चुनावों में मुफ्त का आकर्षण और आर्थिक पक्ष

चुनावों में मुफ्त का आकर्षण और आर्थिक पक्ष

संदर्भ क्या है ?

  • वर्तमान में श्रीलंका का आर्थिक पतन और राजनैतिक संकट देखा जा रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में पंद्रहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष और भारतीय रिजर्व बैंक ने मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए राज्यों द्वारा अपनाई गई मुफ्त की योजनाओं की राजनीति (Freebie politics) की आलोचना की है।
  • श्रीलंका की सरकार ने भी करों में कटौती और विभिन्न मुफ़्त वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण के कदम उठाए थे जिसके कारण अर्थव्यवस्था के पतन की स्थिति बनी ।
    मतदाताओं को लुभाने के लिये या सत्ता में बने रहने के लिये मुफ़्त सुविधाएँ प्रदान करना हो, फ्रीबीज़ भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बन गए हैं।

आरबीआई की रिपोर्ट में फ्रीबीज के मुद्दे

आरबीआई द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में फ्रीबीज या मुफ्त की योजनाओं के  मुद्दे को उठाया गया है। वर्तमान परिदृश्य में, दस राज्यों की आर्थिक स्थिति बहुत चिंताजनक है, क्योंकि उनके वित्तीय ऋण का राज्य के सकल घरेलू उत्पाद से अनुपात बहुत अधिक बढ़ रहा है। इन सबके बीच पंजाब में हालात बेहद खराब हैं। अन्य राज्य राजस्थान, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा हैं। इसके अलावा वित्त वर्ष 2021-22 में इन राज्यों (उत्तर प्रदेश और झारखंड को छोड़कर) का राजकोषीय घाटा उनकी जीडीपी के तीन प्रतिशत से अधिक था।

इन राज्यों में कर्ज पर ब्याज भुगतान राजस्व के 10 फीसदी से ज्यादा रहा है। वर्ष 2019-20 में केवल ग्यारह राज्य वित्तीय लाभ में थे। पंजाब इन दिनों मुफ्त सुविधाओं (बिजली, पानी आदि) को लेकर काफी चर्चा में है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022-23 में नि:शुल्क प्रदान की जाने वाली विभिन्न प्रकार की सुविधाएं राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 25.6 प्रतिशत होने का अनुमान है, जबकि यह वित्तीय आय का 17.8 प्रतिशत और कर संग्रह का 45.4 प्रतिशत अनुमानित है। यह आंकड़ा आर्थिक विकास के मोर्चे पर चिंता बढाता  है।

फ्रीबीज़ या मुफ्त के आकर्षण से आशय

  • राजनीतिक पार्टियाँ मतदाताओं को आकर्षित करने के लिये मुफ़्त बिजली/पानी देने, बेरोज़गारों, मज़दूरों एवं महिलाओं के लिये मासिक भत्ते के साथ-साथ लैपटॉप, टीवी, साइकिल आदि देने का वादा करते हैं। यही नहीं ऋण माफी आदि की भी मुफ्त की घोषणा अक्सर की जाती है।  इन्हें ही फ्रीबीज या मुफ्त का आकर्षण कहा जाता है ।
    चुनावों में इस प्रकार की मुफ्त की घोषणाओं की आलोचना की जाती है क्योंकि ये मतदाताओं को रिश्वत देने के सामान है।

फ्रीबीज़ के पक्ष में तर्क

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोजगार गारंटी योजनाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए मुफ्त सहायता जैसे विषयों में व्यय वास्तव में समग्र लाभ पैदा करता है। यह कोविड  महामारी के दौरान पुष्टि हुई है ।
  • मुफ्त सहायता लंबे समय में गरीब जनसंख्या की उत्पादक क्षमता को बढ़ाने में योगदान करती हैं और मजबूत कार्यबल के निर्माण में मदद करती हैं, जो किसी भी विकास रणनीति का एक अनिवार्य हिस्सा है।
  • तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्य महिलाओं को सिलाई मशीन, साड़ी और साइकिल जैसे लाभ दे रहे हैं जो संबंधित उद्योगों की बिक्री बढ़ाने में भी योगदान देता है। इसे आपूर्तिकर्ता उद्योग के लिए प्रोत्साहन के रूप में देखा जाना चाहिए न कि धन की बर्बादी के रूप में।
  • गरीबी से पीड़ित निम्न स्तर के विकास वाले राज्यों के लिए इस तरह की मुफ्त सहायता आवश्यकता या मांग-आधारित हो जाती है और इस प्रकार लोगों के लिए विकास के लिए सब्सिडी देना आवश्यक हो जाता है।

फ्रीबीज़ के विपक्ष में तर्क

  • राजनीतिक दलों द्वारा जनता को मुफ्त सुविधाएं देने का न तो कोई संवैधानिक प्रावधान है और न ही दूरगामी आर्थिक विकास की विचारधारा इस पक्ष में है। कई राज्यों में यह भी देखने को मिल रहा है कि कर संग्रह बढ़ाने के उद्देश्य से शराब की बिक्री पर अधिक जोर दिया जा रहा है, क्योंकि आय बढ़ाने के अन्य स्रोत वर्तमान में उनके पास नहीं हैं। ऐसे में मुफ्त की घोषणाएं आर्थिक स्थिति को और ख़राब कर देती हैं।
  • फ्रीबीज़ की राजनीति व्यय प्राथमिकताओं को नकारात्मक करती है और सब्सिडी की राजनीति पर केंद्रित बने रहने की प्रवृत्ति उभरती है।
  • इनसे राजकोषीय घाटे और आर्थिक अस्थिरता की स्थिति बढती है।
  • यह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की भावना के विरुद्ध है। चुनाव से पहले लोकलुभावन घोषणायें मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करती हैं तथा सभी दलों के लिये समान अवसर की स्थिति में वाधा उत्पन्न करती हैं।
  • जब कोई बस्तु ‘मुफ़्त’ में प्रदान की जाती है तो इनका अत्यधिक उपयोग किया जाता है, इस प्रकार संसाधनों की बर्बादी होती है। इस प्रकार के कदम पर्यावरण संरक्षण एवं सतत विकास, नवीकरणीय ऊर्जा और धारणीय परिवहन प्रणालियों के लिए आवश्यक व्यय को कम करते हैं।
  • जब किसी वर्ग की ऋण माफ़ी की जाते है तो इससे उस वर्ग में आगे भी ऋण लेकर कभी नहीं चुकाने की प्रवृत्ति पैदा होती है , इस से समाज में गलत प्रवृत्ति आती है और देश की राजकोषीय स्थति के लिए खतरा बना रहता है ।

निष्कर्ष

  • फ्रीबीज़ के प्रभावों को आर्थिक बुद्धिमत्ता और करदाताओं के धन के उचित प्रयोग से संयोजित करके समझा जाना चाहिए। सब्सिडी का तार्किक प्रयोग हो और फ्रीबीज़ पर अंकुश लगाये जाने कि आवश्यकता है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था आज वैश्विक पहचान रखती है, लेकिन राज्यों की कमजोर होती हुई आर्थिक स्थिति विदेशी निवेशकों में असमंजस और खतरे का सूचक बनती जा रही है। ऐसी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण लगाना होगा अन्यथा इस संकट के प्रभाव देश की आर्थिक स्थिति पर भी स्पष्ट तौर पर देखने को मिल सकते हैं।
  • भारत एक विशाल और विविधता वाला देश है और यहाँ अभी भी ऐसे लोगों का एक विशाल समूह उपलब्ध है जो गरीबी रेखा से नीचे है। समावेशी विकास के लिए क्या मुफ्त में दिया जाना आवश्यक है और क्या नहीं ,इसकी तार्किकता को समझा जाना आवश्यक है।
  • कोई भी मुफ्त की घोषणा या सहायता की यदि आबश्यकता होती है तो उसे सरकार की तरफ से सरकारी नीति के रूप में किया जाना चाहिए न कि लोक लुभावन वादों के रूप में चुनाव के समय । चुनावी घोषणाओं पर नियंत्रण के लिए निर्वाचन आयोग को सशक्त किया जाना चाहिए।

Yojna IAS Daily Current Affairs Hindi med 15th July

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