951 के तहत रजिस्टर्ड होना चाहिए।
• दूसरी, उसे लोकसभा और राज्यों के चुनाव में कुल डाले गए वोट्स का कम से कम 1 फीसदी मिला होना चाहिए।

अन्य शर्तें
• चुनावी बॉण्ड से चंदा लेने वाले राजनीतिक दल को बांड जारी होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर इसे भुनाना होगा।
• चुनावी बॉण्ड की राशि राजनीतिक दल के बैंक खाते में उसी दिन जमा कर दी जाएगी जिस दिन इसे बैंक में प्रस्तुत किया जाएगा।
• चुनावी बॉण्ड खरीदने के लिए चेक का उपयोग करना होगा।
• चुनावी बांड का इस्तेमाल राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जाता है।
• इस बांड का उपयोग करके किए गए दान पर भी कर छूट उपलब्ध है।

चुनौतियाँ
• राजनीतिक चंदे में योगदानकर्ता की गोपनीयता और अस्पष्टता चुनाव आयोग की जांच के दायरे से बाहर है। केवाईसी होने के बाद भी केवल बैंक या सरकार ही डोनर के बारे में जान सकती है, चुनाव आयोग या कोई आम नागरिक नहीं।
• जनप्रतिनिधित्व कानून (आरपी एक्ट) की धारा 29सी में संशोधन में कहा गया है कि चुनावी बॉण्ड के जरिए मिलने वाले चंदे को चुनाव आयोग की जांच के दायरे से बाहर रखा जाएगा। चुनाव आयोग ने इसे प्रतिगामी कदम बताया है। चुनाव आयोग ने कहा कि वह यह भी नहीं जान पाएगा कि किसी राजनीतिक दल को विदेशी स्रोतों से सरकारी कंपनियों से चंदा मिल रहा है या नहीं, जिस पर धारा 29बी के तहत रोक लगाई गई है।•आरटीआई से ही यह खुलासा हुआ है कि रिजर्व बैंक ने सरकार को इलेक्टोरल बॉण्ड जारी करने की चेतावनी दी थी। रिजर्व बैंक ने कहा था कि इसे जारी करने वाले प्राधिकरण को प्रभाव में लिया जा सकता है। इस वजह से इसमें पूरी तरह से पारदर्शिता नहीं रखी जा सकती है। यह मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को कमजोर करेगा।
• सरकार का यह भी तर्क है कि इन बॉण्ड को रैंडम सीरियल नंबर दिए गए हैं जो सामान्य तौर पर आंखों से नहीं दिखते। बॉण्ड जारी करने वाला एसबीआई इस सीरियल के बारे में किसी को नहीं बताता।
• इन बॉण्ड को राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों (एसबीआई) के माध्यम से बेचा जाता है, इस तरह से सरकार यह जान सकती है कि विपक्षी दलों को कौन वित्त पोषण कर रहा है।
• वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त राशि का खुलासा करने से छूट दी है। इसका आशय यह है कि मतदाता यह नहीं जान पाएंगे कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक वित्त पोषित किया है। इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में बाधा आ सकती है।

लाभ या समाधान
• सरकार ने इस बॉण्ड को वर्ष 2018 में इस तर्क के साथ पेश किया था कि इससे राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बढ़ेगी और पारदर्शी रूप से धन आएगा। इसमें व्यक्ति,कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉण्ड खरीदते हैं और उन्हें राजनीतिक दलों को दान के रूप में देते हैं और राजनीतिक दलों को इन बॉण्ड को बैंक में भुनाकर पैसा मिलता है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने सुझाव दिया कि चुनावों का आंशिक वित्तीयन राज्य द्वारा किया जाना चाहिए। इलेक्टोरल बॉण्ड द्वारा पारदर्शिता से वित्तीयन होगा और राज्य पर भर भी नहीं बढेगा ।

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