चुनावी बॉण्ड योजना बनाम : सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन

चुनावी बॉण्ड योजना बनाम : सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी। 

सामान्य अध्ययन -2 I – चुनावी बॉण्ड योजना, राजनीतिक दल, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, चुनाव प्रक्रिया पर चुनावी बॉण्ड का प्रभाव, पारदर्शिता और जवाबदेहिता, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।

खबरों में क्यों ? 

  • 15 फरवरी 2024 को भारत के उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा शरू की गई को चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया है। 
  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
  • उच्चतम न्यायालय ने इस मामले सुनवाई के दौरान कहा कि भारतीय नागरिकों को भारतीय संविधान द्वारा प्रदात सूचना का अधिकार है।
  • उच्चतम न्यायालय ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को साल 2023 के अप्रैल महीने से लेकर अब तक की सारी जानकारियां चुनाव आयोग को देने के लिए कहा और भारत के चुनाव आयोग ये संपूर्ण जानकारी उच्चतम न्यायालय को देने के लिए भी कहा है। 

भारत में चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता से जुड़ा क्रमिक विकास  : 

भारत में चुनावी बॉन्ड योजना विभिन्न राजनीतिक दलों को फंडिंग का एक तरीका है। चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता से संबंधित मामले में उच्चतम न्यायालय की पांच – न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी 2024  को इसे रद्द करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।

  • भारत में वर्ष 2017 में  वित्त विधेयक के माध्यम से संसद में चुनावी बॉन्ड योजना पेश की गई थी।
  • 14 सितंबर, 2017 को ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) नामक एनजीओ ने मुख्य याचिकाकर्ता के रूप में इस योजना के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में चुनौती पेश किया।
  • 03 अक्टूबर, 2017 को उच्चतम न्यायालय ने उस एनजीओ द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र सरकार  और भारतीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया।
  • 2 जनवरी, 2018 को  केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना को भारत में अधिसूचित किया।
  • 7 नवंबर, 2022को  चुनावी बॉन्ड योजना में एक वर्ष में बिक्री के दिनों को 70 से बढ़ाकर 85 करने के लिए संशोधन किया गया, जहां कोई भी विधानसभा चुनाव निर्धारित हो सकता है।
  • 6 अक्टूबर, 2023 को भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय के बेंच ने इस योजना के खिलाफ याचिकाओं को पांच – न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा।
  • 31 अक्टूबर, 2023 को भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
  • 2 नवंबर, 2023 को उच्चतम न्यायालय ने इस योजना में अपना  फैसला सुरक्षित रखा।
  • 15 फरवरी, 2024 को भारत के उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया और कहा कि –  यह भारतीय संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को प्रदात वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है।

भारत के उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना से संबंधित सुनवाई के दौरान मुख्य रूप से दो महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए सहमत हुआ था। वे दो महत्वपूर्ण मुद्दा निम्नलिखित है – 

  1. राजनीतिक दलों को गुप्त दान की वैधानिकता और राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के बारे में जानकारी के नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन, संभावित रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
  2. ये मुद्दे संवैधानिक अनुच्छेद 19, 14 और 21 के उल्लंघन से संबंधित हैं।

चुनावी बॉण्ड योजना का परिचय एवं पृष्ठभूमि :

  • भारत में चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से संसद में पेश किया गया था और इसे वर्ष 2018 में लागू भी कर दिया गया था।
  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दानदाताओं की नाम को गुप्त रखते हुए या सार्वजानिक किए बिना पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए व्यक्तियों और संस्थाओं के लिए एक साधन के रूप में कार्य करते हैं।

चुनावी बॉण्ड योजना की विशेषताएँ :

  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के बॉण्ड जारी करता है।
  • भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी किया गया यह बॉण्ड ब्याज मुक्त होता है और धारक द्वारा मांगे जाने पर देय होता है।
  • इस बॉण्ड को कोई भी भारतीय नागरिक अथवा भारत में स्थापित कोई भी संस्थाएँ खरीद सकती हैं।
  • भारत में चुनावी बॉण्ड को व्यक्तिगत रूप से या संयुक्त रूप से भी खरीदा जा सकता है।
  • भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी यह चुनावी बॉण्ड जारी होने की तिथि से मात्र 15 दिनों तक के लिए ही  वैध होता है।

भारत में चुनावी बॉण्ड के लिए अधिकृत जारीकर्त्ता बैंक :

  • भारत में चुनावी बॉण्ड के लिए अधिकृत जारीकर्त्ता बैंक भारतीय स्टेट बैंक है।
  • भारत में चुनावी बॉण्ड नामित भारतीय स्टेट बैंक शाखाओं के माध्यम से ही जारी किए जाते हैं।

भारत में चुनावी बॉण्ड खरीदने के राजनीतिक दलों की पात्रता :

  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत भारत में केवल वही पंजीकृत राजनीतिक दल ही, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा अथवा विधानसभा के लिए डाले गए वोटों में से कम – से – कम 1% वोट हासिल किया हो, वही इस चुनावी बॉण्ड को खरीदने के लिए पात्र होते हैं।
  • भारत में चुनावी बॉण्ड डिजिटल माध्यम अथवा चेक के माध्यम से ही खरीदे जा सकते हैं।
  • भारत में चुनावी बॉण्ड का नकदीकरण केवल राजनीतिक दल के अधिकृत बैंक खाते के माध्यम से ही किया जा सकता है।

चुनावी बॉण्ड के प्रति पारदर्शिता और जवाबदेही :

  • भारत में राजनीतिक दलों को भारतीय निर्वाचन आयोग के सामने अपने बैंक खाते के विवरणों का खुलासा करना अनिवार्य होता है।
  • चुनावी बॉण्ड में प्रति पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बैंकिंग चैनलों के माध्यम से दान दिया जाता है।
  • भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड से प्राप्त धन के उपयोग का विवरण देना अनिवार्य होता है।

भारत में चुनावी बॉण्ड योजना का लाभ :

  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना के तहत प्राप्त धन राशि से भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों की चुनावी फंडिंग में होने वाले खर्चों की पारदर्शिता में वृद्धि होती है ।
  • चुनावी बॉण्ड योजना के तहत प्राप्त धन के रूप में या प्राप्त दान के रूप में प्राप्त धन के उपयोग का ब्रज्नीतिक दलों को खुलासा करने की जवाबदेही होती है ।
  • चुनावी बॉण्ड योजना के तहत नकद रूप में या नकदी लेन-देन में कमी आती है ।
  • दानकर्ताओं के नाम को गुप्त रखा जाता है या दानदाता की पहचान की गोपनीयता का संरक्षण किया जाता है।

भारत में चुनावी बॉण्ड योजना से संबंधित मुख्य चिंताएँ और चुनौतियाँ  :

चुनावी बॉण्ड योजना का अपने मूल विचार के विपरीत होना : 

  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना की आलोचना का मुख्य कारण यह है कि यह अपने मूल विचार अथवा उद्देश्य, चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने, के बिल्कुल विपरीत काम करती है।
  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना से संबंधित आलोचकों के एक वर्ग का यह तर्क है कि चुनावी बॉण्ड की गोपनीयता केवल जनता और विपक्षी दलों के लिए ही होता  है, यह दान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों  पर/ के लिए लागू नहीं होता है।

चुनावी बॉण्ड योजना के तहत ज़बरन वसूली की प्रबल संभावना : 

  • भारत में चुनावी बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंक (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, जिससे सत्तारूढ़ सरकार को यह पता चल जाता है कि उसके विरोधियों की पार्टियों को कौन – कौन फंडिंग कर रहा है।
  • चुनावी बॉण्ड योजना के तहत सत्तारूढ़ पार्टी या  वर्तमान सरकार को विशेष रूप से बड़ी कंपनियों से पैसे वसूलने के लिए यह सुविधा प्रदान करता है या कभी -कभी यह सत्ताधारी पार्टी को धन न देने के लिए उस व्यक्ति या उस कंपनी को सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा परेशान करने की प्रबल संभावना को भी दर्शाता है। यह किसी भी तरह से सत्ताधारी पार्टी को अनुचित लाभ प्रदान करता है।

सूचना के अधिकार से समझौता होने की प्रबल संभावना :

  • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे समय से माना है कि सूचना का अधिकार विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में, भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
  • भारत में केंद्र सरकार ने चुनावी बॉण्ड योजना को दो वित्त अधिनियमों वित्त अधिनियम, 2017 और वित्त अधिनियम, 2016 के माध्यम से इसमें कई संशोधन किए थे, दोनों वित्त अधिनियमों को ‘धन विधेयक’ के रूप में लोकसभा में पारित किया गया था ।
  • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्त्ताओं ने इन संशोधनों को ‘असंवैधानिक’, ‘शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों’ और ‘मौलिक अधिकारों’ की एक शृंखला का उल्लंघन बताते हुए ही चुनावी बॉण्ड योजना चुनौती दी थी।

निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव प्रक्रिया के विरुद्ध :

  • भारत में चुनावी बॉण्ड भारतीय नागरिकों को प्राप्त किए गए धन के स्त्रोत का कोई विवरण प्रस्तुत नहीं करता है।
  • चुनावी बॉण्ड के रूप में दिए गए दान दाताओं के नाम को गुप्त रखना या उसके नाम को सार्वजानिक नहीं करने से उक्त गुमनामी का असर तत्कालीन सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों या सरकार पर लागू नहीं होती है, जो हमेशा भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
  • यह है कि सत्ता में मौजूद सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को बाधित कर सकती है।

भारतीय लोकतंत्रात्मक व्यवस्था  के मूल अवधारण के विरुद्ध :

  • भारत में केंद्र सरकार ने वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान के नाम को बताने में छूट प्रदान की है।
  • भारत के किसी भी नागरिकों या मतदाताओं को यह कभी पता ही नहीं चलता है कि किस व्यक्ति ने, किस कंपनी ने या किस संगठन ने किस पार्टी को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से कितनी मात्रा में फंड प्रदान किया  है।
  • किसी भी लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाले देश के एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक उन लोगों को अपना वोट देते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः भारत के नागरिकों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से किसी राजनीतिक दल को कितना धन प्राप्त हुआ है , को जानने का अधिकार होना ही चाहिए।

बड़े कार्पोरेट घरानों और बड़े व्यावसायिक घरानों  के लाभ पर केंद्रित होना :

  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना ने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदा और भारतीय तथा विदेशी कंपनियों द्वारा गुप्त रूप से वित्तपोषण के द्वार खोल दिया हैं, जिसका भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर असर हो सकता है।
  • चुनावी बॉण्ड योजना के तहत भारत में कॉर्पोरेट और यहाँ तक कि विदेशी संस्थाओं द्वारा दिए गए दान पर कर में 100% छूट से बड़े व्यावसायिक घरानों को लाभ होता है।

घोर पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज़्म)  को बढ़ावा  :

  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक रूप से प्राप्त चंदे पर पूर्व में मौजूद सभी सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी संसाधन वाले निगमों को चुनावों को वित्तपोषित करने की अनुमति देती है। परिणामस्वरूप  क्रोनी कैपिटलिज़्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • घोर पूंजीवाद/ साठगांठ वाला पूंजीवाद / क्रोनी कैपिटलिज़्म में व्यापारियों और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद और साठगांठ वाला पूंजीवादीआर्थिक प्रणाली है। जिससे भारत के लोकतंत्रात्मक व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। 

निष्कर्ष / समाधान : 

  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना में पारदर्शिता बढ़ाने के उपाय को लागू करने करने की अत्यंत जरूरत है ।
  • भारत में राजनीतिक दलों के लिए चंदा प्राप्त करने के संबंध में चुनाव आयोग के समक्ष स्पष्टीकरण संबंधी सख्त नियम लागू होना चाहिए और भारत निर्वाचन आयोग को किसी भी प्रकार के दान की जाँच करने तथा चुनावी बॉण्ड एवं चुनाव एवं चुनाव में व्यय होने वाले धन दोनों ही के संबंध में स्पष्टीकरण देने का सख्त प्रावधान होना चाहिए 
  • भारत में चुनावी बॉण्ड योजना से प्राप्त धन के संबंध में संभावित दुरुपयोग, दान सीमा के उल्लंघन और क्रोनी पूंजीवाद तथा काले धन के प्रवाह जैसे जोखिमों को रोकने के लिए  चुनावी बॉण्ड में वर्तमान में मौजूद कमियों की पहचान करके उसका समाधान करने की अत्यंत जरूरत है।
  • वर्तमान भारत की लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में लोकतंत्र के प्रति  उभरती चिंताओं को दूर करने, बदलते राजनीतिक परिदृश्यों के अनुकूल ढलने और लोकतंत्र में अधिक समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक जाँच, आवधिक समीक्षा तथा सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से चुनावी बॉण्ड योजना की समयबद्ध निगरानी करने को सुनिश्चित करने की अत्यंत जरूरत है।
  • भारत के लोकतंत्र और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के दुष्चक्र और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता में गिरावट को रोकने के लिए  राजनीतिक स्तर पर साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की अत्यंत आवश्यकता है।
  • भारत के लोकतंत्र में संपूर्ण शासन तंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिए चुनावी बॉण्ड योजना में व्याप्त मौजूदा कानूनों की खामियों को दूर करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • भारतीय लोकतंत्र में मतदाता जागरूकता अभियानों की शुरुआत कर मौजूदा चुनावी बॉण्ड योजना में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाया जा सकता  हैं।
  • भारतीय लोकतंत्र में यदि मतदाता लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के प्रति जागरूक होकर उन उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को अस्वीकार कर देते हैं जो चुनावों में अधिक धन खर्च करते हैं या मतदाताओं को  रिश्वत देते हैं, तो भारतीय लोकतंत्र अपने मूल उद्देश्य के प्रति एक कदम आगे बढ़ जाएगा। जो भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश के लोकतंत्र के प्रति उज्जवल भविष्य के संकेत है। 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. चुनावी बॉण्ड के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. भारत में वर्ष 2017 में  वित्त विधेयक के माध्यम से संसद में चुनावी बॉन्ड योजना पेश की गई थी।
  2. भारत में चुनावी बॉण्ड के लिए अधिकृत जारीकर्त्ता बैंक रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया है।
  3. भारत में चुनावी बॉण्ड नकद , डिजिटल माध्यम, डिमांड ड्राफ्ट, एटीएम और चेक के माध्यम से खरीदे जा सकते हैं।
  4. चुनावी बॉण्ड ब्याज मुक्त होता है और धारक द्वारा मांगे जाने पर देय होता है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A) केवल 1 और 3 

(B) केवल 2 और 3 

(C ) केवल 2 और 4 

(D) केवल 1 और 4 

उत्तर – (D) 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. चुनावी बॉण्ड योजना बनाम सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के बीच के अंतर्संबधों के प्रमुख प्रवधानों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि चुनावी बॉण्ड एक निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव प्रक्रिया वाले लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित करता है? 

 

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